Saturday, September 28, 2024

बाल संगम भित्ति पत्रिका का भगत सिंह जयंती विशेषांक BAAL SANGAM WALL MAGAZINE

 बाल संगम भित्ति पत्रिका के भगत सिंह जयंती विशेषांक का विमोचन

विद्यार्थियों ने पत्रिका में भगत सिंह के जीवन और विचारों को किया समाहित

शोषण पर आधारित व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे भगत सिंह: अरुण कैहरबा

पत्रिका तैयार करते हुए विद्यार्थियों को पढऩे-समझने का मिला अवसर

इन्द्री, 28 सितंबर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में शहीद भगत सिंह के जीवन और विचारों पर केन्द्रित बाल संगम दीवार पत्रिका के विशेषांक का विमोचन किया गया। हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा के मार्गदर्शन में तैयार पत्रिका के अंक का विमोचन संपादक मंडल में शामिल विद्यार्थी मनप्रीत, तनवी, मन्नत, अनम, मानसी, रूही, कशिश, रीतिका, निशिता ने किया। इस मौके पर प्राध्यापक बलविन्द्र सिंह, सलिन्द्र मंढ़ाण, विनोद भारतीय, सीमा गोयल, सन्नी चहल, गोपाल दास, संजीव कुमार, अध्यापक अश्वनी कुमार, रमन सैनी, निशा कांबोज, संगीता शर्मा आदि मौजूद रहे। अध्यापकों ने विद्यार्थियों द्वारा तैयार की गई पत्रिका के डिजाइन व चित्रों का बारीकी से जायजा लिया। विद्यार्थियों की रचनाओं को पढ़ा और सराहना करते हुए कहा कि बाल संगम विद्यार्थियों की रचनात्मकता को मंच प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही है।

प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि आजादी की लड़ाई में युवाओं को संगठित करने और विचारों के साथ जोडऩे में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने वाले भगत सिंह की जयंती पर बाल संगम का विशेषांक विद्यार्थियों का बेहतरीन कार्य है। पत्रिका तैयार करने की प्रक्रिया में विद्यार्थियों ने भगत सिंह के जीवन, संघर्षों और विचारों को जानने, समझने और उसके महत्वपूर्ण अंशों को पत्रिका में संजोने का कार्य किया है। जिससे हर कोई भगत सिंह को जान सकता है। उन्होंने कहा कि भगत सिंह की शहादत ने आजादी की लड़ाई में नई जान फूंक दी थी। अनेक युवाओं ने अपने जीवन का मकसद देश की आजादी बना लिया था। भगत सिंह भारत को केवल अंग्रेजी राज की गुलामी से ही मुक्त नहीं करना चाहते थे, बल्कि मानव द्वारा मानव के शोषण को समाप्त करके समतापूर्ण एवं न्यायसंगत समाज बनाना चाहते थे, जोकि समाजवादी मूल्यों पर आधारित होगा। उनके दिमाग में आजाद भारत का पूरा सपना था। ऐसा करने के लिए वे सामंतवादी और पूंजीवादी व्यवस्था और उसकी नीतियों की कड़ी आलोचना करते थे। जातिवाद, साम्प्रदायिकता, रूढि़वाद और पाखंडवाद को निशाने पर लेते थे। विद्यार्थियों के लिए भगत सिंह की अध्ययनशीलता विशेष रूप से प्रेरणादायी है। किताबों के अध्ययन ने ही भगत सिंह को तर्कशील, विवेकशील और विचारशील बनाया था। वे अपने साथियों के साथ किताबों पर चर्चा करते थे। जेल में बंद होने के बाद उनकी किताबें पढऩे की भूख और ज्यादा बढ़ गई। जेल में रहते हुए उन्होंने सैंकड़ों किताबें पढ़ी और उन पर टिप्पणियां लिखी। यहां तक के फांसी से पहले भी वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। जब कर्मचारी भगत सिंह को जेल की कोठरी से लेने पहुंचा तो वे पूरा पन्न पढऩे के लिए कुछ वक्त मांगते हैं। जेल कर्मी के लिए यह हैरानी की बात थी कि जिस व्यक्ति को कुछ समय बाद फांसी दी जानी है, वह पढऩे के लिए इतना अधिक लालायित कैसे हो सकता है? उन्होंने विद्यार्थियों को कहा कि भगत सिंह को विस्तार से पढऩे की जरूरत है। यह पत्रिका भगत सिंह के बारे में जानने की शुरूआत है। इसके बाद पढऩे का सफर सतत चलना है। भगत सिंह के जीवन-संघर्षों से हम सभी को सीखने की जरूरत है।
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पत्रिका के बाल संपादक मनप्रीत और कशिश ने कहा कि बाल संगम के भगत सिंह जयंती विशेषांक को तैयार करने की प्रक्रिया में उन्हें पढऩे, लिखने और सोचने का जो अवसर मिला है, वह अद्भुत है। बाल संपादक मंडल ने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाकर अपने भाव प्रकट किए।
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