एक संस्मरण
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अरुण कुमार कैहरबा |
आज आपको अपनी बारहवीं की परीक्षाओं की बात सुनाता हूँ। कस्बा इन्द्री में मेरा स्कूल मेरे गांव कैहरबा से करीब छह किलोमीटर की दूरी पर था। पश्चिमी यमुना नहर के साथ की पटरी से मैं साइकिल से अपने स्कूल आया-जाया करता था। बोर्ड की परीक्षाओं से पहले कुछ दिन छुट्टियाँ थीं और मैं पढ़ाई में लगा था। परीक्षा के दिन अपनी साइकिल उठाई और चल दिया मेरे स्कूल में ही बने परीक्षा केन्द्र की ओर। साइकिल पुरानी थी। कईं दिन तक उस पर ध्यान भी नहीं दिया गया था। रास्ते के बीचों-बीच साइकिल की चैन उतर गई। पेपर में समय पर उपस्थित होने की चिंता और ऊपर से अडिय़ल रूख अपनाए साइकिल की चैन। ज्यों-ज्यों साइकिल की चैन चढ़ाने की कोशिश करता, वह और उलझ जाती। एक बार चैन चढ़ी भी लेकिन तुरंत फिर उतर गई। रास्ते से आते-जाते लोग मुझे देख रहे थे और कोई मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ा रहा था। एक बार तो मैंने तय किया कि साइकिल को यहीं छोड़ कर स्कूल की तरफ भाग जाऊं। लेकिन दौड़ कर भी स्कूल तक समय से पहुंचना संभव नहीं था। काफी मशक्कत के बाद चैन चढ़ी और स्कूल पहुंचा। पेपर शुरू हो गया था। मेरी देरी के कारण मेरे अध्यापक श्री साधु राम जी भी परेशान थे। मेरे पहुंचने पर उन्होंने मुझे डांटा भी कि परीक्षा में तो समय पर आना चाहिए। लेकिन उन्होंने मेरी स्थिति को जल्द ही भांप लिया। मेरी हिम्मत बंधाई और मुझे परीक्षा में बिठाया।

HARYANA PRADEEP 25-07-2020
हिन्दी प्राध्यापक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
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