यात्रा-वृत्तांत
आनंद और ज्ञान से सराबोर करती यात्रा
हरियाणा के पर्यटक स्थल-टोपरा कलां, आदिबद्री व लोहगढ़
-सार्थक
हरियाणा के करनाल जिला के इन्द्री कस्बे में अपने घर से यमुनानगर जिला के गांव टोपरा कलां में जाने की योजना बनी थी। मुझे यात्रा करना बहुत अच्छा लगता है, इसलिए मैं उत्साहित था। हमने 12 फरवरी को जल्दी से तैयार होकर अपनी गाड़ी से यात्रा शुरू कर दी। मैं अगली सीट पर बैठना पसंद करता हूँ। क्योंकि इससे मैं पापा को गाड़ी चलाते हुए देख सकता हूँ। कार में अपने पसंद के गाने भी लगा सकता हूँ। यमुनानगर जिला के गांव करेड़ा खुर्द के बाद हम टोपरा कलां की ओर बढ़े। वहां पहुंच कर देखा कि वहां पर ऐतिहासिक अशोक चक्र बना हुआ है। अशोक चक्र बहुत बड़ा था। उसके पास एक बोर्ड पर अशोक चक्र के बारे में जानकारियां लिखी हुई थी। अशोक चक्र को धर्म चक्र भी कहते हैं। 23सौ साल पहले सम्राट अशोक ने टोपरा कलां में एक स्तंभ बनवाया था। फिर 14वीं सदी में फिरोजशाह तुगलक इस स्तंभ को उतार कर ले गया। जिसे बाद में फिरोजशाह कोटला मैदान, दिल्ली में लगाया गया। गांववासियों की इच्छा थी कि टोपरा कलां में अशोक स्तंभ की यादगिरी होनी चाहिए। तो 2018 में अशोक चक्र बनने लगा। 2019 में इसे गांव के पास ही स्थापित किया गया। यह चक्र आठ हजार किलोग्राम का है और उसमें 5500कि.ग्रा. लोह का इस्तेमाल किया गया है। यह चक्र भारत के तिरंगे झंडे के मध्य में स्थित अशोक चक्र जैसा ही है, जिसमें 24 तीलियां लगाई हैं। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस ने इस चक्र को देश का सबसे बड़ा अशोक चक्र घोषित किया है। मेरे पापा ने इस चक्र के बारे में जानकारियों को समेटते हुए एक वीडियो भी बनाई।
अशोक चक्र देखने के बाद हम जगाधरी की तरफ चल दिए। जगाधरी बस अड्डे से पहले ही आदि बद्री का बोर्ड देख कर वहां जाने की इच्छा हुई और पापा ने गाड़ी उसी तरफ मोड़ दी। रास्ते में हमें भूख लगने लगी। थोड़ी देर बाद हम बिलासपुर पहुंच गए। वहां पर एक जूस की दुकान पर हमने नारियल शेक पीया। बर्फ के कारण शेक बहुत ठंडा था। बिलासपुर से आगे निकले तो कुछ देर बाद आदि बद्री के पहाड़ दिखने शुरू हो गए। आगे जाकर एक मोड़ आ गया। वहां से पूछने पर पता चला कि इस मोड़ से मुडऩे पर ही आगे आदि बद्री आएगा। पहले गांव काठगढ़ दिखाई दिया। हमें पता चला कि आदि बद्री भी काठगढ़ गांव का हिस्सा है। कुछ दूरी पर पहाड़ शुरू हो गए थे। मुझे बहुत मजा आ रहा था, क्योंकि पहली बार हम अपनी गाड़ी को पहाड़ों में ले जा रहे थे और मेरे पापा पहली बार पहाड़ों में ड्राईव कर रहे थे। मैं साथ-साथ गाने का आनंद ले रहा था।
पहले हम वहां पहुंचे, जहां से सरस्वती निकली थी। फिर हम थोड़ा आगे गए। जहां एक सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक केन्द्र दिखा। पापा ने कहा कि यहां बाद में आएंगे। थोड़ा आगे चलकर रास्ता खत्म हो रहा था। वहां पर गाड़ी पार्क करके हम सीढिय़ां चढक़र ऊपर गए। सीढिय़ों के दोनों ओर रेलिंग पर बंदर अठखेलियां कर रहे थे। वे ऊपर जा रहे थे और नीचे आ रहे थे। ऊपर जाकर हमने ऊंचे पहाड़ देखे। सबसे ऊपर एक मंदिर था, जहां तक जाने का रास्ता बहुत लंबा है। लेकिन वहां जाने का हमारे पास समय नहीं था। दूसरे रास्ते से हम नीचे आए। एक नाले पर बने पुल को पार करके और कुछ सीढिय़ां चढक़र हम गऊशाला पहुंचे। वहां पर बहुत सारी गायें थी। गाय के दूध से सेवकों द्वारा चाय का प्रसाद बनाकर रखा गया था। हमने सोचा कि पहले ऊपर के मंदिरों में जाते हैं। मंदिरों में प्रवेश से पहले हमने घंटी बजाई। ऊपर की तरफ जाते हुए रास्ते में एक कुत्ता बैठा था। लोगों को रास्ते से आते देखकर वह साईड में हो गया और आराम करने लगा। हम मंदिरों के दर्शन करके नीचे आ गए। हमने चाय का प्रसाद लिया।
वहां से वापिस आकर हम गाड़ी में वापिस चल दिए। फिर हम सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक केन्द्र में आए। इस संग्रहालय के प्रांगण में चबूतरे बनाकर पुरानी मूर्तियां रखी गई थी। जोकि खुदाई में मिली थी। इनमें एक पत्थर की मूर्ति महात्मा बुद्ध की थी, जोकि मुझे पसंद आई। संग्रहालय के तीन कमरों में प्राचीन काल के इतिहास को दर्शाने वाले चित्र लगाए गए थे। वे चित्र हरियाणा के विभिन्न स्थानों के थे। पहले कमरे के बीचों-बीच आदि बद्री के नक्शे का मॉडल बना था, जोकि सबका ध्यान खींचता था। आदि बद्री के पहाड़ मुझे बहुत अच्छे लगे।
वहां से वापिस आए तो योजना बनी कि लोहगढ़ भी चलेंगे। हमने जलपान किया और लोहगढ़ की ओर चल दिए। वहां पर भगवानपुर पंचायत में पडऩे वाले लोहगढ़ में हिमाचल प्रदेश की सीमा के साथ लगता एक पुराना गुरुद्वारा है। यह गुरुद्वारा बंदा बहादुर जी के द्वारा बनाया गया था। हमने गुरुद्वारे में माथा टेका। वहां से मिला प्रसाद हमने खाया। लेकिन गुरुद्वारा जाने का रास्ता मुश्किलों से भरा था। वहां पुल बन रहा था। इसलिए धूल-मिट्टी थी। गाड़ी को एकदम नीचे जाना था। वापसी में ऊपर की चढ़ाई करनी थी। वहां से वापिस चले तो शाम हो गई थी। रास्ते में अंधेरा हो गया। गाड़ी में मुझे नींद आ गई थी। हम अपने घर आठ बजे पहुंचे। दादा जी घर पर हमारा इंतजार कर रहे थे। मैंने अपने दादा जी को यात्रा की सारी कहानी सुनाई।
अशोक चक्र देखने के बाद हम जगाधरी की तरफ चल दिए। जगाधरी बस अड्डे से पहले ही आदि बद्री का बोर्ड देख कर वहां जाने की इच्छा हुई और पापा ने गाड़ी उसी तरफ मोड़ दी। रास्ते में हमें भूख लगने लगी। थोड़ी देर बाद हम बिलासपुर पहुंच गए। वहां पर एक जूस की दुकान पर हमने नारियल शेक पीया। बर्फ के कारण शेक बहुत ठंडा था। बिलासपुर से आगे निकले तो कुछ देर बाद आदि बद्री के पहाड़ दिखने शुरू हो गए। आगे जाकर एक मोड़ आ गया। वहां से पूछने पर पता चला कि इस मोड़ से मुडऩे पर ही आगे आदि बद्री आएगा। पहले गांव काठगढ़ दिखाई दिया। हमें पता चला कि आदि बद्री भी काठगढ़ गांव का हिस्सा है। कुछ दूरी पर पहाड़ शुरू हो गए थे। मुझे बहुत मजा आ रहा था, क्योंकि पहली बार हम अपनी गाड़ी को पहाड़ों में ले जा रहे थे और मेरे पापा पहली बार पहाड़ों में ड्राईव कर रहे थे। मैं साथ-साथ गाने का आनंद ले रहा था।
पहले हम वहां पहुंचे, जहां से सरस्वती निकली थी। फिर हम थोड़ा आगे गए। जहां एक सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक केन्द्र दिखा। पापा ने कहा कि यहां बाद में आएंगे। थोड़ा आगे चलकर रास्ता खत्म हो रहा था। वहां पर गाड़ी पार्क करके हम सीढिय़ां चढक़र ऊपर गए। सीढिय़ों के दोनों ओर रेलिंग पर बंदर अठखेलियां कर रहे थे। वे ऊपर जा रहे थे और नीचे आ रहे थे। ऊपर जाकर हमने ऊंचे पहाड़ देखे। सबसे ऊपर एक मंदिर था, जहां तक जाने का रास्ता बहुत लंबा है। लेकिन वहां जाने का हमारे पास समय नहीं था। दूसरे रास्ते से हम नीचे आए। एक नाले पर बने पुल को पार करके और कुछ सीढिय़ां चढक़र हम गऊशाला पहुंचे। वहां पर बहुत सारी गायें थी। गाय के दूध से सेवकों द्वारा चाय का प्रसाद बनाकर रखा गया था। हमने सोचा कि पहले ऊपर के मंदिरों में जाते हैं। मंदिरों में प्रवेश से पहले हमने घंटी बजाई। ऊपर की तरफ जाते हुए रास्ते में एक कुत्ता बैठा था। लोगों को रास्ते से आते देखकर वह साईड में हो गया और आराम करने लगा। हम मंदिरों के दर्शन करके नीचे आ गए। हमने चाय का प्रसाद लिया।
वहां से वापिस आकर हम गाड़ी में वापिस चल दिए। फिर हम सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक केन्द्र में आए। इस संग्रहालय के प्रांगण में चबूतरे बनाकर पुरानी मूर्तियां रखी गई थी। जोकि खुदाई में मिली थी। इनमें एक पत्थर की मूर्ति महात्मा बुद्ध की थी, जोकि मुझे पसंद आई। संग्रहालय के तीन कमरों में प्राचीन काल के इतिहास को दर्शाने वाले चित्र लगाए गए थे। वे चित्र हरियाणा के विभिन्न स्थानों के थे। पहले कमरे के बीचों-बीच आदि बद्री के नक्शे का मॉडल बना था, जोकि सबका ध्यान खींचता था। आदि बद्री के पहाड़ मुझे बहुत अच्छे लगे।
वहां से वापिस आए तो योजना बनी कि लोहगढ़ भी चलेंगे। हमने जलपान किया और लोहगढ़ की ओर चल दिए। वहां पर भगवानपुर पंचायत में पडऩे वाले लोहगढ़ में हिमाचल प्रदेश की सीमा के साथ लगता एक पुराना गुरुद्वारा है। यह गुरुद्वारा बंदा बहादुर जी के द्वारा बनाया गया था। हमने गुरुद्वारे में माथा टेका। वहां से मिला प्रसाद हमने खाया। लेकिन गुरुद्वारा जाने का रास्ता मुश्किलों से भरा था। वहां पुल बन रहा था। इसलिए धूल-मिट्टी थी। गाड़ी को एकदम नीचे जाना था। वापसी में ऊपर की चढ़ाई करनी थी। वहां से वापिस चले तो शाम हो गई थी। रास्ते में अंधेरा हो गया। गाड़ी में मुझे नींद आ गई थी। हम अपने घर आठ बजे पहुंचे। दादा जी घर पर हमारा इंतजार कर रहे थे। मैंने अपने दादा जी को यात्रा की सारी कहानी सुनाई।
सार्थक
कक्षा-पांचवीं, शहीद उधम सिंह व.मा. विद्यालय,
मटक माजरी, इन्द्री, करनाल
घर का पता- सार्थक पुत्र अरुण कैहरबा
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान,
इन्द्री, जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
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