पत्रकारिता ने आजादी की लड़ाई में निभाई मुख्य भूमिका
अंग्रेजी राज के शोषण के बावजूद अभिव्यक्ति की आजादी के लिए किया संघर्षअरुण कुमार कैहरबा
![]() |
jagat kranti 30-5-2021 |
पत्रकारिता सूचनाओं के माध्यम से ज्ञान की रोशनी है। झूठ के खिलाफ सत्य का संघर्ष है। हालांकि आज भले ही मीडिया के एक हिस्से और उनकी पत्रकारिता पर कई प्रकार के आरोप लग रहे हैं। लेकिन यदि सच्ची पत्रकारिता की बात करें तो वह हमेशा सामाजिक सरोकारों से लैस रही है। झूठ, भ्रष्टाचार, प्रलोभन, अन्याय और अत्याचार से लड़ती हुई समाज के कमजोर वर्गों के हित में खड़ी रही।
भारत में पत्रकारिता के इतिहास की बात करें तो अंग्रेजी, बांग्ला, उर्दू, फारसी व हिन्दी समाचार-पत्रों के शुरूआती प्रकाशन का श्रेय कलकत्ता को जाता है। अंग्रेजों के आगमन, समाज सुधारकों व संस्कृतिकर्मियों के कारण बंगाल नवजागरण का केन्द्र बना। कलकत्ता से 29 जनवरी, 1780 में आयरिश नागरिक जेम्स ऑगस्टस हिकी ने अंग्रेजी भाषा में ‘हिकीज बंगाल गजट’ अखबार शुरू किया। यह भारत का ही नहीं भारतीय उपमहाद्वीप का पहला साप्ताहिक समाचार-पत्र बना। अपने पत्र में हिकी ने संपादक के नाम पत्रों की शुरूआत की। अंग्रेजों का प्रतिनिधि होने के बावजूद उन्होंने गवर्नर या अधिकारियों के जो भी कार्य अनुचित पाए, उसकी आलोचना की। आलोचना से बौखलाए अधिकारियों ने उनके पत्र को डाक के माध्यम से भेजने की सुविधा से वंचित कर दिया। व्यवस्था से टकराने के कारण हिकी को जेल भेज दिया गया। इसके बावजूद उन्होंने गलत को गलत कहना बंद नहीं किया, बल्कि उनके तेवर और तीखे हो गए। इस तरह से हम देखते हैं कि भारत में पत्रकारिता की शुरूआत ही प्रतिरोध की संस्कृति से हुई है।
23 मई,1818 को कलकत्ता से ही पहले बांग्ला समाचार-पत्र समाचार दर्पण निकाला जाने लगा। इस पत्र के कुछ हिस्से हिन्दी के भी होते थे। मार्शमैन इस पत्र के संपादक थे। राजा राममोहन राय को देशी पत्रकारिता का जनक माना जाता है। उन्होंने 20 अप्रैल, 1822 को फारसी के पहले अखबार मिरात-उल-अखबार के प्रकाशन की शुरूआत की। इस अखबार में पहले अंक में उन्होंने इसका उद्देश्य लोगों के अनुभव में वृद्धि करना, सामाजिक प्रगति करना, सरकार को जनता की स्थिति से और जनता को सरकार के नियम-कायदों से अवगत करवाना बताया। यह समाचार-पत्र एक ही साल निकल पाया। अंग्रेजों ने अध्यादेश लाकर प्रैस की स्वतंत्रता पर नकेल डाल दी। राजा राम मोहन राय ने अध्यादेश को न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया। फारसी की तरह उर्दू का पहला समाचार-पत्र जाम-ए-जहाँनुमा 27 मार्च, 1822 को कोलकाता से ही निकाला जाने लगा। यह हर बुधवार को निकाला जाता था। इस पत्र के संपादक मुंशी सदासुख मिर्जापुरी और संचालक हरिहर दत्त थे।
30 मई, 1826 को ‘उदंत मार्तंड’ नाम से हिन्दी का पहला समाचार-पत्र प्रकाशित हुआ। कानपुर से कलकत्ता गए जुगल किशोर शुक्ल को यह पत्र निकालने का श्रेय जाता है। यह साप्ताहिक पत्र था और प्रति सप्ताह मंगलवार को लोगों के बीच पहुंचता था। बड़ा बाजार के पास 37, अमर तल्ला लेन, कोलूटोला कलकत्ता से यह समाचार-पत्र प्रकाशित होता था। देश के पहले हिन्दी समाचार-पत्र के प्रकाशन में इतनी देरी का मुख्य कारण यह था कि तत्कालीन भारत में अंग्रेजी, फारसी, उर्दू व बंगला आदि भाषाओं का वर्चस्व था। उदंत मार्तंड के पहले अंक की 500 प्रतियां प्रकाशित हुई थी। उस समय हिन्दी भाषा का कोई मानक रूप नहीं उभर पाया था। हिन्दी गद्य व समाचार का स्वरूप भी निश्चित नहीं था। इसलिए उदंत मार्तंड खड़ी बोली व ब्रज के मिले जुले रूप में निकलता था, जिसे मध्यदेशीय भाषा कहा जाता था। पहले अंक से उदाहरण देखिए-
‘यह उदन्त मार्तण्ड अब पहले-पहल हिंदुस्तानियों के हित के हेत जो, आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेजी ओ पारसी ओ बंगाल में जो समाचार का कागज छपता है उनका सुख उन बोलियों के जान्ने और पढऩे वालों को ही होता है। और सब लोग पराए सुख सुखी होते हैं। जैसे पराए धन धनी होना और अपनी रहते परायी आंख देखना वैसे ही जिस गुण में जिसकी पैठ न हो उसको उसके रस का मिलना कठिन ही है और हिंदुस्तानियों में बहुतेरे ऐसे हैं।’
उदंत मार्तंड में अनेक सामाजिक रूढिय़ों पर सवाल उठाए गए। आम जनता की समस्याओं को मुखर होकर उठाया गया। पत्र में वैज्ञानिक उपलब्धियों व जानकारियों को विशेष रूप से स्थान दिया जाता था। उस समय समाचार-पत्र निकालना एक चुनौतिपूर्ण कार्य था। छपाई का कार्य भी अनेक प्रकार की मुश्किलों से भरा था। पत्र के सामने मुश्किल हालात थे। संसाधनों की कमी थी। कलकत्ता में हिन्दी पाठकों की संख्या कम थी। दूरवर्ती हिन्दी क्षेत्र में इसे पहुंचाने के मार्ग में अनेक प्रकार की समस्याएं थीं। खास तौर से सरकार ने बार-बार अनुरोध के बावजूद इस पत्र को डाक दरों में रियायत देने से मना कर दिया था। अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझते हुए उदंत मार्तंड करीब डेढ़ साल निकाला जाता रहा। इसके कुल 79 अंक ही निकाले गए थे कि दिसंबर 1827 को इसे बंद कर देना पड़ा। इसके आखिरी अंक में जुगल किशोर जी ने लिखा- आज दिवस लौं उग चुक्यौ मार्तण्ड उदन्त। अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अन्त। शुक्ल जी ने इस पत्र के बाद भी समदन्त मार्तण्ड नामक एक और पत्र निकाला। उसे भी लंबे समय तक नहीं निकाला जा सका।
1829 को राजा राममोहन राय, द्वारिकानाथ ठाकुर और नीलरतन हालदार ने मिलकर बंगदूत निकाला, जो हिन्दी के अलावा बांग्ला व पर्शिन में भी छपता था। प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के तीन साल पहले 1854 में देश का पहला हिन्दी दैनिक समाचार सुधावर्षण श्याम सुंदर सेन के प्रकाशन व संपादन में निकाला गया। हालांकि यह पूरी तरह से हिन्दी समाचार-पत्र नहीं था। इसमें बांग्ला रिपोर्टें भी प्रकाशित होती थी। इस पत्र ने अंग्रेजी शासन की कारगुजारियों व काले कारनामों पर जमकर कलम चलाई। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में विद्रोहियों द्वारा बहादुर शाह जफर को हिन्दुस्तान का राजा घोषित कर दिया। जफर के हिन्दु-मुस्लिम एकता बनाने और अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के संदेश को पत्र में प्रमुख स्थान मिला। समाचार सुधावर्षण में मई, जून 1857 में प्रकाशित रिपोर्टों को आधार बनाकर अंग्रेजों ने पत्र पर देशद्रोह का आरोप लगाते हुए कोर्ट में घसीट लिया। हालांकि चाहते तो श्याम सुंदर माफी मांग कर कोर्ट केस से बरी हो जाते, लेकिन उन्होंने यह गवारा नहीं समझा। देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी की लड़ाई में पत्रकारिता आंदोलन की हमकदम रही। देश की जनता को अंधेरे से उजाले की ओर लाने और अंग्रेजी शासन के बहरेपन को तोडऩे के लिए पत्रकारों व कलम के सिपाहियों ने खूब संघर्ष किया। स्वतंत्रता सेनानियों ने पत्रकारिता की और राजनीतिज्ञों व साहित्यकारों ने जनजागरण के उद्देश्य से पत्र-पत्रिकाएं निकाली। गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकारों ने देश की आजादी, साम्प्रादायिक सौहाद्र्र व पत्रकारिता के मूल्यों के लिए शहादत दी। आज देश में अलग-अलग भाषाओं के कितने ही समाचार-पत्र प्रकाशित हो रहे हैं। हिन्दी में भी पत्र-पत्रिकाओं की कमी नहीं है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। आज हमें देश की आम जनता के हित में पत्रकारिता के मूल्यों को बचाने की जरूरत है।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, लेखक व स्तंभकार
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
![]() |
prakhar vikas 29-5-2021 |
No comments:
Post a Comment