Tuesday, May 4, 2021

GREAT REVOLUTIONARY BIRKANYA PRITILATA WADDEDAR

 जयंती विशेष

आजादी की लड़ाई की वीरकन्या क्रांतिकारी शहीद प्रीतिलता वादेदार
विचार, बहादुरी और देश भक्ति में बेमिसाल व्यक्तित्व
स्वतंत्रता आंदोलन में प्रीतिलता ने 21 साल की उम्र में दी शहादत
DAILY NEWS ACTIVIST -5-2021


अरुण कुमार कैहरबा
आजादी की लड़ाई अनेक प्रेरक व संघर्षशील व्यक्तित्वों से भरी हुई है, जिन्होंने अपनी देशभक्ति की भावना, योजना, कुशलता, सामूहिकता, विचारशीलता, बौद्धिकता, त्याग और बलिदान के बल देश को आजाद करवाने के लिए अथक संघर्ष किए। दुखद यह है कि कितने ही नाम या तो भुला दिए गए या फिर उन्हें बहुत कम याद किया जाता है। आजादी के बाद बंटवारे के बावजूद विशाल देश में अलग-अलग क्षेत्रों के लोग अपने ही क्षेत्र के क्रांतिकारी वीरों व वीरांगनाओं को तो जानते हैं, लेकिन अपने ही देश के दूसरे राज्यों के स्वतंत्रता सेनानियों व शहीदों को नाम से भी नहीं जानते हैं। ऐसे ही सेनानियों में बंगाल की पहली महिला शहीद प्रीतिलता वादेदार का नाम भी शामिल है, जिन्होंने चट्टगांव के प्रसिद्ध विद्रोह में हिस्सा लिया और 21 साल की कम उम्र में आजादी के लिए प्राण देकर देश के इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया। लैंगिक भेदभाव व अवसरों की कमी के चलते अन्य अनेक सामाजिक व राष्ट्रीय मोर्चों की ही तरह आजादी की लड़ाई में भी महिलाओं की कम भागीदारी के संदर्भ में ता प्रीतिलता व स्वतंत्रता सेनानी महिलाओं के योगदान को व्यापक संदर्भों में देखा ही जाना चाहिए। इसके अलावा भी युवा प्रीतिलता विचार व बहादुरी में आज के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।
यह वह दौर था जब बांग्लादेश अलग देश के रूप में दुनिया के मानचित्र पर नहीं आया था। संयुक्त भारत के उसी क्षेत्र में एक कस्बा है चट्टगांव। चट्टगांव के एक गांव ढ़ालघाट 5 मई, 1911 को प्रीतलता का जन्म हुआ। उनके पिता जगतबंधु एक क्लर्क थे। मां प्रतिभा भी शिक्षा के महत्व को समझती थी। इस तरह परिवार आर्थिक दृष्टि से अधिक सम्पन्न तो नहीं था, लेकिन शैक्षिक दृष्टि से अच्छी स्थिति में था। नन्हीं प्रीतिलता को घर में ही शिक्षा दी गई। जब वह दस वर्ष की हुई तो उसे स्कूल में सीधे तीसरे दर्जे में दाखिला मिला। प्रतिभावान छात्रा होने के कारण उसे छात्रवृत्ति भी मिली। जब प्रीतिलता आठवीं कक्षा में थी, उसने अंग्रेजों द्वारा मास्टर दा सूर्यसेन को जेल भेजते हुए देखा। अंगे्रजों द्वारा क्रांतिकारियों पर अत्याचार के दृश्यों ने उसमें देशभक्ति की भावना को आगे बढ़ाया। शीघ्र ही उसने स्वतंत्रता सेनानियों के दर्शन व जीवनियों पर आधारित किताबें इक_ा करके पढऩे लगी। 17 साल की उम्र में 1928 में उसने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद ढ़ाका के मशहूर इडेन कॉलेज में दाखिला लिया। यहां पर पढ़ते हुए ही वह उस समय के स्वतंत्रता सेनानियों से प्रभावित होने लगी थी। यहां पर वह अनेक सामाजिक गतिविधियों के साथ जुड़ी। लीला नाग की अगुवाई में चलाए जा रहे ‘स्त्री संघ’ की वह सक्रिय सदस्य हो गई। ‘दीपाली संघ’ के अन्तर्गत महिलाओं के द्वारा गुप्त रूप से चलने वाली क्रांतिकारी गतिविधियों में भी हिस्सा लेने लगी। कला और साहित्य उसके रूचिकर विषय थे। इंटरमीडिएट की परीक्षा में पूरे ढ़ाका बोर्ड में पांचवां स्थान पाया। यहां से कलकत्ता के बेथुन कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की। यहां से उसने दर्शशास्त्र में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन आजादी के लिए किए जा रहे क्रांतिकारी संघर्षों में हिस्सेदारी के कारण अंग्रेज सरकार ने प्रीतिलता व बीना दास की डिग्री रोक ली थी। मृत्यु के 80 साल बाद 2012 में विश्वविद्यालय ने प्रीतिलता की डिग्री जारी की।
पढ़ाई के बाद उसने लड़कियों के नंदनकरण अपर्णाचरण नाम के सैकेंडरी स्कूल में मुख्याध्यापिका के लिए रूप में कार्यभार ग्रहण किया। आजादी की गतिविधियों में रूझान होने के कारण स्कूल में तो मुख्याध्यापिका के रूप में ज्यादा लंबे समय तक काम नहीं कर सकी, परंतु स्वतंत्रता आंदोलन में शहादत देकर अध्यापिका के रूप में उन्होंने सदा-सदा के लिए नाम अमर कर लिया। ढ़ाका व कलकत्ता में पढ़ते हुए ही वह क्रांतिकारी गतिविधियों के साथ जुड़ गई थी। कलकत्ता में पढ़ते हुए भी क्रांतिकारियों के लिए असला-बारूद आदि छुपा कर भेजती थी। लेकिन बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियों के अग्रणी नेता सूर्यसेन के साथ उसकी मुलाकात नहीं हुई थी। सूर्यसेन भी उसे अपनी गतिविधियों में शामिल करने के पक्षधर नहीं थे। वे मानते थे कि महिलाओं के लिए क्रांतिकारी सरगर्मियों में हिस्सा लेना ज्यादा सुविधाजनक नहीं होगा। प्रीतिलता से सूर्यसेन की पहली भेंट हुई तो उसके तर्क और अंग्रेजी राज को समाप्त करने के उसके मजबूत इरादों को देखकर सूर्यसेन को उसे अपने क्रांतिकारी ग्रुप की कॉमरेड स्वीकार करना पड़ा।
सूर्यसेन के सैनिक दल के निर्माण, रणनीति व प्रयासों में प्रीतिलता ने नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। उसने खुद भी मार्शल आर्ट, लाठी खेला व बंदूक चलाने का अभ्यास किया और अन्य युवाओं व लड़कियों को अंग्रेजी शासन की समाप्ति और आजादी के लिए हथियारों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। आजादी की लड़ाई के इतिहास में इस क्रांतिकारी दल ने चट्टगांव विद्रोह किया। इतिहासकारों का मानना है कि यदि यह क्रांतिकारी कार्रवाई सफल हो जाती तो देश को जल्दी ही आजादी मिल जाती। चट्टगांव विद्रोह में सूर्यसेन, प्रीतिलता, गणेश घोष, लोकेनाथ बाल, अंबिका चक्रबर्ती, आनंद प्रसाद गुप्ता, त्रिपुरा सेन, बिधूभूषण भट्टाचार्य, कल्पना दत्त, हिमांशु घोष, बिनोद बिहारी चौधरी, सुबोध राय, मनोरंजन भट्टाचार्य सहित 65 लोगों के समूह ने ब्रिटिश सेना के शास्त्रागार व पहाड़ताली यूरोपियन क्लब पर कब्जा करने के लिए टेलीग्राफ व टेलिफोन सिस्टम व रेलवे की व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया। समूह में अधिकतर सदस्य कम उम्र के विद्यार्थी थे। उनमें से सुबोध राय केवल 14 साल के थे। इस कार्रवाई में कुछ कार्य सफलता पूर्वक कर लिए गए। लेकिन योजना में थोड़ी चूक रह जाने के कारण कईंयों को पकड़ लिया गया और कईंयों को भागना पड़ा। 1932 में चट्टग्राम के पहाड़ताली यूरोपियन क्लब पर हमला किया गया। इस पर हमले का मुख्य कारण यह था कि यह साम्राज्यवाद व जातीय भेदभाव का प्रतीक केन्द्र था। उसके बाहर लिखा हुआ था- ‘कुत्ते और भारतीयों को अनुमति नहीं है।’ प्रीतिलता वादेदार की अगुवाई में 10 सदस्यों की टीम ने 23 सितंबर, 1932 की रात को कार्रवाई को अंजाम दिया। हमले के दौरान क्लब में 40 के करीब सदस्य थे। हमले में एक महिला मारी गई और कईं सदस्य घायल हुए। तभी क्लब की रक्षा कर रहे सिपाहियों ने समूह के सदस्यों पर हमला कर दिया। प्रीतिलता घायल हो गई। ऐसे में जिंदा पकड़ाई में ना आने की चाह के कारण प्रीतिलता ने पोटाशियम साइनाइड का सेवन करके खुद मौत को गले लगा लिया।
भारत व बांग्लादेश प्रीतिलता की स्मृतियों व आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को प्रचारित करने के लिए वीरकन्या प्रीतिलता ट्रस्ट बनाया गया है, जोकि उनकी जयंती और शहीदी दिवस पर उन्हें याद करता है। चट्टगांव में प्रीतिलता की याद में सडक़ का नाम भी रखा गया है। यूरोपियन क्लब के पास ही उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। दोनों देशों में उनके नाम पर स्कूलों, कॉलेजों व सभागारों के नाम रखे गए हैं। हरियाणा के करनाल जिला में साक्षरता अभियान के तहत बनाए गए कलाजत्थों में एक नाटक टीम का नाम शहीद प्रीतिलता के नाम पर रखा गया था। हालांकि अब वह टीम सक्रिय नहीं है। बॉलीवुड ने चटगांव व खेलें हम जी जान से नाम की दो फिल्में बनाई गई हैं, जिनमें चट्टगांव विद्रोह, मास्टरदा सूर्यसेन, प्रीतिलता व कल्पना दत्त आदि चरित्रों को दिखाया गया है। बांग्लादेश में प्रीतिलता वादेदार के व्यक्तित्व पर आधारित फिल्म निर्माण की घोषणा हुई थी। फिलहाल शायद वह फिल्म बनकर तैयार नहीं हुई है।
वैसे तो विद्यार्थियों की पाठ्यपुस्तकों में स्वतंत्रता आंदोलन व विशेष रूप से क्रांतिकारी धारा की घोर उपेक्षा होती आई है, लेकिन पुरूष प्रधान समाज विशेष रूप से क्रांतिकारी आंदोलन में प्रीतिलता वादेदार व कल्पना दत्त, शांति घोष व सुनीति चौधरी जैसी उनकी समकालीन महिलाओं के योगदान की और ज्यादा उपेक्षा होती हुई दिखाई देती है। यह भी होता है कि महिलाओं बारे में कपोल-कल्पित विवरण भी चला दिए जाते हैं, जिन पर ज्यादा चर्चा होने लगती है और उनकी असली भूमिका हाशिये पर चली जाती है। आजादी की लड़ाई ही नहीं देश के इतिहास में प्रीतिलता महिलाओं की बराबरी व सामाजिक राष्ट्रीय परिदृश्य में उनकी सक्रिय भूमिका को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रीतिलता का जीवन व संघर्ष उनके जीवन काल में ही प्रकाशस्तंभ नहीं थे, आज भी हैं। प्रीतिलता ने उस समय लिखा था, ‘मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरी बहनें अब खुद को कमजोर नहीं समझेंगी और खुद को सभी खतरों और कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार करेंगी और हजारों की संख्या में क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल होंगी।’

अरुण कुमार कैहरबा
स्वतंत्रता आंदोलन के अध्येता,
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार व लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा पिन-132041
मो.नं.-9466220145
INDORE SAMACHAR 7-5-2021

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