Wednesday, July 15, 2020

Private schools face cruelty in corona epidemic


शिक्षा-विमर्श

कोरोना महामारी में निजी स्कूलों का क्रूरतम चेहरा

अरुण कुमार कैहरबा


दोस्त की दोस्ती की परीक्षा मुसीबत में होती है। जो मुसीबत में काम आता है, वही अपना होता है। इसी तरह किसी व्यवस्था के कारगर व उपयोगी होने का पता लगाने का सबसे बेहतर समय संकटकाल होता है। इस संकट के दौर में निजी स्कूलों की सेवाओं का मूल्यांकन करें तो निराशा ही हाथ लगती है। विभिन्न प्रकार के अव्वल दर्जे पांचसितारा स्कूलों से लेकर ग्रामीण क्षेत्र के चलताऊ माने जाने वाले अधिकतर निजी स्कूलों के कार्य लोगों के जले पर नमक छिडऩे के जैसे हैं। सामान्य दिनों में बच्चों की अच्छी शिक्षा के नाम पर लोगों की आमदनी का बड़ा हिस्सा झटकने वाले इन स्कूलों को जहां अभिभावकों की खराब हुई आर्थिक हालत के प्रति संवेदनशील होना चाहिए था, वहीं अब वे अधिक क्रूर दिखाई दे रहे हैं। निजी स्कूलों की तरफ से लगातार फीस वसूली के फरमान जारी हो रहे हैं। ऐसे में अभिभावक उन स्कूलों से तौबा कर रहे हैं और अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला करवा रहे हैं। एक तरफ तो बच्चों व अभिभावकों के प्रति निजी स्कूलों की संवेदनशून्यता दिखाई दे रही है, दूसरी तरफ अपने अध्यापकों पर भी वे जुल्म ढ़ाने में लगे हुए हैं।
HIMACHAL DASTAK 16 JULY, 2020

महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाओं के प्रति सरकारी उदासीनता और निजीकरण व उदारीकरण को बढ़ावा देने की सरकारी नीति के कारण हर क्षेत्र में ही निजीकरण बढ़ता गया है। स्वतंत्रता आंदोलन में जिन क्षेत्रों के लिए बड़े अरमान संजोये गए थे, शिक्षा भी उन्हीं में से एक है। बिना किसी भेदभाव के सबको अच्छी शिक्षा के प्रति हमारा संविधान भी संकल्प करता है। लेकिन सरकारों ने अपने स्वार्थ साधने और चुनावों के लिए निवेश करने वाले पूंजीपतियों की जेबें भरने के लिए उन संकल्पों को कूड़ेदान में डाल दिया है। यही कारण है कि शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र लगातार बढ़ता गया है। आज कुल बच्चों का बड़ा हिस्सा निजी स्कूलों में जाता है। अभिभावक भी इसके लिए ललचाते हैं। हालांकि निजी क्षेत्र का शिक्षा से अधिक पैसे कमाने पर ज्यादा जोर है। बड़े-बड़े स्कूल किताबें, वर्दी की पैंट, शर्ट, बैल्ट, बैज, बैग ऊंची कमाई के साथ बेच रहे हैं। आने-जाने के लिए बसें लगाकर उनमें मोटी कमाई कर रहे हैं। शिक्षा की बात आती है तो अभिभावकों के इंटरव्यू लिए जाते हैं। निजी स्कूलों के साथ-साथ ट्यूशन का नया व्यवसाय पनप गया है। शिक्षा का दिखावा करते हुए अधिक से अधिक आर्थिक लाभ पाने के लिए दौड़-धूप की जा रही है।

JANSANDESH TIMES 17-07-2020
AAJ SAMAJ 17 JULY, 2020
GHATATI GHATNA 16-7-2020
सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा की मांग करने की बजाय विभिन्न प्रकार की तोहमतें लगाते हुए अभिभावकों ने अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजा। ऊंची फीस व अन्य शुल्क भी अदा किए। लेकिन कोरोना जैसा संकट लोगों के जीवन में प्रवेश कर गया तो भले ही उनसे संवेदनशीलता की अपेक्षा तो पहले ही नहीं की जा सकती थी, लेकिन इतनी निर्ममता की उम्मीद तो नहीं ही की जानी चाहिए। हालांकि सच यह भी है कि कोरोना महामारी की मार जहां आम लोगों पर पड़ी है, वहीं निजी स्कूलों पर भी संकट आया है। फीस नहीं मिलने से निश्चय ही दिक्कत तो स्कूलों को भी आई है। तो भी क्या इसी का बहाना लगाकर अध्यापकों व अन्य स्टाफ को नौकरी से निकाल दिया जाए। जिन अभिभावकों से बार-बार निजी स्कूलों द्वारा फीस मांगी जा रही है, उन अभिभावकों को भी देखना चाहिए कि कहीं स्कूलों ने स्टाफ को तो नहीं निकाल दिया। यह निजीकरण सिर्फ एक ही तरह से लोगों का नुकसान नहीं करता, यह लोगों को बांटता और काटता भी है। जिससे कोई परेशानी सिर्फ भुक्तभोगी को ही महसूस होती है। बाकी लोग प्रभावित होते हुए भी बेपरवाह हुए फिरते हैं। आज जब निजी स्कूलों का यह चरित्र एक बार फिर से क्रूरतम रूप धारण कर चुका है। अध्यापकों को नौकरी से निकाल चुके स्कूलों से सरकार को भी पूछताछ नहीं करनी चाहिए। यदि वास्तव में स्कूल अपने अध्यापकों को वेतन देने में सक्षम नहीं हैं, तो सरकार को अभिभावकों व अध्यापकों को राहत पहुंचाने के लिए आगे आना चाहिए।  
DAINIK HALK 16 JULY, 2020

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