अन्तर्राष्ट्रीय नर्सिंग दिवस विशेष
जख्मों पर मरहम लगाती सिस्टर
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने मानवता की सेवा के लिए नर्सिंग को माध्यम बनाया
आधुनिक नर्सिंग की नींव रखकर सम्मानजनक सेवा में बदला
अरुण कुमार कैहरबाVIR ARJUN 12-5-2021
कोरोना महामारी की दूसरी लहर से भारत व दुनिया के कईं देश त्रस्त हैं। स्वास्थ्य आपदा की इस स्थिति में जिन लोगों को भगवान की संज्ञा दी जा सकती है, वे हैं स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग। डॉक्टरों का कदम-कदम पर साथ देने वाली नर्सों के काम पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। स्वास्थ्य सेवाओं में उनका योगदान कम नहीं है। बल्कि मरीजों की नि:स्वार्थ सेवा और देखभाल में उनका योगदान स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कार्य करने वाले अन्य सभी विशेषज्ञों से कहीं ज्यादा होता है। अन्तर्राष्ट्रीय नर्सिंग दिवस हमें आधुनिक नर्सिंग के जन्म और नर्सों की जिम्मेदारियों पर चर्चा करने का हमें अवसर प्रदान करता है।सबसे पहले बात करते हैं आधुनिक नर्सिंग की जनक फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जीवन व कार्यों के बारे में, जिनकी जयंती को ही दुनिया भर में नर्सिंग दिवस के रूप में मनाया जाता है। ‘लेडी विद द लैंप’ नाम से जानी जाने वाली नाइटिंगेल ने युद्ध के घायल सैनिकों की सेवा करने और अस्पताल की दशा सुधारने के लिए जो कार्य किया, वह मिसाल बन गया। फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म इटली के फ्लोरेंस नगर में 12 मई, 1820 में हुआ था, जिसकी वजह से सम्पन्न बैंकर पिता विलियम नाइटिंगेल व माता फेनी नाइटिंगेल ने उसका नाम फ्लोरेंस ही रख दिया। बाद में परिवार इंग्लैंड चला गया। लंदन के एक सम्पन्न इलाके में उसका बचपन बीता। घर पर ही अन्य बहनों के साथ उसकी पढ़ाई की व्यवस्था की गई। उसे गणित, दर्शन शास्त्र व आधुनिक भाषाओं की शिक्षा दी गई। वह पढऩे और याद करने में बहुत कुशाग्र थीं। 19वीं सदी की परंपरा के अनुसार परिवार उन्हें यूरोप के सफर पर ले गया। यात्रा के अनुभवों को फ्लोरेंस ने बहुत सुंदर भाषा में अपनी डायरी में दर्ज किया। डायरी में किसी देश व शहर की आबादी के आंकड़े, अस्पतालों और स्वैच्छिक संस्थाओं की सख्याएं भी लिखती। फ्लोरेंस की मां इस सबके खिलाफ थी। सफर के आखिर में फ्लोरेंस ने ऐलान कर दिया कि परमात्मा ने उसे मानवता की सेवा का आदेश दिया है। यह बात सुनकर मां-बाप परेशान हो गए। लेकिन अभी वह तय नहीं कर पाई थी कि उसे करना क्या है। सुंदर व शिक्षित फ्लोरेंस नाइटिंगेल की शादी के लिए रिश्ते आने शुरू हो गए थे। लेकिन उसे इन सबमें कोई रूचि नहीं थी। 1844 में उसने तय किया कि उसे नर्सिंग के द्वारा मानवता की सेवा करनी है।
बचपन में ही उसे प्रकृति के साथ प्रेम था। पशु-पक्षियों के बीच वह खेलती-कूदती। पशुओं को जरा सी तकलीफ होने पर उनकी सेवा में लग जाती। पहले वह अपनी गुडिय़ों की पट्टी करती थी। बाद में घायल होने पर पशुओं की मरहम-पट्टी करने लगी। उसका पहला मरीज चरवाहों का कुत्ता था। पशुओं से होते हुए सेवा का यह भाव मनुष्यों तक गया। बताते हैं कि जहां कहीं भी दुख व पीड़ा थी, वहां पर फ्लोरेंस नाइटिंगेल भी मिलती थी। उसकी प्रबल इच्छा थी कि वह अपनी प्रतिभा का मानवता की सेवा के लिए इस्तेमाल करे।
16 साल की उम्र में जब उसने अपने पिता के समक्ष नर्सिंग की इच्छा व्यक्त की तो उसे तीखे गुस्से का सामना करना पड़ा। इतने समृद्ध परिवार की बेटी नर्सिंग जैसे दोयम दर्जे के पेशे को अपनाएगी, यह परिवार की तौहीन थी। इसका मुख्य कारण यह था कि उस समय अस्तपालों की स्थिति अच्छी नहीं थी। गंदगी और दुर्गंध से भरे अस्पतालों में नर्स के रूप में काम करना तथाकथित अच्छे परिवारों की लड़कियों के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता था। माता-पिता की इच्छा के विरूद्ध ही उसने लंदन, रोम व पैरिस के अस्पतालों के दौरे किए। आखिर माता-पिता को यह तय हो गया कि फ्लोरेंस शादी करवाने व उनके अनुसार जीवन बिताने के लिए मानने वाली नहीं है। उन्होंने उसे जर्मनी में नर्सिंग प्रशिक्षण लेने की इजाजत दी।
प्रशिक्षण के बाद उसे लंदन के हार्ले स्ट्रीट अस्पताल में नर्स और बाद में नर्सिंग प्रमुख बनने का मौका मिला। 1853 में क्रीमिया का युद्ध शुरू हो गया, जिसमें हजारों सैनिक घायल हुए। ब्रिटिश अस्पतालों की दशा बहुत खराब थी। अखबारों में उनकी खबरें आने लगी। ब्रिटेन के युद्ध मंत्री सिडनी हर्बर्ट फ्लोरेंस को जानते थे। उन्होंने उसे 38 नर्सों के साथ तुर्की स्थित सेना के अस्पताल में जाने के आदेश दिए। इतिहास में यह पहली बार था कि सेना में महिलाओं की सेवाएं ली जा रही थी। बराक अस्पताल में पहुंचते ही उसने वहां के हालात का जायजा लिया। अस्पताल के फर्श पर गंदगी की बरतें बिछी हुई थी। गंदगी के कारण घायल सैनिकों की गरिमा व सम्मान तार-तार हो रहा था। शौचालयों स्थिति अत्यंत दयनीय थी। वे पहुंचते ही सफाई व्यवस्था दुरूस्त करने के काम में लग गई। उसने वहां पर अस्पताल की रसोई व कैंटीन का निर्माण किया और घायल सैनिकों की खुराक पर ध्यान केन्द्रित किया। सैनिकों के कपड़ों को धोने का प्रबंध किया गया। रात-रात को फ्लोरेंस नाइटिंगेल घायलों की हालत का ध्यान रखती। वह हाथ में लैंप लेकर एक के बाद दूसरे सैनिक का हाल-चाल जानती। उनके घावों पर मरहम लगाती। साथ ही वह स्नेह के शब्दों से उनकी मनोवैज्ञानिक समस्याओं व जरूरतों का भी ध्यान रखती। उसने नर्सों व सैनिकों की बौद्धिक जरूरतों व मनोरंजन के लिए अस्पताल में कक्षा कक्षा व पुस्तकालय स्थापित किया। इस तरह से देखते ही देखते सैनिकों की मृत्यु दर कम हुई। उनके चेहरों की खुशियां फ्लोरेंस की सफलता की कहानी कहती। उनके काम के आधार पर उन्हें द लेडी विद द लैंप व क्रीमिया की देवदूत की संज्ञा मिली।
अपने बारे में हो रही चर्चाओं से फ्लोरेंस चिंतित थी। प्रसिद्धि के प्रति उनके मन में जरा भी मोह नहीं था। इसलिए करीब डेढ़ साल सेना के अस्पताल में ऐतिहासिक सेवाओं के बाद लंदन में आने पर उन्होंने नाम बदल कर रहना शुरू किया। फिर वह रानी विक्टोरिया से मिली तो वह भी फ्लोरेंस की फैन थी। फ्लोरेंस ने रानी को सेना की सेहत पर आयोग गठित करने का सुझाव दिया। रानी ने फ्लोरेंस को ही इस काम की जिम्मेदारी दी। जांच में खुलासा हुआ कि बड़ी संख्या में सैनिकों की जानें घायल होने से नहीं गई, बल्कि अस्वच्छता व संक्रामक बिमारियों के कारण गई हैं। केवल स्वच्छता से ही बहुत सी जानें बचाई जा सकती थी। आयोग की सिफारिशों व फ्लोरेंस की कोशिशों से ब्रिटिश फौज में स्वास्थ्य, स्वच्छता व सांख्यिकी विभाग बनाए गए। 1859 में फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अपनी सबसे मशहूर किताबें ‘नोट्स ऑन नर्सिंग’ और ‘नोट्स ऑन हॉस्पिटल्स’ प्रकाशित की। रानी के द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया।
रानी विक्टोरिया द्वारा मिली पुरस्कार राशि से उसने 1860 में सेंट थोमस अस्पताल की स्थापना की। अस्पताल में ही उसने नर्सों के लिए नाइटिंगेल प्रशिक्षण स्कूल भी स्थापित किया। वह प्रसिद्ध हो चुकी थी। उस पर गीत, कविताएं व नाटक लिखे गए। उनके पदचिह्नों का अनुसरण करने के लिए सम्पन्न परिवारों की लड़कियां उनके स्कूल में नर्सिंग का कोर्स करने के लिए दाखिल हुई। सेना के अस्पताल में सेवाएं देते हुए वह खुद भी संक्रमित हो चुकी थी, लेकिन इसके बावजूद उसने सेहत में सुधार के लिए अपना कार्य जारी रखा। फ्लोरेंस ब्रिटिश भारत में सेना की सेहत के मिशन से भी जुड़ी हुई थी। भारत की रिपोर्ट के आधार पर उन्होंने अकाल, अस्वच्छता व अस्वच्छ पानी पर चिंताएं जताते हुए सैनिकों की सेहत व साफ पानी की अहमियत को रेखांकित किया। फ्लोरेंस नाइटिंगेल अपनी लोकप्रियता से आत्ममुग्ध होने वाली थी, बल्कि इसका फायदा उठाकर सेहत व स्वच्छता को ब्रिटिश सरकार से अहम उपाय करवा रही थी। इसका पूरी दुनिया में असर गया। ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ मेरिट प्राप्त करने वाली पहली महिला थी। 13 अगस्त, 1910 को उनका देहांत हुआ, लेकिन उनका काम आज तक दुनिया के काम आ रहा है। वह नर्सिंग व महिलाओं के जीवन को बदलने वाली प्रेरणादायी व्यक्तित्व है।
अमेरिका में पहली बार नर्स दिवस मनाने का प्रस्ताव 1953 में रखा गया था। इसकी घोषणा अमेरिका के राष्ट्रपति ड्विट डी. आइजनहावर ने की थी। पहली बार इसे साल 1965 में मनाया गया। जनवरी, 1974 में फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन 12 मई को अंतर्राष्ट्रीय नर्सिंग दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की गई। भारत में हर साल 12 मई को सराहनीय सेवाएं देने वाली नर्सों को राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगल पुरस्कार दिया जाता है।
आज जब हम स्वास्थ्य आपदा से घिरे हुए हैं। भारत में ही चार लाख से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं और हजारों की जानें जा रही हैं। लाखों की संख्या में आए दिन लोग अस्पताल में सेवाएं लेने के लिए आ रहे हैं। ऐसे में नाइटिंगेल की वजह से आज नर्सिंग दुनिया भर में स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित सबसे बड़ा सम्मानजनक पेशा है। उनके बिना अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा जाएंगी। उन्हें मरीजों की मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और चिकित्सीय जरूरतों के प्रति संवेदनशील और प्रशिक्षित बनाने के लिए जगह-जगह स्कूल चलाए जाते हैं। भारत के अस्पतालों में नर्सों के खाली पद चिंता की बात हैं। इससे भी अधिक कम वेतन में अधिक काम लिया जाना भी दुखदायी है। निजीकरण की वजह से नर्सों को भी ठेका व्यवस्था के तहत लगाए जाने से एक ही अस्पताल में एक ही काम करने वालों को अलग-अलग दर्जा व वेतन दिया जाना भी बड़ी समस्या है। यह ऐसा पेशा है, जिसमें अधिकतर महिलाएं सेवा देती हैं। इसलिए महिलाओं के सशक्तिकरण पर बल देने वाली सरकारों को नर्सों की समस्याओं पर उचित कदम उठाना चाहिए। सभी उन्हें सिस्टर कहते हैं तो सभी को उनके योगदान के बारे में जागरूक एवं संवेदनशील होना चाहिए।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार व लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
DAILY NEWS ACTIVIST 12-5-2021 |
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