Friday, April 23, 2021

Panchayati Raj gives the message of public participation and equality

 राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस  पर विशेष

जनभागीदारी और बराबरी का संदेश देता पंचायती राज

अरुण कुमार कैहरबा

शुरू से आम जनता को अनपढ़ और गंवार मान कर उन पर शासन करने की बातें की जाती रही हैं। राजतांत्रिक, जमींदारी और औपनिवेशिक राज व्यवस्थाओं में जनता का शोषण करने की गरज से तानाशाही ढ़ंग से यह घोषित किया गया कि आम जनता शासन करने के योग्य है। आम जनता की क्षमता का अवमूल्यन करने के पीछे वर्चस्वशाली लोगों का डर और साजिश दोनों ही छिपे हैं। वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था भी लोगों को बांटने और आम लोगों को दबाए रखने के लिए इजाद की गई और प्रयोग की गई। इस व्यवस्था में जन्म के आधार  पर वर्ण व जाति तय हो जाती है और उसे नियम के अनुसार ही अपनी जाति व वर्ण के मुताबिक ही अपना काम-धंधा तय करना होता है। शिक्षा, सत्ता, धन, युद्ध कौशल आदि शक्ति के साधनों से शूद्र वर्ण को वंचित रखा गया। पितृसत्ता ने सभी वर्णों व जातियों में महिलाओं को शक्ति से समान रूप से वंचित रखा। हालांकि प्राचीन भारत में कुछ स्थानों पर समृद्ध स्व-शासन व ग्राम शासन प्रणाली का भी जिक्र है। आम लोगों की इन्सानियत व क्षमता की कद्र लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के द्वारा की जाती है। लोकतंत्र में बिना किसी जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा-बोली और लिंग भेद के सभी लोगों को समान माना जाता है। लोकतांत्रिक भावना के अनुकूल भारत में पंचायती राज व्यवस्था की दिशा में आगे बढऩे का एक क्रम रहा है। इसमें संविधान का 73वां संशोधन एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस संविधान संशोधन अधिनियम को एक अधिसूचना के द्वारा 24 अप्रैल, 1993 को लागू किया गया। इसी की याद में देश में प्रति वर्ष पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। संविधान संशोधन की मूल भावना के अनुरूप हम कितने सफल हुए हैं? इस सवाल का हल खोजने की जिम्मेदारी तो देश के हर नागरिक के सिर है।


पंचायती राज व्यवस्था की दिशा में स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गाँधी ने ग्राम स्वराज की अवधारणा प्रस्तुत की थी। आम जनता के सशक्तिकरण के लिए विकास की प्रक्रिया में सबकी हिस्सेदारी होनी चाहिए। इसके लिए आजाद भारत में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के बाद 1959 में पंचायती राज की शुरूआत हुई। पंचायती राज का उद्देश्य था-लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण और नियोजित कार्यक्रमों में स्थानीय लोगों को शामिल करना। बलवंत राय मेहता समिति ने पंचायती राज की त्रि-स्तरीय प्रणाली की सिफारिश की। पंचायती राज संस्थाओं के कार्य की समीक्षा करने के लिए 1977 में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया।  इस समिति ने द्वि-स्तरीय पंचायती राज प्रणाली प्रस्तुत की। 1985 में जी.वी. के. राव समिति बनाई गई। 1986 में बनाई गई एल.एम. सिंघवी समिति ने ग्राम सभा को महत्व दिया। ग्राम सभा को लोकतंत्र के केन्द्र बिंदु के रूप में देखा गया। लेकिन पूरे देश में पंचायती राज का एक सशक्त स्वरूप नहीं था। पूरे देश में पंचायती राज को एक समान और पूरी शिद्धत के साथ लागू करने की दिशा में 73वां संविधान संशोधन महत्वपूर्ण है। इस अधिनियम ने लोकतंत्र और सत्ता के हस्तांतरण को पंचायत के जरिये भारतीय संविधान का एक स्थाई भाग बना दिया। शहरों की तुलना में विकास के मामले में पिछड़े गाँवों को आगे लाने की दिशा में यह एक अहम कदम था।
इस संविधान संशोधन की सबसे मुख्य विशेषता ग्राम सभा है। स्थानीय जरूरतों के आधार पर विकास कार्य शुरू करने के लिए ग्राम सभा को सक्रिय संस्थान के रूप में काम करने का दायित्व सौंपा गया। गाँव का प्रत्येक नागरिक ग्राम सभा का हिस्सा है। ग्राम सभा के जरिये व्यवस्था की शक्ति लोकतंत्र की भावना के अनुकूल आम जनता के हाथ में आ गई। संशोधन की दूसरी विशेषता पंचायती राज प्रणाली का त्रि-स्तरीय ढ़ांचा है। गांव में पंचायत, जिले में जिला परिषद और मध्य में पंचायत समिति। समाज के सबसे दबे-कुचले लोगों और महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था इस संविधान संशोधन ने की। एक तिहाई सीटें महिलाओं और अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए आरक्षित की गई। पंचायतों के लिए सीधे चुनाव की व्यवस्था की गई। गाँव में पंच, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य का चुनाव लोगों के सीधे मताधिकार के आधार पर होता है। पंचायत समिति और जिला परिषद के जनता द्वारा चुने गए सदस्य अपने अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। वर्ष 2015 में हरियाणा सरकार ने हरियाणा पंचायती राज अधिनियम में संशोधन करके पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों के लिए शैक्षिक योग्यता निर्धारित कर दी। इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में भी चुनौती दी गई। लेकिन अंतत: सरकार के निर्णय को ही स्वीकृति मिली। आज हरियाणा में पढ़े-लिखे पंच, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद के सदस्य गांवों की सत्ता पर काबिज हैं और पढ़े-लिखे लोगों को राजनीति में शामिल होने का हौंसला मिला है। आज की बात करें तो हरियाणा में पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल पूरा हो चुका है, लेकिन चुनाव नहीं करवाए गए हैं। कोरोना महामारी के बीच में विभिन्न राज्यों में चुनाव सम्पन्न करवाए गए हैं, लेकिन पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव नहीं करवाए गए। जबकि ये आसानी से करवाए जा सकते थे। पूर्व में चुने के गए प्रतिनिधियों से आर्थिक शक्तियां ले ली गई हैं। एक तरफ कोरोना महामारी फिर से अपना जोर मार रही है, दूसरी तरफ पंचायती संस्थाएं मुखिया विहीन हैं। राज्य सरकारों द्वारा प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह से पंचायती राज संस्थाओं पर वर्चस्व स्थापित किए रखना एक बड़ी चुनौती है।
आम लोगों की भागीदारी के कानूनी और सांवैधानिक प्रावधान के बावजूद आज यदि पंचायती राज संस्थाओं की स्थिति की समीक्षा की जाए, तो काफी निराशाजनक स्थिति उभर कर आती है। सबसे पहले तो चुनावों में निर्भयता और निष्पक्षता से आम आदमी आज भी हिस्सा ले पाने में सक्षम नहीं हुआ है। उम्मीदवारों द्वारा सत्तासीन होने के लिए लोगों को प्रलोभन दिए जाते हैं। गाँव स्तर पर वैचारिक प्रक्रियाएं लगातार बाधित हो रही हैं। अधिकतर स्थानों पर ग्राम सभा एक कागजी संगठन बना हुआ है। ग्राम उदय-भारत उदय अभियान के तहत गांवों में ग्राम सभाओं के आयोजन किए गए हैं, जिसमें बहुत प्रयासों के बावजूद महिलाओं, दलितों और गरीबों की उत्साहजनक हिस्सेदारी नहीं हो पा रही है। गांव की चौधर संभालने वाली महिलाओं की बजाय उनके पति उच्च स्तरीय बैठकों में हिस्सा लेते हुए मिल जाते हैं। पंचायती राज संस्थाओं के बेहतर क्रियान्वयन में हमारे समाज की जाति-व्यवस्था और पितृसत्तात्मक सोच आज भी आड़े आती है। लंबे समय से राजनीति पर काबिज रहे साधन-सम्पन्न लोग आज भी आम लोगों की पंचायतों में हिस्सेदारी का स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। पंचायतों में बैठे पग्गड़धारी लोग महिलाओं, युवाओं और समाज के कमजोर तबकों के पंचायतों में शामिल होने को अस्पृश्य मानते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि हमने लोकतंत्र को सही मायने में सफल बनाने के लिए दो कदम भी आगे नहीं बढ़ाए हैं। कानूनी प्रावधान से आम लोगों में अपने अधिकार हासिल करने की लालसा बढ़ी है और अपने समाज की बेहतरी के लिए हस्तक्षेप करने की इच्छा भी बलवती हो रही है।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार, लेखक
घर का पता-वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान,
इन्द्री, जि़ला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145

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