जनसंख्या दिवस विशेष
जनसंख्या नियंत्रण के लिए अंतिम जन केन्द्रित हो विकास का मॉडल
अरुण कुमार कैहरबा
बढ़ती जनसंख्या को लेकर देश और दुनिया में अनेक प्रकार से चिंताएं जताई जाती हैं। भारत आज जनसंख्या के मामले में विश्व भर में दूसरे नंबर पर है। इसके बढऩे का सिलसिला यूंही चलता रहा तो निश्चय ही कुछ सालों में भारत जनसंख्या के मामले में नंबर-1 स्थान हासिल कर लेगा। कायदे से तो जनता किसी भी देश की ताकत होनी चाहिए। मानव संसाधन की अवधारणा भी इसी बात पर बल देती है कि मुनष्य किसी देश पर बोझ नहीं हैं, बल्कि उसे संसाधन की तरह देखा जाना चाहिए। बच्चों व युवाओं को कुशल संसाधन के रूप में विकसित करने के लिए देश में मानव संसाधन विकास मंत्रालय बनाया गया है। इसके बावजूद जनसंख्या को लेकर जागरूकता के कार्य कर रहे लोगों में एकांगी नजरिये से जनसंख्या वृद्धि की बजाय जनसंख्या पर चिंता जताई जाती है, जोकि कईं बार बहुत अखरता है।
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DAINIK HARIBHOOMI 11JULY, 2020 |
आज जब हम कोरोना वायरस के हर रोज बढ़ते आंकड़ों के बीच जनसंख्या दिवस मना रहे हैं, तो सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि जनसंख्या को कैसे देखा जाए। जनसंख्या का मुद्दा विकास के साथ जुड़ा हुआ है। जनसंख्या बढऩे के कारणों की तह में जाएं तो गरीबी, पिछड़ापन, अशिक्षा व असुरक्षा आदि इसके मुख्य कारक मिलेंगे। समाज में जिन भी लोगों को पढऩे का मौका मिल गया, उनमें परिवार का आकार छोटा दिखाई देता है। जो आबादियां शिक्षा व विकास में पिछड़ गई, उनकी आबादी आज भी ज्यादा है।
हमारे आस-पास ही ऐसी बहुत सी सुविधाहीन बस्तियां होंगी। उनके घरों में झांका जाए तो हमें काफी बच्चे दिखाई देंगे। ज्यादा बच्चों वाले कुछ परिवारों का ही अध्ययन कर लें तो हमें स्पष्ट हो जाएगा। गरीबी और असुरक्षा को मिटा दें और शिक्षा के अवसर दे दें तो उस परिवार में जनसंख्या नियंत्रण की समझ अपने आप आ जाएगी। किसी ने सही ही कहा है कि विकास सबसे बड़ा गर्भ निरोधक है।
जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए सबसे पहले विकास के मॉडल पर बात करनी पड़ेगी। आज देश में जो विकास का मॉडल अपनाया जा रहा है, वह गैर-बराबरी को कम करने की बजाय बढ़ाने वाला है। आज देश की पूंजी का बड़ा हिस्सा कुछ लोगों की जेबों व तिजोरियों में सिमट गया है। गरीब लोग और अधिक गरीब होते जा रहे हैं। कोरोना महामारी ने ही देश के लाखों लोगों को बेरोजगार कर दिया है। असुरक्षा के माहौल में उन्हें अस्थायी रूप से बनाए गए ठिकाने छोड़ कर भागना पड़ा। बेरोजगार हुए लोगों को रोजगार देने के लिए बनाई गई योजना के तहत श्रम कानूनों में बदलाव किए गए। यह बदलाव मजदूरों को ध्यान में रखकर नहीं किए गए, उद्योगपतियों को ध्यान में रखकर किए गए। यह है विकास की अधोगति। सरकारों को गरीब लोगों की भलाई दिखाई नहीं दे रही है। सभी लोगों को रहने, खान-पान, स्वास्थ्य व शिक्षा की सुविधाएं और मान-सम्मान का जीवन मिले, इसकी कोशिशें होती हुई दिखाई नहीं दे रही हैं। लोगों को साम्प्रदायिक आधार पर बांटने के लिए ऐसी व्याख्याएं प्रचारित की जाती हैं, जिनमें जनसंख्या वृद्धि का ठीकरा अल्पसंख्यकों व गरीब लोगों पर फोड़ दिया जाता है। इन व्याख्याओं का परिणाम यह होता है कि जन कल्याण की योजनाओं के लिए जिम्मेदार सरकारी ताना-बाना बच निकलता है।
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RASHTRIYA HINDI MAIL 11JULY, 2020 |
ऐसा नहीं है कि समाज में जनसंख्या वृद्धि के अन्य कारण नहीं हैं। समाज में लैंगिक भेदभाव भी जनसंख्या बढऩे का महत्वपूर्ण कारण है। लड़कियों की प्रतिभा के अनेक उदाहरणों के बावजूद आज भी हमारे समाज में लड़कियों को बोझ माना जाता है। पुत्र लालसा के वशीभूत होकर परिवार में लड़कियां पैदा होती जाती हैं या फिर उन्हें गर्भ में ही मौत के घाट उतार दिया जाता है। लड़कियों को बोझ मानने की सोच के कारण भी लड़कियों का बाल विवाह कर दिया जाता है। गैर-कानूनी होने के बावजूद बाल विवाह भी जनसंख्या बढ़ौतरी का कारण बन जाता है। नन्हीं उम्र में जब बच्चों को पढऩा और भावी जीवन को समझना होता है, परिवार की चक्की में वे ही बच्चों के मां-बाप बन जाते हैं। विवाह से पूर्व युवाओं को आगामी जीवन लिए तैयार करना या शिक्षित करना समाज की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
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GHATATI GHATNA 11JULY, 2020 |
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा 1989 में विश्व स्तर पर जनसंख्या दिवस मनाए जाने की शुरूआत हुई थी। 11 जुलाई, 1987 वह दिन माना जाता है जबकि दुनिया की आबादी पांच अरब होने का पता चला था। उसी वर्ष पहली बार जनसंख्या दिवस मनाया गया। इस वर्ष कोरोना महामारी के दृष्टिगत जनसंख्या दिवस का मुख्य विषय महिलाओं व लड़कियों के स्वास्थ्य व अधिकारों की रक्षा करना निर्धारित किया गया है। कोरोना व लॉकडाउन के चलते घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है, जिससे उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। जनता के सभी वर्गों को उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के अवसर मिलें, यही जनसंख्या शिक्षा का सार है। इसके लिए विकास के मॉडल को अंतिम जन केन्द्रित करना होगा। जन-जन में जनसंख्या शिक्षा फैलाने के अलावा जनसंख्या दिवस का दिन सरकारों पर ऐसी नीतियां बनाने के लिए दबाव बनाने का भी है, जिससे हाशिये के लोगों को विकास का लाभ मिल सके।
हमारे देश में जनसंख्या संबंधी आंकड़े जुटाने के लिए दस साल बाद जनगणना की जाती है। लॉकडाउन से पहले ही देश में जनगणना-21 की तैयारियां शुरू हो चुकी थी। गांव स्तर पर आंकड़े जुटाने के लिए प्रगणकों व पर्यवेक्षकों की ड्यटी भी लगा दी गई थी, लेकिन लॉकडाउन के विभिन्न चरणों व अनलॉक के दौरान पूरी दुनिया का ध्यान कोरोना पर केन्द्रित हो गया है, जिससे जनगणना का कार्य बाधित हो गया है। ऐसे में कोरोना महामारी के जाल से निकलने पर ही जनगणना का कार्य शुरू हो पाएगा।
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JAMMU PARIVARTAN 11JULY, 2020 |
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