Thursday, July 16, 2020

एक संस्मरण

ईनाम

HARYANA PRADEEP 18-07-2020
कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिनका मर्म कुछ समय बीतने पर समझ आता है। बात उन दिनों की है, जब मैं दयाल सिंह कॉलेज करनाल में कला स्नातक का विद्यार्थी था। मैं कक्षा में आगे ही बैठा करता था। राजनीति विज्ञान की हमारी कक्षा उत्साह व विद्यार्थियों की भागीदारी से भरी रहती थी। कक्षा में राजनीति विज्ञान के हमारे अध्यापक डॉ. कुशल पाल जी आते तो हम उनके विविधतापूर्ण प्रश्रों का जवाब देने के लिए कमर कस कर बैठ जाते। कईं बार अध्यापक द्वारा यह भी घोषणा की जाती कि प्रश्र का जवाब देने वाले विद्यार्थी को ईनाम मिलेगा। उनके प्रश्र पूछे जाते ही अक्सर मैं हाथ खड़ा कर लेता और उनके सवाल का जवाब देता। कक्षा से जाते हुए वे मेरे गाल पर एक चपत लगा जाते। उनके सवालों का सही जवाब देने के कारण मैं उनके पुरस्कार का इंतजार करता। लेकिन काफी लंबे समय तक कोई ईनाम नहीं मिलने निराशा भी होती। उनके द्वारा गालों पर दी गई स्नेह भरी चपत को आज जब भी याद करता हूँ तो आंखें नम हो जाती हैं। आखिर यही तो था ईनाम। यह ईनाम उन सभी पुरस्कारों व स्मृति चिह्नों से ज्यादा प्यारा लगता है, जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता। 
अरुण कुमार कैहरबा
मो.नं.-9466220145

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