Wednesday, September 30, 2020

BOL KABIRA

 बोल कबीरा


क्यूं होते बलत्कार कबीरा
सोच ही है बेकार कबीरा।

घटना पर चिल्लाते हैं सब
फिर चुप्पी की मार कबीरा।

भाषा में सजती हैं गाली
मन में बसे विकार कबीरा।

शत्रुता निकालने को करते
महिलाओं पर वार कबीरा।

हवस छुपी रहती है मन में
बतलाते हैं प्यार कबीरा।

हाथरस की घटना से तो
देश हुआ शर्मसार कबीरा।

लल्लो चप्पो भौं-भौं-भौं
चैनलों का ये सार कबीरा।

रोज अगर हैं होते अपराध
कहाँ पे है सरकार कबीरा।
-अरुण कुमार कैहरबा

Motivational Personality in Blood Donation: Dr. Suresh Saini

 रक्तदान के प्रेरक सेनानी: डॉ. सुरेश सैनी

130 बार रक्तदान और 94 बार प्लेटलेट कर चुके दान

वल्र्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड सहित एशिया व इंडिया की रिकॉर्ड बुक में नाम दर्ज

सैनी का नाम भारतीय सेना में सबसे अधिक बार रक्तदान करने की उपलब्धि के लिए हुआ दर्ज

अरुण कुमार कैहरबा

भारतीय सेना में ऑनरेरी कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त हुए इन्द्री के वार्ड चार निवासी डॉ. सुरेश सैनी रक्तदान के ऐसे सेनानी हैं, जिनकी ख्याति देश की सीमाओं से बाहर भी फैल गई है। वे 130 बार रक्तदान और 94 बार प्लेटलेट दान कर चुके हैं। सशस्त्र सेनाओं में सर्वाधिक बार रक्तदान करने के लिए वल्र्ड बुक ऑफ रिकार्डस, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्डस और इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड ने दर्ज कर लिया है। वे भारत में रक्तदान के लिए इंटरनेशनल मोटीवेटर की भूमिका निभाते आए हैं। राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलनों में वे युवाओं को रक्तदान के लिए प्रेरित कर चुके हैं। हाल ही में बाल्सब्रिज विश्वविद्यालय ने उन्हें रक्तदान करने और रक्तदान के क्षेत्र मेें सतत एवं सराहनीय कार्य करने के लिए पीएचडी की मानद उपाधि से सम्मानित किया था।


सुरेश सैनी ने 1986 में रक्तदान का सिलसिला शुरू किया था। तब से वे लगातार सेना सहित विभिन्न स्थानों पर रक्तदान कर चुके हैं। ऐसे अवसरों पर जब दुर्घटनाग्रस्त और गर्भवती महिलाओं के खुद के परिजन डर के कारण रक्तदान से खुद पीछे हट गए और सुरेश सैनी ने आगे आकर रक्तदान करके पीडि़त की जान बचाई।
हरियाणा में वे उस समय चर्चित व्यक्तित्व हो गए, जब अपनी बेटी के कन्यादान से पूर्व उन्होंने रक्तदान किया। वह दृश्य बहुत विस्मयकारी और प्रेरणादायी था। जब घर में विवाह के लिए परिजनों व रिश्तेदारों का मजमा लगा हुआ था। बारात आई हुई थी। ऐसे में सारे मेहमानों को छोड़ कर यह शख्स चुपके से निकल जाता है और रक्तदान शिविर में पहुंच कर रक्तदान करता है। मेहमान मेजबान परिवार के मुखिया को देख रहे हैं। मेजबान सुरेश सैनी रक्तदान करके आता है और उसके बाद कन्या दान करता है।


सुरेश सैनी को भारतीय सेना, विभिन्न राज्यों की सरकारें और रैडक्रॉस सोसायटी द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के कारण जब रक्तदान का सिलसिला पूरी तरह रूक गया। इससे गर्भवती महिलाओं, दुर्घटनाग्रस्त लोगों, बीमारों व थैलीसीमिया के मरीजों की रक्त की जरूरत पूरी नहीं हो पाई। ऐसे में सिविल अस्पताल करनाल में ब्लड बैंक में पहुंच कर सुरेश सैनी ने ना केवल खुद रक्तदान किया बल्कि अपने दोस्तों व मित्रों को भी ले जाकर रक्तदान करवाया। ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. संजय वर्मा व रैडक्रॉस सोसायटी के डीटीओ एमसी धीमान के साथ मिलकर उन्होंने रक्तदान की मुहिम चलाई। जरूरतमंदों के लिए लॉकडाउन के बाद जब पहले रक्तदान शिविर आयोजित किए गए तो उसमें उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। धीरे-धीरे रक्तदान शिविरों का सिलिसिला चल निकला।


कोरोना काल में ही रक्तदान के सेनानी और कोरोना योद्धा के रूप में उन्होंने अनेक उपलब्धियां अपने नाम दर्ज की। 16 जुलाई में इंडिया बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्डस ने उनके कार्य अपने रिकॉर्ड का हिस्सा बनाया। यही नहीं 17 अगस्त को यूनाईटिड किंगडम लंदन के वल्र्ड बुक ऑफ रिकार्डस में सशस्त्र सेनाओं में सर्वाधिक बार रक्तदान करने के लिए उनका नाम दर्ज हुआ। इसके बाद एशिया बुक ऑफ रिकॉर्डस ने भी उन्हें सम्मानित किया। इसके बाद एक्सक्ल्यूसिव वल्र्ड रिकॉर्ड, महाराष्ट्र बुक ऑफ रिकॉर्डस, स्टार रिकॉर्डस बुक ऑफ इंटरनेशनल, गोल्ड स्टार बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्डस व नेशनल स्टार एक्सीलेंस रिकॉर्ड बुक सहित अनेक रिकॉर्ड बुक्स ने रक्तदान के क्षेत्र में उनके योगदान को दर्ज किया।
बॉल्सब्रिज विश्वविद्यालय ने दी पीएचडी की मानद उपाधि-
रिकॉर्डस के इस सिलसिले से पहले अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के बॉल्सब्रिज विश्वविद्यालय ने रक्तदान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए सुरेश सैनी को पीएचडी की मानद उपाधि से अलंकृत किया। रक्तदान के क्षेत्र में पीएचडी की मानद उपाधि प्राप्त करने वाले सुरेश सैनी विरले ही होंगे। इन पंक्तियों के लेखक से खास बातचीत में सुरेश सैनी ने बताया कि जब 1986 में उन्होंने पहली बार रक्तदान किया था, तब समाज में रक्तदान के प्रति अनेक प्रकार की आशंकाएं और भ्रांतियां थीं। वे खुद भी उसके शिकार थे। लेकिन एकबार रक्तदान करके बहुत अच्छा लगा और फिर तो सेना में सेवा के साथ ही उन्होंने रक्तदान के जरिये मानवता की सेवा को जीवन का लक्ष्य बना लिया।


रक्तदान से कमजोरी का तो सवाल ही नहीं-
सुरेश सैनी ने कहा कि रक्तदान से शरीर में किसी प्रकार की कमजोरी का सवाल ही पैदा नहीं होता है। उन्होंने बताया कि रक्तदान के एकदम बाद वे खेल के मैदान में दमदार ढ़ंग से खेले हैं। सेना का तो हर रोज का अभ्यास भी काफी मुश्किलों से भरा होता था। 31जनवरी, 2020 में सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने दो-तीन बार रक्तदान किया है। आज तक भी किसी प्रकार की कमजोरी उन्होंने महसूस नहीं की।
रक्तदान के फायदे ही फायदे-
किसी प्रकार के नुकसान की बजाय रक्तदान से फायदे अनेक प्रकार के होते हैं। सबसे पहले तो रक्तदान के बहाने विभिन्न प्रकार के टेस्ट मुफ्त हो जाते हैं। दूसरे रक्तदान करने वाले का खून ताजा हो जाता है। रक्तदान करने वालों को हृदय रोग होने और हृदय घात होने की संभावना कम हो जाती है। उन्होंने कहा कि मानवता की सेवा का अहसास भी मन को ऊर्जा से भर देता है। उन्होंने बताया कि कईं अवसरों पर उन्होंने जब रक्तदान किया तो बीमार, घायल व गर्भवती महिला के परिजनों से मिलने वाली दुआओं ने भी उन्हें ताकत दी है। उन्होंने कहा कि रक्तदान शरीरिक ही नहीं मानसिक विकारों को भी समाप्त करता है।
समाजसेवियों व परिजनों को सुरेश सैनी पर गर्व-
वल्र्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज होने पर सुरेश सैनी के पिता चंदगी राम सैनी, माता प्रेम देवी, पत्नी सरोज सैनी, बेटा देवेश सैनी, अमेरिका में रह रही बेटी दीपा सैनी व दामाद सर्वजीत सैनी और ब्रिटेन मे रह रहे भतीजे विजयंत सैनी ने उन्हें बधाईयां देते हुए कहा कि उन्हें उन पर गर्व है। ब्लड बैंक करनाल के प्रभारी डॉ. संजय वर्मा, कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. सचिन गर्ग, इन्द्री के वार्ड की पार्षद नीलम वोहरा, पूर्व पार्षद सुरेश भाटिया, अनिल काका, एडवोकेट तरुण मेहता सहित समाजसेवियों ने उन्हें बधाई दी। स्वैच्छिक रक्तदान दिवस पर सुरेश सैनी के प्रेरक व्यक्तित्व को सलाम।
-अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, लेखक एवं स्तंभकार
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान,
इन्द्री, जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
HARYANA PRADEEP 1-10-2020


Sunday, September 27, 2020

Haryanvi Ragni

 हरियाणवी रागणी

रहै ना कोई भूखा-प्यासा और रहै ना कोई गमगीन

कोई किसे पै राज करै ना और रहै ना कोई अधीन


अच्छी शिक्षा मिलै सभीनै, मुफ्त हो सेहत की सुविधा

जनता के हित सरकारां हों, रहै ना कोई भी दुविधा

पूंजीपतियां के हक मैं दिखै ना कोई कती भी सीन


साम्राज्यवाद का मिटै नास अर जनतंत्र मैं सच्चाई हो

मज़दूर किसान संपन्न बणै अर लूटै ना कोई कमाई हो

सबनै मिलै काम-सम्मान अर कोई भी ना हो दीन


दुनिया बेहतर बनावण खात्तर भगत सिंह नै कुर्बानी दी

उधम सिंह अश्फाक आजाद नै देश पै वार जवानी दी

लड़ी लड़ाई आजादी की, किताबां पढ़ करी छानबीन

-अरुण कुमार कैहरबा

कवि एवं हिन्दी प्राध्यापक

वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री

जिला-करनाल, हरियाणा

मो.नं.-9466220145

Haryana Pradeep 28 Sep. 2020

Kavita- Inqlabi Jawan Bhagat Singh

 इंकलाबी जवान भगत सिंह



इंकलाबी जवान भगत सिंह

भारत का सम्मान भगत सिंह।


क्रांति की है धार भगत सिंह

ऐसा एक विचार भगत सिंह।


सपनों का ईनाम भगत सिंह

उम्मीदों का नाम भगत सिंह।


मानवता से प्यार भगत सिंह

फौलादी अंगार भगत सिंह।


दूरदृष्टि का मचान भगत सिंह

सच्चाई का बयान भगत सिंह।


समता की बयार भगत सिंह

इंसाफ की हुंकार भगत सिंह।


आजादी का गान भगत सिंह

यादगार बलिदान भगत सिंह।


ऐके की आवाज़ भगत सिंह

ऊंचाई की परवाज़ भगत सिंह।


इंकलाबियों की शान भगत सिंह

युवाओं का आह्वान भगत सिंह।


--अरुण कुमार कैहरबा

कवि एवं हिन्दी प्राध्यापक

वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री

जिला-करनाल, हरियाणा

मो.नं.-9466220145

arunkaharba@gmail



Thursday, September 24, 2020

BOL KABIRA-4

 सड़कों पर किसान कबीरा


खेत में पक गई धान कबीरा
सड़कों पर किसान कबीरा।

अपना हक ही मांग रहा है
नहीं मांगता दान कबीरा।

फेसबुक पर कपल चैलेंज
मचा रहा तूफान कबीरा।

सत्ताएं मगरूर बहुत हैं
भूली फर्ज-ईमान कबीरा।

रंग बदलते गिरगिट-से
नेता बदलें बयान कबीरा।

घर-घर में मायूसी छायी
हर कोई परेशान कबीरा।

--अरुण कुमार कैहरबा

BOL KABIRA-3


 किसान रहा पुकार कबीरा


किसान रहा पुकार कबीरा
सुने नहीं सरकार कबीरा।

ऐसे बिल है लेकर आई
जिसकी नहीं दरकार कबीरा।

दुगनी आय की बातें करके
कर ना अत्याचार कबीरा

मिट्टी में मिलकर है होती
फसल की पैदावार कबीरा।

डूबती हुई अर्थव्यवस्था को
कर सकता है पार कबीरा।

घाटे का सौदा क्यों अब तक
खेती कारोबार कबीरा।

अन्नदाता जिसको हैं कहते
क्यों उसे रहे दुत्कार कबीरा।

मजदूर और किसान उठा तो
होगी हाहाकार कबीरा।

--अरुण कुमार कैहरबा
अजीत समाचार 27सितंबर, 2020


Tuesday, September 22, 2020

Corona epidemic and children's education

 कोरोना महामारी का दौर और बच्चों की शिक्षा

अरुण कुमार कैहरबा

विश्व व्यापी कोरोना महामारी से पूरी दुनिया त्रस्त है। दुनिया भर में लाखों लोग इसके शिकार हो चुके हैं। हजारों लोग जान गंवा चुके हैं। वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए समस्त भारत में लॉकडाउन करना पड़ा। जनता कफ्र्यू से शुरू करके लॉकडाउन और फिर बाद में अनलॉक के विभिन्न चरण हो चुके हैं। मार्च के आखिरी सप्ताह में लॉकडाउन के दौरान स्कूल बंद हुए थे। स्कूल खुल भी गए, लेकिन स्कूलों में बच्चों के आने और उनकी शिक्षा का रास्ता नहीं खुल पाया है। दूसरे शब्दों में कहें तो कोरोना महामारी से शिक्षा-व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है।
महामारी से पूर्व अध्यापक स्कूलों में हर रोज बच्चों के साथ सीखने-सिखाने की विभिन्न गतिविधियों का आयोजन करते थे। स्कूल से जाने के बाद अगले दिन की योजना को लेकर चिंतन-मनन करना व योजनाएं बनाना आए दिन का कार्य था। बच्चों का हर्षोल्लास व रंग-उमंग स्कूल के वातावरण को जीवंतता प्रदान करते थे। प्रात:कालीन सभा में कक्षावार पंक्तिबद्ध होकर सभी बच्चों का खड़े होना। अध्यापकों द्वारा उठाई गई सावधान-विश्राम की तान पर विद्यार्थियों का कदम-ताल करना। नन्हें-नन्हें हाथों को जोडक़र एक सुर में प्रार्थना, राष्ट्रगान व चेतना गीत गाना। चेतना जगाने वाले नारों से पूरे वातावरण को गुंजायमान कर देना। अध्यापकों के दिशा-निर्देश और विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हुए पीछे समय अधिक होने की खुसर-फुसर शुरू हो जाना। सभा के समापन पर विद्यार्थियों का फौजियों की तरह कदम-ताल करते हुए कक्षाओं की तरफ आगे बढऩा। कभी अध्यापकों के निर्देश पर प्रांगण में स्वच्छता अभियान चलाना। और कभी पूरे जोशो-खरोश के साथ खेल के मैदान में उतर पडऩा। पुस्तकालय में किताबें ढूंढ़ते और पढ़ते बच्चे। कईं बार बच्चों का आपस में लड़-झगड़ पडऩा। उस झगड़े को सुलझाने की तरह-तरह की युक्तियां लड़ाते हम अध्यापक। अध्यापक के कक्षा में पहुंचने से पहले बच्चों का ऊंचा उठता शोर, जिससे कईं बार पड़ोस की कक्षा में पढऩे वाले बच्चों और अध्यापकों को  परेशानी होती। कईं बार समय पूरा होने के बावजूद अध्यापक का कक्षा से ना निकलना और कक्षा-कक्षा के बाहर इंतजार करते हुए होने वाली उकताहट। कईं बार समय पूरा होने पर विषय पूरा नहीं होने या फिर हो रही गर्मागर्म चर्चा के बीच में रूकने का अफसोस। बाहर खड़े अध्यापक द्वारा दरवाजा खटखटाकर बताना कि इस कक्षा में आपका एक कालांश पूरा हो चुका है और अब बारी उनकी है। पढऩे-पढ़ाने की क्रियाओं के बीच समय का इशारा करने वाली घंटी की स्वरलहरियां। निश्चय ही आधी छुट्टी और पूरी छुट्टी की घंटी बच्चों के लिए विशेष महत्व रखती है। पूरी छुट्टी की घंटी बजते ही बच्चों का कुलांचें भरते और शोर करते हुए घरों की तरफ दौडऩा। अध्यापकों के आपसी संवाद से सीखने-सिखाने की क्रियाओं को जिंदादिल बनाने की जरूरत पर चर्चाएं करना। खाली समय में इक_े बैठ कर चाय की चुस्कियां लेना। आधी छुट्टी में बच्चों को खाना खिलाने के लिए लाईन बनाने की मशक्कत।
रंग-बिरंगी किताबें पढऩे, बातें करने, कहानियां, कविताएं, संस्मरण, जीवन अनुभव पर चर्चाएं और विभिन्न विषयों के सीखने-सिखाने की सामूहिक क्रियाओं से जो ऊर्जा मिलती थी। स्कूल में एक बच्चे को पानी के लिए कहा जाए तो दो-तीन का एकदम उठ कर चल देना।
लॉकडाउन के दौरान हम सब उससे वंचित हुए। सारा दिन घर में रहने की बोरियत से परेशान भी हुए। अब स्कूल में जाते भी हैं तो स्कूल में वह जान नहीं है, जो बच्चों के साथ होती है। कोई बच्चा या उसके अभिभावक जब स्कूल में कभी आते भी हैं तो उनके चेहरों पर वह चमक नहीं होती। अभिभावकों के चेहरों पर उनके जीवन के संकट होते हैं। कईं दिन तक काम-काज नहीं लगने के कारण उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। व्हाट्सअप ग्रुप या टेलिविजन के चैनलों पर चल रही पढ़ाई बारे उनसे बात होती है, कुछ बच्चों को छोड़ दें तो अधिकतक बच्चों के लिए शिक्षा का यह मार्ग सुगम नहीं है। व्हाट्सअप ग्रुप में भेजी जा रही वीडियो, ऑडियो, पाठ्य सामग्री आदि के प्रयोग के बारे में जब बात होती है तो कईं बार बच्चे सारी स्थिति के बारे में नहीं बता पाते। कईं बार कईं भाई-बहनों के लिए एक मोबाइल फोन होने, पिता द्वारा मोबाइल ले जाने, नेट पैक नहीं होने, नेटवर्क नहीं आने, वीडियो नहीं खुलने, काम के दौरान मोबाइल पिता द्वारा ले जाने सहित अनेक प्रकार की मुश्किलें सामने आती हैं। उनके चेहरे से निराशा दूर करने के लिए यही कहना पड़ता है कि कोई बात नहीं आप अपने किताब से कुछ ना कुछ पढ़ते रहा करें।
महामारी के इस संकट में जब व्हाट्सअप ग्रुपों में अध्यापकों द्वारा अंधाधुंध सामग्री भेजे जाने की स्थिति पर चिंता ही होती है। यह भी चिंता होती है कि ऑनलाइन शिक्षा के ऐसे दौर में उन बहुत से बच्चों का क्या होगा, जिनके पास मोबाइल की सुविधा ही नहीं है। घर में टेलिविजन भी नहीं है। ऐसे में अध्यापकों द्वारा यदि सिलेबस निटपा दिए जाने की बातें की जा रही हैं तो उसका उन बच्चों के लिए क्या मतलब है।
कुछ अभिभावकों ने तो यह भी बताया कि उनके बच्चे मोबाइल तो लेकर रखते हैं, लेकिन उसका इस्तेमाल पढ़ाई के लिए करने की बजाय कार्टून या अन्य चीजें देखने में करने लगे हैं। ऐसे में कहीं ऑनलाइन शिक्षा बच्चों को गहरे गर्त में तो नहीं धकेल देगी? जिस मोबाइल से आज तक बचने के उपदेश दिए जाते थे, एक दम उसे शिक्षा का माध्यम बना देने की सैद्धांतिक बातें तो ठीक हैं, लेकिन इसे क्रियान्वित करने की मुश्किलों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
हालांकि बच्चों की सुरक्षा व स्वास्थ्य हम सबका ध्येय है। हमारे बच्चे किसी भी प्रकार के वायरस व अन्य असुरक्षित वातावरण के खतरों से बचे, यह महत्वपूर्ण है। इसके बावजूद बच्चों की अनुपस्थिति से बेजान हुए स्कूल से अध्यापकों में निराशा का माहौल है। ऐसे में जब बच्चे स्कूल में नहीं आ पा रहे हैं तो बच्चों की हुड़दंग से बहुत से अभिभावक भी परेशान हैं। उन्हें बच्चों को रचनात्मक कार्यों में लगाए रखने के तरीकों का नहीं पता है। ऐसे में बच्चों की ऊर्जा किसी ना किसी तरीके से निकलती ही है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही कोरोना वायरस व इससे उपजी महामारी को भी मानवता जल्द परास्त करके आगे बढ़ेगी। स्कूलों में बच्चों की आवाजाही और शिक्षा सुचाारू होगी। कोरोना महामारी ने स्कूलों व शिक्षा संस्थानों के सामने एक नई चुनौति पेश की है। जब भी स्कूल खुलेंगे तो वायरस के बचाव के लिए कक्षाओं का स्वरूप भी बदल जाएगा। मास्क लगाना एक अनिवार्यता होगी। चिकित्सकों द्वारा सुझाए जा रहे अच्छी किस्म के सुविधाजनक मास्क सभी बच्चों को उपलब्ध करवाए जाने चाहिएं ताकि वे इसका नियमित रूप से प्रयोग कर सकें। बच्चों में शारीरिक दूरी बनाए रखना भी आसान काम नहीं होगा। स्कूलों में स्वच्छता और कक्षा-कक्षा को सेनिटाइज करना होगा। आने वाले समय में स्कूलों को तैयार करने के लिए इच्छाशक्ति के साथ-साथ संसाधनों की भी जरूरत होगी।
SHIKSHA SAARTHI SEPTEMBER 2020


BOL KABIRA-2

चलो चलें स्कूल कबीरा


चलो चलें स्कूल कबीरा
पर ना जाना भूल कबीरा।

मास्क पहन कर ही जाना
दूरी है अब रूल कबीरा।

तापमान जांचा जाएगा
रहना थोड़ा कूल कबीरा।

बच्चों का सब रखें ध्यान
बच्चे हैं सब फूल कबीरा।

कोरोना भी हारेगा ही
उड़ेगी इसकी धूल कबीरा।

बाधाओं में भी ना रुकना 
वक्त यही माकूल कबीरा।
--अरुण कुमार कैहरबा
मो.नं.-9466220145



Monday, September 21, 2020

VYANGYA

 व्यंग्य

विश्वगुरु बनता देश!

अरुण कुमार कैहरबा


भारत में विश्व गुरु बनने की अपार संभावनाओं के बावजूद इन्हें भुनाया नहीं जा रहा है। ना जाने सारे लोग क्या भूनने-भुनाने में लगे हैं, जबकि सबसे पहले संभावनाओं को भुनाया जाना चाहिए। मौजूदा समय में इस राह में सबसे बड़ी बाधा विपक्ष सहित सारे राष्ट्रदोही लोग हैं। वरना तो सत्ताधारियों ने भारत को कभी का विश्व गुरु का दर्जा दिला दिया होता। आखिर छह साल हो गए हैं। इस दौरान कितने काम हुए हैं। कितने तो नेता ही दल बदलने के बाद राष्ट्रदोही से राष्ट्रभक्त में तब्दील हो गए हैं।

संभावनाओं को राष्ट्रहित में भूनने का काम सबसे पहले होना चाहिए। यहां तक कि संकटों को अवसर में बदलने की ताकत होनी चाहिए। अब आप ही देखो कि कोरोना संकट को सबने मिलकर किस तरह अवसर में बदल दिया है। चाहते तो कोरोना के वायरस को आने से पहले ही रोका जा सकता था। लेकिन इससे हम संकट को अवसर में बदलने से वंचित हो जाते। इसलिए हमने पहले वायरस को आने दिया। लॉकडाउन लगाने से पहले बहुत सारे काम थे, वो पहले किए। बाद में लॉकडाउन लगाया। इस दौरान कितने नए प्रयोग किए गए। ऐसे दुर्लभ प्रयोग शायद ही किसी देश में किए गए होंगे। तालियां तो अपने बाबा जी पहले से बजवाते आ रहे थे। हाथों को आपस में टकराने से जो ध्वनि पैदा होती है, वह संगीतमयी ध्वनि कमाल का काम करती है। साथ ही मनुष्य को कितनी ही बिमारियों से निजात मिलती है। लेकिन थालियों और घंटियों को बजाने का ऐतिहासिक प्रयोग जब तक दुनिया रहेगी, तब तक याद किया जाता रहेगा। दीया-बाती के संदेश को एक कदम आगे बढक़र भक्तजनों ने आतिशबाजी में तब्दील करके नवाचार को नए आयाम दिए हैं। इसके बावजूद कोरोना का संक्रमण सिर्फ इसलिए नहीं थम रहा क्योंकि हमें दुनिया में नंबर वन जो बनना है। दूसरे स्थान पर तो आ ही गए हैं। नंबर वन होने तक रूकने का कोई मतलब ही नहीं है। कोरोना को जन्म देकर चीन ने पहला स्थान पाया हो, लेकिन कोरोना के मामले में अंतत: हमीं अग्रणी स्थान पर जाएंगे।
भारत में पूरी दुनिया को भाषण कला में दक्ष व प्रवीण नेताओं की आपूर्ति करने की काफी संभावनाएं हैं। एक से एक ढ़ोंगी, पाखंडी, कर्महीन, निठल्ले, निकम्मे और भाषणबाज नेताओं को हम पूरी दुनिया में भेज कर काफी नाम कमा सकते हैं। भले ही जनता में उनकी कितनी छिछालेदर हो रही हो, लेकिन अपने देश में नेता लोग उस सबसे बेपरवाह पूरे आत्मविश्वास से भरे लच्छेदार भाषा में प्रवाहपूर्ण भाषण दे सकते हैं। सत्ता में आने से पहले जनता के साथ किए गए अपने वादों को पूरी तरह से भूलकर नए वादे कर सकते हैं। सत्ता में आने से पहले शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की बातें करेंगे। गरीब, किसान, मजदूर, महिला, युवा, बच्चे सभी के हित में कार्य करते हुए देश की तकदीर बदलने के सपने दिखाएंगे। लेकिन सत्ता में आने के बाद इन सब वादों व दिखाए गए सपनों को बाईपास करके देश को विश्वगुरु बना देने के सब्जबाग दिखाएंगे। जब हमारे देश में इतने गिरगिटनुमा नेता हैं तो यह हमारा परम दायित्व है कि हम ऐसे नेताओं को पूरी दुनिया में फैला दें।
अपना देश जल्द ही विश्वगुरु बन सकता है। पूरी दुनिया में हम अपनी धाक जमा सकते हैं। आप चाहे जो कहो, अपना देश दैवीय शक्ति से संचालित होता है। अपने नेता चाहे स्कूल, कॉलेजों, सडक़ों, रेलों, जेलों, सम्मान व ईमान सबको बेच कर पूंजीपतियों के यहां गिरवी रख दें, अपना देश विश्व गरु बन सकता है। बनेगा, इसे कोई माई का लाल रोक नहीं सकता।  

KAVITA- BOL KABIRA

शिक्षा हुई बेहाल कबीरा



कोरोना की चाल कबीरा
शिक्षा हुई बेहाल कबीरा

बंद पड़े सारे शिक्षालय
बच्चे हुए निढ़ाल कबीरा

ऑनलाइन शिक्षा हो गई
खड़े हुए सवाल कबीरा

निर्धन बेबस बच्चों का
पूछे ना कोई हाल कबीरा

अंग्रेजी के गाने गाते
खा हिन्दी का माल कबीरा

सौदा बनी पढ़ाई अब
पूंजी मालो-माल कबीरा

-अरुण कुमार कैहरबा

Friday, September 18, 2020

हरियाणा साहित्य अकादमी की पहल- ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी

 दूर तक फैला हुआ जल, कागजों की किश्तियाँ

खोजती हैं कोई संबल कागजों की किश्तियाँ

किसी शाम चराग ना जले तो तुम अल्फाज सजा देना

देश-प्रदेश के वरिष्ठ एवं नवोदित रचनाकारों ने पढ़ी कविताएं


अरुण कुमार कैहरबा

कोरोना महामारी के दौर में जब बाहर ना निकलने और निकलते हुए भी दूरी के साथ मिलने की मजबूरी आन खड़ी हुई है, ऐसे में मानवीय अभिव्यक्ति नए वर्चुअल साधनों का प्रयोग करके मुखर हो रही है। साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों को आपस में जोडऩे और उन्हें अभिव्यक्ति का मंच प्रदान करने के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी की पहल पर गूगल मीट पर कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में कवयित्री एवं आईएएस अधिकारी सुमेधा कटारिया ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। सम्मेलन की अध्यक्षता अकादमी के निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा ने की और संचालन कवि राजीव रंजन ने किया।

काव्य गोष्ठी में कुरुक्षेत्र से जाने-माने शायर दिनेश दधीचि की एक गज़ल के कुछ शेर देखिए-


दूर तक फैला हुआ जल, कागजों की किश्तियाँ

खोजती हैं कोई संबल कागजों की किश्तियाँ

हृदय पर पत्थर धरे दायित्व कंधों पर उठा

खे रहे हैं लोग बोझल कागजों की किश्तियाँ

बेबसी में बह रहे हैं, हाथ फिर भी मारते

आदमी हैं फिर भी मांसल कागजों की किश्तियाँ

उनके द्वारा सुनाई एक अन्य गजल के शेर कुछ यूँ हैं-

ठिठकी मेरी नजरें जो वो चेहरा नजर आया

जैसे कि समंदर में जज़ीरा नजर आया।

क्या देखने लायक है बताते हैं मुझे लोग

अब देखने निकला हूँ तो क्या-क्या नजर आया।

जब प्यास के मारे था निकलने को मेरा दम

जाकर के कहीं तब मुझे दरिया नजर आया।

ऐसा जो हुआ आप बताएं कि हुआ क्यों?

बस्ती थी मगर मुझको तो सेहरा नज़र आया।

दीवार मेरे मन में गिरती तो कहाँ पर

बस इतना हुआ उसमें दरीचा नजर आया।

दधीचि द्वारा सुनाई गई अन्य गज़लों के अशआर देखिए-

तुम शिकायत के सुरों में बोलते हो,

बोलने से पेशतर क्या सोचते हो।

बदली नजर जरा-सी मंजर बदल गया है,

जैसे कि नींव का कोई पत्थर बदल गया है।

हृदय से जो नहीं निकला, उसे सायास क्या कहना।

ना कलियां खिल रही हों तो उसे मधुमास क्या कहना।

भयभीत मानवता का सरदार, वाह रे चौकीदार: अमृत लाल मदान


कैथल से वयोवृद्ध एवं उस्ताद कवि अमृत लाल मदान ने अपनी रात का चौकीदार कविता में कहा-

वाह रे चौकीदार

ना किसी से दो गज की दूरी

ना मास्क ओढऩे की मजबूरी

भयभीत मानवता का सरदार,

वाह रे चौकीदार

उन्होंने अपनी बाल कविता में कोरोना के समय को प्रतीकों में कुछ यूं बांधा कि श्रोता वाह-वाह कह उठे-

देखो-देखो आज चांद भी थका-थका सा लगता है

मास्क लगा सा हाँफ रहा है

सुन रहे वायरस चांद छोड़ दे मामू शूभ्र सलौना है

निर्धन बच्चों का तो बस यह सस्ता एक खिलौना है।

कवयित्री सविता सिंह ने महिला-विमर्श पर आधारित अपनी कविताएं सुनाकर श्रोताओं को महिलाओं की स्थिति के प्रति संवेदित किया।

हिन्दी अपनी मातृभूमि पीहर से गायब है: सरोज त्यागी

हिन्दी व भोजपुरी कवि कैलाश गौतम की पुत्री एवं स्वयं कवयित्री सरोज त्यागी ने अपने पिता को याद करते हुए उनकी कविता- भाभी की चि_ी सुनाने के साथ-साथ उनके दोहे कुछ यूं कहे-

प्रजातंत्र की आंख में हम हैं केवल वोट

और वोट की हैसियत कंबल कुर्ता कोट।।

महिला ग्राम प्रधान के पति का देखो हाल।

बीवी सरकारी हुई, मिलना हुआ मुहाल।।

अपनी गजल में सरोज त्यागी ने कहा-

उसकी बातों पर मुस्काना अच्छा लगता है

कहते जिसको लोग दीवाना अच्छा लगता है।

यूं तो दोस्त सभी प्यारे हैं, फिर भी जाने क्यूं

बचपन का वह मीत पुराना अच्छा लगता है।

सरोज त्यागी ने अपनी कविता-‘पत्रकार में पत्रकार की स्थितियों की सशक्त अभिव्यक्ति की। उन्होंने हिन्दी की व्यथा इस तरह बयां किया-

हिन्दी अपनी मातृभूमि पीहर से गायब है

जैसे हिन्दुस्तान की पगड़ी सर से गायब है।

उनका एक दोहा दृष्टव्य है-

नए धनी के शोक भी होते बड़े अजीब

आते हैं बाजार में लेने को तहजीब।।

जया पाटिल ने अपनी गजल में कहा-

किरदार मेरा तो ऐसा नहीं था

इन अश्कों से धुलकर निखरने से पहले

तमन्ना-ए-दिल ने नया जख्म खाया

पुराना कोई जख्म भरने से पहले

कदम राहे-उल्फत में तुम रोक लेना

जहां की नजर से उतरने से पहले

कवि-गोष्ठी के नई कलम नाम के अंश में झांसी से सुनीता प्रसाद ने अपने परिचय में कहा- ‘मेरे परिचय में कुछ विशेष नहीं, मैं पथिक हूँ कविता है मेरी यात्रा। उन्होंने अपनी-‘उसकी कविताई में कहा-

वह लिखता है कविताएं ऐसे

मेरी मां पसंद का व्यंजन बनाती थी जैसे

हिसार से नवोदित कवयित्री नागिता जागलान ने अपनी कविता में कहा-

नाव मेरी कलम बनी है अल्फाजों की नदिया में.. ..

किसी शाम चराग ना जले तो तुम अल्फाज सजा देना

ये जो नादान परिंदे हैं, तुम इनको उड़ जाने दो

इनकी आजादी पर तुम कोई अंकुश ना लगा देना

मंच संचालन करते हुए कवि राजीव रंजन ने अपनी कविता में कहा-


वैश्वीकरण के दौर में भूख से आत्महत्या का युग है

सूचना क्रांति के युग में अफवाहों का युग है।

कोरोना की निराशाओं में कविता देती है हौंसला: सुमेधा कटारिया



मुख्य अतिथि सुमेधा कटारिया ने कहा कि कोरोना महामारी में अवसाद और निराशा का माहौल है। ऐसे में निराशा को तोडऩे के लिए कविता सशक्त औजार है। ऐसे दौर में जब हम अनेक प्रकार की मानसिक परेशानियों व भय से गुजर रहे हैं। कोरोना ने शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए मजबूर किया है। घर में किसी का आना भी दहशत पैदा करता है। ऐसे में कविता बहुत उम्मीद जगाती है। हौंसला बढ़ाती है। ताकत देती है। उन्होंने कहा कि नई कविता समय की मांग है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल को अवसर की तरह देखा जाना चाहिए। ऐसे में साहित्य, संगीत व फिजीकल फिटनैस के प्रति रूझान बढ़ा है। जब हम बाहर नहीं जा सकते, हम अंदर झांकते हैं। अपने आप से बात करते हैं। चीजों को भली-भांति समझते हैं। संवेदनाओं को धार देते हैं। इसी में कविता जन्म लेती है। उन्होंने वर्चुअल माध्यमों के जरिये नई अभिव्यक्तियां उभर रही हैं। जहां समय की कमी महसूस होती है, वहां ऐसे मिलना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि वर्चुअल कवि गोष्ठी का आयोजन प्रशंसनीय है। कविता जहां हममें होती है, हम उसके बिना जी नहीं सकते। कवि व काव्य-प्रेमी व्यक्ति कविता के साथ ही जी सकता है। अभिव्यक्ति आज की मांग हैं, हम बंद हो रहे हैं, यह अच्छा नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर क्यूँ हमसे कविता छूट रही है, छिटक रही है। इस पर विचार करना है। उन्होंने डॉ. चन्द्र त्रिखा को साहित्य का विश्वकोष बताते हुए कहा कि हरियाणा साहित्य अकादमी व उर्दू साहित्य अकादमी उनके नेतृत्व में नए आयाम स्थापित कर रही है। उन्होंने कहा कि जल्द ही अन्य वर्चुअल कवि गोष्ठियों का आयोजन किया जाना चाहिए, ताकि नए कवियों व लेखकों को मंच मिल सके। उन्होंने कहा कि कहा कि दिनेश दधीचि की जंग बर्फ के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि राजीव रंजन की पंचकूला में उपस्थिति के कारण क्षेत्र में साहित्य की बयार बहने की उम्मीद बन गई है।

सुमेधा कटारिया ने अपने काव्य-संकलन से प्रसिद्ध कविता-‘आज भी अग्रिपरीक्षा सुनाते हुए कहा-

सच है कि आज भी होती है अक्सर

अपेक्षाओं, तोहमतों व आरोपों की अग्रिपरीक्षा

सच है कि आज भी सिद्ध होना है सच के वास्ते।

संवेदनहीनता के संकट से साहित्य ही उबार सकता है: डॉ. चन्द्र त्रिखा


साहित्य अकादमी के निदेशक एवं जाने-माने साहित्य शिल्पी डॉ. चन्द्र त्रिखा ने कवि गोष्ठी में शामिल हुए सभी साहित्यकारों व कवियों का आभार जताते हुए कहा कि संवेदनहीनता के दौर में साहित्य ही इस संकट से उबार सकता है। करुणा के संकट से साहित्य मुक्ति दिला सकता है। उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी ऐसे में साहित्यकारों को जोडऩे की पहल कर रही है। उन्होंने आने वाले समय में अन्य वर्चुअल कवि गोष्ठियों के आयोजन की उम्मीद जताई। उन्होंने कहा कि अकादमी के अनेक कर्मियों  ने गोष्ठी को सफल बनाने के लिए मेहनत की है। उन्होंने कहा कि सुमेधा कटारिया जी का मार्गदर्शन हमें राह दिखाता है।

राजीव रंजन ने कहा कि हरियाणा मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली, बाबू बाल मुकुंद गुप्त व बाबू बालमुकुंद गुप्त की भूमि है। साहित्य अकादमी अपने कबीर, रैदास, तुलसी व सूर सहित सभी पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ा रही है। कवि गोष्ठी को सेवानिवृत्त शिक्षा अधिकारी सरोज बाला गुर, शुरूआत समिति की पदाधिकारी रीता, आजमगढ़ से मानविन्द्र, अंजलि सिंह, अनिल यादव, राहुल, मनीष, सुनीता व इन पंक्तियों के लेखक सहित अनेक साहित्यकार उपस्थित रहे। युवा संस्कृतिकर्मी विकल्प ने निराला की प्रसिद्ध कविता- ‘बांधो ना नाव इस ठांव बंधु, पूछेगा सारा गांव बंधु की गीतात्मक प्रस्तुति के जरिये कवि गोष्ठी का समापन किया।

मो.नं.-9466220145

HARYANA PRADEEP 21-09-2020