महिला अधिकारों के मामले में खराब हो रहे जमीनी हालात: सविता
लड़कियों व महिलाओं के अधिकार व सुरक्षा पर ऑनलाईन संगोष्ठी आयोजित
अध्यापक संघ ने महिलाओं के अधिकार दिवस के रूप में मनाया मानवाधिकार दिवसअरुण कुमार कैहरबा
स्कूल टीचर फेडरेशन ऑफ इंडिया के आह्वान पर हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस को बच्चियों व महिलाओं के अधिकार दिवस के रूप में मनाया। इस मौके पर लड़कियों व महिलाओं के अधिकार सुरक्षा विषय पर एक ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता संघ के प्रदेशाध्यक्ष प्रभु सिंह ने की और संचालन निर्मला ने किया।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए जनवादी महिला समिति की प्रदेश महासचिव सविता ने कहा कि जबसे मानव व मानव सभ्यता की शुरूआत हुई है, तभी से जीवन की गुणवत्ता को लेकर भी काम किया जा रहा है। 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के दौरान जो नियम बनाए गए थे, वे पुरूषों के लिए बनाए गए थे। उस समय कुछ महिला क्लब बनाए गए थे, जिसमें केवल पुरूषों को अधिकार देने की आलोचना की गई और महिलाओं के अधिकार की आवाज बुलंद की गई थी। उस समय मानवाधिकार के संदर्भ में महिलाओं को भी बराबर का नागरिक समझने और पूरे अधिकार मिलने की चर्चा गर्म हुई। 10 दिसंबर, 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकारों की घोषणा की। उसमें बिना किसी लिंग, क्षेत्र, बोली-भाषा के भेदभाव के 30 अधिकार दिए गए। उसके बाद के समय में 1966 में मानवाधिकारों विशेष तौर पर महिलाओं के अधिकारों को लेकर काफी चर्चा हुई। डॉ. भीमराव अंबेडकर व संविधान निर्माताओं ने संविधान में महिला अधिकारों को आगे बढ़ाया। हिंदू कोड बिल में जब महिलाओं के अधिकारों की बात की गई तो कट्टरपंथी लोगों ने उसका विरोध किया था। पांच साल की मशक्कत के बाद कुछ अधिनियम पास हुए, जिसमें बहु पत्नी प्रथा की समाप्ति हुई। पिता की संपत्ति में बेटी का हिस्सा सुनिश्चित किया गया।
सविता ने कहा कि लंबे विचार-विमर्श को देखते हुए भी यदि यथार्थ को देखा जाए तो महिलाओं को आज भी दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है। भारत में पितृसत्तात्मक और जातिवादी व्यवस्था महिलाओं की स्थिति को और अधिक दयनीय बना देती है। उन्होंने कहा कि जनवादी महिला समिति जनवाद, समानता और नारी मुक्ति के लिए काम कर रही है। महिलाओं ने अपने संघर्षों से जो अधिकार हासिल किए, उन पर आज खतरा मंडरा रहा है। जो कानून संघर्षों से बनवाए गए हैं, उनको भी खतरा है। उन्होंने कहा कि आज कुछ ताकतें देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने और मनुस्मृति को लागू करना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि फिलीस्तीन व दुनिया के किसी भी हिस्से में होने वाले युद्धों में महिलाओं और बच्चों के जीवन के अधिकारों पर हमले हो रहे हैं। गरीबी और महंगाई बढऩे से भी महिलाओं का जीवन नर्क बन रहा है। आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक तौर पर महिलाओं के अधिकारों पर हमले हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्व आर्थिक मंच के आंकड़ों के अनुसार गलोबल जेंडर गैप के मामले में भारत काफी निचले पायदान पर है। शिक्षा के मामले में हम 112वें और स्वास्थ्य के मामले में 142वें स्थान पर हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि लैंगिक असमानता को कवर करने में भारत को सौ से अधिक साल लगेंगे। महिलाओं को आज भी जो काम करना पड़ता है, उसका वेतन उसे नहीं मिलता है। बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल में पुरूषों की तुलना में महिलाएं दोगुना समय देती हैं। अन्य कामों में महिलाओं को वेतन भी कम दिया जाता है। आज भी देश में साक्षरता के मामले में पुरूषों की तुलना में महिलाओं की साक्षरता 17.2 प्रतिशत कम है। संसद और विधानसभाओं में महिला को आरक्षण आज भी नहीं मिला है। पंचायतों व स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित तो की गई हैं, लेकिन अन्य सीटों को पुरूषों के लिए आरक्षित कर दिया गया है। कोरोना महामारी के कारण रोजगार का जो संकट गहरा गया है, लेकिन उसमें भी महिलाएं ज्यादा प्रभावित हुई हैं। 40 लाख महिलाएं रोजगार से बाहर हो गई हैं। महिलाएं रोजगार तो करना चाहती हैं, लेकिन उन्हें रोजगार मिल नहीं रहा है। किसान महिलाएं व घरेलू महिलाएं कर्ज में डूब रही हैं। महिलाओं की आत्महत्या के आंकड़े बढ़ रहे हैं। काम का बोझ महिलाओं के ऊपर बढ़ गया है। महिलाओं व लड़कियों को वेश्यावृत्ति की तरफ धकेला जा रहा है। नशाखोरी और तनाव बढऩे से घरेलू हिंसा व अपराधों में इजाफा हुआ है। महिलाओं का सुरक्षित जीवन जीने का अधिकार खतरे में पड़ा है। सरकार का बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा जमीनी हकीकत को नहीं बदल पाया है, हां इस योजना का बहुत सा पैसा सरकारी विज्ञापनों में ज्यादा खर्च हुआ है। एक साल के अंदर 4 लाख 70 हजार लड़कियों को पेट में ही मारा गया है। आंकड़ों के अनुसार 32 हजार महिलाएं गत वर्ष बलात्कार की शिकार हुई हैं। एक लाख महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुई हैं। राजस्थान की खबर थी कि बच्चियों को लीज पर दिया जा रहा है। हरियाणा में दूसरे राज्यों से शादियों के लिए लड़कियां खरीद कर लाई जाती हैं। लड़कियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बेचा जाता है। उन्होंने कहा कि इंटरनेट के चलन में साईबर क्राईम में 32 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। ऑनर कीलिंग और महिला अपराध में हरियाणा नंबर वन पर है। अंधेरा होने के बाद लड़कियों को घर से बाहर निकलने पर पर पाबंदी लगाई जाती है। दक्षिणपंथी लोगों द्वारा महिला हिंसा के लिए पाश्चात्य संस्कृति और लड़कियों के वस्त्रों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। अधिकारों की बात करते हैं तो कर्तव्यों का पिटारा सामने कर दिया जाता है। कितने ही मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल की यातनाएं दी जा रही हैं। मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले लोगों पर हमले बढ़ गए हैं और उन्हें हतोत्साहित किया जा रहा है। हाशिये के लोगों की बजाय पूंजीपतियों के अधिकारों की बात की जा रही है। देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ गई है। महिलाओं के अधिकार सबसे ज्यादा खतरे में हैं। महिलाओं के शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण के अधिकारों पर हमले हो रहे हैं। शिक्षा का साम्प्रदायीकरण किया जा रहा है। घरेलू हिंसा के विरूद्ध बोलने वालों को परिवार विरोधी बताया जा रहा है। बाल विवाह का समर्थन करने के धड़ल्ले से बयान आ रहे हैं। पाठ्य पुस्तकों में महिलाओं के लिए सामाजिक रूप से उपयुक्त भूमिका को हाशिये पर डाल दिया गया है। पाठ्य पुस्तकों में महिलाओं को पुत्रों को जन्म देने की हिदायतें दी जा रही हैं। छत्तीसगढ़ में पाठ्यपुस्तक में बेरोजगारी के लिए महिलाओं के रोजगार करने को जिम्मेदार ठहराया गया है। ऑनर कीलिंग के खिलाफ कानून बनाने की बजाय सरकार द्वारा धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने का काम किया जा रहा है। अंतर्जातीय विवाह करने वाले युवाओं की जान पर खतरा बढ़ गया है। जाति और धर्म के आधार पर संकीर्णताएं और भेदभाव बढ़ता जा रहा है।
सविता ने कहा कि मुश्किल हालात के बावजूद युवा लड़कियां और महिलाएं नेतृत्वकारी भूमिका में आ रही हैं। विभिन्न आंदोलनों में महिलाएं बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। मुख्य वक्तव्य के बाद मनुस्मृति पर एक प्रतिभागी के सवाल का जवाब देते हुए सविता ने कहा कि कुछ लोग मनुस्मृति को संविधान के स्थान पर स्थापित करना चाहते हैं। आरएसएस सहित कुछ संगठन मनुस्मृति को प्रचारित भी करते हैं, लेकिन मनुस्मृति लोकतंत्र, समनता व न्याय के मूल्यों के विपरीत है। उसमें महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक बताया गया है और कुछ लोगों को विशेषाधिकार दिए गए हैं। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इस ग्रंथ की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने इस किताब को जलाया था।
संगोष्ठी की शुरूआत करते हुए एसटीएफआई नेता सीएन भारती ने कहा कि मानवाधिकार दिवस पर महिलाओं और लड़कियों की स्थिति पर चर्चा की जा रही है। उन्होंने कहा कि पूरे देश के सरकारी स्कूलों में 52प्रतिशत महिला अध्यापिकाएं हैं। स्कूलों में पढऩे वाली लड़कियों की संख्या भी काफी बड़ी है। ऐसे में सभी का महिला अधिकारों के बारे में संवेदनशील होना बेहद जरूरी है। उन्होंने आशा जताई कि बातचीत के मुख्य बिंदुओं को अध्यापक संघ अपनी कार्यप्रणाली में उतारेगा।
रिपोर्ट: अरुण कुमार कैहरबा
मो.नं.-9466220145
No comments:
Post a Comment