क्रांतिकारी सूफी संत कवि बू अली शाह कलंदर
ऑनलाइन उर्स में भारत-पाकिस्तान के लोगों में एकता का सुंदर नजारा
अरुण कुमार कैहरबा![]() |
PUNJAB KESARI / NAVODAYA TIMES 3-5-2021 |
जाति, धर्म, सम्प्रदाय, बोली-भाषा, क्षेत्र, रंग व लिंग आदि के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिशें होती आई हैं। लेकिन पीरों, फकीरों और पैगंबरों ने हमेशा मानव एकता का संदेश दिया है। सूफी कवि एवं संत हजरत बू अली शाह कलंदर के उर्स के उपलक्ष्य में नित्यनूतन वार्ता द्वारा आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में ऐसा ही नजारा उस समय देखने को मिला, जब भारत व पाकिस्तान के लोगों ने एक साथ मिलकर कलंदर साहब को खिराजे अकीदत पेश की। कार्यक्रम में वीडियो के प्रसारण से कलंदर को समर्पित कव्वालियां सुनाई गई। पाकिस्तान के श्रद्धालुओं ने पानीपत में सूफी संत बू अली शाह कलंदर की दरगाह के दर्शन किए। कलंदर साहब के जीवन-दर्शन पर आयोजित वेबीनार में लाहौर में रह रहे हजरत बू अली शाह कलंदर के सज्जादानशीं जनाब आबिद आरिफ नोमानी ने मुख्य अतिथि और भारत के लोक जीवन के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी ने मुख्य वक्ता के रूप में शिरकत की। वेबीनार का संयोजन नित्यनूतन वार्ता के प्रभारी व सामाजिक कार्यकर्ता राममोहन राय, प्रसिद्ध इतिहासकार सुरेन्द्र पाल सिंह व पाकिस्तान की संस्कृतिकर्मी असमारा नोमानी ने संयुक्त रूप से किया। विकास साल्यान ने तकनीकी संयोजन किया।
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HARYANA PRADEEP 27-4-2021 |

उन्होंने कहा कि हिन्दी में कितने सूफी कवि हुए हैं। प्रेमाश्रयी मार्ग में सूफी धारा बहुत बड़ी है। सूफी कवियों में कुतबन, मंझन, शेख नबी सहित अनेक नाम हैं। हिन्दी साहित्य की सूफी काव्य-धारा को समझने के लिए कलंदर के लिखे को पढऩा जरूरी लगता है। हालांकि उनका साहित्य पर्शियन में है। आदमी मिले तो उनसे एक नई धारा निकलती है। कबीर के कथन-जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी की तरह ही कलंदर की अभिव्यक्ति है। उन्होंने बताया कि अमीर खुसरो अलाउदीन खिलजी की सौगात को लेकर बू अली शाह कलंदर के पास पानीपत आए थे।
जनाब आबिद आरिफ नोमानी ने कहा कि हजरत बू अली शाह कलंदर ने मोहब्बत का संदेश दिया। भाईचारा ही असल है। इन्सानियत की बात सबसे बुनियादी है। हमें इसे सीखना चाहिए। हमें आपस में बंटना नहीं है, जुडऩा है। झगड़ा करने का कोई फायदा नहीं है। भारत-पाकिस्तान के लोगों को आने-जाने के मौके मिलने चाहिएं ताकि कलंदर साहब जैसे सूफी संतों के संदेश को पूरी दुनिया में फैलाया जा सके। हम एक दूसरे के यहां आ पाएं, जा पाएं। एक दूसरे की इज्जत करें। कोरोना से आज खतरा है। हमें कोरोना से जान छुड़ाने के लिए तौबा करनी चाहिए। हमारा परवरदिगार हमसे नाराज है।
राममोहन राय ने कहा कि हजरत बू अली शाह कलंदर की पूरी दुनिया में ख्याति है। पानीपत के लोगों को पानीपत की लड़ाईयों के लिए इज्जत नहीं मिलती है बल्कि हजरत बू अली शाह कलंदर का शहर होने के कारण इज्जत मिलती है। प्रसिद्ध गांधीवादी निर्मला देशपांडे कलंदर के भाईचारे व मानवता के संदेश से खासी प्रभावित थीं। उन्होंने किसी शायर के शेर को याद करते हुए कहा कि ‘सियासत को लहू पीने की लत है। वरना यहां सब खैरियत है।’ उन्होंने कहा कि जनता की भावनाएं भाईचारे की हैं, ये भावनाएं मजबूत होनी चाहिएं। उन्होंने 1997 में पाकिस्तान से पाकिस्तान में आए दल के सदस्यों के साथ मिलन के संस्मरणों को याद किया। उस समय असमारा ने पानीपत के मशहूर शायर शुगन चंद रोशन की लिखी नज्म गाई थी-‘ए बादे सबा ए बादे सबा, पैगाम हमारा उनको सुना।’

वेबीनार में पाकिस्तान से जुड़े विचारक साजिद नोमानी ने कहा कि मजहब रीतियों तक सिकुड़ कर रह गया है। माथा टेकने पर काम नहीं चलेगा। सूफी बड़े बुद्धिजीवी थे। उन्होंने जीवन को देखा और समझा। उसकी विसंगतियों पर चोट की। अपनी शायरी द्वारा अपनी भावनाएं प्रकट की। वे रूहानियत के सिंबल हैं। उन्होंने बताया कि बू अली शाह कलंदर का असली नाम शरफूद्दीन था। उन्होंने लिखा है-
शरफा चूड़ी कांच की, दमड़ी-दमड़ी बेच।
जब लग लागे पियू के, लाख टके की एक।।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार व लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
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