Saturday, October 6, 2012

GSSS-PATHERA LADKIYON SE SMVAD-2


शिक्षा समाज परिवर्तन का सशक्त औजार: लाजवीर। 

कहा: बच्चों को प्रगतिशील मूल्यों से लैस करता है अध्यापक। लड़कियों के साथ संवाद कार्यक्रम के तहत संगोष्ठी आयोजित।




इन्द्री, 6 अक्तूबर।                    

हरियाणा पंचायत एवं ग्राम विकास विभाग के महानिदेशक रहे सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी लाजवीर सिंह ने कहा कि शिक्षा समाज परिवर्तन का एक सशक्त औजार है। बच्चों को प्रगतिशील मूल्यों से लैस करने में अध्यापक अहम भूमिका निभाता है। उसकी इसी भूमिका के कारण से राष्ट्र-निर्माता की संज्ञा दी गई है। वे गांव पटहेड़ा स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय व राजकीय कन्या विद्यालय इन्द्री में लड़कियों के साथ संवाद कार्यक्रम के तहत आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि व मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। पटहेड़ा में संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रिंसिपल रविन्द्र सचदेवा और संचालन हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार ने की तथा इन्द्री में कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रिंसिपल अंजू सरदाना ने की और संचालन रमेश शास्त्री ने किया।
लाजवीर सिंह ने कहा कि शिक्षक व शिष्य का रिश्ता केवल किताबों तक सीमित नहीं होता। उसे अपने जीवन का आदर्श प्रस्तुत करके विद्यार्थियों को प्रभावित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाती है। यह दुनिया को देखने के लिए मन की खिड़कियों को खोल देती है। शिक्षा से बच्चों में आत्मविश्वास जागृत होता है, जिससे वे अपने मन की बात कहने में सक्षम हो जाते हैं। देश में बढ़ती जा रही भ्रष्टाचार की समस्या पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार कैंसर की तरह है, जोकि प्राकृतिक रूप से सम्पन्न हमारे देश को पीछे की तरफ ले जा रहा है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार दो तरफा होता है। एक तरफ रिश्वत लेने वाला है, तो दूसरी तरफ अपना काम निकलवाने के लिए रिश्वत देने वाले लोग भी हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जनजागरूकता की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि लोग जल्दी व बिना प्रक्रिया पूरी किए काम करवाने के लिए दलालों के चक्कर में पड़ते हैं। उन्होंने बिजली चोरी की समस्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अपने लालच के लिए लोग कुंडी लगाकर बिजली चोरी करते हैं और कर्मचारियों को रिश्वत देकर अपने पैसे बचाने की काशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि लोभ-लालच व स्वार्थ की प्रवृत्ति के कारण बड़े-बड़े घोटाले किए जा रहे हैं। उन्होंने केरल प्रदेश के सामाजिक सूचकांकों से शिक्षा लेने का आह्वान करते हुए सामाजिक बुराईयों के विरूद्ध एकजुट होकर कार्रवाई करने का संदेा दिया। ग्यारहवीं की छात्रा नीतू व गीता द्वारा पूछे गए सवालों पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए स्वयं में परिवर्तन के माध्यम से समाज परिवर्तन करने का सुझाव दिया। 

अध्यापक महिन्द्र कुमार ने कहा कि करनाल जिला के साक्षरता अभियान को दिशा देने में अतिरिक्त उपायुक्त के रूप में लाजवीर सिंह जी का महत्वपूर्ण योगदान हुआ करता था और अभियान के तहत बनी सांस्कृतिक टीमों का मार्गदर्शन करने में वे सभी अधिकारियों में अग्रणी रहते थे। राष्ट्रीय सेवा योजना से संबंधित टीम की छात्राओं ने जागरूकता गीतों के माध्यम से समां बांध दिया। इस मौके पर उषा कश्यप, सरोज, शैली, श्याम लाल, दयाल चंद, चन्द्रमणी, कुसम लता, रीना काम्बोज, सीमा, सरिता, सुनीता, ऊषा, जितेन्द्र, राम प्रकाश, महेश लाल, रमेश कुमार, उधम सिंह, सुमित्रा, संतोष, दीपशिखा, कविता, अभिसेठ, बुधराम, संदीप कुमार, उदय सिंह राणा उपस्थित रहे।

Friday, September 28, 2012

GSSS PATHERA-LADKIYON SE SAMVAD


लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए संवाद कार्यक्रम आयोजित।

इन्द्री, 27 सितम्बर।                  

गांव पटहेड़ा स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में सर्व शिक्षा अभियान के तहत लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए संवाद कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। कार्यक्रम के तहत कबड्डी व बैडमिंटन खिलाड़ी बलवान सिंह ने छात्राओं के साथ चर्चा करते हुए खेलों के क्षेत्र में आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। समारोह की अध्यक्षता प्रधानाचार्य रविन्द्र सचेदवा ने की और संचालन एनएसएस इंचार्ज अरुण कुमार ने किया। 
कार्यक्रम में राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़ी शहीद भगत सिंह टीम की सोनिया, शीतल, नीतू, मंजिल, पायल, आंचल, मीनू, दिव्या, ज्योति, आरजू, सलमा, काजल, ग्यारहवीं कक्षा की स्वयंसेवी पूजा, नीतू, आशू व रोशनी ने गीतों के माध्यम से लड़कियों की बराबरी का संदेश दिया। कार्यक्रम में अध्यापक महिन्द्र कुमार ने कहा कि हरएक क्षेत्र में अग्रणी रहने वाली लड़कियों को नकारात्मक सामाजिक धारणाओं ने कमजोर बनाया है। न्याय व बराबरी के लिए लड़कियों को असमानता पर सवाल खड़े करते हुए संघर्ष करना होगा। उन्होंने बाल विवाह रूकवाने वाली घरौंडा खण्ड के हरिसिंहपुरा गांव की पांच लड़कियों की बहादुरी की मिसाल देते हुए कहा कि बराबरी के लिए बोलने पर कड़ी सामाजिक प्रतिक्रया हो सकती है, लेकिन उससे घबराने की जरूरत नहीं है।
बलवान सिंह ने कहा कि खेलों में आगे बढऩे के लिए लड़कियों में प्रतिभा मौजूद है। केवल उसे विकसित करने की जरूरत है। उन्होंने विभिन्न प्रकार के व्यक्तिगत व सामूहिक खेलों के बारे में विस्तार से जानकारी दी और भविष्य में भी खिलाडिय़ों को मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए भरोसा दिलाया। प्रधानाचार्य ने कहा कि स्कूल में छात्राओं को अनेक प्रकार की जानकारी प्रदान की जाती है। इसलिए छात्राओं को शिक्षा जारी रखने का यत्न करना चाहिए। पढ़ाई जारी रहने पर ही हमें आगे बढऩे के अवसर मिलेंगे। कार्यक्रम में विशेष अध्यापक ज्ञानचंद व योग विशेषज्ञ अध्यापक मनीष कुमार ने भी शिरकत की। अध्यापक सतीश कुमार व श्याम लाल शास्त्री ने आए अतिथियों का आभार व्यक्त किया। इस मौके पर अध्यापक सीमा, सरिता, सुनीता, रीना काम्बोज, राजेन्द्र कुमार, रमेश दत्त, दयाल चंद,  संगीता, अभिसेठ, अशोक कुमार, संदीप कुमार, बुद्धराम, बोहती, प्रवीन उपस्थित रहे। 


Tuesday, September 25, 2012

GSSS PATHERA-HEALTH AWARENESS CAMP



लक्ष्य हासिल करने के लिए स्वस्थ्य रहना जरूरी: सैनी।

 स्वास्थ्य जागरूकता शिविर आयोजित।

इन्द्री, 25 सितम्बर। 

गांव पटहेड़ा स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में स्वास्थ्य जागरूकता शिविर आयोजित किया। शिविर में स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सकों ने विद्यार्थियों को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने के टिप्स बताए। इस मौके पर राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़ी शहीद भगत सिंह टीम की छात्राओं ने जागरूकता गीत प्रस्तुत किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य रविन्द्र सचदेवा ने की।

शिविर में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में चिकित्सा अधिकारी डॉ. गुरनाम सैनी ने कहा कि जीवन में आगे बढऩे के लिए विद्यार्थियों को अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। लक्ष्य के अनुसार मेहनत करते हुए स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बेहद जरूरी है। जो विद्यार्थी स्वस्थ रहता है, वही जीवन की ऊंचाईयां हासिल कर सकता है। उन्होंने विद्यार्थियों को स्वस्थ रहने के लिए समय पर पौष्टिक भोजन लेने की हिदायत देते हुए कहा कि विद्यार्थियों को भूखा नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि कईं बार बच्चे व्रत रखते हैं, जिसका उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बच्चों को व्रत नहीं रखने का संदेश दिया। डॉ. सुमन ने कहा कि कोई भी बिमारी होने पर सरकारी अस्पताल में जाकर डॉक्टरों से सम्पर्क करना चाहिए। झाड़-फूंक के द्वारा बिमारियों का ईलाज नहीं हो सकता। झाड़-फूंक व टोने-टोटकों से बिमारी गंभीर रूप धारण कर सकती है।
अध्यक्षीय संबोधन में रविन्द्र सचदेवा ने कहा कि विद्यार्थी काल जीवन का सुनहरा समय होता है। इस समय में अपने जीवन को सही दिशा देने के लिए प्रयास करना चाहिए। इसके लिए सकारात्मक नज़रिया अपनाने की जरूरत है। उन्होंने विद्यार्थियों को कोई भी दिक्कत आने पर स्कूल प्रशासन व अध्यापकों का सहयोग प्राप्त करने का आह्वान किया। हिन्दी प्राध्यापक व एनएसएस इंचार्ज अरुण कुमार के मार्गदर्शन में शीतल, मीनू, सलमा, अमनदीप कौर, आंचल, सोनिया, आरजू, ज्योति, काजल ने मिल जाए सबको शिक्षा-हमको देदो ऐसी उत्तम दीक्षा और नया समाज हम बनाएंगे आदमी को ढ़ूंढ़ते हुए गीत गाकर समां बांध दिया। इस मौके पर प्राध्यापिका सरिता, श्याम लाल, सुनीता, एएनएम राजदुलारी उपस्थित रहे।

Monday, September 17, 2012

GSSS PATHERA-PAINTING COMPETETION


बोहती की पेंटिंग ने पाया पहला स्थान।

पेंटिंग प्रतियोगिता में विद्यार्थियों ने उत्साह से लिया हिस्सा।

इन्द्री, 17 सितम्बर। गांव पटहेड़ा स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में मतदाता जागरूकता विषय पर पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता में विद्यार्थियों ने उत्साह के साथ हिस्सेदारी करते हुए संदेशदायी पेंटिंग बनाई। प्रतियोगिता में नौंवी कक्षा की बोहती देवी की पेंटिंग ने पहला स्थान प्राप्त किया। आठवीं कक्षा की अंजलि द्वारा बनाई गई पेंटिंग ने दूसरा स्थान प्राप्त किया। दसवीं कक्षा की कविता ने तीसरा स्थान हासिल किया। निर्णायक मंडल ने आठवीं कक्षा की सुनीता की पेंटिंग का चौथे और दसवीं की रितु सिन्हा की पेंटिंग को पांचवें स्थान के लिए चुना गया। प्रधानाचार्य रविन्द्र कुमार सचदेवा ने विजेता विद्यार्थियों को सम्मानित किया। प्रतियोगिता का संयोजन हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार, इको क्लब इंचार्ज किशोर कुमार तथा श्याम लाल शास्त्री ने की। निर्णायक मंडल में प्राध्यापिका सीमा, सरिता, सतीश कुमार, दयाल चंद ने भूमिका निभाई। इस मौके पर जय भगवान सैनी, राजेन्द्र कुमार, अशोक कुमार, रमेश कुमार उपस्थित रहे। प्रधानाचार्य ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि वोट का अधिकार लोकतंत्र का आधार है। यह अधिकार हासिल करने के लिए अनेक वीरों ने कुर्बानियां दी हैं। उन्होंने कहा कि वोट बनवाने और वोट का जागरूकता के साथ इस्तेमाल करके हम अपने देश के लोकतंत्र को सशक्त बना सकते हैं।

Sunday, September 16, 2012

SHAHEED UDHAM SINGH COLLEGE INDRI-NSS CAMP


एनएसएस शिविर में गूंजा पेड़ों की रखवाली का तराना। स्वयंसेवियों ने चलाया पौधारोपण अभियान।

 इन्द्री, 16 सितम्बर। शहर के साथ लगते गांव मटक माजरी स्थित शहीद उधम ंिसंह राजकीय महाविद्यालय के प्रांगण में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेवा योजना के शिविर में पेड़ हैं सांसें, पेड़ हैं जीवन, पेड़ों की रखवाली हो, जंगल-जंगल नाच उठें और जगह-जगह हरियाली हो का तराना गूंज उठा। शिविर के दौरान स्वयंसेवियों ने महाविद्यालय के प्रांगण में पौधारोपण अभियान और कांग्रेस घास उन्मूलन अभियान चलाया। इस मौके पर पर्यावरण संरक्षण विषय पर संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कार्यक्रम अधिकारी डॉ. कृष्ण कुमार व डॉ. निधि शर्मा ने की।

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल पटहेड़ा में हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार ने कहा कि पेड़ों के अंधाधुंध कटाव से पर्यावरण असंतुलित होता जा रहा है। जंगलों के समाप्त होने से जीव-जंतुओं के जीवन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यही कारण है कि बंदर शहरों में आतंक का पर्याय बन गए हैं। नील गायों के हमलों से अनेक गांवों के किसान अपने खेतों में सब्जियों व दालों की खेती नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने पर्यावरण संतुलन पर आधारित जागरूकता गीत गाया तो विद्यार्थी उनके साथ गीत गाते-गाते झूम उठे।
डॉ. कृष्ण कुमार ने कहा कि प्रकृति हमारे जीवन में मधुरता, सरसता और मिठास घोलती है। लेकिन पेड़ों के कटाव ने सब कुछ गुड़ गोबर कर दिया है। बढ़ती मानसिक व शारीरिक बिमारियों का भी मुख्य कारण पर्यावरण के साथ मनुष्य के साथ की जा रही छेड़छाड़ हैं। उन्होंने कहा कि एनएसएस ऐसा मंच है जो विद्यार्थियों को स्वैच्छिकता की भावना पैदा करता है और विद्यार्थी स्वयं ही अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए राष्ट्रसेवा के काम में लग जाते हैं।
अंबाला स्थित राजकीय महााविद्यालय में शारीरिक शिक्षा के प्राध्यापक डॉ. सतीश भारद्वाज ने पौधा रोप कर अभियान की शुरूआत की। सुनील, पवन, प्रदीप, रमेश, सूरज भान, रवि, बलराम, वारिस, भारती, प्रोमिला, सुषमा, रेणू, शिल्पा, नेहा, पूनम, जसविन्द्र सहित अनेक स्वयंसेवियों ने महाविद्यालय के प्रांगण में गड्ढ़े खोद कर पौधे रोपे। स्वयंसेवियों ने विभिन्न बिमारियों का कारण बनने वाली कांग्रेस घास को उखाड़ कर स्वच्छता अभियान भी चलाया। 
 








Sunday, July 15, 2012

NSD RESULT


हरियाणा के तीन युवा कलाकारों का राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में हुआ दाखिला।

 पंजाब से एक, राजस्थान व दिल्ली से दो-दो का चयन। इन्द्री क्षेत्र के नरेश नारायण का दाखिला होने पर कलाकारों में खुशी की लहर। 

अरुण कुमार कैहरबा

इन्द्री, 1 जुलाई। देश के सुप्रतिष्ठित नाट्य संस्थान राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में हरियाणा के तीन युवाओं का दाखिला हुआ है, जिनमें इन्द्री के गांव कैहरबा निवासी नरेश कुमार नारायण भी शामिल हैं। क्षेत्र से पहली बार किसी नाट्य कर्मी का नाट्य विद्यालय में दाखिला होने पर स्थानीय कलाकर्मियों में खुशी की लहर है। इसके अलावा फरीदाबाद से महेश सैनी और सत्येन्द्र का भी दाखिला हुआ है।
राष्ट्रीय नाट्य संस्थान नई दिल्ली ने सत्र 2012-15 के लिए प्रवेश की प्रक्रिया पूरी कर ली है। प्राथमिक परीक्षण के बाद देश भर से चयनित 120 नाट्यकर्मियों की16 से 20 जून तक संस्थान में कार्यशाला आयोजित की गई। रंगकर्म की सघन कार्यशाला में 26 युवाओं का अंतिम चयन हुआ है। संस्थान की वैबसाईट पर जारी की गई सूची में प्रदेश के तीन युवाओं को जगह मिली है। इसके अलावा पंजाब से विपिन कुमार, राजस्थान से विशाल चौधरी व बसू सोनी, दिल्ली से सैय्यद साहब अली व गंधर्व देवान, गुजरात से रेनिसन रोबर्ट, उत्तराखंड से यतेन्द्र बहुगुणा, मध्य प्रदेश से भूमिका दूबे व अन्नपूर्णा सोनी, छत्तीसगढ़ से अपराजिता डे, पश्चिम बंगाल से तपस्या दास गुप्ता, संपा मंडला, सुस्मिता सर व निकिता तेरेसा सरकार, तमिनाडू से पांडू आर, ए. अरिवझागन व थिरूनवुक्करासू एस., आंध्र प्रदेश से रामनजनेयूलू दूसारी, महाराष्ट्र से पीयूष पुरूषोत्तम धूमकेकर, कर्नाटक से पन्नागा एस.जी., आसाम से भास्कर बोरूआह, केरल से मार्तिन जिशिल, नागालैंड से तेमजेनजुंगुबा का चयन हुआ है।
इन्द्री क्षेत्र से चयनित नरेश करनाल जिला के साक्षरता अभियान की उपज हैं। उत्तर साक्षरता अभियान व सतत शिक्षा कार्यक्रम के दौरान चलाए गए सांस्कृतिक अभियान में उन्होंने नाटक की शुरूआत की। खण्ड इन्द्री के सफदर नाट्य मंच की नाटय प्रोडक्शन, निर्देशन, मंचन में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। साक्षरता अभियान के दिनों में ही वे हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति के नाट्य आंदोलन के साथ जुड़े और अनेक राज्य व राष्ट्रीय स्तरीय नाटय अभियानों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश में मंडी स्थित नाट्य संस्थान से थियेटर में डिप्लोमा किया। नरेश शहीद सोमनाथ स्मारक समिति व बिगुल रंग मंडल से भी जुड़े हुए हैं। संस्थान में दाखिला होने पर हरियाणा ज्ञान-विज्ञान समिति के सांस्कृतिक संयोजक नरेश प्रेरणा, स्मारक समिति के सलाहकार महिन्द्र कुमार, गुंजन, बुलबुल नाटक टीम के संयोजक साक्षी व गोपाल ने उन्हें बधाईयां दी हैं।
हलका विधायक डॉ. अशोक कश्यप का कहना है कि नरेश इन्द्री में सामाजिक सरोकारों से पूर्ण नाटक खेलता रहा है। देश के अग्रणी नाट्य संस्थान में चयन होने से वह अपनी नाट्य प्रतिभा निखार सकेगा और देश में कला को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा।

Wednesday, July 11, 2012

LADKIYON KE KHEL



15सौ मीटर दौड़ में नैंसी ने लहराया परचम।

 चार सौ मीटर में कोमल और लंबी कूद में रंजीता जैनपुर ने पाया पहला स्थान। लड़कियों की खण्ड स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता सम्पन्न। 

इन्द्री, 10 जुलाई। स्थानीय राजकीय स्कूल के मैदान में लड़कियों की खण्ड स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। अपर प्राईमरी स्कूल की 15सौ मीटर दौड़ में नैंसी ने पहला, प्रियंका इन्द्री ने दूसरा और कोमल जोहड़ माजरा ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। 400 मीटर दौड़ में कोमल जोहड़ माजरा ने पहला, निधि हलवाना ने दूसरा और रजनी राजेपुर ने तीसरा स्थान हासिल किया। लंबी कूद में रंजीता जैनपुर, आरती जैनपुर व मंजीत कैहरबा ने क्रमश: पहला, दूसरा व तीसरा स्थान प्राप्त किया। खेलों का शुभारंभ खण्ड मौलिक शिक्षा अधिकारी व सर्व शिक्षा अभियान के बीआरसी कपूरचंद खान ने खिलाडिय़ों की दौड़ को हरी झंडी दिखाकर किया।
प्रतियोगिता के दौरान प्राथमिक व अपर-प्राथमिक स्कूल में पढऩे वाली छात्राओं की अलग-अलग स्पर्धाएं हुई। ऊंची कूद में नेहा जोहड़ माजरा पहले, पूनम दूसरे व नीतू जैनपुर तीसरे स्थान पर रही। चार सौ मीटर रिले रेस में प्रियंका की टीम ने पहला, आरती जोहड़ माजरा की टीम ने दूसरा और नैंसी छपरियां की टीम ने तीसरा स्थान हासिल किया। प्राथमिक स्कूलों की कबड्डी के फाईनल में गढ़ी जाटान व जैनपुर क्लस्टर की टीमों का कड़ा मुकाबला हुआ, जिसमें गढ़ी जाटान की टीम विजेता बनी। विजेता टीम की जाह्नवी, निशा, काजल, अमरजीत ने शानदार प्रदर्शन किया। प्रतियोगिता की उपविजेता बनी जैनपुर की टीम में कोमल, सेजल, सिब्बो व नैना ने अच्छा प्रदर्शन किया। सौ मीटर दौड़ में राखी गढ़ी साधान ने पहला, जाह्नवी गढ़ी जाटान ने दूसरा और काजल ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। दो सौ मीटर दौड़ में कोमल गढ़ी गुजरान ने पहला, रेखा लबकरी ने दूसरा और रजनी जैनपुर ने तीसरा स्थान हासिल किया। कैरम में गांधीनगर की तानिया ने पहला, अनीता जैनपुर ने दूसरा व पारूल टपरियां ने तीसरा स्थान लिया। रिले रेस में जाह्नवी गढ़ी जाटान की टीम पहले तथा जैनपुर क्लस्टर की कोमल, रजनी व सिब्बो की टीम  दूसरे स्थान पर रही।
इस मौके पर वेदपाल, गौरव भारद्वाज, सुभाष लाम्बा, मनोज कुमार, जसविन्द्र, मनीष खेड़ा, राजीव सैनी, गुरतार सिंह, प्रदीप कुमार, विजय कुमार, सुमेरचंद, रणजीत, ओम प्रकाश, शैलजा, श्याम लाल, पूजा, बारू राम, विनय कुमार, युगल किशोर मित्तल व सुखविन्द्र उपस्थित रहे। समापन समारोह में बीआरसी ने विजेता खिलाडिय़ों को नगद पुरस्कार प्रदान किए।

Saturday, June 30, 2012

JOHAR MAJRA - VILLAGE


जोहड़ माजरा गांव की कहानी।

जोहड़ों का गढ़ रहे जोहड़ माजरा ने अपनी पहचान खोई। 

जोहड़ गंदगी के नालों में तब्दील। जोहड़ों के किनारे खड़े वट वृक्ष हुए पुराने जमाने की बात।

अरुण कुमार कैहरबा

 अपनी प्राकृतिक धरोहर के लिए जाना जाने वाला उपमण्डल का गांव जोहड़ माजरा अपनी पहचान खोता जा रहा है। जोहड़ों का गढ़ रहे इस गांव के अधिकतर जोहड़ अपना वजूद खो चुके हैं। जो जोहड़ हैं वे अपनी गरिमा और गौरव खोकर गंदगी के नालों में तब्दील हो चुके हैं। गांव के बड़े-बड़े पेड़ और वटवृक्ष भी पुराने जमाने की बात हो गए हैं। जातीय विविधता वाले इस गांव में लोग आज भी आपसी विवादों को मिल-बैठकर सुलझाने में विश्वास करते हैं।
गांव जोहड़ माजरा पंचायत के तहत जोहड़ माजरा कलां और जोहड़ माजरा खुर्द नाम के दो गांव शामिल हैं। वर्षों पहले जोहड़ माजरा गांव जोहड़ों के गढ़ के रूप में विख्यात था। अपनी इसी विशेषता के कारण इस स्थान पर आकर बसने वाले लोगों ने इसे जोहड़ माजरा नाम दिया था। यहां पर बीस से अधिक जोहड़ थे। हर मोहल्ले व कुणबे का अपना जोहड़ था। इन्हीं जोहड़ों के किनारों पर बरगद, पीपल, पिलखन, शीशम, सिरस, आम व नीम के बड़े-बड़े पेड़ हुआ करते थे। इन जोहड़ों में लोग नहाते भी थे और पशुओं को पानी भी पिलाते थे। जोहड़ की चिकनी मिट्टी के तो कहने ही क्या। आस-पास के ग्रामीण ही नहीं इन्द्री के लोग भी इसे लेने आया करते थे। चिकने गारे को लोग अन्य कार्यों के अलावा अपने कच्चे घरों की दिवारों और छतों को लीपने के काम में लाते थे। यह जोहड़ लोगों के लिए पूजनीय स्थान थे। गांव का कोई भी सामूहिक व घरेलू उत्सव ऐसा नहीं था जो जोहड़ की पूजा के बिना पूरा होता हो। आज भी लोग दिवाली पर जोहड़ पर दिया जलाना नहीं भूलते। नवविवाहित जोड़ों को ढ़ोल-ढ़माकों की थाप और लोकगीतों के साथ जोहड़ पर ले जाया जाता है और माथा टिकवाया जाता है। लेकिन अब अधिकतर जोहड़ों पर अवैध कब्जे हो गए हैं और कुछ जोहड़ गंदगी व घास-फूस से अटे हुए हैं। अपने जोहड़ व प्राकृतिक सुषमा गंवाने को लेकर गांव में कोई चिंतन-मनन नहीं हो रहा है। बुजुर्गों को इसकी चिंता जरूर है, युवा वर्ग तो गांव की धरोहर से बिल्कुल उदासीन नजर आता है। गांव से बाहर पंचायत द्वारा नए जोहड़ विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
गांव के ही कुछ लोगों का कहना है कि जोहड़ों के साथ ही जोड़ या भाईचारा के कारण भी इसे जोहड़ माजरा कहा जाता है। गांव में सिक्ख, पंजाबी, नट, हरिजन, बाल्मिकी, गडरिया, कश्यप, बढ़ई व काम्बोज सहित 36 बिरादरी के लोग रहते हैं। जोहड़ माजरा खुर्द में नट जाति के लोग रहते हैं, इसीलिए इस गांव को नटों का माजरा के नाम से भी पुकारते हैं। विभिन्न जातियों के बावजूद गांव में जातपात का नाम नहीं है। केवल चुनावों के वक्त कुछ लोग गांव में जातिवाद का जहर घोलने की कोशिश करते हैं और हर बार गांव के लोग चुनाव में उन्हें पटखनी दे देते हैं। गांव के आपसी विवादों को लोग मिलजुल कर सुलझाने में विश्वास करते हैं। अनुसूचित जाति में शुमार नट बहुल जोहड़ माजरा खुर्द विकास के मामले में थोड़ा पिछड़ा जरूर है लेकिन पूरी पंचायत की राजनीति में इस गांव के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका है। पंचायत का मुखिया लगातार दूसरी बार इसी गांव से चुना गया है। इस समय पिछले कार्यकाल में सरपंच रहे रघुबीर फौजी की पत्नी दया देवी सरपंच है। इससे पहले भी इसी गांव के बारूराम गांव की सरपंची कर चुके हैं।
देश की आजादी के बाद हिन्दु-मुस्लिम बदअमनी के वक्त गांव छोड़ कर चले गए मुस्लिम समुदाय के लोगों का भी गांव से जोड़ या जुड़ाव कम नहीं हुआ है। बीच-बीच में वे अपने प्रिय गांव को देखने आते हैं तो गांव के लोग उनका भरपूर स्वागत करते हैं। गांव में मस्जिद के अवशेष आज भी हैं। पूजा स्थलों में गांव में नानकसर गुरूद्वारा साहिब है, जिसे 1970-71 में संत धुरी वाले बाबा ने बनवाया था।
शिक्षा के मामले में गांव का हरिजन समाज सबसे अग्रणी है। इस समुदाय के पढ़े-लिखे लोग सबसे अधिक सरकारी नौकरियों में हैं। नौकरीपेशा अधिकतर लोग बिजली और शिक्षा विभाग में हैं। कुछ नौजवान सेना में देश की सेवा कर रहे हैं। भूमि के मालिक होने के कारण खेती में सिक्खों और पंजाबियों का स्थान अग्रणी है। गांव के ही कुछ लोग शहर में आकर बस गए हैं और इन्द्री के व्यापारिक घरानों में उनका एक नाम है।                                      
गांव के सरपंच रघुबीर फौजी, भाजपा नेता विद्याभूषण भाटिया, नम्बरदार बीरबल पाल, सामाजिक कार्यकर्ता तथा विशेष अध्यापक ज्ञानचंद, मीत रानी, हिन्दी अध्यापक दयाल चंद, लतेश चंद्र, श्यामो देवी, राम कुमार, गुरमेल, सेवा राम व आंगनवाड़ी कार्यकर्ता नीलम ने गांव में सरकारी सुविधाओं की स्थिति पर चिन्ता जताई है। उनका कहना है कि गांव में मिडल तक का ही स्कूल है जिसके कारण गांव के बच्चों को आगे पढऩे के लिए इन्द्री जाना पड़ता है। उन्होंने गांव में सरकारी उच्च विद्यालय और स्वास्थ्य केन्द्र की मांग की है।

Monday, May 7, 2012

i\INCLUSIVE EDUCATION- EXTENTION LECTURE


समावेशी शिक्षा में सबसे बड़ा अवरोध नकारात्मक दृष्टिकोण:अरुण। समावेशी शिक्षा पर व्याख्यान का आयोजन।

इन्द्री, 7 मई              
स्थानीय ज्ञान भारती कॉलेज ऑफ एजूकेशन में समावेशी शिक्षा पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान के दौरान मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए सर्व शिक्षा अभियान में दृष्टिबाधित बालकों के विशेषज्ञ एवं विशेष अध्यापक अरुण कुमार ने कहा कि जात-गोत, बोली-भाषा, क्षेत्र और लैंगिक संकीर्णताओं में उलझे हुए समाज में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा का लक्ष्य बेहद महत्वाकांक्षी व चुनौतिपूर्ण है। सामान्य बच्चों के साथ ही सामान्य स्कूलों में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रबंध करके ही समावेशी शिक्षा की आवधारणा को साकार किया जा सकता है। लेकिन इसमें सबसे बड़ा अवरोध समाज में उनके प्रति व्याप्त नकारात्मक दृष्टिकोण व धारणाएं हैं।
उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में लंबी छलांग लगा चुकने वाले समाज में आज भी विशेष आवश्यकता वाले बच्चों व व्यक्तियों को विकलांग, अपंग व अपाहिज समेत अनेक प्रकार से नकारात्मक शब्दावली द्वारा अपमानित किया जाता है। उन्होंने कहा कि समावेशी शिक्षा के लिए इस प्रकार की नकारात्मक शब्दावली के स्थान पर सकारात्मक शब्दावली का प्रचार-प्रसार किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि समारात्मक दृष्टिकोण से उपजी शब्दावली के रूप में विशेष आवश्यकता वाले बच्चे व भिन्न प्रकार से योग्य जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाना जरूरी है। अरुण कुमार ने कहा कि बाधित बच्चों के लिए अनुकूल स्कूल में ढ़ांचागत बदलाव करने के लिए सर्व शिक्षा अभियान द्वारा रैंप व स्पेशल टॉयलेट बनाए जा रहे हैं। खण्ड स्तर पर सामान्य अध्यापकों का विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के संदर्भ में मार्गदर्शन करने के लिए अलग-अलग विशेषज्ञता वाले तीन विशेष अध्यापकों की व्यवस्था की गई है। साथ ही उन्होंने इसको अपर्याप्त प्रबंध बताते हुए कहा कि समावेशी शिक्षा को लागू करने के लिए प्रत्येक सामान्य स्कूल में कम से कम एक विशेष अध्यापक व संसाधन कक्ष सुविधा उपलब्ध करवाने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कॉलेज के डी.एड. व बी.एड. के विद्यार्थियों को विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए जागरूकता के वाहक बनने का आह्वान करते हुए कहा कि भिन्न प्रकार से योग्य लोगों के प्रति समाज में जागरूकता फैलाने के लिए नवजागरण की प्रक्रिया तेज करनी होगी। उन्होंने पर्सन्स विद् डिसेबिलीटी एक्ट-2005 व शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 को उसकी मूलभावना के अनुकूल लागू करने में भी समाज में जागरूकता फैलाने का संदेश दिया।
कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. एस.एस. जोशी व डॉ. राजेश मलिक ने मुख्य वक्ता का स्वागत किया और आभार ज्ञापन प्राध्यापक सतपाल गुज्जर ने किया। मंच संचालन की जिम्मेदारी रामचन्द्र ने निभाई। इस मौके पर प्राध्यापक डॉ. सुदेश, प्रियंका, प्रदीप कुमार, सुरेन्द्र, योगेश, शिल्पा, सतबीर सिंह व जयभगवान उपस्थित रहे।  

Monday, April 16, 2012

NARESH NARAYAN


समाज परिवर्तन के लिए नाटक को बनाया जीवन लक्ष्य। रंगकर्मी नरेश नारायण गांव-गांव में जगा रहे हैं नाटक की अलख। नुक्कड़ नाटक के जन्मदाता सफ़दर हाश्मी के सपने का चाहते हैं करना पूरा।
अरुण कुमार कैहरबा
नाटक हम दिखाएंगे, दुनिया नई बनाएंगे। यही जज्बा लेकर रंगकर्मी नरेश नारायण गांव-गांव जाकर नाटकों के प्रदर्शन व निर्देशन द्वारा अपने सांस्कृतिक अभियान में लगे हुए हैं। शौकिया तौर पर नुक्कड़ नाटकों से किए नाटकों ने उनकी जीवन दिशा ही बदल दी है। वे नुक्कड़ नाटक के जन्मदाता सफदर हाश्मी के गांव-गांव में नाटक टीम बनाने के सपने को पूरा करने के लिए अपने अभियान में लगे हुए हैं।
करनाल में चल रहे साक्षरता अभियान के तहत नीलोखेड़ी में 2002 में हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति के सहयोग से साक्षरता के प्रचार-प्रसार और सामाजिक बुराईयों के विरूद्ध आंदोलन छेडऩे के उद्देश्य से नुक्कड़ नाटक प्रोडक्शन कार्यशाला का आयोजन किया गया था। कार्यशाला में उपमंडल के छोटे से गांव कैहरबा के नरेश नारायण ने हिस्सा लिया था। कार्यशाला के दौरान खण्ड इन्द्री के अन्य अनेक युवाओं व बच्चों की नुक्कड़ नाटक के जन्मदाता सफदर हाश्मी के नाम पर नाटक टीम का निर्माण किया गया। हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति के सांस्कृति
संयोजक नरेश प्रेरणा व जन नाट्य मंच कुरूक्षेत्र के संयोजक केशव व स्नेहा के निर्देशन में सफदर नाटक टीम ने हरियाणा के समाज में महिलाओं की स्थिति पर आधारित नाटक एक नई शुरूआत तैयार किया। नरेश के अनुसार कार्यशाला के दौरान ही उसके अंदर रूपांतरण की प्रक्रिया शुरू हुई।
इसके बाद गांव-गांव जाकर नाटक करने का सिलसिला शुरू हुआ। गांव में जहां भी सफदर टीम जाती तो गली-गली घूम कर तालियां बजाते हुए नाटक हम दिखाएंगे, दुनिया नई बनाएंगे तथा सुनो कि नाटक बोलता है, भेद सबके खोलता है जैसे नारे लगा कर लोगों को इक_ा करते और सीधे लोगों से रूबरू होते हुए नाटक का मंचन करते। लडक़े और लड़कियों के द्वारा कईं हृदयस्पर्शी और मार्मिक संवादों और अभिनय के ज़रिये लड़कियों की समानता, महिला सशक्तिकरण, परिवार व पंचायतों के लोकतांत्रिकरण के मुद्दे उठाए जाने पर अक्सर समाज के प्रगतिशील लोगों के द्वारा कलाकारों की पीठ थपथापाई जाती तो कईं लोग लडक़े-लड़कियों के एक साथ नाटक करने को अलग नजर से देखकर आलोचना भी करते। इसके बाद मैं नदी आंसू भरी, बच्चे कहां हैं, हम लेंगे ऐसे बदला, लडक़ी पढक़र क्या करेगी, मुंशी प्रेमचंद की कहानी बड़े भाई साहब व सद्गति जैसी कहानियों के रंगमंच के द्वारा यह सिलसिला चलता ही जा रहा है।
नरेश नारायण ने बताया कि उसके बाद उन्होंने नाट्य विधा में ही अपनी प्रोफेशनल कोर्स किया। इस दौरान उन्हें अनेक नामी कलाकारों के साथ भी काम करने का मौका मिला। नरेश दिल्ली में बिगुल नाटक टीम, हरियाणा में शहीद सोमनाथ नाट्य मंच, हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति के साथ मिल कर काम कर रहे हैं। क्षेत्र में अनेक गांवों व स्कूलों में भी नाटकों के निर्देशन में उन्होंने योगदान किया है। नरेश का कहना है कि उन्होंने अनेक स्टेज नाटक भी किए हैं लेकिन सबसे ज्यादा संतुष्टि उन्हें नुक्कड़ नाटक करके मिलती है। उन्होंने कहा कि सफदर हाश्मी, जिनके जन्म दिन 12 अप्रैल को राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस के रूप में मनाया जाता है, गांव-गांव, शहर-शहर की गली-गली में नुक्कड़ नाटक की टीमें बनाने का सपना देखा था, उसी सपने को पूरा करने के लिए अनेक साथियों के साथ काम कर रहे हैं।


GARHPUR TAPU - VILLAGE


यमुना क्षेत्र के गढ़पुर टापू गांव में लगा है समस्याओं का अंबार। बरसों पहले यमुना की बाढ़ से घिरा होने के कारण छुरियां गढ़पुर का नाम पड़ा था गढ़पुर टापू। गांव के मुस्लिम समुदाय में एक लडक़ी भी नहीं है दसवीं पास। गांव में निकासी व्यवस्था की हालत खराब।
अरुण कुमार कैहरबा
विकास के सरकारी दावों के बावजूद जिला करनाल के इन्द्री उपमंडल के यमुना क्षेत्र में बसे गांव गढ़पुर टापू में बुनियादी सुविधाओं का अकाल है। अल्पसंख्यक मुस्लिम बहुल गांव में समस्याओं का अंबार लगा हुआ है, जिससे गांव शिक्षा, स्वच्छता व स्वास्थ्य के मामले में अत्यधिक पिछड़ा हुआ है। आक्रोशित ग्रामीणों का आरोप है कि सरकार व प्रशासन उनके गांव के प्रति उदासीनता का बर्ताव कर रहा है।
उत्तर प्रदेश व हरियाणा की सीमा पर स्थित यमुना नदी क्षेत्र में स्थित गांव गढ़पुर टापू लंबे समय तक बाढ़ की जद में रहा है। यह गांव बरसों पहले छुरियां गढ़पुर नाम से जाना जाता था। आज भी बहुत से लोग इसे इसी नाम से जानते हैं। लेकिन बाद में गांव का नाम गढ़पुर टापू पड़ा, जिसे आज भी इसी नाम से जानते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बाढ़ के पानी से चारों ओर से घिरा होने के कारण गांव के नाम के साथ टापू शब्द जोड़ा गया है। बाढ़ की समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार द्वारा तटबंध के रूप में पटड़ी का निर्माण करवाया गया। गांव में करीब 8सौ की आबादी रहती है, जिसमें अधिकतर आबादी मुस्लिम समुदाय के लोगों की है। इसके अलावा गड़रिया, हरिजन व बाल्मिकी समुदाय के भी कुछएक परिवार हैं।
गांव में अनेक समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। गांव की सबसे बड़ी समस्या पेयजल की है। गांव में जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा बनाया गया जल घर सफेद हाथी बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि जल घर को कभी-कभी ही चलाया जाता है। जिससे लोग पेयजल के लिए नलकों के शोरायुक्त दूषित पानी पर निर्भर रहते हैं। गांव में निकासी व्यवस्था भी खराब है। गांव में घुसते ही क्षतिग्रस्त और गंदगी से अटे पड़े नाले के दर्शन होते हैं। एक स्थान से तो नाले के पास सडक़ बुरी तरह से टूटी हुई है। सडक़ पर बना गड्ढ़ा हर समय हादसे को न्यौता देता रहता है। एक अन्य स्थान पर आरसीसी सडक़ के नीचे चार-चार फुट मिट्टी खत्म हो चुकी है और सडक़ हवा में लटक रही है। गांव की गलियों में लोगों ने अपनी बुग्गियां खड़ी कर रखी हैं और गलियों के साथ ही उपले पाथ रखे हैं। पूरी तरह से चौपट हो चुकी सफाई व्यवस्था के कारण गांव में बिमारियों का आलम है, लेकिन बीमारों के इलाज के लिए गांव में कोई सुविधा नहीं है। गांव से दस किलोमीटर पर गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र स्थित है।
गांव में एक अदद राजकीय प्राथमिक स्कूल है, जिसकी चार दिवारी तक नहीं है। स्कूल में 150 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं लेकिन स्कूल में केवल तीन अध्यापक हैं। स्कूल के गेट पर लोगों के द्वारा अपने पशुओं को बांधा जाता है। यमुना क्षेत्र में उच्च शिक्षा संस्थान नहीं होने के कारण गांव के बच्चे आगे पढऩे से वंचित हो रहे हैं। गांव के मुस्लिम समुदाय में तो एक भी लडक़ी दसवीं तक भी नहीं पहुंच पाई है। स्कूल के अध्यापक देवी शरण से बात की गई तो उन्होंने बताया कि जागरूकता की कमी के कारण स्कूल से ड्रॉप आऊट भी अधिक होता है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय में लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। गांव में रहने वाला कोई व्यक्ति सरकारी नौकरी में भी नहीं है, केवल आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को छोडक़र। ग्रामीण नूरहसन का कहना है कि गांव में आने-जाने के लिए बस सुविधा की तो बात क्या करें, गांव में पहुंचने वाली सडक़ों की हालत भी खस्ता है। उन्होंने कहा कि लबकरी के पास सडक़ में पानी भरा हुआ है। इसी प्रकार गढ़ीबीरबल से आने वाले रास्ते की भी हालत संतोषजनक नहीं है।
गांव में आंगनवाड़ी है लेकिन बच्चों के बैठने के लिए सुविधा सम्पन्न भवन नहीं है। गांव में तीन चौपालें हैं लेकिन तीनों की हालत बेहद खस्ता है। यहां पर गंदगी का आलम रहता है। चौपालों की दुर्दशा के चलते जब गांव में कोई शादी-विवाह होता है तो ग्रामीण स्कूल के भवन का इस्तेमाल करते हैं, जिससे स्कूल की छुट्टी करनी पड़ जाती है।
इस बारे में नम्बरदार दलबीर सिंह ने रोष के स्वर में कहा कि सरकार व प्रशासन ने गांव को रामभरोसे छोड़ रखा है। गांव की सरपंच नियाजन व उनके पति रिजवान का कहना है कि उनके गांव की पंचायत में करतारपुर गांव भी आता है। गांव के पास आमदनी के साधन सीमित हैं। दो गांव की पंचायत होने के कारण समस्या आती है। समस्याओं के बारे में अधिकारियों को सूचित करवाते रहते हैं।

Monday, April 9, 2012

INDRI-YAMUNA BELT


विकास की नदियां बहाने के सरकारी दावे यमुना नदी के किनारे हुए खोखले। बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र के दर्जनभर गांव में नहीं है कोई सरकारी उच्च विद्यालय। बस सेवा के अभाव में क्षेत्र शिक्षा में पिछड़ा। आज तक कोई भी लडक़ी स्नातक स्तर तक नहीं पहुंची।
अरुण कुमार कैहरबा
प्रदेश में विकास की नदियां बहा देने के सरकारी दावे यहां यमुना नदी के किनारे स्थित दर्जन भर गांव में खोखले हो रहे हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के लागू कर दिए जाने के बावजूद यमुना नदी के साथ लगते सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े गांवों में आज तक कोई सरकारी हाई स्कूल नहीं है। ऊपर से बस सेवा के अभाव में बच्चों को कईं किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्कूल जाने में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। सुविधाएं नहीं होने से यह क्षेत्र शिक्षा के मामले में पिछड़ता जा रहा है। यही कारण है कि इन अति पिछड़े गांवों से शायद कोई भी लडक़ी स्नातक स्तर तक नहीं पहुंच पाई है।
खण्ड के गांव डेरा सिकलीगर, नबियाबाद, जपती छपरा, सैय्यद छपरा, जपती छपरा सिकलीगरान, न्यू हलवाना, नगली, कमालपुर, सिकन्दरपुर व रंदौली उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे हुए हैं। ये गांव यमुना नदी के किनारे पर पड़ते हैं तथा बाढ़ के क्षेत्र में आते हैं। सरकार की उपेक्षा के कारण इन गांवों में सुविधाओं का अकाल है। गांव डेरा सिकलीगर, रंदौली व सैय्यद छपरा में मिडल स्कूल हैं। लेकिन अध्यापकों व अन्य सुविधाओं के मामले में इन स्कूलों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। घुमंतु सिकलीगर जाति के गांव डेरा सिकलीगर के स्कूल का प्रांगण बहुत ही छोटा है। इस प्रांगण में प्राथमिक स्कूल के सात सौ से अधिक बच्चों के साथ ही मिडल कक्षाओं के बच्चे भी शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस स्कूल में स्कूल संचालन की जमीन सहित बुनियादी सुविधाओं का टोटा है। मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय बहुल गांव सैय्यद छपरा के मिडल स्कूल में केवल एक अध्यापक है। रंदौली के स्कूल में शिक्षकों का अभाव है। गांवों में स्थित प्राथमिक स्कूलों की हालत भी कोई अच्छी नहीं है। लगभग सभी स्कूलों में शिक्षकों की किल्लत है। स्कूलों में प्रत्येक कक्षा को न्यूनतम एक अध्यापक भी नसीब नहीं हो रहा है।
इन गांवों में एक भी सरकारी हाई स्कूल नहीं है। जिससे गांवों के बच्चों को उच्च शिक्षा हासिल करने में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। स्थिति तब और अधिक विकट हो जाती है जब गरीबी से जूझते इन गांवों के बच्चों को स्कूल जाने के लिए कोई सुविधा नहीं मिल पाती है। देश की आजादी के 60 से अधिक वर्ष गुजरने के बावजूद आज तक इन गांवों में सरकारी परिवहन सेवा नहीं है। बस सेवा नहीं होने से गांव के बच्चों को पैदल या फिर साईकिल पर कईं किलोमीटर दूर स्थित स्कूल में पहुंचना पड़ता है। दूरी के कारण कईं मां-बाप अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते हैं। अपने गांव में शिक्षा हासिल करने के बाद सुविधाओं के अभाव में खासतौर से लड़कियों की शिक्षा पर रोक लग जाती है।
सामाजिक कार्यकर्ता भजन सिंह पटवा, शोभा सिंह, ललित कुमार, सुरेश कुमार, सुलेखचंद, सुरजीत, मनोज कुमार, शमीम अब्बास, रज़ा अब्बास, जिन्दा हसन व शेर सिंह सहित अनेक लोगों ने गांव में शिक्षा की सुविधाएं प्रदान करने की मांग की है।
क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि:-गांव डेरा हलवाना के सरपंच गुलाब सिंह, पंचायत समिति सदस्य गुलाब सिंह, सैय्यद छपरा के सरपंच ज़हीर अब्बास, रंदौली की सरपंच परमजीत कौर व नागल की सरपंच मंजू देवी ने कहा कि सुविधाओं के अभाव में हालात भयावह हैं। शीघ्र ही सरकार को यमुना बैल्ट में सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल व उच्च शिक्षण संस्थान खोल कर विकास की राह खोलनी चाहिए।

Tuesday, April 3, 2012

MURADGARH-VILLAGE



पांच सौ वर्ष पहले मोरों की अधिकता के कारण ‘मोरगढ़’ से बिगड़ कर मुरादगढ़ गांव बसा। सामाजिक समरसता और हिन्दू-मुस्लिम भाई चारे की मिसाल पेश कर रहा है गांव। हिन्दू लोग मुस्लिम बहन का भात भरने के लिए पटड़े पर चढ़े। स्वाधीनता संग्राम में यहां के आर्य समाजियों ने जगाई आजादी की अलख।
अरुण कुमार कैहरबा
करीब 500 साल पहले घने पेड़ों के झुरमुट में मोरों के नर्तन के बीच कुछ लोग रहने लगे। उन्होंने मोरों की अधिकता के कारण इस स्थान का नाम रखा मोरगढ़। मोरगढ़ शब्द बदलते-बदलते मुरादगढ़ बन गया। इन्द्री से केवल तीन किलोमीटर दूरी पर बसा यह गांव अंग्रेजों की दासता के खिलाफ स्वाधीनता संग्राम में भागीदारी और सामाजिक समरसता व हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का समृद्ध इतिहास अपने अंदर समेटे हुए है। गांव के हिन्दू भाईयों ने मुस्लिम लडक़ी के विवाह पर भात भरने के लिए पटड़ पर चढ़ते हुए हिन्दु-मुस्लिम भाईचारे की अद्भुत मिसाल कायम की। गांव के गरिमापूर्ण इतिहास और पूर्वजों द्वारा स्थापित किए गए जीवन मूल्यों पर आज भी ग्रामीणों को गर्व है।
आजादी की लड़ाई के दौरान मुरादगढ़ गांव के आर्य समाजी फूल सिंह, राम सिंह, लीलू भगत सहित दर्जनों की संख्या में लोग दिन-रात एक करके पैदल गांव-गांव जाकर लोगों लोगों में आजादी की अलख जगाते थे। सन् 1930 और 1940 के दशक में आजादी प्राप्ति की लहर पूरे यौवन पर थी। उधर अंग्रेजी सरकार के देशी और विदेशी गुर्गे भी आजादी के परवानों की गतिविधियों पर नजऱ रखते थे। उस समय गांव मुरादगढ़ के आर्य समाजी चोरी-छिपे गांव से निकलकर अपनी कार्रवाई को अंजाम देते थे। गांव में शहीद भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, शहीद उधम सिंह, राजगुरू, सुखदेव व चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रान्तिकारियों तथा महात्मा गांधी के विचार देशी भाषा में लोगों तक पहुंचाने की होड़ लगी थी।
गांव के नामकरण के सम्बन्ध में पूर्व सरपंच मुन्ना लाल, मान सिंह काम्बोज, नरेश कुमार, रामकिशन फौजी, जोगिन्द्र सिंह व नाथीराम बताते हंै कि यह गांव लगभग 500 वर्ष पुराना है। जहां गांव बसा हुआ है वहां घना जंगल हुआ करता था, जिसमें मोरों की संख्या बहुत अधिक थी। इसी कारण इस गांव का नाम मोरगढ़ पड़ा तथा बाद में अपभ्रंश होकर यह गांव मुरादगढ़ के रूप में अस्तित्व में आया।
यह गांव सामाजिक समरसता और साम्प्रदायिक सौहार्द में अन्य गांवों के लिए मिसाल है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर दृष्टिपात करने से पता चलता है कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान मारकाट के समय इस गांव के लोगों ने गांव में रह रहे एक मात्र मुसलमान परिवार की ना केवल जान बचाई बल्कि परिवार को पूरा संरक्षण भी दिया। एक अजीब दास्तान और साम्प्रदायिक सौहार्द की अनुकरणीय मिसाल पेश करने वाले इस गांव के बारे में मुन्ना लाल बताते है कि आजादी से पहले गांव में मखमुल्ला नामक मुसलमान परिवार रहता था। मारकाट के समय जब यूपी के कुछ हिन्दु लोगों ने मुसलमानों को मारने के लिए गांव पर चढ़ाई कर दी। उस वक्त गांव के लोगों ने आपसी भाईचारे का परिचय देते हुए मखमुल्ला का नाम मोलू राम और उनकी लडक़ी $फीजन का नाम सुनहरी देवी रख दिया। उससे पहले $फीजन का निकाह घरौंडा के गांव बाबरपुर निवासी मजीद के साथ होना निश्चित हो चुका था। मारकाट के दौरान मजीद पाकिस्तान चला गया।
कुछ समय बाद जब मजीद भारत आया तो वह अपने गांव बाबरपुर न जाकर मुरादगढ़ गांव में आया और गांव के लोगों को $फीजन के साथ हुए रिश्ते की बात बताई। $फीजन के भाईयों ने मना कर दिया तथा कहा कि वे शादी में शामिल होकर भात भरने की सामाजिक जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे। $फीजन के पिता शादी के हक में थे। ऐसे में भात भरने की रस्म कौन निभाता। गांव के लोगों ने मिलकर फैसला लिया और $फीजन को गांव की बेटी मानते हुए लोग भाती बनकर पटड़े पर चढ़े। गांव के लोगों की साम्प्रदायिक सौहर्द की यह पहल उस समय चर्चा का विषय बन गई थी। आज भी लोग हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे इस मिसाल का व्याख्यान करते नहीं थकते। $फीजन का परिवार आज भी गांव में सद्भावना के साथ रहते हंै।
आज यह गांव धनधान्य की दृष्टि से काफी समृद्ध है। काम्बोज बिरादरी बहुल इस गांव में सभी जातियां सौहार्द के साथ रहती हैं। गांव की कुल आबादी लगभग 2800 है। मतदाताओं की संख्या लगभग 1500 है। ग्राम पंचायत के पास 80 एकड़ जमीन है। गांव का कुल रकबा 6 हजार बीघे का है। बेशक यह गांव आदर्श गांव की श्रेणी में नहीं लेकिन इस गांव में आदर्श गांव जैसी सुविधा लोगों ने अपनी मेहनत से तैयार की है। गांव की सभी गालियां, नालियां, फिरनी व रास्ते पक्के हैं लेकिन गांव में जाने वाली सडक़ की हालात बहुत दयनीय है। जमीन के नीचे का जल स्तर लगभग 45 फुट है। पानी सिंचाई के लिए उपयुक्त है और जमीन उपजाऊ होने के कारण छोटी जोत के किसान भी बेहतर तरीके से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हंै तथा अपने बच्चों को उच्च शिक्षण संस्थानो में शिक्षा दिलवा रहे हंै। लोगों का रहन-सहन और खान-पान का स्तर भी उम्दा है। गांव में दसवीं तक का स्कूल है। उच्च शिक्षा के लिए गांव के बच्चे शहीद उधम सिंह राजकीय महाविद्यालय इन्द्री, करनाल और कुरूक्षेत्र में पढऩे के लिए जाते हैं। गांव में कन्या भू्रण हत्या जैसी सामाजिक बुराई नहीं है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गांव में लडक़े और लड़कियों की संख्या लगभग बराबर है। गांव के जोहड़ मत्स्य पालन के लिए ठेके पर दिये जाते हंै। सहकारी बंैक, पशु चिकित्सालय, आंगनवाड़ी केंद्र, सामुदायिक केंद्र, वृद्धाश्रम व मंदिर गांव की शोभा बढ़ाते हैं। गांव के लगभग 20 लोग सरकारी तथा गैर सरकारी सेवाओं में हैं। स्वच्छता की दृष्टि से भी गांव अग्रिम है। गांव के हर घर में शौचालय है। इन्दिरा आवास योजना के तहत भी गांव में मकान बनाये गये हंै। गांव के अधिक तर किसान दलहन, तिलहन, लहसुन, सब्जियों और गन्ने की खेती करते हंै। कुछ किसान औषधीय अजवायन की खेती में भी हाथ आजमा रहे हंै।

SIKANDERPUR-VILLAGAE

यमुना की बाढ़ से उजड़ता-बसता रहा है गांव सिकंदरपुर। विकास की दौड़ में पिछड़ा गांव शिक्षा की रोशनी से हुआ जगमग। युवाओं के सरकारी नौकरी पाने से खुशी का माहौल। अमित शर्मा का एयरफोर्स में हुआ चयन।
अरुण कुमार कैहरबा
यमुना की बाढ़ के चलते बरसों पहले उजड़-उजड़ कर बसा गांव सिकंदरपुर विकास के मामले में पिछड़ा होते हुए भी शिक्षा की रोशनी से जगमग होने लगा है। गांव की बसाहट के बरसों बाद अब गांव के युवा पढऩे लिखने के बाद सरकारी नौकरियों में जगह पा रहे हैं। कुछ दिन पूर्व ही जब अमित शर्मा का एयरफोर्स में चयन हुआ, तो गांव में खुशी का माहौल पैदा हो गया। हालांकि गांव के अधिकतर पढ़े-लिखे युवा अपनी उपलब्धि का श्रेय गांव के राजकीय प्राथमिक स्कूल के अध्यापक विजेन्द्र कुमार को देते हैं, जिन्होंने लगातार 14 वर्षों तक गांव में रहते हुए अपनी निष्ठापूर्वक सेवाएं दी। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस स्कूल में अब गांव लोग अपने बच्चों को पढ़ाने से कन्नी काट रहे हैं। यही कारण है कि गांव के स्कूल में पढऩे के लिए पड़ौसी गांव के बच्चे जाते हैं।
यमुना के साथ लगता छोटा-सा गांव सिकंदरपुर बरसों पूर्व यमुना की बाढ़ के चलते उजड़ता-बसता रहा है। ग्रामीणों के अनुसार करीब सौ वर्ष पूर्व एक बार नजदीकी गांवों के लोगों के साथ जमीनी झगड़े की वजह से भी गांव को उजडऩा पड़ा था। गांव में करीब 20 घर व सौ वोट हैं। इनमें 10 परिवार ब्राह्मण, 8 जाट, एक परिवार रोड़ और एक बैरागी समुदाय से संबंधित है। गांव के सभी लोगों के पास जमीन है, लेकिन जमीन यमुना क्षेत्र में है। यमुना की बाढ़ हर वर्ष खेती को तबाह कर देती है, जिससे लोगों का जीवन तंगी में गुजर रहा है। यह गांव बदरपुर, बीबीपुर ब्राह्मणान, रंदौली व नगली गांव के साथ लगता है, लेकिन गांव कलसौरा पंचायत का हिस्सा है। इससे यहां के लोगों को पंचायत के काम से कलसौरा में जाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि पंचायत द्वारा कोई योगदान नहीं किए जाने के कारण गांव विकास की दौड़ में पिछड़ता जा रहा है।
सिकंदरपुर में पढ़े-लिखे युवाओं के सरकारी नौकरियों में आने के बाद अब रोशनी की किरण जगी है। करीब दो वर्ष पूर्व गांव के जोगिन्द्र शर्मा स्वास्थ्य विभाग में ओटीए नियुक्त होने वाले गांव के पहले सरकारी नौकरीपेशा हुए। इसके बाद युवक सुरजीत प्राथमिक अध्यापक नियुक्त हुए। दो महीने पहले जब गांव में आंगनवाड़ी बनी तो गांव की युवती पूनम इसमें आंगनवाड़ी अध्यापिका तैनात हुई। एक सप्ताह पूर्व गांव के होनहार युवक अमित शर्मा पुत्र बलवान की एयरफोर्स में तैनाती हुई, गांव में उत्सव का माहौल पैदा हो गया। इस खुशी में सारे गांव के लोगों ने एक ही स्थान पर खाना खाया व खुशी मनाई। सामाजिक कार्यकर्ता सुरेन्द्र शर्मा, जसविन्द्र, नम्बरदार वेदप्रकाश, उषा रानी ने बताया कि गांव के युवाओं के सरकारी नौकरी में स्थान बनाना बड़ी उपलब्धि है। इसका सारा श्रेय गांव में कईं सालों तक निष्ठा के साथ पढ़ाने वाले अध्यापक विजेन्द्र को जाता है। युवाओं का कहना है कि शिक्षा के मामले में बेहद पिछड़े इस गांव के लोगों को उन्होंने पढ़ाई का महत्व समझाया। ऐसे अध्यापक यदि सारे स्कूलों में हों तो कोई भी गांव तरक्की कर सकता है।
ग्रामीणों का कहना है कि गांव में आज भी कोई लडक़ी स्नातक नहीं है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पूनम के अलावा सुनीता, ममता व रेखा बारहवीं पास हैं। गांव के मुख्य मार्ग से दूर होने और क्षेत्र में उच्च शिक्षा संस्थान नहीं होने के कारण लड़कियां उच्च शिक्षा से वंचित हैं। लेकिन आज गांव के सभी बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। लेकिन सरकारी स्कूल के अध्यापक को शिक्षा की अलख जगने का श्रेय देने वाले इस गांव के प्राथमिक स्कूल में गांव लोग अपने बच्चों को पढ़ाने से कन्नी काटने लगे हैं। यही कारण है कि गांव के स्कूल में अधिकतर नजदीकी गांव हलवाना के सिकलीगर समुदाय के बच्चे पढऩे आते हैं।
गांव के सबसे वरिष्ठ नागरिक बलवंत सिंह, समाजसेवी सुरेन्द्र शर्मा, एमएससी जसबीर, बीटेक अमित, प्रवीन व सतीश ने बताया कि सिकंदरपुर गांव के विकास का मार्ग तभी प्रशस्त होगा, जब गांव की अलग पंचायत बनाई जाएगी या फिर इसे नजदीकी पंचायत में जोड़ा जाएगा।

Monday, March 12, 2012

VILLAGE-MURADGARH


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Saturday, February 4, 2012

INDRI SPAT-2012


लगातार दूसरी बार स्पैट क्वालीफाई करके नैंसी ने मनवाया प्रतिभा का लोहा। नैंसी ने 21 में से 20 और कुशल ने 18 अंक लेकर राज्य स्तरीय स्पर्धा में किया क्वालीफाई। छपरियां में खुशी की लहर।
अरुण कुमार कैहरबा
सरकार की महत्वाकांक्षी योजना प्ले4 इंडिया के तहत आयोजित स्पैट-2012 में उपमंडल के गांव छपरियां स्थित राजकीय प्राथमिक स्कूल में पांचवीं कक्षा में पढऩे वाली नैंसी ने एक बार फिर क्वालीफाई करते हुए परचम लहराया है। शुक्रवार शाम को प्ले4 इंडिया की वैबसाईट पर जारी किए गए रिजल्ट में इसी गांव के दो बाल खिलाडिय़ों नैंसी व कुशल द्वारा स्पैट क्वालीफाई करने की सूचना मिलते ही गांव में खुशी की लहर फैल गई। गांव में दोनों खिलाडिय़ों के घरों में आस-पास के लोग आकर खिलाडिय़ों व उनके परिजनों को बधाईयां दे रहे हैं।
स्पैट-2011 की होनहार खिलाड़ी नैंसी ने स्पैट-2012 के तीसरे चरण में कुल 21 अंकों में से 20 अंक हासिल किए हैं। इसके अलावा वह प्राथमिक स्कूलों के राज्य स्तरीय खेलों में जीत का परचम लहरा चुकी है। ज्ञात हो कि खेल विभाग की कथित गलती के कारण नैंसी का स्पैट के दूसरे चरण का परिणाम घोषित नहीं हो सका था। इस वजह से वह 20 जनवरी को सोनीपत के माती लाल नेहरू खेल विद्यालय में आयोजित तीसरे चरण की स्पर्धा में हिस्सेदारी नहीं कर सकी थी। दैनिक ट्रिब्यून की खबर छपने के बाद खेल निदेशक के हस्तक्षेप के बाद खंड इन्द्री के खिलाडिय़ों की हिस्सेदारी के एक दिन बाद वह तीसरे चरण में हिस्सा ले पाई थी। लेकिन नैंसी ने तीसरे व अंतिम चरण में शानदार प्रदर्शन करके अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया था। जिसका परिणाम आज इंटनैट पर जारी हो गया। इस परिणाम से नैंसी लगातार दूसरे वर्ष 15सौ रूपये प्रतिमाह स्कोलरशिप, स्पोर्टस किट तथा प्रदेश के किसी भी समुन्नत खेल स्टेडियम में प्रशिक्षण की सुविधा प्राप्त कर सकेगी। नैंसी की इस उपलब्धि उसके पिता संजीव कुमार, माता अनीता, दादा माया राम फौजी ने खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है। स्कूल अध्यापक बणी सिंह, सतपाल सैनी, सुभाष, मंजू रानी, रामजी लाल सैनी, ग्रामीण वेदपाल गुज्जर व राव वीरेन्द्र का कहना है कि खेलों के क्षेत्र में छोटी सी उम्र में अनेक उपलब्धियां हासिल करने वाली नैंसी लड़कियों के सशक्तिकरण का प्रतीक बन गई है। उन्होंने बताया कि उन्हीं के गांव के कुशल ने 21 में 18 अंक हासिल करके स्पैट क्वालीफाई किया है।
गांव के सरपंच चरण सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि दो-दो बच्चों के राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में क्वालीफाई करने से गांव में खुशी का आलम है। उन्होंने कहा कि दोनों खिलाडिय़ों ने गांव का नाम रोशन किया है। पंचायत के द्वारा दोनों बच्चों को सम्मानित किया जाएगा। शहीद सोमनाथ स्मारक समिति से जुड़े नरेश नारायण, महिन्द्र कुमार, कंवर लाल फौजी, ज्ञानचंद, नरेश सैनी, गुंजन, सुमन सैनी, उषा व शीला राठौर ने भी खिलाडिय़ों को बधाई दी।

DR. MRINAAL VALLARI


डॉ. मृणाल वल्लरी से विशेष बातचीत।
स्त्री अस्मिता के सवाल लोकप्रिय देह-विमर्शों में सिमटे: मृणाल वल्लरी।
हिंदी अखबारों व पत्रिकाओं के पन्ने स्त्री सुबोधिनी युग से आगे नहीं आए।
अरुण कुमार कैहरबा
साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार डॉ. मृणाल वल्लरी ने कहा कि पिछले दशकों के दौरान अंग्रेजी से होते हुए क्षेत्रीय भाषाओं तक के मीडिया ने महिला की देह को अहम कंटेंट के तौर पर स्थापित किया है और स्त्री अस्मिता के प्रश्र भी लोकप्रिय देह विमर्शों में सिमट कर रह गए हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया बाजार का हथियार बनकर पूंजीवादी हितों की साधना कर रहा है। इसमें महिलाओं को परंपरा के आईने से ही देखा जा रहा है और पितृसत्तात्मक रीतियों का पोषण करके कत्र्तव्यों की इतिश्री की जा रही है। वे गांव रम्बा स्थित बुद्धा कॉलेज ऑफ एजूकेशन में आयोजित संगोष्ठी के दौरान मीडिया में औरत विषय पर विशेष बातचीत कर रही थी।
मृणाल ने कहा कि मीडिया में महिलाओं की हिस्सेदारी नाममात्र ही है। जो हैं उन्हें संपादकीय नीतियां निर्धारित करने में शामिल नहीं किया जाता है। महिलाओं के लिए निर्धारित फीचर पन्नों में सजने-संवरने, पाक शास्त्र, खान-पान, स्वेटर बुनाई या पितृसत्तात्मक परंपराओं को पोषित करने जैसे विषयों का साम्राज्य होता है और अधिकतर महिला पत्रकारों को ये पन्ने तैयार करने के काम में लगा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि हिंदी अखबारों व पत्रिकाओं के पन्ने स्त्री सुबोधिनी युग से आगे नहीं जा पाए हैं। फिल्मी दुनिया से संबंधित अखबारों की पत्रिकाओं में हिरोईनों की प्रेम कथाओं और देह पर चर्चा केन्द्रित रहती है।
उन्होंने कहा कि कईं बार लगता है कि मीडिया की जिम्मेदारी को संभालने वाली महिला पत्रकार अपनी जिम्मेदारी नहीं संभाल पाएंगी। ऐसा दरअसल होता नहीं है, माहौल बनाया जाता है ताकि मीडिया में जो महिलाएं कार्य कर रही हैं, उनके मन में असुरक्षा बोध बना रहे। अपने बूते जीने की कोशिश में लगी स्त्री प्रेम करने या अपना जीवन साथी चुनने वाली स्त्री, अपनी जिंदगी में स्वतंत्रता की खोज में लगी स्त्री, शादी या मां बनने से इतर भी समाज में अपनी भूमिका तलाश करने में लगी स्त्री, हमारे मीडिया में स्वस्थ बहस का मुद्दा क्यों नहीं बनती। संस्कृति या धार्मिकता के संदर्भ में जब भी स्त्री को कैद रखने के लिए उस पर अत्याचार किए जाते हैं तो हमारा मीडिया अपनी जुबान सिल लेता या धृतराष्ट्र की भूमिका में खड़ा हो जाता है।
उन्होंने कहा कि महिलाओं से संबंधित कवरेज में मीडिया बेपरवाह होकर शब्द-प्रस्तुति करता है। उन्होंने कहा कि भंवरी कांड की कवरेज में दलित समुदाय की महिला को महत्वाकांक्षी और ब्लैकमेलर के रूप में प्रस्तुत किया गया। उन्होंने कहा कि ‘बलात्कार’ की जगह ‘दुश्कर्म’ या ‘इज्जत लूट लेना’ जैसे शब्दों प्रयोग संगत नहीं है। उन्होंने कहा कि जब दिल्ली में रेलगाड़ी में महिलाओं के लिए डिब्बा आरक्षित किया जाता है तो पत्रकार खबरों में इसे बराबरी की अवधारणा के खिलाफ बताया जाता है।
जब उनसे इलेक्ट्रिोनिक मीडिया में महिलाओं की स्थिति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि प्रिंट की तुलना में इलेक्ट्रिोनिक मीडिया में महिलाओं की हिस्सेदारी थोड़ी अधिक दिखाई देती है लेकिन इसमें बाजार की जरूरतों के हिसाब से महिलाओं का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि यहां पर आधुनिक दिखाई देने पर जोर दिया जाता है, आधुनिक होने को नज़रंदाज किया जाता है। सामाजिक परिवर्तन के काम में लगी महिलाओं के संघर्षों को दिखाने की बजाय महिलाओं को सेक्स सिंबल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। वहां स्त्री अस्मिता के सवालों को लेकर कोई जद्दोजहद नहीं दिखाई देती। असली मामला चेतना का है, जागरूकता का है। बहुत आधुनिक होना और देखना बहुत अलग-अलग चीजें हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया को स्त्री अस्मिता के सवालों को सकारात्मक ढंग से उठाना चाहिए।


Sunday, January 22, 2012

ACTIVIST OF LITERACY- MOHAMMAD MURSLIN



साक्षरता का सिपाही : मोहम्मद मुरसलीन। अपने साथ ही परिवार के छोटी-बड़ी उम्र के अन्य सदस्यों को पांचवीं की परीक्षा दिलवाई। उनका मानना है-‘जब तक अनपढ़ है इंसान, नहीं रूकेगा यह अभियान’ सामाजिक कार्यों के लिए मुरसलीन राज्यपाल व सांसद से हो चुके हैं सम्मानित।
अरुण कुमार कैहरबा
साक्षरता की कक्षा में साक्षर बनने के बाद लोगों में साक्षरता की अलख जगाने वाला मोहम्मद मुरसलीन लोगों की आंखों का तारा बन गया है। मुरसलीन ने अपने साथ-साथ अपने अब्बू, अम्मी, भाई व बहनों को भी पढऩे के लिए प्रेरित किया। बड़ी-छोटी उम्र के परिवार के सात सदस्य एक साथ कक्षा में गए और एक साथ पंाचवीं की कक्षा पास की। विभिन्न सामाजिक अवरोधों के बावजूद मुरसलीन ने ‘जब तक अनपढ़ है इंसान, नहीं रूकेगा यह अभियान’ की तर्ज पर अन्य लोगों को साक्षर बनाने के लिए अक्षर सैनिक, जन चेतना केन्द्र संयोजक, सह प्रेरक और नाटक मंडली के कलाकार की भूमिका में स्वैच्छिक कार्य किए। विभिन्न विषयों पर सामाजिक जागरूकता लाने के लिए मुरसलीन आज भी लगा हुआ है। उसके सामाजिक कार्यों के कारण उसे महामहिम राज्यपाल बाबू परमानंद तथा सांसद डॉ. अरविंद शर्मा द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
उपमण्डल के यमुना के साथ लगते गांव सैय्यद छपरा निवासी अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज के निरक्षर युवक मुरसलीन को 1998 में गांव के तत्कालीन सरपंच रज़ा हुसैन से सम्पूर्ण साक्षरता अभियान की जानकारी मिली। उसने गांव में लगाई जाने वाली कक्षा में जाना शुरू कर दिया। कक्षा में अक्षरों से परिचय प्राप्त करते हुए उसे परिवार के अन्य सदस्यों की अनपढ़ता भी कचोटने लगी। उसने अपने पिता मंजूर अहमद से इस बारे में बात की। मंजूर अहमद को अपने बेटे की बात में दम लगा और उसने पूरे परिवार समेत कक्षा में जाना शुरू कर दिया। मुरसलीन अपने पिता, बहन मुरसलीना, फुलबानो, नौसाबा, फातिमा और भाई नौसाद के साथ जब बस्ता व किताबें उठाकर गांव की चौपाल में जाते थे तो अन्य लोग उनका मजाक उड़ाया करते थे। लेकिन मुरसलीन व उसका परिवार लोगों के मजाक से घबराया नहीं और अपनी राह नहीं छोड़ी। जब वे कक्षा में जाया करते थे तो मुरसलीन की अम्मी रूखसाना घर का काम देखा करती। कईं बार तो मुरसलीन अपनी अम्मी को भी कक्षा में साथ ले जाया करते थे।
लगातार तीन महीने तक कक्षा में जाने के बाद सभी ने बुनियादी शिक्षा हासिल की। वह करनाल के साक्षरता अभियान का एतिहासिक क्षण था, जब 1999 में मुरसलीन के परिवार के सात सदस्यों ने नबियाबाद स्थित गुरू नानक उच्च विद्यालय में पांचवीं की परीक्षा दी और उत्तीर्ण हुए। अभियान के दौरान हासिल की गई शिक्षा से परिवार में हौंसले का संचार हुआ है और वे अधिकारियों के सामने बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखते हैं। मुरसलीन ने पांचवीं करने के बाद आगे भी पढ़ाई जारी रखी। वह गांव डेरा हलवाना के राजकीय स्कूल में बस्ता टांग कर जाया करता था। बड़ी उम्र के युवक को बस्ता लेकर स्कूल में आता देखकर बच्चे खूब खिलखिलाकर हंसते थे लेकिन मुरसलीन बच्चों को कहता- ‘पढऩे की कोई उम्र नहीं, पढऩे में कोई शर्म नहीं।’ हालांकि $गरीबी व पारिवारिक परिस्थितियों के कारण अपनी औपचारिक शिक्षा वह जारी नहीं रख सका। लेकिन उसने किताबों का दामन नहीं छोड़ा। साथ ही उसने अक्षर सैनिक के रूप में विभिन्न गांवों में साक्षरता की मुहिम जारी रखी। सम्पूर्ण साक्षरता अभियान के बाद 2002 में शुरू हुए उत्तर साक्षरता अभियान में उसे गांव के जन चेतना केन्द्र का संयोजक बनाया गया।
उसने जिला सैनिक रैस्ट हाऊस करनाल में आयोजित नाट्य प्रोडक्शन कार्यशाला में हिस्सा लिया और सफदर नाटक टीम में साक्षरता का संदेश देने के लिए नाटक भी करने लगा। सतत् शिक्षा कार्यक्रम में मुरसलीन ने सहप्रेरक की भूमिका निभाई। अपने कार्यों के लिए वह निरक्षरों व गरीब लोगों का चितेरा बन गया है। परिवार चलाने के लिए वह समय-समय पर राज मिस्त्री, बढ़ई, साईकिल व मोटरों की मुरम्मत, रंग-रोगन, बंटाई पर खेती जैसे अनेक कार्य करता रहता है। लेकिन आज भी साक्षरता के कार्यों में वह लगा हुआ है। उसने हाल ही में मुस्लिम तालीम केन्द्र के संयोजक के तौर पर राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय से अपनी पत्नी व पंचायत सदस्य ज़रीना बे$गम सहित 18 निरक्षरों को बुनियादी तालीम की परीक्षा दिलवाई है।
इसी दौरान 2003 में करनाल के कर्ण स्टेडियम में आयोजित विशाल साक्षरता रैली में महामहिम राज्यपाल बाबू परमानंद ने मुरसलीन को अपने परिजनों समेत खुद साक्षर होने और साक्षरता के कार्यों के लिए सम्मानित किया। 2006 में सांसद अरविंद शर्मा ने भी मुरसलीन को प्रशस्ति-पत्र व स्मृति चिन्ह देकर तथा शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
मुरसलीन व उनके अब्बू मंजूर अहमद ने दैनिक ट्रिब्यून से बातचीत करते हुए कहा कि पढ़-लिखकर उसके परिवार में आत्मविश्वास आया है। उन्हें सही-गलत का पता चला है। ग्रामीणों को जब विभिन्न समस्याएं पेश आती हैं तो वे बेझिझकर उनके पास आ जाते हैं और वे उनका समाधान करने में लग जाते हैं। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार खेती नलाई से संवरती है, उसी प्रकार जिंदगी पढ़ाई से संवरती है। जब सर्च राज्य संसाधन केन्द्र हरियाणा के सलाहकार प्रो. वी.बी. अबरोल, जिला साक्षरता कार्यक्रम के सचिव रहे डॉ. अशोक अरोड़ा और जिला संयोजक रहे महिन्द्र खेड़ा से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि अभियान में साक्षर होने वाला मो. मुरसलीन साक्षरता का प्रेरक और साहसी सिपाही है।

Tuesday, January 17, 2012

GOVT. PRIMARY SCHOOL, INDRI - A SUCCESS STORY


मुख्यमंत्री स्कूल सौंदर्यीकरण पुरस्कार योजना।
इन्द्री के राजकीय प्राथमिक स्कूल ने पाया पहला स्थान
अरुण कुमार कैहरबा
कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। शायर की इन पंक्तियों को इन्द्री के राजकीय प्राथमिक स्कूल के अध्यापकों ने सच कर दिखाया है। जिस काम को जिले के कईं स्कूलों में 40 साल में भी अंजाम नहीं दिया जा सका, उसे इस स्कूल में चार साल में ही पूरा कर दिखाया गया है। कभी शहर के कूड़े के ढ़ेर के रूप में पहचान रखने वाले इस स्कूल को मुख्यमंत्री स्कूल सौंदर्यीकरण पुरस्कार योजना के तहत इन्द्री खंड में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है।
शहर की राजकीय प्राथमिक पाठशाला चार वर्ष पहले तक दयनीय हालत में थी। स्कूल का प्रांगण मुख्य सडक़ से कईं फुट नीचे था। जिससे शहर की नालियों का गंदा पानी और बरसात का पानी स्कूल में आया करता था। यही नहीं स्कूल का प्रांगण आवारा पशुओं की शरणस्थली था और आस-पास के लोगों के लिए यह शौच करने की जगह था। स्कूल में चारों ओर झाड़-झंखाड़, पॉलीथीन व कांग्रेस घास का साम्राज्य था। स्कूल की चारदिवारी क्षतिग्रस्त अवस्था में थी, जिससे स्कूल में लोगो व पशुओं की आवाजाही से स्कूल में पढऩे-पढ़ाने का बढिय़ा माहौल नहीं बन पाता था। स्कूल के बीचों-बीच माता के थान बने हुए थे, जिसमें स्कूल समय में ही लोगों की आवाजाही रहती थी। इस स्थान पर लोग टोने-टोटके करते थे, जिससे बच्चों में भी भय का माहौल बना रहता था। स्कूल प्रांगण में बिजली का ट्रांसफार्मर था, जिससे बच्चों को हर समय खतरा बना रहता था। स्कूल मूलभूत सुविधाओं से वंचित था। इसमें विद्यार्थियों की संख्या लगातार कम होती जा रही थी।
इसी दौरान अध्यापक महिन्द्र खेड़ा तबादला होकर इस स्कूल में आए। उन्होंने विशेष अध्यापक ज्ञानचंद के साथ मिल कर स्कूल सुधारीकरण की योजना बनाई। सबसे पहले स्कूल में शहर के गंदे पानी का प्रवेश बंद करवाया गया। समाजसेवी जगदीश गोयल की मदद से माता के थान को स्कूल से स्थानांतरित कर बाहर बनवाया गया। इसके बाद लोगों की मदद लेकर स्कूल में मिट्टी भराव का काम शुरू किया गया। इस काम में इन्द्री के उपमंडलाधीश रहे दिनेश सिंह यादव व उपमंडलाधीश प्रदीप डागर की अगुवाई में प्रशासन, कईं गांवों के सरपंच, जेसीबी संचालक, अध्यापक व दूसरे स्वयंसेवियों का सहयोग लिया गया। लोगों की मदद से करीब पौने दो लाख रूपये की मिट्टी से प्रांगण को समतल बनाया गया। स्कूल में पौधा-रोपण व पौधापोषण अभियान चलाते हुए स्कूल के अध्यापकों व विद्यार्थियों ने दिन-रात मेहनत की। क्यारियां बना कर फूल-पौधे लगाए गए। बदलाव की ऐसी बयार चली कि चार साल बाद सबसे गंदा माना जाने वाला स्कूल खंड का सबसे सुंदर स्कूल बन गया। अतिरिक्त उपायुक्त, एसडीएम व शिक्षा विभाग के अधिकारी जिन्होंने भी इस स्कूल का निरीक्षण किया, वे इसके सौंदर्य से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। अधिकारियों ने इस स्कूल का चयन मुख्यमंत्री स्कूल सौंदर्यीकरण योजना के तहत किया है। गणतंत्र दिवस के अवसर पर करनाल के कर्ण स्टेडियम में आयोजित होने वाले जिला स्तरीय समारोह में स्कूल को प्रथम पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। इस उपलब्धि पर स्कूल के अध्यापकों रणधीर सिंह, अशोक कुमार, मनीष खेड़ा, गोपाल सिंह व विशेष अध्यापक अरुण कुमार ने खुशी का इजहार किया है।


Friday, January 13, 2012

BULBUL NATAY MANCH-LOHRI UTSAV










आंए मत समझो बेटी बोझ.. .. ..
लोहड़ी उत्सव में बेटी बचाने का किया आह्वान।
बुलबुल नाट्य मंच ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देकर बांधा समां।
अरुण कुमार कैहरबा
कैहरबा गांव में बुलबुल नाट्य मंच द्वारा 13 जनवरी 2012 को बेटी के नाम लोहड़ी मनाई गई। गांव की चौपाल में आयोजित भव्य समारोह में मंच के कलाकारों ने रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी। वरिष्ठ नागरिक हरिचंद गणहोत्रा, बलवंत सिंह व माम चंद सैनी ने लोहड़ी को प्रज्वलित किया। अग्रि के गिर्द घूमते हुए ग्रामीणों ने मत समझो बेटी बोझ, बेटी सै घर का चिराग आदि गीत गाकर बेटियों को बचाने का संकल्प लिया। समारोह की अध्यक्षता मंच के संयोजक गोपाल व साक्षी ने की।
समारोह में सबसे पहले मंच के कलाकारों-अप्सरा, ज्योति, मीना, पूजा, नेहा, निशा, अंजू, मुस्कान, सुनीता, अभिषेक, रविन्द्र, कोमल, दीपा, खुशी, साक्षी, बंसी, गोपाल, पूनम, कमलेश, मंजीत, सुमन, पूजा, मुकेश, दलीप, रजनी, प्रियंका, गुंजन, नरेश, नरेन्द्र व अरुण ने विश्वास गीत गाते हुए इस धरती को मिलकर स्वर्ग बनाने का आह्वान किया। इसके बाद गांव के बच्चों को एकाग्रता के खेल करवाए गए। विभिन्न खेलों में अव्वल रहने वाले बच्चों को पुरस्कार वितरित किए गए। मंच के कलाकारों ने कहा कि समाज में नए समय के अनुकूल नई परंपराएं और रीतियां विकसित करने की जरूरत है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए रंगकर्मी नरेश नारायण ने कहा कि आज लड़कियों की घटती संख्या को देखते हुए लोहड़ी को बेटियों को समर्पित रखा गया है। उन्होंने कहा कि नाट्य मंच एक नई शुरूआत नाटक की तैयारी में लगा हुआ है जिसमें लड़कियों व महिलाओं को केन्द्र में रखकर समाज को देखने का संदेश दिया गया है।
इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत सैनी ने ग्रामीणों को देश की पहली शिक्षिका सावित्री बाई फुले के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर नारी मुक्ति का संदेश दिया था। उन्होंने कहा कि मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था में उनकी कुर्बानियों को भुला दिया गया है। उन्होंने ग्रामीणों को सावित्री बाई फुले के जीवन से सीखने की अपील की। कार्यक्रम में शहीद सोमनाथ स्मारक समिति से जुड़े सुभाष लांबा, नरेश मीत, गुंजन, गीता शाहपुर व अरुण कुमार ने भी अपने विचार रखे।
इस मौके पर नत्थू लाल पूंडरीक, पंचायत सदस्य श्रीपाल, सुनील, सुनील शर्मा, धर्मेन्द्र, रवि, प्रदीप, सुरेन्द्र, धनीराम जैनपुर सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।