Monday, May 3, 2021

BOOK REVIEW- SWAPNLOK

 पुस्तक समीक्षा

पुस्तक : स्वप्रलोक
कवि : प्रदीप भारद्वाज ‘दीप’
प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर
पृष्ठ-144
मूल्य : रु. 200.

प्रेम रस में डूबी ‘स्वप्रलोक’ की कविताएं

अरुण कुमार कैहरबा
DAINIK TRIBUNE 2-5-2021

 

प्रदीप भारद्वाज ‘दीप’ का काव्य-संग्रह ‘स्वप्रलोक’ अन्तर्मन के भावों एवं कल्पनाओं को अभिव्यक्ति देती रसपूर्ण काव्यकृति है, जिसमें निजी अनुभूतियों की मुखर अभिव्यक्ति के साथ में सामाजिक जीवन भी चित्रित किया गया है। कविताएं कथ्य और शिल्प की दृष्टि से काफी विविधता लिए हुए हैं। संग्रह का मूल स्वर प्रेम है, जिसके विविध आयाम और रंग हैं। कवि राधा-कृष्ण की भक्ति में डूबा हुआ है। राधा-कृष्ण के अलौकिक प्रेम रस में भीगी रचनाएं पाठकों को सूरदास, रहीम व मीरा की याद दिलाती हैं। संग्रह में प्रिय के प्रियतमा व जीवन-संगिनी, संतान के माता-पिता, पिता के संतान के प्रति प्रेम के गहरे अहसास देखने को मिलते हैं। कवि प्रकृति के प्रति प्रेम और प्रकृति के माध्यम से प्रेम चित्रण में भी सिद्धहस्त है। संग्रह में संकलित उनकी बाल कविताएं भी आकर्षक हैं।  
प्रेम में पगे कवि का मन संगीत के सुरों से झंकृत है। उनके उद्गार गीतात्मकता का गुण लिए रसपूर्ण कविताओं में उतरते हैं। अधिकतर कविताएं गीत और $गज़ल हैं, जिन्हें पढ़ते हुए भी गाने का मन होता है। स्वप्रलोक के माध्यम से कवि अपने निजी ही नहीं सामाजिक जीवन की बेहतरी के ख्वाब बुनता है। कविताएँ आशा, विश्वास और उम्मीद से भरी हैं। कोरोना संकट के बाद एक सुनहरे प्रभात की कल्पना करती हैं। कोरोना योद्धाओं का हौंसला बढ़ाती हैं। कविताओं के स्वरूप की बात करें तो वे भजन, स्तुति, लोरी, कविता, गीत, $गज़ल के रूप में देख सकते हैं। गीतों में जहां संस्कृतनिष्ठ हिन्दी भाषा सहज व स्वाभाविक बन पड़ी है। वहीं $गज़लों में उर्दू की रवानगी व मिठास आकर्षित करती है।
अरुण कुमार कैहरबा
समीक्षक व हिन्दी प्राध्यापक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145

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