रक्तदान के प्रेरक सेनानी: डॉ. सुरेश सैनी
130 बार रक्तदान और 94 बार प्लेटलेट कर चुके दान
वल्र्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड सहित एशिया व इंडिया की रिकॉर्ड बुक में नाम दर्ज
सैनी का नाम भारतीय सेना में सबसे अधिक बार रक्तदान करने की उपलब्धि के लिए हुआ दर्जअरुण कुमार कैहरबा
भारतीय सेना में ऑनरेरी कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त हुए इन्द्री के वार्ड चार निवासी डॉ. सुरेश सैनी रक्तदान के ऐसे सेनानी हैं, जिनकी ख्याति देश की सीमाओं से बाहर भी फैल गई है। वे 130 बार रक्तदान और 94 बार प्लेटलेट दान कर चुके हैं। सशस्त्र सेनाओं में सर्वाधिक बार रक्तदान करने के लिए वल्र्ड बुक ऑफ रिकार्डस, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्डस और इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड ने दर्ज कर लिया है। वे भारत में रक्तदान के लिए इंटरनेशनल मोटीवेटर की भूमिका निभाते आए हैं। राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलनों में वे युवाओं को रक्तदान के लिए प्रेरित कर चुके हैं। हाल ही में बाल्सब्रिज विश्वविद्यालय ने उन्हें रक्तदान करने और रक्तदान के क्षेत्र मेें सतत एवं सराहनीय कार्य करने के लिए पीएचडी की मानद उपाधि से सम्मानित किया था।सुरेश सैनी ने 1986 में रक्तदान का सिलसिला शुरू किया था। तब से वे लगातार सेना सहित विभिन्न स्थानों पर रक्तदान कर चुके हैं। ऐसे अवसरों पर जब दुर्घटनाग्रस्त और गर्भवती महिलाओं के खुद के परिजन डर के कारण रक्तदान से खुद पीछे हट गए और सुरेश सैनी ने आगे आकर रक्तदान करके पीडि़त की जान बचाई।
हरियाणा में वे उस समय चर्चित व्यक्तित्व हो गए, जब अपनी बेटी के कन्यादान से पूर्व उन्होंने रक्तदान किया। वह दृश्य बहुत विस्मयकारी और प्रेरणादायी था। जब घर में विवाह के लिए परिजनों व रिश्तेदारों का मजमा लगा हुआ था। बारात आई हुई थी। ऐसे में सारे मेहमानों को छोड़ कर यह शख्स चुपके से निकल जाता है और रक्तदान शिविर में पहुंच कर रक्तदान करता है। मेहमान मेजबान परिवार के मुखिया को देख रहे हैं। मेजबान सुरेश सैनी रक्तदान करके आता है और उसके बाद कन्या दान करता है।
सुरेश सैनी को भारतीय सेना, विभिन्न राज्यों की सरकारें और रैडक्रॉस सोसायटी द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के कारण जब रक्तदान का सिलसिला पूरी तरह रूक गया। इससे गर्भवती महिलाओं, दुर्घटनाग्रस्त लोगों, बीमारों व थैलीसीमिया के मरीजों की रक्त की जरूरत पूरी नहीं हो पाई। ऐसे में सिविल अस्पताल करनाल में ब्लड बैंक में पहुंच कर सुरेश सैनी ने ना केवल खुद रक्तदान किया बल्कि अपने दोस्तों व मित्रों को भी ले जाकर रक्तदान करवाया। ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. संजय वर्मा व रैडक्रॉस सोसायटी के डीटीओ एमसी धीमान के साथ मिलकर उन्होंने रक्तदान की मुहिम चलाई। जरूरतमंदों के लिए लॉकडाउन के बाद जब पहले रक्तदान शिविर आयोजित किए गए तो उसमें उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। धीरे-धीरे रक्तदान शिविरों का सिलिसिला चल निकला।
कोरोना काल में ही रक्तदान के सेनानी और कोरोना योद्धा के रूप में उन्होंने अनेक उपलब्धियां अपने नाम दर्ज की। 16 जुलाई में इंडिया बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्डस ने उनके कार्य अपने रिकॉर्ड का हिस्सा बनाया। यही नहीं 17 अगस्त को यूनाईटिड किंगडम लंदन के वल्र्ड बुक ऑफ रिकार्डस में सशस्त्र सेनाओं में सर्वाधिक बार रक्तदान करने के लिए उनका नाम दर्ज हुआ। इसके बाद एशिया बुक ऑफ रिकॉर्डस ने भी उन्हें सम्मानित किया। इसके बाद एक्सक्ल्यूसिव वल्र्ड रिकॉर्ड, महाराष्ट्र बुक ऑफ रिकॉर्डस, स्टार रिकॉर्डस बुक ऑफ इंटरनेशनल, गोल्ड स्टार बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्डस व नेशनल स्टार एक्सीलेंस रिकॉर्ड बुक सहित अनेक रिकॉर्ड बुक्स ने रक्तदान के क्षेत्र में उनके योगदान को दर्ज किया।
बॉल्सब्रिज विश्वविद्यालय ने दी पीएचडी की मानद उपाधि-
रिकॉर्डस के इस सिलसिले से पहले अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के बॉल्सब्रिज विश्वविद्यालय ने रक्तदान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए सुरेश सैनी को पीएचडी की मानद उपाधि से अलंकृत किया। रक्तदान के क्षेत्र में पीएचडी की मानद उपाधि प्राप्त करने वाले सुरेश सैनी विरले ही होंगे। इन पंक्तियों के लेखक से खास बातचीत में सुरेश सैनी ने बताया कि जब 1986 में उन्होंने पहली बार रक्तदान किया था, तब समाज में रक्तदान के प्रति अनेक प्रकार की आशंकाएं और भ्रांतियां थीं। वे खुद भी उसके शिकार थे। लेकिन एकबार रक्तदान करके बहुत अच्छा लगा और फिर तो सेना में सेवा के साथ ही उन्होंने रक्तदान के जरिये मानवता की सेवा को जीवन का लक्ष्य बना लिया।
रक्तदान से कमजोरी का तो सवाल ही नहीं-
सुरेश सैनी ने कहा कि रक्तदान से शरीर में किसी प्रकार की कमजोरी का सवाल ही पैदा नहीं होता है। उन्होंने बताया कि रक्तदान के एकदम बाद वे खेल के मैदान में दमदार ढ़ंग से खेले हैं। सेना का तो हर रोज का अभ्यास भी काफी मुश्किलों से भरा होता था। 31जनवरी, 2020 में सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने दो-तीन बार रक्तदान किया है। आज तक भी किसी प्रकार की कमजोरी उन्होंने महसूस नहीं की।
रक्तदान के फायदे ही फायदे-
किसी प्रकार के नुकसान की बजाय रक्तदान से फायदे अनेक प्रकार के होते हैं। सबसे पहले तो रक्तदान के बहाने विभिन्न प्रकार के टेस्ट मुफ्त हो जाते हैं। दूसरे रक्तदान करने वाले का खून ताजा हो जाता है। रक्तदान करने वालों को हृदय रोग होने और हृदय घात होने की संभावना कम हो जाती है। उन्होंने कहा कि मानवता की सेवा का अहसास भी मन को ऊर्जा से भर देता है। उन्होंने बताया कि कईं अवसरों पर उन्होंने जब रक्तदान किया तो बीमार, घायल व गर्भवती महिला के परिजनों से मिलने वाली दुआओं ने भी उन्हें ताकत दी है। उन्होंने कहा कि रक्तदान शरीरिक ही नहीं मानसिक विकारों को भी समाप्त करता है।
समाजसेवियों व परिजनों को सुरेश सैनी पर गर्व-
वल्र्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज होने पर सुरेश सैनी के पिता चंदगी राम सैनी, माता प्रेम देवी, पत्नी सरोज सैनी, बेटा देवेश सैनी, अमेरिका में रह रही बेटी दीपा सैनी व दामाद सर्वजीत सैनी और ब्रिटेन मे रह रहे भतीजे विजयंत सैनी ने उन्हें बधाईयां देते हुए कहा कि उन्हें उन पर गर्व है। ब्लड बैंक करनाल के प्रभारी डॉ. संजय वर्मा, कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. सचिन गर्ग, इन्द्री के वार्ड की पार्षद नीलम वोहरा, पूर्व पार्षद सुरेश भाटिया, अनिल काका, एडवोकेट तरुण मेहता सहित समाजसेवियों ने उन्हें बधाई दी। स्वैच्छिक रक्तदान दिवस पर सुरेश सैनी के प्रेरक व्यक्तित्व को सलाम।
-अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, लेखक एवं स्तंभकार
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान,
इन्द्री, जिला-करनाल, हरियाणा
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