गीत- बरसात
झम-झम बरस रही बरसात
चल तू पकड़े मेरा हाथ।
झुलस रही थी प्यासी धरती
मांग रही थी पानी खेती
ऐसे में जब घिर आए बदरा
चमक उठी रेती व परती।
लाएंगे बदलाव नया हम
मिले जो तेरा साथ।
बच्चे-बूढ़े थे अलसाए
गर्मी से मन थे घबराए
बाहर तो ऐसा लगता है
तन-मन सारा ज्यों जल जाए।
बारिश की बूंदों ने दे दी
सारी तपिश को मात
अब वर्षा से क्या है डरना
बाहर निकलें बनकर झरना
मिट्टी में कीचड़ बन खेलो
जीवन से जो दुख है हरना।
आओ बच्चे सब बन जाएं
ये रिमझिम है सौगात।
-अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान,इन्द्री, जिला-करनाल, हरियाणामो.नं.-9466220145
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