पुण्यतिथि विशेष
बाबू मूलचंद जैन: महान स्वतंत्रता सेनानी व जनहितैषी गांधीवादी नेता
अरुण कुमार कैहरबा
आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले सेनानियों और आजादी के बाद देश के नवनिर्माण में सक्रिय हिस्सेदारी करने वाले नेताओं की देश में कमी नहीं है। उन्हीं में से एक हैं हरियाणा के गांधी के रूप में प्रसिद्ध बाबू मूलचंद जैन। सम्मान से उन्हें लोग बाबू जी कहकर पुकारते हैं और उनके कार्यों की चर्चा करते हैं। देश को गुलामी की बेडिय़ों से मुक्त करवाने के लिए उन्होंने गांधी जी के विचारों का अनुसरण करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया, जेलें काटी और आजादी के बाद लोकसभा सदस्य, संयुक्त पंजाब की विधानसभा के सदस्य, कैबीनेट मंत्री, हरियाणा विधानसभा सदस्य, वित्त मंत्री और अनेक भूमिकाओं में देश-प्रदेश के निर्माण में अपना योगदान दिया। उन्होंने हरियाणा को अलग राज्य बनाने के आंदोलन में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। जातिवाद और छूआछूत को समाज विकास की सबसे बड़ी बाधा मानने वाले मूलचंद जी ने आजीवन समाज के वंचित वर्ग के हितों में कार्य किया। हालांकि गांव-गांव में पुस्तकालय स्थापित करने के लिए कोई बड़ा आंदोलन शुरू नहीं हो पाया, लेकिन वे बच्चों व युवाओं में पढऩे की संस्कृति के विकास को बहुत महत्वपूर्ण मानते थे। इस उद्देश्य से अपने जीवनकाल में ही उन्होंने अपने गांव में पुस्तकालय की स्थापना की थी।
बाबू मूलचन्द जैन का जन्म 20अगस्त, 1915 को तत्कालीन रोहतक और अब सोनीपत जिला की तहसील गोहाना के गांव सिकंदरपुर माजरा में हुआ था। उन्होंने गांव के स्कूल से 1925 में प्राथमिक शिक्षा, गोहाना के राजकीय स्कूल से 1931 में मैट्रिक प्रथम श्रेणी में पास की। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव सिंह और राजगुरु को फांसी दिए जाने के विरोध में गोहाना में हुए विरोध प्रदर्शन में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। 1935 में लाहौर से बी.ए. की परीक्षा पास की। पढ़ाई के दिनों में वे अपने उदार हृदय के लिए जाने जाते थे। 1937 में पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर से कानून की परीक्षा पास की और प्रथम स्थान लेने के लिए उन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। इसके बाद वकालत शुरू की। गांधी जी के आह्वान पर स्वतन्त्रता आंदोलन में कूद पड़े। 1938 में रोहतक के असौंधा गांव में कांग्रेस की सभा पर जमींदारा लीग के हजारों कार्यकर्ताओं ने हमला बोलकर कांग्रेस के अनेक कार्यकर्ताओं को घायल कर दिया था। जिसमें बाबू जी भी थे। 1941 में गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन में उन्होंने बढ़चढ़ कर भाग लिया। 6 मार्च 1941 को बाबू जी ने अपनी जन्मभूमि गांव सिकन्दरपुरा माजरा से ही सत्याग्रह शुरू कर दिया तथा स्वतन्त्रता सेनानी चौधरी रणवीर सिंह हुड्डा की उपस्थिति में गिरफ्तारी दी। बाबू जी ने एक साल की सजा गुजरात (मौजूदा पाकिस्तान) जेल में काटी। सन् 1942 में गांधी जी द्वारा छेड़े गए भारत छोड़ो आंदोलन में बाबू जी के भाग लेने पर 11 अगस्त 1942 को उन्हें करनाल कचहरी में गिरफ्तार कर लिया गया और नजरबन्द करके उन्हें पुरानी केन्द्रीय जेल मुल्तान भेज दिया। जहां उन्हें एक साल से अधिक रहना पड़ा।
आजादी के बाद बाबूजी जिला कांग्रेस करनाल के महासचिव व बाद में जिला प्रधान बने। वह गरीबों व मुजारों की वकालत मुफ्त ही किया करते थे। उन्होंने 1948 से 52 तक साप्ताहिक समाचार-पत्र ‘बलिदान’ का संपादन किया। इस दौरान उन्होंने मुजारों को 5-5 एकड़ भूमि दिलवाने के लिए लिखा और आंदोलन किया। वे जात-पात और छूआछूत जैसी समस्याओं को समाप्त कर देना चाहते थे। कॉलेज में पढ़ते हुए जब उन्हें पता चला कि गांव में उच्च वर्ग के कूएं से दलितों को पानी भरने नहीं दिया जाता तो उन्होंने इसके खिलाफ संघर्ष किया और कूएं से दलितों को पानी भरने का हक दिलाकर ही दम लिया।
बाबू मूलचंद जैन 1952 में पहली बार समालखा से विधायक बने तथा सरदार प्रताप सिंह कैरो के मंत्रीमंडल में लोक निर्माण मंत्री बने। 1957 में कैथल से लोकसभा के सदस्य चुने गए। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें विभिन्न संसदीय कमेटियों का सदस्य बनाया। पंचायती राज कमेटी के सदस्य के रूप में उन्हें विभिन्न राज्यों में काम करने का अवसर मिला। इसके बाद उन्हों राज्य की राजनीति का रूख किया। 1962 में घरौंडा से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा। परन्तु तत्कालीन मुख्यमन्त्री प्रताप सिंह कैरो के अंदरूनी विरोध के कारण चुनाव हार गए। 1965 में बाबू जी ने हरियाणा को पंजाब से अलग प्रांत बनाने के लिए चलाए गए आंदोलन में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। इस उद्देश्य से बनाई ऑल पार्टी हरियाणा एक्शन कमेटी के महासचिव बने। इस कमेटी के अध्यक्ष जननायक चौ. देवी लाल थे। कमेटी के अथक प्रयासों से हरियाणा अलग राज्य बना। कांग्रेस की टिकट पर 1967 में घरौंडा से विधायक बने और इसके एकदम बाद मतभेदों के चलते दलबदल करते हुए विशाल हरियाणा पार्टी के राव बीरेन्द्र सिंह के मंत्रीमण्डल में राज्य के वित्तमन्त्री बने। 1968 में उन्होंने विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर इन्द्री से चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए।
1973-75 के दौरान उन्होंने लोकनायक जय प्रकाश नारायण द्वारा चलाए गए आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और हरियाणा संघर्ष समिति की कार्यकारिणी के सदस्य बने। 1975 में आपातकाल के दौरान 19 महीने जेल में रहे। 1977 में समालखा से जनता पार्टी के टिकट पर विधायक बने तथा 1978 में चौधरी देवीलाल के मंत्रीमण्डल में वितमन्त्री बने। 1980-82 के दौरान राज्य में विपक्ष के नेता रहे। 1985-87 में बाबू जी ने राजीव लोगोंवाल समझौता की धारा 7 व 9 विरोध किया तथा चौ. देवीलाल द्वारा चलाये गये न्याय युद्ध आंदोलन में भाग लिया व इस दौरान जेल भी गये। 1987 में देवीलाल की सरकार बनने के बाद वे योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष बने तथा इस दौरान उन्होंने राज्य में शिक्षा के प्रसार के लिए पुस्तकालय आंदोलन व नैतिक शिक्षा पर विशेष बल दिया। उन्होंने जुलाई 1989 मे तत्कालीन मुख्यमंत्री से मतभेदों के कारण योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। 20अगस्त, 1990 को 75वें जन्मदिन पर करनाल आयोजित भव्य समारोह में उन्हें सम्मानित किया गया।
मूलचंद जैन मौजूदा शिक्षा ढ़ांचे में व्यापक बदलाव के पक्षधर थे। 1989 में उनके प्रयासों से सरकार ने सार्वजनिक पुस्तकालय अधिनियम बनाया। 1992-96 के दौरान सरकार ने उन्हें पुस्तकालय को लेकर स्टैंटिंग एडवाइजरी कमेटी का अध्यक्ष और राज्य पुस्तकालय प्राधिकरण का सदस्य बनाया। पुस्तकालयों की स्थापना में उन्होंने अहम योगदान दिया। अपने 76वें जन्मदिन पर 20अगस्त, 1991 को अपने पैतृक गांव सिकंदरपुर माजरा में अपने पैतृक निवास को एक आदर्श पुस्तकालय के रूप में परिवर्तित कर गांव व क्षेत्र के लोगों को समर्पित कर दिया। तभी से साल गांव के लोग बाबू जी के जन्मदिन को पुस्तकालय दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। पुस्तकालय दिवस पर उनके जीवन काल में ही अनेक हस्तियां गांव में आ चुकी थी।
मूलचंद जैन हरियाणा व पंजाब राज्य में जीवन भर शैक्षिक, सामाजिक, राजनैतिक, स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत के प्रचार-प्रसार के कार्यों में लगे रहे। 12 सितंबर, 1997 को करनाल स्थित आवास पर उनका देहांत हो गया। उनके निधन के बाद अगस्त 1998 में उनके 84वें जन्मदिन पर तत्कालीन उपराष्ट्रपति की पत्नी श्रीमती सुमनकांत जी की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में उनके पैतृक गांव सिकंदरपुर माजरा स्थित सरकारी स्कूल का नामकरण बाबू मूल चन्द जैन राजकीय उच्च विद्यालय रखा गया। अगस्त 2015 में बाबूजी के जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर हरियाणा सरकार ने बाबूजी के सम्मान में आईटीआई करनाल का नामकरण बाबू मूल चन्द जैन आईटीआई रखा गया। गत वर्ष 12 सितंबर को उनकी 23वीं पुण्यतिथि पर आईटीआई में स्थापित की गई। बाबूजी की मूर्ति का अनावरण उपायुक्त ने किया। मूलचंद जैन को एक विचारक, लोकहितैषी नेता और समाज सुधारक के रूप में हमेशा याद किया जाता रहेगा।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार, सामाजिक कार्यकर्ता
घर का पता-
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा-132041
No comments:
Post a Comment