डबवाली अग्रिकांड की वर्षगांठ और सोमनाथ शहीदी दिवस पर विशेष
डबवाली अग्रिकांड में सोमनाथ और उनकी कमलेश ने बच्चों को बचाया
विपरीत परिस्थितियों में भी लड़ी मूल्यों की लड़ाई
अरुण कुमार कैहरबा
अवमूल्यन के इस दौर में भले ही कुछ लोग शहीदे आजम भगत सिंह व देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जैसे त्यागमयी लोगों की प्रजाति के लुप्त होने की अटकलें लगा रहे हों, लेकिन सादगी, ईमानदारी, त्याग और बलिदान आदि मूल्यों का परचम लहराने वालों की कमी नहीं रही है। सिर्फ ऐसी शख्सियतों को देखने और पहचानने की जरूरत है। डबवाली अग्रिकांड में बच्चों को बचाते हुए सपत्नीक शहीद हुए वहां के तत्कालीन एसडीएम सोमनाथ भी ऐसी ही शख्सियत हैं, जिन्होंने घोर गरीबी और अभावों के साथ कड़ा मुकाबला करते हुए हरियाणा सिविल सेवा तक का सफर तय किया और विभिन्न प्रशासनिक पदों पर काम करते हुए अत्यंत विपरीत परिस्थितियों की अग्रि में अपने मूल्यों के सोने को कुंदन-सा चमकाया। सोमनाथ द्वारा स्थापित किए गए उच्च मूल्यों की विरासत को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
सोमनाथ का जन्म 8 मार्च, 1955 को करनाल जिला के इन्द्री खण्ड के गाँव खेड़ा में इमरती देवी व राजाराम के घर पर हुआ। घर में उस समय अभावों का साम्राज्य था। सोमनाथ फटे कपड़े पहन कर स्कूल जाता था और पिता की सवा एकड़ जमीन पर जी-तोड़ मेहनत करता था। जब रात को मिट्टी के तेल की ढि़बरी जलाकर वह पढ़ता था, तो कच्ची कोठरी धूएँ से भर जाती थी। उसकी माँ कहती थी-बेटा बस कर आँखें खराब हो जाएंगी। सोमनाथ माँ को कहता- ‘माँ, पढऩे से आँखें खराब नहीं होती। पढऩे से ज्ञान की आँखें मिलती हैं।’
कम बोलने वाले संकोचशील प्रकृति के सोमनाथ ने मन में ठान रखा था कि पढ़ाई और परिश्रम से $गरीबी को ठेंगा दिखाना ही है। स्कूल में जाते हुए वह दिनभर अपनी थोड़ी-सी जमीन पर काम मन लगाकर काम करता और अपनी पढ़ाई का भी ध्यान रखता। उस वक्त तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि बालक सोमनाथ एचसीएस अधिकारी के तौर पर हरियाणा के उच्च पदों को सुशोभित करेगा। सपनों को साकार करते हुए 1983 में उसका हरियाणा सिविल सेवा में चयन हुआ। वह इस प्रतिष्ठित सेवा में चयनित होने वाला इन्द्री क्षेत्र का पहला युवक था। प्रशिक्षण उपरांत उन्होंने अंडर सैक्रेटरी खाद्य एवं आपूर्ति विभाग चंडीगढ़, नगराधीश जींद, उपमंडल अधिकारी सिरसा, उपमंडल अधिकारी लौहारू, प्रबंध निदेशक चीनी मिल पलवल, प्रबंध निदेशक चीली मिल जींद, मुख्य कार्यकारी अधिकारी सिरसा, महाप्रबंधक रोडवेज हिसार, नगराधीश कुरूक्षेत्र, प्रशासक मेडिकल कॉलेज रोहतक व उपमंडल अधिकारी डबवाली आदि अनेक पदों को सुशोभित किया। अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों का निर्वाह वे बड़ी ईमानदारी से किया करते थे। राजनैतिक दबावों के आगे उन्होंने कभी सिर नहीं झुकाया। राजनैतिक प्रलोभनों व दबावों को हमेशा ठेंगा दिखाने की अपनी साहसिक प्रवृत्ति के कारण 11-12 वर्ष के छोटे से कार्यकाल में उनके अनेक बार तबादले हुए। यह भी संयोग ही था कि जिस दिन एसडीएम होने के नाते वे डीएवी स्कूल डबवाली के 1300 छात्रों और 700 अभिभावकों व अन्य गणमान्य लोगों के समारोह में अतिथि के तौर पर शिरकत कर रहे थे और देश के इतिहास के सबसे दर्दनाक अग्रिकांड में बच्चों को बचाते हुए शहीद हुए, तब भी 3 दिन पूर्व ही उनका तबादला गुहला चीका में हो चुका था। लेकिन उन्होंने वहां का कार्यभार ग्रहण नहीं किया था।
सोमनाथ का मानना था-‘‘प्रशासनिक अधिकारियों को उनकी जनपक्षीय सोच और कत्र्तव्यनिष्ठा की सजा देने के लिए सरकारों के पास एक ही जरिया है और वह है-तबादला। परंतु इसका मुझे डर नहीं। मजे से हरियाणा घूमने का मौका मिलेगा।’’ इस प्रकार सरकार के हाथ का कोड़ा अपने आदर्शों के प्रति दृढ़ सोमनाथ के हाथ में पहुँचकर महकता हुआ फूल बन जाता था। अपने दबंग व फक्कड़ स्वभाव के कारण आज भी उनके साथी रहे प्रशासनिक अधिकारी उनकी तारीफ करते हैं। सोमनाथ के साथ नियुक्त हुए सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी बी.एस. मलिक ने एक चर्चा के दौरान बताया था-‘सोमनाथ ने अपने आदर्शों और दायित्वों से कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने न तो कभी पद की गरिमा को आँच आने दी और न ही पद का घमंड किया।’
सोमनाथ बहुत ही साधारण और सादे इन्सान थे। उन्होंने पद और रूतबे के नीचे कभी अपनी इन्सानियत को दफन नहीं होने दिया। दिखावा और कृत्रिमता उनमें लेशमात्र भी नहीं थी। गरीबी के खिलाफ जंग लडऩे के बावजूद उन्होंने पैसे को कभी तरजीह नहीं दी। सादगी, सच्चाई और ईमानदारी उनके जीवन के उच्चादर्श थे। आज भी गांव खेड़ा के लोग उन्हें याद करते हुए बताते हैं कि बड़े पदों पर होते हुए भी जब वे गाँव में आते थे, तो सभी के साथ बड़ी ही विनम्रता व अपनेपन के साथ बात करते थे और पहले की भाँति ही खुरपा-दांति लेकर खेत में नलाई-गुड़ाई के काम में जुटे रहते थे।
सोमनाथ के ससुर एवं शहीद कमलेश के पिता यशपाल वर्मा जी ने एक बातचीत में बताया था कि 23 दिसम्बर 1995 को मंडी डबवाली में डीएवी स्कूल के वार्षिक समारोह में हुए दुनिया के भीषणतम और हृदयविदारक अग्रिकांड में सोमनाथ व उनकी पत्नी कमलेश के पास भागने का अच्छा अवसर था। लेकिन अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए उन्होंने भागने की बजाय जल रहे बच्चों को बचाना बेहतर समझा और अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी पत्नी कमलेश भी अपने जीवन साथी सोमनाथ का इस पुण्य कार्य में साथ देते हुए शहीद हो गई। सरकार ने बच्चों को बचाते हुए प्राण न्यौछावर करने वाले सोमनाथ व कमलेश को शहीद का दर्जा दिया है।
शहादत के बाद सोमनाथ व कमलेश की शोकसभा गांव खेड़ा में हुई। इसमें हरियाणा सरकार के लोक निर्माण मंत्री अमर सिंह धानक और मुख्य सचिव ने जब गाँव का घर देखा तो वे हतप्रभ रह गए। वर्षों तक विभिन्न जिलों में उच्च प्रशासनिक पदों को सुशोभित करने वाले सोमनाथ का अपना घर ईंटों व कच्ची छत से बना है। उनके लिए यह अजूबे से कम नहीं था। उनकी शहादत के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल ने रेस्ट हाऊस हिसार में कहा था, ‘सोमनाथ जैसा ईमानदार अधिकारी मैंने कभी नहीं देखा। उनकी शख्सियत हम सबके लिए प्रेरणास्रोत है।’
शहीद सोमनाथ की याद में इन्द्री में आईटीआई खोलने का सरकारी वादा तो आज तक पूरा नहीं हुआ। लेकिन खुशी की बात यह है कि उनके द्वारा पोषित मूल्यों की विरासत को संभालने के लिए क्षेत्र के कुछ लोग प्रयासरत हैं। वे शहीद सोमनाथ जी की याद में इन्द्री में पुस्तकालय स्थापना के लिए सपना देख रहे हैं।
अरुण कुमार कैहरबासोमनाथ का जन्म 8 मार्च, 1955 को करनाल जिला के इन्द्री खण्ड के गाँव खेड़ा में इमरती देवी व राजाराम के घर पर हुआ। घर में उस समय अभावों का साम्राज्य था। सोमनाथ फटे कपड़े पहन कर स्कूल जाता था और पिता की सवा एकड़ जमीन पर जी-तोड़ मेहनत करता था। जब रात को मिट्टी के तेल की ढि़बरी जलाकर वह पढ़ता था, तो कच्ची कोठरी धूएँ से भर जाती थी। उसकी माँ कहती थी-बेटा बस कर आँखें खराब हो जाएंगी। सोमनाथ माँ को कहता- ‘माँ, पढऩे से आँखें खराब नहीं होती। पढऩे से ज्ञान की आँखें मिलती हैं।’
कम बोलने वाले संकोचशील प्रकृति के सोमनाथ ने मन में ठान रखा था कि पढ़ाई और परिश्रम से $गरीबी को ठेंगा दिखाना ही है। स्कूल में जाते हुए वह दिनभर अपनी थोड़ी-सी जमीन पर काम मन लगाकर काम करता और अपनी पढ़ाई का भी ध्यान रखता। उस वक्त तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि बालक सोमनाथ एचसीएस अधिकारी के तौर पर हरियाणा के उच्च पदों को सुशोभित करेगा। सपनों को साकार करते हुए 1983 में उसका हरियाणा सिविल सेवा में चयन हुआ। वह इस प्रतिष्ठित सेवा में चयनित होने वाला इन्द्री क्षेत्र का पहला युवक था। प्रशिक्षण उपरांत उन्होंने अंडर सैक्रेटरी खाद्य एवं आपूर्ति विभाग चंडीगढ़, नगराधीश जींद, उपमंडल अधिकारी सिरसा, उपमंडल अधिकारी लौहारू, प्रबंध निदेशक चीनी मिल पलवल, प्रबंध निदेशक चीली मिल जींद, मुख्य कार्यकारी अधिकारी सिरसा, महाप्रबंधक रोडवेज हिसार, नगराधीश कुरूक्षेत्र, प्रशासक मेडिकल कॉलेज रोहतक व उपमंडल अधिकारी डबवाली आदि अनेक पदों को सुशोभित किया। अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों का निर्वाह वे बड़ी ईमानदारी से किया करते थे। राजनैतिक दबावों के आगे उन्होंने कभी सिर नहीं झुकाया। राजनैतिक प्रलोभनों व दबावों को हमेशा ठेंगा दिखाने की अपनी साहसिक प्रवृत्ति के कारण 11-12 वर्ष के छोटे से कार्यकाल में उनके अनेक बार तबादले हुए। यह भी संयोग ही था कि जिस दिन एसडीएम होने के नाते वे डीएवी स्कूल डबवाली के 1300 छात्रों और 700 अभिभावकों व अन्य गणमान्य लोगों के समारोह में अतिथि के तौर पर शिरकत कर रहे थे और देश के इतिहास के सबसे दर्दनाक अग्रिकांड में बच्चों को बचाते हुए शहीद हुए, तब भी 3 दिन पूर्व ही उनका तबादला गुहला चीका में हो चुका था। लेकिन उन्होंने वहां का कार्यभार ग्रहण नहीं किया था।
सोमनाथ का मानना था-‘‘प्रशासनिक अधिकारियों को उनकी जनपक्षीय सोच और कत्र्तव्यनिष्ठा की सजा देने के लिए सरकारों के पास एक ही जरिया है और वह है-तबादला। परंतु इसका मुझे डर नहीं। मजे से हरियाणा घूमने का मौका मिलेगा।’’ इस प्रकार सरकार के हाथ का कोड़ा अपने आदर्शों के प्रति दृढ़ सोमनाथ के हाथ में पहुँचकर महकता हुआ फूल बन जाता था। अपने दबंग व फक्कड़ स्वभाव के कारण आज भी उनके साथी रहे प्रशासनिक अधिकारी उनकी तारीफ करते हैं। सोमनाथ के साथ नियुक्त हुए सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी बी.एस. मलिक ने एक चर्चा के दौरान बताया था-‘सोमनाथ ने अपने आदर्शों और दायित्वों से कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने न तो कभी पद की गरिमा को आँच आने दी और न ही पद का घमंड किया।’
सोमनाथ बहुत ही साधारण और सादे इन्सान थे। उन्होंने पद और रूतबे के नीचे कभी अपनी इन्सानियत को दफन नहीं होने दिया। दिखावा और कृत्रिमता उनमें लेशमात्र भी नहीं थी। गरीबी के खिलाफ जंग लडऩे के बावजूद उन्होंने पैसे को कभी तरजीह नहीं दी। सादगी, सच्चाई और ईमानदारी उनके जीवन के उच्चादर्श थे। आज भी गांव खेड़ा के लोग उन्हें याद करते हुए बताते हैं कि बड़े पदों पर होते हुए भी जब वे गाँव में आते थे, तो सभी के साथ बड़ी ही विनम्रता व अपनेपन के साथ बात करते थे और पहले की भाँति ही खुरपा-दांति लेकर खेत में नलाई-गुड़ाई के काम में जुटे रहते थे।
सोमनाथ के ससुर एवं शहीद कमलेश के पिता यशपाल वर्मा जी ने एक बातचीत में बताया था कि 23 दिसम्बर 1995 को मंडी डबवाली में डीएवी स्कूल के वार्षिक समारोह में हुए दुनिया के भीषणतम और हृदयविदारक अग्रिकांड में सोमनाथ व उनकी पत्नी कमलेश के पास भागने का अच्छा अवसर था। लेकिन अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए उन्होंने भागने की बजाय जल रहे बच्चों को बचाना बेहतर समझा और अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी पत्नी कमलेश भी अपने जीवन साथी सोमनाथ का इस पुण्य कार्य में साथ देते हुए शहीद हो गई। सरकार ने बच्चों को बचाते हुए प्राण न्यौछावर करने वाले सोमनाथ व कमलेश को शहीद का दर्जा दिया है।
शहादत के बाद सोमनाथ व कमलेश की शोकसभा गांव खेड़ा में हुई। इसमें हरियाणा सरकार के लोक निर्माण मंत्री अमर सिंह धानक और मुख्य सचिव ने जब गाँव का घर देखा तो वे हतप्रभ रह गए। वर्षों तक विभिन्न जिलों में उच्च प्रशासनिक पदों को सुशोभित करने वाले सोमनाथ का अपना घर ईंटों व कच्ची छत से बना है। उनके लिए यह अजूबे से कम नहीं था। उनकी शहादत के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल ने रेस्ट हाऊस हिसार में कहा था, ‘सोमनाथ जैसा ईमानदार अधिकारी मैंने कभी नहीं देखा। उनकी शख्सियत हम सबके लिए प्रेरणास्रोत है।’
शहीद सोमनाथ की याद में इन्द्री में आईटीआई खोलने का सरकारी वादा तो आज तक पूरा नहीं हुआ। लेकिन खुशी की बात यह है कि उनके द्वारा पोषित मूल्यों की विरासत को संभालने के लिए क्षेत्र के कुछ लोग प्रयासरत हैं। वे शहीद सोमनाथ जी की याद में इन्द्री में पुस्तकालय स्थापना के लिए सपना देख रहे हैं।
लेखक व हिन्दी प्राध्यापक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
करनाल (हरियाणा)
मो.नं.-94662-20145
JAGAT KRANTI 23-12-2024 |
INDORE SAMACHAR 23-12-2024 |
HIMACHAL DASTAK 23-12-2024 |
DAINIK JAGMARG 23-12-2024 |
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