Saturday, May 8, 2021

IN THE MEMORY OF DIDI NARMALA DESHPANDE (PADMVIBHUSHAN)

दीदी निर्मला देशपांडे ने शांति, सद्भावना व एकता के लिए आजीवन किया काम

13वीं पुण्यतिथि पर दिखा अनोखा नजारा

ऑनलाइन स्मृति सभा व संगोष्ठी में जुटे कईं देशों के गांधीवादी विचारक

दीदी के विचारों को आगे बढ़ाने का लिया संकल्प

अरुण कुमार कैहरबा
PRAKHAR VIKAS 8-5-2021

महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे की अहिंसक क्रांति के विचार को आत्मसात करके उसे आगे बढ़ाने वाली दीदी निर्मला देशपांडे की 13वीं पुण्यतिथि पर उस समय अनोखा नजारा देखने को मिला, जब गांधी ग्लोबल फैमिली, निर्मला देशपांडे संस्थान तथा नित्यनूतन वार्ता के संयुक्त संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन स्मृति सभा व संगोष्ठी में भारत के विभिन्न प्रदेशों के साथ-साथ नेपाल, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर सहित दुनिया के विभिन्न स्थानों में रह रहे उनके अनुयायियों ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि भेंट की। श्रद्धा से भरे गांधीवादी विचारकों ने दीदी निर्मला देशपांडे के विचारों व कार्यों को आगे बढ़ाने का संकल्प किया। स्मृति सभा की अध्यक्षता माता रुकमणी देवी सेवा संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष एवं स्वर्गीय दीदी के अनन्य सहयोगी पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने की। सभा का संचालन पानीपत में निर्मला देशपांडे संस्थान के संस्थापक एडवोकेट राममोहन राय ने किया और संयोजन पंचकूला में रह रहे हरियाणा के जाने-माने लोक संस्कृति चिंतक सुरेन्द्रपाल सिंह ने किया।
स्व. दीदी निर्मला देशपांडे

स्मृति सभा की शुरूआत महादेव देसाई पुस्तकालय, गांधी आश्रम, दिल्ली की पुस्तकालयाध्यक्ष सीमा शर्मा ने दीदी निर्मला देशपांडे के जीवन-संघर्षों पर आधारित राममोहन राय का लेख पढ़ कर की। लेख में उन्होंने बताया कि 17 अक्तूबर, 1929 को दीदी का जन्म महाराष्ट्र के नागपुर में पुरूषोत्तम यशवंत देशपांडे व विमला बाई के घर में हुआ। घर में खुला वातावरण था, जिसमें देश भर की महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों का आना-जाना था और उनके साथ नन्हीं निर्मला को संवाद के मौके मिलते थे। नागपुर से ही उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए की पढ़ाई की और यहीं एक महाविद्यालय में प्राध्यापिका बन गई। समाज के कमजोर दलित, वंचित, उत्पीडि़त तबकों व महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय व भेदभाव से उनका मन व्याकुल रहता था, जिससे उन्होंने अपनी सुख-सुविधाएं त्याग कर संत विनोबा भावे के पवनार स्थित आश्रम में आ गई। विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में उन्होंने 40 हजार कि.मी. की पैदल यात्रा की। पूरी यात्रा में विनोबा भाव के प्रवचनों को उन्होंने ‘भूदान गंगा’ के नाम से कईं खंडों में संकलित किया। भूदान आंदोलन आजाद भारत का अनोखा अहिंसक आंदोलन था, जिसमें 40 लाख एकड़ भूमि लोगों ने दान में दी, जिसे गरीबों व वंचितों में बांटा गया। विनोबा ने अपने गुरु महात्मा गांधी के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए शांति सेना का गठन किया था,  जिसका कमांडर उन्होंने निर्मला देशपांडे को नियुक्त किया। बाद में वह इंदौर स्थित शांति सेना विद्यालय की निर्देशिका बनी। निर्मला देशपांडे ने इंदिरा गांधी की मित्र व सचिव के रूप में कार्य किया। दीदी ने हरिजन सेवक संघ की अध्यक्षा के रूप में उन्होंने कार्य किया। अखिल भारतीय रचनात्मक समाज की स्थापना की। आतंकवाद से त्रस्त जम्मू कश्मीर, 1984 में पंजाब, बिहार में नक्सलवाद और महाराष्ट्र में हिंसा के समय उन्होंने पदयात्राएं निकाल कर शांति का संदेश दिया। 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के समय दीदी ने ‘उन्हें रोको उन्हें रोको’ का शोर मचाया। गुजरात में नरसंहार के दौरान वहां पहुंच कर पीडि़तों के जख्मों पर मरमम लगाया। दीदी निर्मला देशपांडे ने पाकिस्तान के साथ दोस्ती का प्रबल समर्थन किया। नेपाल में संकट के समय वे वहां पहुंची। तिब्बत की मुक्ति साधना का समर्थन किया। आंग सान सू की के नेतृत्व में म्यांमार के जनतांत्रिक संघर्षों का समर्थन किया। इंडो पाक सोल्जर इनिशिएटिव फॉर पीस इन इंडिया एंड पाकिस्तान की स्थापना की। अनेक देशों में महिला शांति दल का नेतृत्व किया। उनके योगदान के लिए उन्हें राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार व पद्मविभूषण सम्मान प्रदान किया गया। पाकिस्तान सरकार द्वारा उन्हें लोकप्रिय सरकारी सम्मान सितारा-ए-इम्तियाज से नवाजा गया। 1997 से 2007 तक वे राज्यसभा की सदस्या के रूप में दीदी ने महत्वूपर्ण भूमिका निभाई। देश के राष्ट्रपति पद के लिए भी उनका नाम चलाया गया, लेकिन पद व सत्ता का मोह उनमें दूर-दूर तक नहीं था। उन्होंने विनोबा भावे की जीवनी लिखकर साहित्य को अमूल्य देन दी। चीन की महिला यात्री पर आधारित उनका उपन्यास ‘चिंगलिंग’ साहित्यिक जगत में चर्चाओं में रहा। 1मई, 2008 को मृत्यु को दिल्ली में उनकी मृत्यु हो गई। आज भी उनके विचारों व कार्यों को आगे बढ़ाने वाले लोग हैं, स्मृति सभा में विभिन्न व्यक्तित्वों द्वारा रखे गए विचार इसके गवाह हैं। मृत्यु के बाद उनकी याद में पानीपत में निर्मला देशपांडे संस्थान की स्थापना की गई।
PUNJAB KESARI 10-5-2021

संगोष्ठी में होप (हाली ओपन इंस्टिट्यूट फ़ॉर पीस एंड एजुकेशन) की संयोजिका पूजा सैनी ने संस्थान में हो रही व्यापक गतिविधियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि 2009 में पानीपत में उद्योगों में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के स्कूल नहीं जाने वाले 8 बच्चों के साथ हाली स्कूल की स्थापना की गई थी। यहीं पर निर्मला देशपांडे संस्थान व पुस्तकालय चल रहा है।
पद्मश्री डॉ. एस.पी. वर्मा

गांधी ग्लोबल फैमिली के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद्मश्री डॉ. एसपी वर्मा ने कहा कि दीदी ने लोगों को जोडऩे में बहुत महत्वपूर्ण योगदान किया। आज भी पूरे देश व दुनिया में दीदी के अनुयायी मिलते हैं और उनसे प्रेरणा लेकर शांति व एकता के लिए काम करते हैं। आज दीदी निर्मला देश पांडे की पुण्यतिथि ऐसे समय में मनाई जा रही है, जबकि कोरोना महामारी अपना विकराल रूप ले चुकी है। देश संकट में है। आपदा से निकलने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है। उन्होंने दीदी से जुड़े अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि 1990 में जब आतंकवाद का दौर था, दीदी निर्मला देशपांडे जम्मू-कश्मीर पहुंची। पीडि़तों की मदद की। 1 लाख, दस हजार लोगों को राशन बांटा। कितने ही काम उन्होंने बिना रूपयों के शुरू किए। उन्होंने कहा कि लोगों की एकता और प्रतिबद्धता वह ताकत है, जिसे आगे लाने पर बड़ा बदलाव हो सकता है। दीदी की विचारधारा और दर्शन हमें विश्व शांति, एकता, भाईचारे का संदेश देता है।
सूर्य भूषाल, नेपाल

गांधी फैमिली के नेपाल चैप्टर के अध्यक्ष सूर्य भुषाल ने कहा कि दीदी निर्मला देशपांडे ने नेपाल में 1999 से 2001 के बीच काफी काम किया। नेपाल में शांति स्थापित करने के लिए माओवादियों से बात करने का प्रस्ताव रखा। नेपाल के माओवादी नेता प्रचंड के साथ जंगलों में जाकर बातचीत की। कांग्रेस के गिरीजा प्रसाद कोईराला से बात की। जिस दिन उनकी मृत्यु हुई, उस दिन पांच सांसदों के साथ उन्हें काठमांडु में आना था। दीदी निर्मला देशपांडे ने नेपाल और भारत के संबंधों को और अधिक मजबूत बनाने और नेपाल में लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता व शांति के प्रयास किए। नेपाल की समाजिक कार्यकर्ता पार्बती भंडारी ने दीदी देशपांडे के साथ अपने आत्मीय सम्बन्धों का भावपूर्ण ढंग़ चित्रण किया।
राष्ट्रीय सेवा परियोजना  के राष्ट्रीय संयोजक संजय राय ने कहा कि महिला होते हुए दीदी को अनेक प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ा। आज गांधीवादियों में भले ही कुछ मतभेद हों, लेकिन दीदी के नाम पर सभी एकजुट हैं। हरिजन सेवक संघ तमिलनाडु के अध्यक्ष पी मारुति व राजीव देशपांडे ने कहा कि दीदी स्वयं एक संस्था थी। गरीब, आदिवासियों व महिलाओं के जरिये उन्होंने भारत को देखने की नजर दी। दीदी ने माला के रूप में सभी को पिरोने की कोशिश की। दीदी के साथ बिताया समय गाईडिंग लाईट का काम करता है। 2007 में वे दीवाली के मौके पर जिस दिन उनके घर आई, उसी दिन पाकिस्तानी जम्मू कश्मीर में भूकंप आया। वे अंदर से फूट पड़ी। उनकी संवेदना हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत है।
कर्नाटक से युवा गांधीवादी तथा शिक्षाविद आबिदा बेगम ने कहा कि दीदी गांधी व विनोबा की शक्ति बनकर चली। वे आज की महिलाओं व लड़कियों की मार्गदर्शक हैं। उनसे प्रेरणा लेकर हमें कोविड-19 में पीडि़तों को बाहर निकालने के काम को आगे बढऩा चाहिए।
प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता व जयपुर (राजस्थान) की शान्तिकर्मी कविता श्रीवास्तव ने कहा कि दीदी शांति को समर्पित थी। इंडो-पाक पीस के लिए उनके कार्यों के कारण दोनों देशों के बड़े-बड़े नेता व आम जन उनका सम्मान करते थे। जनसंपर्क के लिए बाडमेर से जो ट्रेन पाकिस्तान जाती थी, उसे शुरू करवाने में दीदी का बड़ा योगदान था। उन्होंने दीदी के साथ पाकिस्तान जाने के अपने संस्मरण सुनाए, जिसमें वहां के बड़े नेताओं से लेकर आम लोगों तक ने किस तरह से उनका स्वागत किया था। उन्होंने कहा कि उनकी मृत्यु के बाद पाकिस्तान में लाहौर, कराची सहित पाकिस्तान के कईं शहरों में लोगों ने यात्राएं निकाली गई, जिसमें वहां के मंत्री भी शामिल हुए। दीदी के बिछुडऩे से वे बहुत नुकसान महसूस कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से संवाद होना चाहिए। बात होनी चाहिए। यह वक्त है दीदी के बारे में लिखने व उनके संस्मरण संजोने का है और भारत-पाक दोस्ती के लिए काम करने का है।
जम्मू से प्रिया वर्मा ने कहा कि दीदी जब जम्मू आई थी मैं आठ-दस साल की थी। पिता एसपी शर्मा ने उनके साथ काम किया। दीदी यहां आई तो उन्होंने मुझे अपने साथ-साथ रखा। वे मुझे बहुत स्नेह करती थी। हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई सर्व धर्म प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करती थी। वे दिल्ली में भी उनके साथ रही। दीदी के साथ बहुत लोगों से मिली। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। कश्मीर से तारिक भट्ट ने कहा कि दीदी को कश्मीर, कश्मीरियत व कश्मीरी से बेहद मोहब्बत थी।
हरिजन सेवक संघ पंजाब के अध्यक्ष तथा प्रसिद्ध शान्तिकर्मी डॉ. पवन कुमार थापर ने कहा कि पंजाब में आतंकवाद जब चरम सीमा पर था तब निर्मला देशपांडे अपने चंद साथियों  के साथ वहां आई और शांति एवं सद्भाव के लिए कार्य किया। आज जब हिंसा, द्वेष एवम घृणा बढ़ती जा रही है, ऐसे में शांति एवं सद्भाव के कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं की अत्यंत जरूरत है । दीदी के नारे गोली नहीं -बोली चाहिए ही पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्धों का आधार होना चाहिए।
हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष प्रो. शंकर कुमार सान्याल ने कहा कि राजनेता अपने भडक़ाऊ भाषणों के जरिये जाति, धर्म, भाषा व क्षेत्र की संकीर्णताओं को बढ़ा रहे हैं, लोगों को तोडऩे की कोशिश कर रहे हैं। हमें लोगों को जोडऩा है। आज युवाओं को नेतृत्व सौंप कर ही हम नए समाज का निर्माण कर सकते हैं। लेखक व शिक्षाविद अरुण कैहरबा ने कहा कि दीदी सदा ही प्रगतिशील ताकतों के समर्थन में थी। एक वैकल्पिक दुनिया मुमकिन है इसके लिए वे सदा प्रयत्नशील रही। गांधी विचार के युवा अध्येता विकास साल्यान ने कहा कि दीदी निर्मला देशपांडे की महान शख्सियत के पीछे महान विचार हैं। आज मानवता व विचार समाप्त होते जा रहे हैं। हमें विचारों के जरिये समाज बदलना है।
पद्मश्री धर्मपाल सैनी

संगोष्ठी के अध्यक्ष पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने कहा कि दीदी ने गांधी जी के विचारों को नई पीढ़ी में नए संदर्भों में  फैलाया। उनकी बहुत संवेदनशील सोच थी। दीदी जहां जाती थी, वहां बच्चों, महिलाओं, युवाओं व समाज के हर वर्ग के साथ जुड़ती थी। बच्चों व युवाओं को शांति के विचार से जोडऩे के लिए शैक्षणिक संस्थान शुरू किए जाने चाहिएं। सैनिक राकेश्वर सिंह की रिहाई पर उनका कहना था कि यह गांधी-विनोबा विचार के कारण ही सम्भव हो सका है।
संगोष्ठी के संयोजक सुरेन्द्रपाल सिंह ने कहा कि आजादी का आंदोलन एक फुलवारी की तरह था। गांधी जी माली की तरह थे। उन्होंने फूलों को सजाया-संवारा। वे फूल आज तक खुश्बू बिखेर रहे हैं। निर्मला देशपांडे द्वारा दुनिया भर में प्यार का संदेश देना आसान काम नहीं रहा होगा। आज भी शांति, सद्भाव के मार्ग में अनेक प्रकार की बाधाएं हैं। नफरत का माहौल व नफरत की राजनीति के दौर में निर्मला देशपांड की परंपरा से जुड़े होने के कारण हमारी महत्वपूर्ण भूमिका है। सिर जोड़ कर आगे बढ़ें और सद्भाव व अहिंसा पर आधारित परंपरा को आगे बढ़ाएं।
संगोष्ठी में मणिपुर के युवा सामाजिक कार्यकर्ता ऋषि शर्मा तथा जूनागढ़ (गुजरात) के चतुर्भुज राजपारा, चंडीगढ़ से मनोहर लाल शर्मा, वयोवृद्ध गांधीवादी अमरनाथ भाई, इप्सी के संयोजक जन. तेज कौल, पंजाब की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मालती थापर, दिव्या भुषाल (सिडनी), फरहद फाल्सी (कश्मीर),  गांधी ग्लोबल फैमिली के कोषाध्यक्ष अशोक कपूर, अखिल भारत रचनात्मक समाज के राष्ट्रीय महासचिव बीजी विजय राव, फि़ल्म सेंसर बोर्ड की पूर्व सदस्य अरुणा मुकीम, सौलीफय के निदेशक सिद्धार्थ मस्करी व स्मृति राज, देहरादून से प्रवक्ता श्री विजय बहुगुणा, माता सीता रानी सेवा संस्था, पानीपत की अध्यक्ष कृष्ण कांता, सचिव प्रिया लूथरा व परामर्शदात्री सुनीता आनंद उपस्थित रहे। राममोहन राय ने बताया कि इंडोनेशिया में बाली से श्रीइंद्राउदयाना बांग्लादेश में नोआखाली स्थित गांधी आश्रम ट्रस्ट के निदेशक नब कुमार राहा, गांधी फैमिली बांग्लादेश की राष्ट्रीय संयोजक तन्द्रा बरुआ, अमेरिका में डॉ. दिव्या आर नायर व लाहौर पाकिस्तान से जुबैदा नोमानी ने कार्यक्रम की सफलता के लिए शुभकामनाएं दी।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार व लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145 

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