Monday, April 9, 2012

INDRI-YAMUNA BELT


विकास की नदियां बहाने के सरकारी दावे यमुना नदी के किनारे हुए खोखले। बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र के दर्जनभर गांव में नहीं है कोई सरकारी उच्च विद्यालय। बस सेवा के अभाव में क्षेत्र शिक्षा में पिछड़ा। आज तक कोई भी लडक़ी स्नातक स्तर तक नहीं पहुंची।
अरुण कुमार कैहरबा
प्रदेश में विकास की नदियां बहा देने के सरकारी दावे यहां यमुना नदी के किनारे स्थित दर्जन भर गांव में खोखले हो रहे हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के लागू कर दिए जाने के बावजूद यमुना नदी के साथ लगते सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े गांवों में आज तक कोई सरकारी हाई स्कूल नहीं है। ऊपर से बस सेवा के अभाव में बच्चों को कईं किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्कूल जाने में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। सुविधाएं नहीं होने से यह क्षेत्र शिक्षा के मामले में पिछड़ता जा रहा है। यही कारण है कि इन अति पिछड़े गांवों से शायद कोई भी लडक़ी स्नातक स्तर तक नहीं पहुंच पाई है।
खण्ड के गांव डेरा सिकलीगर, नबियाबाद, जपती छपरा, सैय्यद छपरा, जपती छपरा सिकलीगरान, न्यू हलवाना, नगली, कमालपुर, सिकन्दरपुर व रंदौली उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे हुए हैं। ये गांव यमुना नदी के किनारे पर पड़ते हैं तथा बाढ़ के क्षेत्र में आते हैं। सरकार की उपेक्षा के कारण इन गांवों में सुविधाओं का अकाल है। गांव डेरा सिकलीगर, रंदौली व सैय्यद छपरा में मिडल स्कूल हैं। लेकिन अध्यापकों व अन्य सुविधाओं के मामले में इन स्कूलों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। घुमंतु सिकलीगर जाति के गांव डेरा सिकलीगर के स्कूल का प्रांगण बहुत ही छोटा है। इस प्रांगण में प्राथमिक स्कूल के सात सौ से अधिक बच्चों के साथ ही मिडल कक्षाओं के बच्चे भी शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस स्कूल में स्कूल संचालन की जमीन सहित बुनियादी सुविधाओं का टोटा है। मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय बहुल गांव सैय्यद छपरा के मिडल स्कूल में केवल एक अध्यापक है। रंदौली के स्कूल में शिक्षकों का अभाव है। गांवों में स्थित प्राथमिक स्कूलों की हालत भी कोई अच्छी नहीं है। लगभग सभी स्कूलों में शिक्षकों की किल्लत है। स्कूलों में प्रत्येक कक्षा को न्यूनतम एक अध्यापक भी नसीब नहीं हो रहा है।
इन गांवों में एक भी सरकारी हाई स्कूल नहीं है। जिससे गांवों के बच्चों को उच्च शिक्षा हासिल करने में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। स्थिति तब और अधिक विकट हो जाती है जब गरीबी से जूझते इन गांवों के बच्चों को स्कूल जाने के लिए कोई सुविधा नहीं मिल पाती है। देश की आजादी के 60 से अधिक वर्ष गुजरने के बावजूद आज तक इन गांवों में सरकारी परिवहन सेवा नहीं है। बस सेवा नहीं होने से गांव के बच्चों को पैदल या फिर साईकिल पर कईं किलोमीटर दूर स्थित स्कूल में पहुंचना पड़ता है। दूरी के कारण कईं मां-बाप अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते हैं। अपने गांव में शिक्षा हासिल करने के बाद सुविधाओं के अभाव में खासतौर से लड़कियों की शिक्षा पर रोक लग जाती है।
सामाजिक कार्यकर्ता भजन सिंह पटवा, शोभा सिंह, ललित कुमार, सुरेश कुमार, सुलेखचंद, सुरजीत, मनोज कुमार, शमीम अब्बास, रज़ा अब्बास, जिन्दा हसन व शेर सिंह सहित अनेक लोगों ने गांव में शिक्षा की सुविधाएं प्रदान करने की मांग की है।
क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि:-गांव डेरा हलवाना के सरपंच गुलाब सिंह, पंचायत समिति सदस्य गुलाब सिंह, सैय्यद छपरा के सरपंच ज़हीर अब्बास, रंदौली की सरपंच परमजीत कौर व नागल की सरपंच मंजू देवी ने कहा कि सुविधाओं के अभाव में हालात भयावह हैं। शीघ्र ही सरकार को यमुना बैल्ट में सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल व उच्च शिक्षण संस्थान खोल कर विकास की राह खोलनी चाहिए।

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