Thursday, September 3, 2020

पीपीपी! PPP

 व्यंग्य

एक के बाद दूसरा पीपीपी! 

अरुण कुमार कैहरबा

HARI BHOOMI

एक पीपीपी से तो पहले से ही परेशान थे, अब एक नया पीपीपी कोरोना महामारी के ऐन चरमकाल में फन फैलाए खड़ा है। पहले पीपीपी की फुल फॉर्म है-पब्लिक प्राईवेट पार्टनर्शिप और दूसरे की-परिवार पहचान पत्र। ना तो पहला पीपीपी अपने आप उपजा था और  ना ही दूसरा पीपीपी।

इस नए दौर में जन्मा पहला ‘पीपीपी’ शब्द सत्ताधारी नेताओं के भाषणों में अपनी पूरी चमक-दमक के साथ आता है। सीएम, ईएम और सारे एम एक सुर में पीपीपी का राग अलापते हुए पाए जाते हैं। बहुत बड़ी आबादी को तो पीपीपी के मायने तक नहीं पता होते। लेकिन जब वे मंत्रियों के मुख से पीपीपी सुनते हैं तो उन्हें लगता है जैसे वे उन्हें पीने के लिए कह रहे हों। और भक्तजन तो इतने से ही मदमस्त हो जाते हैं कि भई वाह मंत्री जी हों तो ऐसे, जो लोगों को कुछ ना कुछ पिला देना चाहते हैं। हमारे मंत्री जी तो सेवक हैं। तीन बार आया ‘पी’ तो कमाल की स्वरबंदी, जुगलबंदी और आनुप्रासिकता के साथ आता है कि कितने ही लोग वाह-वाह कह उठते हैं। एक ‘पी’ तो पीने का आह्वान करता है लेकिन एक साथ तीन बार पी-पी-पी दर्शाता है कि जो नहीं भी चाहें तो उन्हें भी एम लोग पिलाकर ही मानेंगे। जो रह गए हैं वे भी पीपीपी के लिए तैयार ही रहें। अब तो रेलवे को भी तेज गति से पीपीपी के अनुकूल कर दिया जाएगा।
वैसे तो पीपीपी के चाहे जो मायने निकाल लें। पहली बार सुनने वाला तो यह भी समझ सकता है कि प्राईवेट सैक्टर को पब्लिक के हवाले कर दिया जाएगा। कोई समझ सकता है कि मिलकर चलना ही भारतीय संस्कृति है। प्राईवेट पब्लिक के साथ चले और पब्लिक प्राईवेट के साथ तो इसमें दिक्कत भी क्या है। शरीफ लोग तो यही मानेंगे कि यह मिलवर्तन होना ही चाहिए। लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। चूंकि प्राईवेट सैक्टर मतलब बड़ी पूंजी संचालित कारपोरेट कंपनियों व घरानों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में काफी मेहनत की है। उन्होंने चुनाव रूपी लोकतंत्र के पर्व में अपना माल लगाया होता है। सरकार बनाने में उन्होंने पैसे को पानी की तरह से बहाया है। अब भला मजा लेने में वे पीछे कैसे रह सकते हैं। उन्हें भी तो मजा आना चाहिए। उनके बार-बार आग्रहपूर्वक आदेश के बाद पीपीपी की मदमस्त करने वाली शब्दावली में यह नीति आई है तो इसकी पालना करना प्रत्येक नागरिक का परम दायित्व बनता है। इसलिए देशभक्ति का तकाजा है कि कारपोरेट कंपनियों के आदेश पर बनाई गई पीपीपी की नीति की जन-जन को पालना करनी चाहिए और देशभक्ति का परिचय देना चाहिए।


जैसाकि पहले बताया जा चुका है नई पीपीपी है- परिवार पहचान पत्र। इतने तरह के पहचान-पत्रों के धूमधड़ाके में इस नए पत्र का आगमन हुआ है। यह भी सरकार के नवाचार और नई सोच का ही नतीजा है कि अब लोगों के पास एक नया पहचान पत्र होगा। नियमित रूप से नए-नए पहचान-पत्र मिलने से लोग खुश होते हैं। इसके बनवाने में जनता का टाईम पास भी हो जाता है। कोरोना काल में ताली-थाली, दीए-बाती और आतिशबाजी के उत्सवों के बाद में लोगों को नए काम में लगाने की अत्यधिक आवश्यकता महसूस की जा रही थी। वैसे तो लोगों के टाईम-पास के लिए भाषणों की नियमित व्यवस्था की जाती है। लेकिन निरे भाषणों से काम कहां चलता है। ऐन लॉकडाउन घोषित कर दिए जाने के बाद गरीब लोगों को अपने घरों में जाने के लिए एक मेहनत करनी पड़ी थी तो खतरों से खेलते हुए प्रवासी कही जाने वाली गरीब जनता में साहसिकता के गुण पैदा हुए थे। अब जब पीपीपी का काम शुरू हुआ है तो लोगों के पास नया अवसर है कि वे अपने काम-काज छोड़ कर अपने सभी दस्तावेज उठाकर आ जुटें स्कूलों में। ना तो वैबसाईट चले और ना ही आसानी से पीपीपी पूरा हो। आओ सब मिलकर एक  नए पीपीपी की पालना करें और एक नए पीपीपी का इंतजार करें।
PRAVASI SANDESH MUMBAI

JAMMU PARIVARTAN 4-9-2020

DAINIK SWADESH 4-9-2020


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