Wednesday, July 30, 2025

UDHAM SINGH SHAHEEDI DIVAS AUR PREMCHAND JAYANTI SEMINAR IN GMSSSS BIANA

राम मोहम्मद सिंह आजाद नाम उधम सिंह के सर्वधर्म समभाव के विचार को दर्शाता है: अरुण कैहरबा

आम जन की समस्याओं को आम जन की भाषा में लिखने वाले थे प्रेमचंद: नरेश मीत

उधम सिंह के शहीदी दिवस और प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में संगोष्ठी आयोजित

इन्द्री, 30 जुलाई 

गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में शहीद उधम सिंह के शहीदी दिवस और कथा सम्राट प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में स्वतंत्रता आंदोलन व साहित्य की महान शख्सियतों के जीवन-संघर्षों, विचारों व योगदान पर चर्चा करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य राम कुमार सैनी ने की। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने शहीद उधम सिंह के जीवन व विचारों पर अपने विचार व्यक्त किए और हिन्दी अध्यापक नरेश मीत ने प्रेमचंद का साहित्य में योगदान विषय पर अपने विचार व्यक्त किए।

अरुण कुमार कैहरबा ने अपने संबोधन में कहा कि 26 दिसंबर, 1899 को उधम सिंह का जन्म संगरूर जिला के सुनाम में हुआ। उनका बचपन का नाम शेर सिंह था। बहुत ही कम उम्र में माता का देहांत हो गया। 1907 में पिता के देहांत के बाद शेर सिंह और उनका बड़ा भाई मुक्ता सिंह अनाथ हो गए। अमृतसर के अनाथालय में उनकी शिक्षा हुई। 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड उधम सिंह के जीवन को नई दिशा देता है। अंग्रेजों की क्रूरता एवं भारतीयों के प्रति क्रूरता का बदला लेने के लिए वे गदर पार्टी व स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांतिकारी धारा से जुड़ जाते हैं। अधिक औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं करने पाने के बावजूद वे दुनिया के विभिन्न देशों की यात्राएं करते हुए व्यापक अनुभव हासिल करते हैं। उन्होंने कहा कि लंदन में माइकल ओडवायर को मारने के बाद में वे पुलिस को अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद बताते हैं। इससे पता चलता है कि उधम सिंह साम्प्रदायिक सद्भाव व सर्वधर्म समभाव में विश्वास करते थे और इसे ही आजादी का मूलमंत्र मानते थे। उन्होंने कहा कि उधम सिंह आजादी की लड़ाई का ऐसा सिपाही है, जिनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।


मुंशी प्रेमचंद के बारे में बोलते हुए नरेश मीत ने कहा कि प्रेमचंद उनके पसंदीदा साहित्यकार हैं। क्योंकि उन्होंने अपनी रचनाओं में आम जन के जीवन की मुश्किलों, विसंगतियों, शोषण को व्यक्त किया। आम जन की भाषा में लिखने के कारण भी उनके साहित्य का विशेष महत्व है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद से पूर्व हिन्दी साहित्य जादू-टोनों, राजा-रानी की कहानियों और चमत्कारों के जाल में उलझा हुआ था। प्रेमचंद ने 300 के करीब कहानियों और अपने उपन्यासों के जरिये साहित्य की धारा को मोडऩे का काम किया। उन्होंने प्रेमचंद की सवा सेर गेहूं, पूस की रात व कफन आदि कहानियों का उदाहरण देते हुए उनके साहित्य का विश£ेषण किया। इस मौके पर प्राध्यापक डॉ. सुभाष चन्द्र, सलिन्द्र मंढ़ाण, विनोद भारतीय, सतीश राणा, बलविन्द्र सिंह, राजेश सैनी, राजेश कुमार, सीमा गोयल, सन्नी चहल, स्वर्णजीत शर्मा, महेश कुमार, रमन बग्गा, अश्वनी कांबोज, निशा कांबोज, संगीता सहित सभी स्टाफ सदस्य मौजूद रहे।










 

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