व्यंग्य
विश्वगुरु बनता देश!
अरुण कुमार कैहरबा
भारत में विश्व गुरु बनने की अपार संभावनाओं के बावजूद इन्हें भुनाया नहीं जा रहा है। ना जाने सारे लोग क्या भूनने-भुनाने में लगे हैं, जबकि सबसे पहले संभावनाओं को भुनाया जाना चाहिए। मौजूदा समय में इस राह में सबसे बड़ी बाधा विपक्ष सहित सारे राष्ट्रदोही लोग हैं। वरना तो सत्ताधारियों ने भारत को कभी का विश्व गुरु का दर्जा दिला दिया होता। आखिर छह साल हो गए हैं। इस दौरान कितने काम हुए हैं। कितने तो नेता ही दल बदलने के बाद राष्ट्रदोही से राष्ट्रभक्त में तब्दील हो गए हैं।
संभावनाओं को राष्ट्रहित में भूनने का काम सबसे पहले होना चाहिए। यहां तक कि संकटों को अवसर में बदलने की ताकत होनी चाहिए। अब आप ही देखो कि कोरोना संकट को सबने मिलकर किस तरह अवसर में बदल दिया है। चाहते तो कोरोना के वायरस को आने से पहले ही रोका जा सकता था। लेकिन इससे हम संकट को अवसर में बदलने से वंचित हो जाते। इसलिए हमने पहले वायरस को आने दिया। लॉकडाउन लगाने से पहले बहुत सारे काम थे, वो पहले किए। बाद में लॉकडाउन लगाया। इस दौरान कितने नए प्रयोग किए गए। ऐसे दुर्लभ प्रयोग शायद ही किसी देश में किए गए होंगे। तालियां तो अपने बाबा जी पहले से बजवाते आ रहे थे। हाथों को आपस में टकराने से जो ध्वनि पैदा होती है, वह संगीतमयी ध्वनि कमाल का काम करती है। साथ ही मनुष्य को कितनी ही बिमारियों से निजात मिलती है। लेकिन थालियों और घंटियों को बजाने का ऐतिहासिक प्रयोग जब तक दुनिया रहेगी, तब तक याद किया जाता रहेगा। दीया-बाती के संदेश को एक कदम आगे बढक़र भक्तजनों ने आतिशबाजी में तब्दील करके नवाचार को नए आयाम दिए हैं। इसके बावजूद कोरोना का संक्रमण सिर्फ इसलिए नहीं थम रहा क्योंकि हमें दुनिया में नंबर वन जो बनना है। दूसरे स्थान पर तो आ ही गए हैं। नंबर वन होने तक रूकने का कोई मतलब ही नहीं है। कोरोना को जन्म देकर चीन ने पहला स्थान पाया हो, लेकिन कोरोना के मामले में अंतत: हमीं अग्रणी स्थान पर जाएंगे।
भारत में पूरी दुनिया को भाषण कला में दक्ष व प्रवीण नेताओं की आपूर्ति करने की काफी संभावनाएं हैं। एक से एक ढ़ोंगी, पाखंडी, कर्महीन, निठल्ले, निकम्मे और भाषणबाज नेताओं को हम पूरी दुनिया में भेज कर काफी नाम कमा सकते हैं। भले ही जनता में उनकी कितनी छिछालेदर हो रही हो, लेकिन अपने देश में नेता लोग उस सबसे बेपरवाह पूरे आत्मविश्वास से भरे लच्छेदार भाषा में प्रवाहपूर्ण भाषण दे सकते हैं। सत्ता में आने से पहले जनता के साथ किए गए अपने वादों को पूरी तरह से भूलकर नए वादे कर सकते हैं। सत्ता में आने से पहले शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की बातें करेंगे। गरीब, किसान, मजदूर, महिला, युवा, बच्चे सभी के हित में कार्य करते हुए देश की तकदीर बदलने के सपने दिखाएंगे। लेकिन सत्ता में आने के बाद इन सब वादों व दिखाए गए सपनों को बाईपास करके देश को विश्वगुरु बना देने के सब्जबाग दिखाएंगे। जब हमारे देश में इतने गिरगिटनुमा नेता हैं तो यह हमारा परम दायित्व है कि हम ऐसे नेताओं को पूरी दुनिया में फैला दें।
अपना देश जल्द ही विश्वगुरु बन सकता है। पूरी दुनिया में हम अपनी धाक जमा सकते हैं। आप चाहे जो कहो, अपना देश दैवीय शक्ति से संचालित होता है। अपने नेता चाहे स्कूल, कॉलेजों, सडक़ों, रेलों, जेलों, सम्मान व ईमान सबको बेच कर पूंजीपतियों के यहां गिरवी रख दें, अपना देश विश्व गरु बन सकता है। बनेगा, इसे कोई माई का लाल रोक नहीं सकता।
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