Saturday, December 31, 2022

SEMINAR ON HINDI POET SUMITRANANDAN PANT IN GMSSSS BIANA (KARNAL)

 हिन्दी साहित्य में प्रकृति चित्रण के लिए विख्यात हैं सुमित्रानंदन पंत: अरुण

पुण्यतिथि पर पंत के जीवन व काव्य पर संगोष्ठी का आयोजन

स्कूल में गूंजी पंत की कविताएं


इन्द्री, 28 दिसम्बर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की पुण्यतिथि पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने पंत के जीवन और काव्य पर चर्चा की। हिन्दी अध्यापक नरेश कुमार मीत ने पंत की चुनिंदा कविताओं का सस्वर वाचन करके विद्यार्थियों को उनकी विविधतापूर्ण कविताओं से परिचित कराया। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दी प्राध्यापक डॉ. सुभाष चन्द ने की और मंच संचालन प्राध्यापक नरिन्द्र कुमार ने किया।
स्कूल के कार्यकारी प्रधानाचार्य व हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि हिन्दी के आधुनिक काल में अनेक कविओं ने अपने काव्य के द्वारा हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया और अमिट छाप छोड़ी। उन्हीं में से एक सुमित्रानंदन पंत हैं, जोकि कविताओं में अपने प्रकृति चित्रण के लिए इतने विख्यात हैं कि उन्हें हिन्दी का वर्डसवर्थ कहा जाता है। 20 मई, 1900 में उनका जन्म उत्तराखंड के कौसानी नाम स्थान पर हुआ था। उनका बचपन का नाम गोसाईं दत्त था। उनके जन्म के कुछ समय बाद ही माता का देहांत हो गया। कम उम्र में ही वे काव्य रचना करने लगे। अल्मोड़ा में सरकारी हाईस्कूल में पढ़ते हुए उन्हें किताबें पढऩे का चस्का लगा। पढ़ते हुए ही वे असहयोग आंदोलन व गांधी जी के नेतृत्व में चलाई जा रही आजादी की लड़ाई में शिरकत करने लगे। उन्होंने अपना नाम गोसाईं दत्त से बदल कर सुमित्रानंदन कर लिया। अरुण कैहरबा ने कहा कि वे हिन्दी की छायावादी कविता के चार आधार स्तंभों में से एक हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद व महादेवी वर्मा के साथ ही उन्होंने छायावादी कविताएं लिखी। बाद में प्रगतिवादी काव्य धारा में भी उनका सशक्त हस्तक्षेप रहा है।
हिन्दी अध्यापक नरेश मीत द्वारा सुनाई गई सुमित्रानंदन पंत की कविता सोनजुही की बेल की पंक्तियां देखिए- सोनजुही की बेल नवेली, एक वनस्पति वर्ष, हर्ष से खेली, फूली, फैली, सोनजुही की बेल नवेली। किसान की पीड़ा को चित्रित करती सुमित्रानंदन पंत की कविता- वे आँखें की कुछ पंक्तियां- अंधकार की गुहा सरीखी, उन आंखों से डरता है मन, भरा दूर तक उनमें दारुण, दैन्य दुख का नीरव रोदन।
इस मौके पर हिन्दी प्राध्यापक सलिन्द्र कुमार, संजीव कुमार, बलविन्द्र सिंह, सतीश राणा, बलराज, संदीप कुमार, अनिल पाल, निदेश कुमार, राजेश कुमार, मुकेश कुमार, विवेक कुमार, विनोद कुमार, निशा कांबोज, कविता, स्नेह लता, गोपाल दास, सुरेन्द्र कुमार उपस्थित रहे।  
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