Monday, May 3, 2021

INTERNATIONAL FIRE FIGHTERS DAY / ACCIDENT IN TH LIFE OF FIRE FIGHTERS

 अंतर्राष्ट्रीय अग्निशामक दिवस विशेष

जान जोखिम में डाल कर आग बुझाते जान-माल बचाते फायर फाइटर्स
विपदाओं से ही नहीं असुविधाओं से भी जूझ रहे हैं ठेके व पे रोल पर लगे अग्निशामक  
अरुण कुमार कैहरबा
JAGAT KRANTI 4-5-2021


अपने लेख की शुरूआत मैं देश में हुए कुछ भयानक अग्निकांडों के साथ करना चाहता हूँ। पहला- दिनांक 23 दिसंबर, 1995, हरियाणा का डबवाली अग्निकांड, डीएवी स्कूल के वार्षिक उत्सव के दौरान पंडाल में लगी आग में स्कूली बच्चों सहित 442 मौतें।
दूसरा- दिनांक 16 जुलाई, 2004, तमिलनाडू में तंजावुर जिला के कुंबकोणम में श्री कृष्णा मिडल स्कूल में आग, 94 बच्चों की मौत। तीसरा- दिनांक 10 अप्रैल, 2006, मेरठ का विक्टोरिया पार्क अग्निकांड, कंज्यूमर मेले के पूरे पंडाल में आग, 65 लोगों की मौत, 81 गंभीर घायल, कईं झुलसे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पूर्व जस्टिस एसबी सिन्हा की अध्यक्षता में न्यायिक कमेटी द्वारा जांच। चौथा- दिनांक 22 सितंबर, 2014 बुलंदशहर बस हादसा। बस में लेकर जाया जा रहा सिलेंडर फटा, हादसे के दौरान ही 25 की मौत, बाद में मौतों का आंकड़ा 40 पार कर गया। पांचवां- दिनांक 9 दिसंबर, 2011 कोलकाता के एमआरआई अस्पताल में भीषण आग, 70 मरीज जिंदा जले। छठा- दिनांक 29 दिसंबर, 2017, मुंबई के मोजो बिस्त्रों रेस्त्रां में आग, 14 लोगों की मौत। सातवां- दिनांक 24 मई 2019, सूरत कोचिंग सेंटर हादसा, 20 विद्यार्थियों की मौत। आठवां- दिनांक 9 अप्रैल, 2021, अहमदाबाद के कृष्णनगर के स्कूल में आग। दमकल कर्मियों ने कड़ी मशक्कत के बाद आग पर पाया काबू।
DAILY NEWS ACTIVIST -5-2021


इस तरह के बड़े हादसों के साथ अन्य हादसों को भी जोड़ दें तो फेहरिस्त और लंबी हो जाएगी। आए दिन मानवीय भूलों, शॉर्ट सर्किट व नियमों को ताक पर रखे जाने सहित विभिन्न कारणों से हादसों में आग तांडव करती है। बच्चों को लेकर जा रही स्कूल बसों में आग, खेतों में फसलों के अवशेष में लगाई गई आग के फैल जाने से आग, गर्मी के मौसम में सूखे पत्तों को जरा सी चिंगारी मिल जाने से जंगलों व सडक़ किनारे पेड़ों में आग लग जाती है। जान माल का जो नुकसान होता है, उसकी क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती। इन हादसों में लोगों के जान-माल की सुरक्षा करने के लिए अपने समर्पण, प्रतिबद्धता और त्याग की भावना के साथ जो लोग कड़ी मशक्कत करते हैं, वे हैं दमकल विभाग के बहादुर फायर फाइटर्स। दमकल गाड़ी के ड्राईवर व अग्निशामक। सूचना मिलते ही वे गाड़ी लेकर दौड़ते हैं। वाहनों की भीड़-भाड़, जाम व विभिन्न प्रकार की बाधाओं को चीरते हुए मौके पर पहुंचते हैं। कईं स्थानों पर जाने के लिए तो उपयुक्त रास्ते भी नहीं होते।
एक के बाद दूसरा हादसा होता है। जांच कमेटियां बनाई जाती हैं। कमेटियां आग की घटनाएं रोकने के लिए सुझाव देती हैं। दोषियों को दंड दिए जाने की बातें होती हैं। बहुत कम देखने में आता है कि एक हादसे से हम कुछ सीखते हैं और अगले हादसे तक पिछले हादसों को भुला दिया जाता है। हादसों के अनंत सिलसिले के दौरान जान जोखिम में डाल कर मेहनत करने वाले अग्नि योद्धाओं व वीरों की बहुत कम बात होती है। उनके योगदान के लिए उनका आभार जताने का ना तो अक्सर लोगों के पास समय होता है और ही इतनी समझ।
अग्निशामक या फायर फाइटरर्स दिवस उनका आभार जताने और उनकी जीवन स्थितियों पर बात करने का हमें अवसर प्रदान करता है। पहली बात तो यह कि दमकल कर्मियों को अपना काम करने के लिए वर्दी, मास्क, बरसाती, गमबूट आदि की जरूरत होती है। लेकिन देखने में आता है कि कईं पर यह बुनियादी सुविधाएं भी फायर कर्मियों के पास नहीं होती हैं। अपना काम करते हुए उनकी जान हमेशा जोखिम में होती है। उनका बीमा होना चाहिए। हादसों के वक्त कईं बार दमकल कर्मियों को लंबे समय तक काम करना पड़ता है। कईं बार तो रात को भी लोगों को आपदा से निकालने में लगे रहते हैं। लेकिन यदि दमकल कर्मियों को खुद ही अच्छा वेतन ना मिलता हो तो वे अपना काम किस प्रकार अच्छी तरह से कर पाएंगे। हमारी सरकारों ने इस तरह की आवश्यक सेवाएं भी निजीकरण व ठेका प्रथा की भेंट चढ़ा रखी हैं। कुशल कर्मियों को ठेका व्यवस्था के तहत लगाए जाने के कारण वे आर्थिक रूप से असुरक्षित रहते हैं।
अग्निशमन सेवा एवं नगरपालिका कर्मचारी संघ संबंधित सर्व कर्मचारी संघ के प्रदेशाध्यक्ष राजेन्द्र सिणंद ने बताया कि हरियाणा के दमकल केन्द्रों में 1366 कर्मी पे रोल पर लगाए गए हैं। सौ के करीब ठेका प्रथा पर लगे हुए हैं। केवल करीब 350 कर्मचारी रेगुलर हैं। ठेके पर लगे कर्मचारी हमेशा असुरक्षित रहते हैं। उन्हें कभी भी समय पर वेतन नहीं मिलता है। पे रोल पर लगे कर्मचारियों को भी कोई दुर्घटना बीमा व जोखिम भत्ता तक नहीं मिलता है। इसका मतलब यह है कि आग बुझाते हुए लोगों की जान बचाते हुए यदि वे खुद दुर्घटनाग्रस्त हो जाएं तो उन्हें कोई सुविधा नहीं मिल पाएगी। कोरोना महामारी के दौरान फायर कर्मी अग्निशामक के साथ-साथ कोरोना योद्धा के रूप में काम कर हैं। लेकिन यदि वे कोरोना ग्रस्त होकर जान से चले जाएं तो उन्हें कोई दुर्घटना बीमा नहीं दिया जाता है। यूनियन के स्तर पर फायरकर्मी नगर निकाय मंत्री से मिल चुके हैं। उन्होंने 50 लाख रूपये का दुर्घटना बीमा व 4 हजार रूपये जोखिम भत्ते की मांग रखी थी। इस मांग पर सरकारी स्तर  पर सहमति तो व्यक्त की जाती है, लेकिन लागू नहीं की जाती। फायरकर्मी लंबे समय से सरकार द्वारा निर्मित की गई फायर ओपरेटर के पदों पर नियमित करने की मांग कर रहे हैं। ऐसी विकट स्थितियों में फायर फाइटर्स किस तरह से अपना काम अच्छी तरह से कर पाएंगे।
2 दिसंबर 1998 को ऑस्ट्रेलिया की झाड़ी में आग लगी के दौरान हुई पांच अग्निशामकों की मौत के बाद 1999 में अग्निशामकों के बलिदान को चिन्हित करने और उन्हें सम्मानित करने के लिए 4 मई को यह दिन मनाए जाने की शुरूआत हुई थी। अग्निशामक दिवस का मकसद यही है कि हम उनका महत्वपूर्ण दायित्व के लिए आभार जताएं। लेकिन साथ ही हमें उनके लोकतांत्रिक हकों का भी समर्थन करना चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि नियमित सेवाओं के लिए लगाए गए कर्मचारियों को नियमित कर्मचारी का दर्जा प्रदान करे और उन्हें अपना काम कुशलता से करने के लिए बुनियादी सुविधाएं प्रदान करे।  


अंतर्राष्ट्रीय अग्निशमन दिवस के संस्थापक लेफ्टिनेंट जेजे एडमंडसन का कहना है कि  ‘आज के समाज में शहरी, ग्रामीण, प्राकृतिक वातावरण, स्वयंसेवक, कैरियर, औद्योगिक, रक्षा बल, विमानन, मोटर, खेल या अन्य सेवाओं में फायर फाइटर की भूमिका समर्पण, प्रतिबद्धता और बलिदान की है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस देश में रहते हैं और काम में। आग सेवा में हम एक आम दुश्मन के आग के खिलाफ एक साथ लड़ते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस देश से आते हैं, हम क्या वर्दी पहनते हैं या किस भाषा में बोलते हैं।’
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार व लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
VIR ARJUN 4-5-2021

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