स्कूलों में नैतिक शिक्षा क्यों और कैसे हो?
अरुण कुमार कैहरबा
हमारा समाज जातिवाद, लैंगिक असमानता, भेदभाव, नशा, हिंसा, भ्रष्टाचार जैसी अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। शिक्षा की प्रक्रिया से समाज की सभी समस्याओं के बारे में बच्चों व युवाओं में तार्किक दृष्टि और अपेक्षित मूल्यों के विकास की अपेक्षा की जाती है। संभवत: यही नैतिक शिक्षा की प्रक्रिया है। नैतिक शिक्षा पर विचार करते हुए यह भी ध्यान में रखा जाना जरूरी है कि हर समय, स्थान व समाज की नैतिकताएं भिन्न हो सकती हैं। नैतिक शिक्षा व्यवहार का विषय है। समाज को जिम्मेदारी से बरी करके केवल स्कूल नैतिक मूल्यों के विकास के मामले में चमत्कार नहीं कर सकते।
यह माना जा सकता है कि नैतिक शिक्षा बेहद जरूरी है। लेकिन जिस तरह से नैतिक शिक्षा को अलग विषय बनाकर इसे पढ़ाए जाने की वकालत की जाती है, उससे हमारी सहमति नहीं है। स्कूली शिक्षा का प्रत्येक पहलु नैतिक शिक्षा से संबद्ध होता है और होना भी चाहिए। प्रात:कालीन सभा से यदि नैतिक मूल्यों को अलग कर दें तो रहता ही कुछ नहीं है। अध्यापक का आचरण भी नैतिक शिक्षा का स्रोत होना चाहिए। स्कूल का पूरा वातावरण ऐसा मनोरम होना चाहिए, विद्यार्थियों में नैतिक मूल्यों व संवेदनशीलता का विकास हो। हर विषय की पाठ्यचर्या में इतनी संभावनाएं होती हैं कि उनका शिक्षण करते हुए विद्यार्थियों में तार्किकता, संवेदनशीलता, विचारशीलता व कल्पनाशीलता का विकास हो सकता है। अध्यापक उन अवसरों को पहचान कर विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क पर असर डालने की कोशिश करते हैं। सीखने की क्रियाओं में विद्यार्थियों की भागीदारी नैतिक शिक्षा का स्रोत है। स्कूली शिक्षा में भाषाओं के साहित्य और चित्रकला व अन्य कलाओं के विषय तो नैतिक मूल्यों से ही ओतप्रोत होते हैं। कविताएं जहां विद्यार्थियों को सोचने पर मजबूर करती हैं, वहीं ज्ञान देते हुए उनका मनोरंजन भी करती हैं। कहानियों के विभिन्न पात्र अपने-अपने संवादों के जरिये विद्यार्थियों में अच्छे-बुरी की पहचान को और अधिक साफ करते हैं। कहानी पढऩे के बाद विद्यार्थी उस पर चर्चा करते हुए अनेक पहलुओं से अवगत होते हैं। हमें लगता है कि नैतिक शिक्षा को अलग विषय बना देने, इसके लिए अलग पुस्तकें और कालांश निर्धारित करने और परीक्षाएं लेने से नैतिक शिक्षा अपना अर्थ खा देगी। समाज और स्कूल का समस्त जीवन संवेदनशीलता और विचारशीलता से भरा हो तो विद्यार्थियों में अपने समाज की समस्याओं की बेहतर समझ पैदा होगी। उनके लिए नैतिक शिक्षा के उपविषय रटने का कारण नहीं बनेंगे, बल्कि वह जीवन में उनका अनुसरण करेंगे। नैतिक शिक्षा के लिए स्कूलों में अध्यापक पूरे हों, सुविधाएं हों और सभी मिलकर कार्य करें। यह अति आवश्यक है।
मो.नं.-9466220145
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