
पांच सौ वर्ष पहले मोरों की अधिकता के कारण ‘मोरगढ़’ से बिगड़ कर मुरादगढ़ गांव बसा। सामाजिक समरसता और हिन्दू-मुस्लिम भाई चारे की मिसाल पेश कर रहा है गांव। हिन्दू लोग मुस्लिम बहन का भात भरने के लिए पटड़े पर चढ़े। स्वाधीनता संग्राम में यहां के आर्य समाजियों ने जगाई आजादी की अलख।
अरुण कुमार कैहरबा
करीब 500 साल पहले घने पेड़ों के झुरमुट में मोरों के नर्तन के बीच कुछ लोग रहने लगे। उन्होंने मोरों की अधिकता के कारण इस स्थान का नाम रखा मोरगढ़। मोरगढ़ शब्द बदलते-बदलते मुरादगढ़ बन गया। इन्द्री से केवल तीन किलोमीटर दूरी पर बसा यह गांव अंग्रेजों की दासता के खिलाफ स्वाधीनता संग्राम में भागीदारी और सामाजिक समरसता व हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का समृद्ध इतिहास अपने अंदर समेटे हुए है। गांव के हिन्दू भाईयों ने मुस्लिम लडक़ी के विवाह पर भात भरने के लिए पटड़ पर चढ़ते हुए हिन्दु-मुस्लिम भाईचारे की अद्भुत मिसाल कायम की। गांव के गरिमापूर्ण इतिहास और पूर्वजों द्वारा स्थापित किए गए जीवन मूल्यों पर आज भी ग्रामीणों को गर्व है।
आजादी की लड़ाई के दौरान मुरादगढ़ गांव के आर्य समाजी फूल सिंह, राम सिंह, लीलू भगत सहित दर्जनों की संख्या में लोग दिन-रात एक करके पैदल गांव-गांव जाकर लोगों लोगों में आजादी की अलख जगाते थे। सन् 1930 और 1940 के दशक में आजादी प्राप्ति की लहर पूरे यौवन पर थी। उधर अंग्रेजी सरकार के देशी और विदेशी गुर्गे भी आजादी के परवानों की गतिविधियों पर नजऱ रखते थे। उस समय गांव मुरादगढ़ के आर्य समाजी चोरी-छिपे गांव से निकलकर अपनी कार्रवाई को अंजाम देते थे। गांव में शहीद भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, शहीद उधम सिंह, राजगुरू, सुखदेव व चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रान्तिकारियों तथा महात्मा गांधी के विचार देशी भाषा में लोगों तक पहुंचाने की होड़ लगी थी।
गांव के नामकरण के सम्बन्ध में पूर्व सरपंच मुन्ना लाल, मान सिंह काम्बोज, नरेश कुमार, रामकिशन फौजी, जोगिन्द्र सिंह व नाथीराम बताते हंै कि यह गांव लगभग 500 वर्ष पुराना है। जहां गांव बसा हुआ है वहां घना जंगल हुआ करता था, जिसमें मोरों की संख्या बहुत अधिक थी। इसी कारण इस गांव का नाम मोरगढ़ पड़ा तथा बाद में अपभ्रंश होकर यह गांव मुरादगढ़ के रूप में अस्तित्व में आया।
यह गांव सामाजिक समरसता और साम्प्रदायिक सौहार्द में अन्य गांवों के लिए मिसाल है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर दृष्टिपात करने से पता चलता है कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान मारकाट के समय इस गांव के लोगों ने गांव में रह रहे एक मात्र मुसलमान परिवार की ना केवल जान बचाई बल्कि परिवार को पूरा संरक्षण भी दिया। एक अजीब दास्तान और साम्प्रदायिक सौहार्द की अनुकरणीय मिसाल पेश करने वाले इस गांव के बारे में मुन्ना लाल बताते है कि आजादी से पहले गांव में मखमुल्ला नामक मुसलमान परिवार रहता था। मारकाट के समय जब यूपी के कुछ हिन्दु लोगों ने मुसलमानों को मारने के लिए गांव पर चढ़ाई कर दी। उस वक्त गांव के लोगों ने आपसी भाईचारे का परिचय देते हुए मखमुल्ला का नाम मोलू राम और उनकी लडक़ी $फीजन का नाम सुनहरी देवी रख दिया। उससे पहले $फीजन का निकाह घरौंडा के गांव बाबरपुर निवासी मजीद के साथ होना निश्चित हो चुका था। मारकाट के दौरान मजीद पाकिस्तान चला गया।
कुछ समय बाद जब मजीद भारत आया तो वह अपने गांव बाबरपुर न जाकर मुरादगढ़ गांव में आया और गांव के लोगों को $फीजन के साथ हुए रिश्ते की बात बताई। $फीजन के भाईयों ने मना कर दिया तथा कहा कि वे शादी में शामिल होकर भात भरने की सामाजिक जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे। $फीजन के पिता शादी के हक में थे। ऐसे में भात भरने की रस्म कौन निभाता। गांव के लोगों ने मिलकर फैसला लिया और $फीजन को गांव की बेटी मानते हुए लोग भाती बनकर पटड़े पर चढ़े। गांव के लोगों की साम्प्रदायिक सौहर्द की यह पहल उस समय चर्चा का विषय बन गई थी। आज भी लोग हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे इस मिसाल का व्याख्यान करते नहीं थकते। $फीजन का परिवार आज भी गांव में सद्भावना के साथ रहते हंै।
आज यह गांव धनधान्य की दृष्टि से काफी समृद्ध है। काम्बोज बिरादरी बहुल इस गांव में सभी जातियां सौहार्द के साथ रहती हैं। गांव की कुल आबादी लगभग 2800 है। मतदाताओं की संख्या लगभग 1500 है। ग्राम पंचायत के पास 80 एकड़ जमीन है। गांव का कुल रकबा 6 हजार बीघे का है। बेशक यह गांव आदर्श गांव की श्रेणी में नहीं लेकिन इस गांव में आदर्श गांव जैसी सुविधा लोगों ने अपनी मेहनत से तैयार की है। गांव की सभी गालियां, नालियां, फिरनी व रास्ते पक्के हैं लेकिन गांव में जाने वाली सडक़ की हालात बहुत दयनीय है। जमीन के नीचे का जल स्तर लगभग 45 फुट है। पानी सिंचाई के लिए उपयुक्त है और जमीन उपजाऊ होने के कारण छोटी जोत के किसान भी बेहतर तरीके से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हंै तथा अपने बच्चों को उच्च शिक्षण संस्थानो में शिक्षा दिलवा रहे हंै। लोगों का रहन-सहन और खान-पान का स्तर भी उम्दा है। गांव में दसवीं तक का स्कूल है। उच्च शिक्षा के लिए गांव के बच्चे शहीद उधम सिंह राजकीय महाविद्यालय इन्द्री, करनाल और कुरूक्षेत्र में पढऩे के लिए जाते हैं। गांव में कन्या भू्रण हत्या जैसी सामाजिक बुराई नहीं है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गांव में लडक़े और लड़कियों की संख्या लगभग बराबर है। गांव के जोहड़ मत्स्य पालन के लिए ठेके पर दिये जाते हंै। सहकारी बंैक, पशु चिकित्सालय, आंगनवाड़ी केंद्र, सामुदायिक केंद्र, वृद्धाश्रम व मंदिर गांव की शोभा बढ़ाते हैं। गांव के लगभग 20 लोग सरकारी तथा गैर सरकारी सेवाओं में हैं। स्वच्छता की दृष्टि से भी गांव अग्रिम है। गांव के हर घर में शौचालय है। इन्दिरा आवास योजना के तहत भी गांव में मकान बनाये गये हंै। गांव के अधिक तर किसान दलहन, तिलहन, लहसुन, सब्जियों और गन्ने की खेती करते हंै। कुछ किसान औषधीय अजवायन की खेती में भी हाथ आजमा रहे हंै।
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