Monday, April 16, 2012

GARHPUR TAPU - VILLAGE


यमुना क्षेत्र के गढ़पुर टापू गांव में लगा है समस्याओं का अंबार। बरसों पहले यमुना की बाढ़ से घिरा होने के कारण छुरियां गढ़पुर का नाम पड़ा था गढ़पुर टापू। गांव के मुस्लिम समुदाय में एक लडक़ी भी नहीं है दसवीं पास। गांव में निकासी व्यवस्था की हालत खराब।
अरुण कुमार कैहरबा
विकास के सरकारी दावों के बावजूद जिला करनाल के इन्द्री उपमंडल के यमुना क्षेत्र में बसे गांव गढ़पुर टापू में बुनियादी सुविधाओं का अकाल है। अल्पसंख्यक मुस्लिम बहुल गांव में समस्याओं का अंबार लगा हुआ है, जिससे गांव शिक्षा, स्वच्छता व स्वास्थ्य के मामले में अत्यधिक पिछड़ा हुआ है। आक्रोशित ग्रामीणों का आरोप है कि सरकार व प्रशासन उनके गांव के प्रति उदासीनता का बर्ताव कर रहा है।
उत्तर प्रदेश व हरियाणा की सीमा पर स्थित यमुना नदी क्षेत्र में स्थित गांव गढ़पुर टापू लंबे समय तक बाढ़ की जद में रहा है। यह गांव बरसों पहले छुरियां गढ़पुर नाम से जाना जाता था। आज भी बहुत से लोग इसे इसी नाम से जानते हैं। लेकिन बाद में गांव का नाम गढ़पुर टापू पड़ा, जिसे आज भी इसी नाम से जानते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बाढ़ के पानी से चारों ओर से घिरा होने के कारण गांव के नाम के साथ टापू शब्द जोड़ा गया है। बाढ़ की समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार द्वारा तटबंध के रूप में पटड़ी का निर्माण करवाया गया। गांव में करीब 8सौ की आबादी रहती है, जिसमें अधिकतर आबादी मुस्लिम समुदाय के लोगों की है। इसके अलावा गड़रिया, हरिजन व बाल्मिकी समुदाय के भी कुछएक परिवार हैं।
गांव में अनेक समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। गांव की सबसे बड़ी समस्या पेयजल की है। गांव में जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा बनाया गया जल घर सफेद हाथी बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि जल घर को कभी-कभी ही चलाया जाता है। जिससे लोग पेयजल के लिए नलकों के शोरायुक्त दूषित पानी पर निर्भर रहते हैं। गांव में निकासी व्यवस्था भी खराब है। गांव में घुसते ही क्षतिग्रस्त और गंदगी से अटे पड़े नाले के दर्शन होते हैं। एक स्थान से तो नाले के पास सडक़ बुरी तरह से टूटी हुई है। सडक़ पर बना गड्ढ़ा हर समय हादसे को न्यौता देता रहता है। एक अन्य स्थान पर आरसीसी सडक़ के नीचे चार-चार फुट मिट्टी खत्म हो चुकी है और सडक़ हवा में लटक रही है। गांव की गलियों में लोगों ने अपनी बुग्गियां खड़ी कर रखी हैं और गलियों के साथ ही उपले पाथ रखे हैं। पूरी तरह से चौपट हो चुकी सफाई व्यवस्था के कारण गांव में बिमारियों का आलम है, लेकिन बीमारों के इलाज के लिए गांव में कोई सुविधा नहीं है। गांव से दस किलोमीटर पर गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र स्थित है।
गांव में एक अदद राजकीय प्राथमिक स्कूल है, जिसकी चार दिवारी तक नहीं है। स्कूल में 150 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं लेकिन स्कूल में केवल तीन अध्यापक हैं। स्कूल के गेट पर लोगों के द्वारा अपने पशुओं को बांधा जाता है। यमुना क्षेत्र में उच्च शिक्षा संस्थान नहीं होने के कारण गांव के बच्चे आगे पढऩे से वंचित हो रहे हैं। गांव के मुस्लिम समुदाय में तो एक भी लडक़ी दसवीं तक भी नहीं पहुंच पाई है। स्कूल के अध्यापक देवी शरण से बात की गई तो उन्होंने बताया कि जागरूकता की कमी के कारण स्कूल से ड्रॉप आऊट भी अधिक होता है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय में लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। गांव में रहने वाला कोई व्यक्ति सरकारी नौकरी में भी नहीं है, केवल आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को छोडक़र। ग्रामीण नूरहसन का कहना है कि गांव में आने-जाने के लिए बस सुविधा की तो बात क्या करें, गांव में पहुंचने वाली सडक़ों की हालत भी खस्ता है। उन्होंने कहा कि लबकरी के पास सडक़ में पानी भरा हुआ है। इसी प्रकार गढ़ीबीरबल से आने वाले रास्ते की भी हालत संतोषजनक नहीं है।
गांव में आंगनवाड़ी है लेकिन बच्चों के बैठने के लिए सुविधा सम्पन्न भवन नहीं है। गांव में तीन चौपालें हैं लेकिन तीनों की हालत बेहद खस्ता है। यहां पर गंदगी का आलम रहता है। चौपालों की दुर्दशा के चलते जब गांव में कोई शादी-विवाह होता है तो ग्रामीण स्कूल के भवन का इस्तेमाल करते हैं, जिससे स्कूल की छुट्टी करनी पड़ जाती है।
इस बारे में नम्बरदार दलबीर सिंह ने रोष के स्वर में कहा कि सरकार व प्रशासन ने गांव को रामभरोसे छोड़ रखा है। गांव की सरपंच नियाजन व उनके पति रिजवान का कहना है कि उनके गांव की पंचायत में करतारपुर गांव भी आता है। गांव के पास आमदनी के साधन सीमित हैं। दो गांव की पंचायत होने के कारण समस्या आती है। समस्याओं के बारे में अधिकारियों को सूचित करवाते रहते हैं।

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