जन्मदिन विशेष
सुनील दत्त: भारतीय सिनेमा व राजनीति की बहुआयामी शख्सियत
अरुण कुमार कैहरबा
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सुनील दत्त का जन्म अविभाजित पंजाब के झेलम जिला के गांव खुर्द में 6 जून, 1929 को हुआ। उनका बचपन का नाम बलराज था और प्यार से उन्हें बल्लू कह कर पुकारा करते थे। बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया था। जब वे 18 साल की उम्र के थे, तब देश को आजादी मिली। लेकिन आजादी के साथ-साथ करोड़ों लोगों के लिए बड़ी आपदा भी आई। यह आपदा थी-देश विभाजन और विस्थापन की आपदा। उनके पिता के दोस्त याकूब ने उनके परिवार को सुरक्षा प्रदान की और परिवार मौजूदा पाकिस्तान से आज के हरियाणा के जिला यमुनानगर में यमुना नदी के साथ लगते गांव मंडोली में आ बसा।
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RASHTRIYA HINDI MAIL 6-6-2020 |
1957 में आई फिल्म-मदर इंडिया ने सुनील दत्त के फिल्मी करियर की एक अद्भुत फिल्म है, जिसमें उन्होंने नरगिस के बेटे की भूमिका में अभिनय किया। फिल्मी करियर के साथ-साथ उनके जीवन में भी यह फिल्म नया मोड़ लेकर आई। रील लाइफ तैयार करते हुए रीयल लाइफ में यह हुआ कि फिल्म के सेट पर आग लग गई। आग में फंसी नरगिस को बचाने के लिए सुनील दत्त ने अपनी जान जोखिम में डाल दी। हादसे में वे बुरी तरह से झुलस गए, लेकिन नरगिस को बचा लिया। इस दौरान नरगिस ने उनकी देखभाल की। धीरे-धीरे यह संबंध प्रेम से होते हुए विवाह तक जा पहुंचा। समाज में फैली साम्प्रदायिकता व संकीर्णताओं के बीच में अन्तर-धार्मिक विवाह की यह प्रेरणादायी मिसाल है।
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JAMMU PARIVARTAN 6-6-2020 |
फिल्मी करियर में सुनील दत्त ने अनेक सफल फिल्में दर्ज करवाई। उन्होंने पड़ोसन, यादें, हमराज, मिलन, रेशमा और शेरा, एक ही रास्ता, वक्त, मेरा साया, मुझे, जीने दो, साधना, सुजाता व खानदान सहित अनेक सफल फिल्मों में काम किया। उन्होंने फिल्मों का निर्देशन व निर्माण करके इंडस्ट्री में अपनी खास पहचान बनाई।
फिल्म और गलैमर की दुनिया से उन्होंने राजनीति की ओर रूख किया। लोकसभा की सीट के लिए 1984 में कांग्रेस की तरफ से उन्होंने मशहूर वकील राम जेठमलानी के विरूद्ध पहला चुनाव लड़ा। चुनाव प्रचार में उन्होंने साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश की और सभी को चौंकाते हुए जीत दर्ज की। सांसद के रूप में उन्होंने झुग्गीवासियों का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। 1991 में बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद जब मुंबई में दंगे भडक़ गए तो उन्होंने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। शांति व सामाजिक सद्भाव के लिए उनके द्वारा निकाली गई लंबी पदयात्राएं उनकी राजनीति की मिसाल हैं। पंजाब में उग्रवाद की समस्या के समाधान के लिए 1987 में बंबई से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर तक दो हजार कि.मी. की यात्रा, 1988 में जापान के नागासाकी से हिरोशिमा तक परमाणु हथियारों को नष्ट करने के लिए पांच सौ कि.मी. की पैदल यात्रा, 1990 में भागलपुर दंगे के समय वहां का दौरा करके उन्होंने लोगों को धार्मिक दंगों व युद्धों में उलझने की बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करने की अपील की। अपने इन प्रयासों के जरिये वे दरअसल गांधी-नेहरू की विरासत को ही आगे बढ़ा रहे थे। 1981 में कैंसर से नरगिस की मृत्यु के बाद उन्होंने नरगिस दत्त मेमोरियल फाउंडेशन की शुरूआत की। फाउंडेशन से दुनिया के विभिन्न देशों से दान जुटाया और उसे कैंसर के इलाज के लिए अस्पतालों को दिया। उन्होंने कैंसर पर ‘दर्द का रिश्ता’ फिल्म बनाई। उसकी कमाई को टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल को दान किया।
पांच बार सांसद रहने के बाद आखिर 2004 में उन्हें खेल और युवा मामलों का मंत्री बनाया गया। इसके एक साल बाद ही 25 मई, 2005 को उनकी मृत्यु हो गई। बेटे संजय दत्त के बंबई बम धमाकों के अभियुक्त बनने से उनके राजनैतिक सिद्धांतों को चुनौती मिली। इसके बावजूद आज के राजनैतिक परिदृश्य में राजनीति में कदम-कदम पर अपने स्वार्थों के लिए पाले बदलने वालों और मूल्यों को तिलांजलि देने वालों के लिए सुनील दत्त की राजनीति प्रेरणा का स्रोत है।
सुनील दत्त को फिल्मों के लिए दो बार फिल्मफेयर अवार्ड मिला। दादा साहब पुरस्कार भी उन्हें प्राप्त हुआ। 1968 में उन्हें पद्मश्री मिला। उन्हें अंतरराष्ट्रीय शांति और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खान अब्दुल गफ्फ़़ार ख़ान, राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और हिंसा और आतंकवाद के ख़िलाफ़ लडऩे के लिए राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना अवॉर्ड जैसे पुरस्कारों से नवाजा गया।
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NAVIN KADAM 6-6-2020 |
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