Sunday, September 8, 2024

आओ बात करें कार्यक्रम / देस हरियाणा के 54वें अंक का हुआ विमोचन

देस हरियाणा का पहले से 54वें अंक का सफर बहुत खूबसूरत: डॉ. सुभाष 

कहा: निरंतरता से कार्य करने पर लोग उसे गंभीरता से लेते हैं

इन्द्री में आयोजित आओ बात करें कार्यक्रम में पत्रिका के राजनीति विशेषांक का हुआ विमोचन

साहित्यकारों, शिक्षकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लिया हिस्सा

अरुण कुमार कैहरबा

करनाल जिला के कस्बा इन्द्री स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला के परिसर में देस हरियाणा द्वारा आओ बात करें कार्यक्रम का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में इन्द्री के साहित्यकारों, शिक्षकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। कार्यक्रम में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर एवं देस हरियाणा के संपादक डॉ. सुभाष सैनी ने मुख्य वक्ता के रूप में हिस्सा लिया। इस दौरान सभी ने देस हरियाणा के राजनीति पर आधारित 53-54वें अंक का विमोचन किया और इस पर गहन विचार-विमर्श किया। कार्यक्रम का संचालन देस हरियाणा के संपादक मंडल से जुड़े लेखक अरुण कुमार कैहरबा और संयोजन कवि नरेश मीत व अध्यापक महिन्द्र खेड़ा ने किया।

मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ. सुभाष सैनी ने कहा कि इन्द्री क्षेत्र देस हरियाणा की गतिविधियों का मुख्य केन्द्र है। यहां पर इससे पहले भी कईं गोष्ठियां हो चुकी हैं। उन्होंने कहा कि पत्रिका के प्रकाशन को नौ साल हो चुके हैं। जब पहला अंक निकला था तो हरियाणा के साहित्यिक जगत में तरह-तरह की चर्चाएं थी कि पत्रिका निकल भी सकेगी या नहीं। लेकिन आज पत्रिका का 53-54वां अंक लिए हम इस पर चर्चाएं कर रहे हैं। साथियों के मन में इसके निरंतर निकलने का संकल्प है। उन्होंने कहा कि निरंतरता से कार्य करने पर ही इतिहास बनता है। तभी उसे महत्व मिलता है और तभी लोग उसे गंभीरता से लेते हैं। कोई भी काम हो, यदि उसमें निरंतरता नहीं है तो उसे करने से कुछ होने वाला नहीं है। हमें बार-बार प्रयास करने होते हैं। शिक्षक होने के नाते हम जानते हैं कि बार-बार पढऩा और पढ़ाना होता है। उन्होंने कहा कि देस हरियाणा के बहुत महत्वपूर्ण अंक आए हैं, जिनकी खूब चर्चा हुई है। पहला अंक भाषा पर केन्द्रित था। 2017 में हमने किसान विशेषांक निकाला। विभाजन पर हमने अंक निकाला। हरियाणा की लोक गाथाओं, हरियाणा के बड़े साहित्यकार बाल मुकुंद गुप्त पर विशेषांक निकला। हमने सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले के जीवन पर विशेष सामग्री प्रकाशित की। संविधान के सरल अनुवाद पर आधारित अंक निकाला। यदि संविधान का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करते हैं तो वह बहुत कठिन लगता है। संविधान को समझने के लिए पत्रिका और गोष्ठियों के माध्यम से हमने काम किया है। हमने चार सृजन उत्सव आयोजित किए, जिसकी चर्चा आज भी होती है और साहित्यकार अगले उत्सव के बारे में पूछते हैं।

सृजन उत्सव के दौरा एक बड़े पत्रकार ने कहा था कि सांस्कृतिक क्षेत्र की कोई एक्सपायरी नहीं होती। यह पता नहीं कहां तक चलता है। पत्रिका का निकलना बड़ी बात है। पत्रिका के जरिये हम अपने आपको व्यक्त करते हैं। डॉ. सुभाष सैनी ने कहा कि बात करने की मनुष्य की भूख सांस लेने जैसी है। लेकिन बात करने के मंच खत्म होते जा रहे हैं। कईं बार चार आदमी इकट्ठे होते हैं तो वे अपने मोबाइल में लगे रहते हैं। ऐसे में आओ बात करें क्लब की शुरूआत काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हमने इतिहास बनाने के लिए पत्रिका नहीं निकाली। लेकिन अब जब हम अपने काम को देखते हैं तो खुशी होती है। हम आनंद के साथ पत्रिका निकालते हैं। यह कार्य कोई बोझ नहीं है।

डॉ. सुभाष सैनी ने मौजूदा अंक पर बोलते ही कहा कि आम तौर पर हमारी राजनीति से ओल्हा निकाल कर चलने की आदत हो गई है। यह भी सही है कि शिक्षक होने के नाते हम सक्रिय राजनीति का हिस्सा नहीं बन सकते हैं। किसी दल विशेष के सदस्य नहीं हो सकते। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हमें राजनीति की प्रक्रियाओं को समझना नहीं है। देश के नागरिक व शिक्षक होने के नाते भी हमें राजनीति की प्रक्रियाओं को समझना और समझाना होगा। जब दृष्टि बनेगी तो लोग अपने आप सही-गलत की पहचान कर लेंगे कि देश व आम जन के लिए क्या सही है। वरना तो राजनैतिक दल जाति व धर्म के नाम पर बांटने की आसान राजनीति करते रहेंगे। आज हमें राशन कार्ड भी बनवाना होता है तो भी नेता साथ चाहिए होता है। इसलिए अपने आप कुछ मिलने वाला नहीं है। लोगों में विचारों के जरिये ही चेतना का निर्माण होता है। आज चुनाव हो रहे हैं। लेकिन लोगों को ठगा ना जाए, भ्रमित ना किया जाए और उसका उल्लू ना बनाया जाए। लालच और डर सहित अनेक कारण से लोगों को बहकाया जा सकता है। लोग अपने विवेक का प्रयोग करें, इसके लिए जरूरी है कि मुद्दों पर बातचीत हो। राजनैतिक विवेक बनाने के लिए बातें करनी होंगी। उन्होंने कहा कि देस हरियाणा के मौजूदा अंक में हरियाणा की राजनीति के इतिहास, परिदृश्य और भविष्य को समझने की कोशिश की गई है। इस अंक में हरियाणा की राजनीति के नायकों का वर्णन है। दलितों, महिलाओं, युवाओं की राजनीति में क्या स्थिति है? हमारे स्थानीय निकाय और डेरों की भूमिका पर चर्चा की गई है। राजनीति के तीन स्तर हैं- विचार, संगठन और चुनाव। राजनीति का विचारधारात्मक पहलू महत्वपूर्ण है। 

पहले सृजन उत्सव के समापन पर आए असगर वजाहत ने कहा था कि लेखक बातचीत का एक सिरा शुरू करता है। दूसरा सिरा लोगों के पास है। लेखक का काम बातचीत की शुरूआत करने का है। उन्होंने कहा कि आज सच्चाई को छुपाने के लिए कोशिशें हो रही हैं। लेकिन सच्चाई छाती फाड़ कर अपने आप निकल आती है। स्वतंत्रता, समता, बंधुता और न्याय के संवैधानिक मूल्यों को मजबूत बनाने का काम करना है। सच्चाई को प्रचारित करते हुए मजबूत बनाना है। राजनैतिक नारों के शोर में यथार्थ को ना केवल देखना है, बल्कि उसे लोगों को देखने के लिए जागरूक भी करना है। तरक्की में आम आदमी को फल का हिस्सा मिल रहा है या नहीं। संसाधनों पर सभी का हक है। संविधान हमें ताकत देता है। आम लोगों की नागरिकता, इन्सानियत और राजनीति मजबूत होनी चाहिए। 

उन्होंने कहा कि अंक में 2013 के आस-पास बनाया गया जनघोषणा पत्र है, जिसमें गृहणियों को प्रोत्साहन राशि देने की मांग की गई है। इसे विभिन्न राज्यों में लागू कर दिया गया है। भूमिहीन पशुपालकों को चारा मुहैया करवाने की मांग की गई है। सब्जी और ठेले वालों के हितों सहित अनेक मुद्दों की मांग की है। आज जब हर काम के लिए पोर्टल बनाए गए हैं, ऐसे में गांव स्तर पर फ्री वाई-फाई सभी की आवश्यकता हो गई है। गांव स्तर पर मुफ्त कम्प्यूटर सीखने के लिए कम्प्यूटर लैब और पुस्तकालय जैसी सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इस मामले में लोगों में चेतना कम पाई जाती है। बात चलती है तो वह कभी ना कभी फलीभूत होती है। सांस्कृतिक राजनीति की चाल अंडरग्राउंड होती है। बातें शुरू करने की जरूरत है। 

अरुण कैहरबा ने बातचीत का संचालन करते हुए कहा कि संचार या बातें समाज के शरीर में रक्त संचार की तरह हैं। विचारों की दुनिया में कोई भी विषय अछूत नहीं है। राजनीति भी ऐसा ही विषय है, चुनावों में इस विषय पर चर्चा करना बहुत रोचक होता है। लेकिन कौन जीतेगा और कौन हारेगा से आगे आम जन को क्या मिलेगा और कैसे मिलेगा पर चर्चा करना जरूरी है। राजनीति के मौजूदा स्वरूप और उसे जनपक्षीय बनाने के लिए काफी वैचारिक विमर्श की जरूरत है। देस हरियाणा का अंक इस कार्य में अपनी महती वैचारिक भूमिका निभाएगा। 

विकास साल्याण ने कहा कि बात करना बहुत जरूरी है। भारतीय संविधान ने देश में बहुत बड़ा परिवर्तन किया है। एक झटके में सभी को वोट का अधिकार प्रदान किया है। यही अधिकार प्राप्त करने के लिए अमेरिका जैसे विकसित देशों में लंबा संघर्ष रहा है। उन्होंने कहा कि हमें यह अधिकार आसानी से मिल गया, इसलिए आम जन इसका महत्व नहीं समझ रहे हैं। लेकिन सजगता के बिना अधिकार छिनने में भी समय नहीं लगता। वही प्रक्रिया चल रही है। इसलिए जगह-जगह आंदोलन व प्रतिरोध दिखाई दे रहे हैं। अधिकारों की सुरक्षा और सजगता बनाने के लिए वैचारिक विमर्श की प्रक्रिया को तेज करना होगा।

महिन्द्र खेड़ा ने कहा कि जब भी हम देस हरियाणा पत्रिका को देखते हैं तो उसमें मनुष्य और उसकी परेशानियों के प्रति समग्र दृष्टि दिखाई देती है। पूरी दुनिया में मनुष्य और उसके संघर्षों को समग्रता में देखने पर ही हमें चीजें समझ में आती हैं। लोगों के जीवन की परेशानियों और उनके कारणों की विवेचना करते हुए हमें कोई विचार प्रेरित करता है। देस हरियाणा पत्रिका लोगों को विचार देने का कार्य करती है। बिना विचार के आदमी बंद अंधेरी कोठरी में कैद होता है। विचार से मनुष्य को मकसद मिलता है और फिर उस विचार के साथ वह संघर्ष करता है। मानवता के संघर्षों में हिस्सा लेता 

दयाल चंद ने कहा कि स्वतंत्रता, समता, बंधुता और न्याय के मूल्यों को बढ़ावा देती है। कार्यक्रम के दौरान डॉ. सुभाष सैनी ने बच्चा लाल उन्मेष की कविता-कौन जात हो भाई? सुनाई। देस हरियाणा से जुड़े नरेश मीत ने अपनी कविता-समय की यात्रा सुनाई। सुभाष लांबा और गुंजन ने गीत सुनाए। इस मौके पर अध्यापक देवेन्द्र देवा, मान सिंह चंदेल, धर्मवीर लठवाल, समय सिंह, जगदीश चन्द्र, सबरेज अहमद, जसविन्द्र पटहेड़ा, जेई मामराज कैहरबा, सूरज सैनी, ताज मोहम्मद, समृद्ध सौरव उपस्थित रहे।

HARANA PRADEEP 9-9-2204

  

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