Friday, December 3, 2021

GENDER INCLUSION IN SCHOOLING PROCESS / NISHTHA 2.0 WORKSHOP

 स्कूली प्रक्रियाओं में जेंडर समावेशन आवश्यक: अरुण

दो दिवसीय निष्ठा 2.0 प्रशिक्षण कार्यशाला शुरू

अध्यापकों ने की समूह चर्चाएं

रादौर स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में दूसरे समूह की दो दिवसीय निष्ठा 2.0 शंका समाधान अध्यापक प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारंभ 3 दिसंबर को हुआ। कार्यशाला की शुरूआत रिसोर्स पर्सन अरुण कुमार कैहरबा ने पढऩा-तुम पढ़ाना तुम चांद से आगे जाना तुम गीत के साथ की और सभी प्रतिभागी प्राध्यापकों ने साथ में गीत गाया। सामूहिक रूप से गाए गए गीत से बने वातावरण में स्कूली प्रक्रियाओं में जेंडर समावेशन विषय पर चर्चा की शुरूआत की गई।


अरुण कैहरबा ने इस विषय के सभी पहलुओं पर चर्चा की और प्रतिभागियों ने चर्चा में सक्रिय हिस्सेदारी की। अरुण कैहरबा ने कहा कि आम तौर पर जेंडर और सैक्स को एक ही अर्थ में ले लिया जाता है। जबकि सैक्स एक जैविक व शारीरिक अवधारणा है। जबकि जेंडर सामाजिक संरचना है। हमारे समाज में लडक़ा, लडक़ी और ट्रांसजेंडर के बारे में अलग-अलग प्रकार की सोच व्याप्त है। लडक़े और लडक़ी के पैदा होने पर भी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं। लडक़े के पैदा होने पर खुशी मनाई जाती है, जबकि लडक़ी के पैदा होने पर खुशी की बजाय मातम मनाया जाता है। यह सोच और दृष्टिकोण का अंतर ही जेंडर भेदभाव को जन्म देता है। उन्होंने कहा कि जेंडर की अवधारणा पर चर्चा करने का मुख्य मकसद सभी के लिए समानता की सोच विकसित करना है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2015 में तय किए गए 17 वैश्विक लक्ष्यों में से दो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और जेंडर समानता के लक्ष्य हैं। यह लक्ष्य तय करने वाले 193 देशों में से भारत भी एक था। 



अरुण कैहरबा ने कहा कि भारत का संविधान, नई शिक्षा नीति-2020 भी समान व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पक्षधरता करती है। लेकिन हमारा समाज इसके अनुकूल सोच नहीं रखता है। जेंडर भेदभाव और जेंडर पूर्वाग्रह इस मार्ग की बाधाएं हैं। उन्होंने कहा कि स्कूल में भी कईं बार समाज की परंपराओं और परिपाटियों को बनाए रखा जाता है और कईं बार स्कूल यदि हस्तक्षेपकारी भूमिका नहीं अपनाता है और जेंडर भेदभाव मजबूत भी किया जाता है। उन्होंने कहा कि स्कूल व शिक्षा बदलाव के लिए हैं। इसलिए स्कूल को अपने पूरे ढ़ांचे और प्रक्रियाओं को सचेत रूप से तय करना होगा। उन्होंने प्रच्छन्न पाठ्यक्रम से परिचित करवाते हुए कहा कि अध्यापकों की बहुत सी क्रियाएं इसके अन्तर्गत आती हैं। कईं बार अध्यापक बच्चों को विभिन्न प्रकार के काम सौंपते समय लडक़े व लड़कियों के प्रति बनी-बनाई सोच का ही अनुसरण करता है। लडक़ों को भारी माने जाने वाले काम सौंपे जाते हैं। लड़कियों को सजावट आदि के काम सौंपे जाते हैं। उन्होंने कहा कि यहीं पर कईं बार जेंडर भेदभाव होता है। उन्होंने अध्यापकों का आह्वान किया कि सचेत रूप से अध्यापकों को जेंडर समानता को बढ़ावा देना है। 


उन्होंने कहा कि जेंडर संवेदनशीलता विकसित करने में अध्यापकों और स्कूल मुखियाओं का अहम योगदान है। अध्यापकों को अपने विषय पढ़ाते हुए जेंडर अनुकूल भाषा का प्रयोग करना चाहिए। चर्चा के बाद अध्यापकों को चार समूहों में बांटा गया। सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, गणित व भाषा प्राध्यापकों ने अपने-अपने समूहों में चर्चा करते हुए जेंडर पूर्वाग्रहों व भेदभाव से मुक्त और जेंडर समानता को बढ़ावा देने के लिए प्रस्तुति तैयारी की। प्राध्यापक मनीष कुमार, विजय कुमार, लक्ष्मी चोपड़ा सहित अनेक अध्यापकों ने सक्रिय हिस्सेदारी की। 

बीआरपी डॉ. रोमिका ने व्यावसायिक शिक्षा मोड्यूल की प्रस्तुति देते हुए एनएसक्यूएफ और शिक्षा में व्यवसायिक शिक्षा के समावेशन के विविधि पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। डाइट प्राध्यापक डॉ. संजीव कुमार ने स्कूल लीडरशिप पर परिचर्चा आयोजित करवाई। बीआरपी अर्जुन सिंह ने कार्यशाला में सहयोग किया।


No comments:

Post a Comment