Sunday, October 23, 2022

RANGOLI COMPETITION IN GMSSSS BIANA (KARNAL)

 मनजीत व दीप्ति की रंगोली ने पाया पहला स्थान

रंगोली प्रतियोगिता और सांस्कृतिक कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने दिखाई प्रतिभा

इन्द्री, 22 अक्तूबर
गांव ब्याना स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में दीपावली के उपलक्ष्य में रंगोली प्रतियोगिता व सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कार्यकारी प्रधानाचार्य अरुण कुमार कैहरबा व वरिष्ठ प्राध्यापक सतीश कांबोज ने की। संचालन एवं संयोजन हिंदी अध्यापक नरेश मीत ने किया। इतिहास प्रध्यापक सतीश काम्बोज, गणित प्राध्यापिका सीमा गोयल, निशा काम्बोज, राजेश सैनी, सहायक शिक्षक रणदीप सिंह, स्वयंसेवी शिक्षिका प्रियंका काम्बोज ने बनाई जा रही रंगोलियों का निरीक्षण करते हुए विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया।
रंगोली प्रतियोगिता के नौवीं से बाहरवीं कक्षा वर्ग में मनजीत और दीप्ति द्वारा बेटी बचाओ विषय पर बनाई गई रंगोली को प्रथम स्थान के लिए चुना गया। बाहरवीं कक्षा की छात्रा गीता व रीतिका तथा महक व मानसी की रंगोली संयुक्त रूप से दूसरा स्थान प्राप्त किया। तान्या, हर्षिका व हिमानी की रंगोली तीसरे स्थान पर रही।
छठी से आठवीं कक्षा वर्ग में मन्तसा व सृष्टि की रंगोली पहले स्थान पर रही। स्नेहा व चहलसी की रंगोली ने दूसरा तथा वंश व यशवी, दीपांशु की रंगोलियां तीसरे स्थान पर रही।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कृतिका, परी, हिमांशी, मानवी, तनुश्री, निशा, खुशी, नैंसी व कनिका की नृत्य प्रस्तुतियों ने सबका मन मोह लिया। पायल ने रागनी के माध्यम से शहीद भगत सिंह को याद किया। सांस्कृतिक कार्यक्रम का संयोजन छात्रा निष्ठा, खुशी व हिमांशी ने किया। मंच संचालन नौवीं कक्षा छात्रा कनिका ने किया।

DIWALI CELEBRATED IN GHS SHAHPUR

 अंधेरे से उजाले का त्योहार है दीवाली : अरुण

विद्यार्थियों ने बनाई सुंदर रंगोलियां

इन्द्री, 22 अक्तूबर 

गांव शाहपुर स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला में दीपावली के उपलक्ष्य में रंगोली प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता में कक्षा पांच की संध्या, यविका, तमन्ना व कनिका ने शानदार रंगोलियां बनाकर उत्कृष्ट स्थान प्राप्त किया। मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के कार्यकारी प्रधानाचार्य व हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने तीनों विद्यार्थियों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पाठशाला प्रभारी संदीप कुमार ने की। कार्यक्रम को सफल बनाने में स्वयंसेवी शिक्षिका पिंकी, मिड-डे-मील वर्कर सुषमा व सुदेश का योगदान रहा। विद्यार्थियों ने हरित दीवाली के पक्ष में नारे लगाए।

विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए अरुण कुमार कैहरबा ने कहा दीवाली का त्योहार अंधकार से उजाले और खुशियों का त्यौहार है। इस त्योहार को कुछ लोगों ने सिर्फ बम, पटाखे, आतिशबाजी और बुराइयों से जोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि हमें खुशियों का इजहार करने के लिए बेहतर तरीके अपनाने चाहिएं। बम व आतिशबाजी से खुशियां नहीं मनाई जा सकती, इससे पर्यावरण दूषित होता है। पाठशाला प्रभारी संदीप कुमार ने विद्यार्थियों को हरित दीवाली मनाने का संकल्प करवाते हुए कहा कि एक दूसरे को मिठाई खिलाकर शुभकामनाएं दें।



DAINIK JAGMARG 23-10-2022



Wednesday, October 19, 2022

ARTS MAKE LIFE RICH & BEAUTIFULL : SHILPY / SEMINAR ON INDIAN ARTS IN GMSSSS BIANA

जीवन को सुंदर व समृद्ध बनाती हैं कलाएं: डॉ. शिल्पी

भारतीय कलाएं विषय पर संगोष्ठी आयोजित

इन्द्री, 19 अक्तूबर 

उपमंडल के गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में भारतीय कलाएं विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के ललित कला विभाग में पढ़ा चुके बीआरपी डॉ. रवीन्द्र शिल्पी ने कहा कि भारत कलाओं के क्षेत्र में बेहद समृद्ध देश है। यहां पर अलग-अलग राज्यों व क्षेत्रों में विभिन्न कलाओं के विविध रूप देखने को मिलते हैं। बौद्ध मठों, मंदिरों व धार्मिक स्थानों में स्थापत्य कला और मूर्तिकला के दर्शन होते हैं। विभिन्न त्योहारों और रीति-रिवाजों में कला के कई रूप देखे जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि जीवन के कण-कण में कलाएं हैं, जोकि जीवन को सुंदर और समृद्ध बनाती हैं। उन्होंने कहा कि मूर्ति, चित्र, स्थापत्य, संगीत (गायन व वादन), नृत्य, अभिनय सहित अनेक कलाओं के शास्त्रीय और लोक रूप हैं।


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कार्यकारी प्रधानाचार्य अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि कलाओं में आज आगे बढऩे के अनेक अवसर हैं। शिक्षा विभाग द्वारा विद्यार्थियों की कला प्रतिभा को मंच प्रदान करने के लिए कल्चरल फेस्ट, कला उत्सव, टेलेंट सर्च व लोक नृत्य सहित कई आयोजन करवाए जाते हैं। रवीन्द्र शिल्पी ने स्कूल की छात्रा स्मृति, अर्पित, रूद्र, रिया, कनिष्का, वंशिका, याचिका, रमन पाल, सुशांत, नैतिक सहित कई विद्यार्थियों को कला उत्सव संबंधी परामर्श प्रदान किया। इस मौके पर हिन्दी अध्यापक नरेश मीत ने भी विद्यार्थियों को मार्गदर्शन दिया।


DAINIK JAGMARG 20-10-2022


Tuesday, October 18, 2022

BIRTHDAY OF GIRLS STUDENT WAS CELEBRATED IN GMSSSS BIANA (KARNAL)

 शिक्षा को हथियार बना आगे बढ़ें छात्राएं: अरुण

धूमधाम से मनाया छात्राओं का जन्मोत्सव

छात्राओं ने स्वादिष्ट भोजन चखा, नाटक ने दिया सबकी शिक्षा का संदेश


इन्द्री, 18 अक्तूबर

गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में अक्तूबर महीने में जन्मी छात्राओं का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर पोषाहार योजना (मिड-डे-मील) प्रभारी नरेश कुमार मीत के संयोजन व नेतृत्व में छात्राओं को आलू-छोले व पूरी का स्वादिष्ट भोज खिलाया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्कूल के कार्यकारी प्रधानाचार्य अरुण कुमार कैहरबा ने की। समारोह का संचालन अंग्रेजी प्राध्यापक राजेश सैनी ने किया। समारोह में हिमांशी, खुशी, कविता, तनुश्री, मानवी व नमन ने नाटक का मंचन करके बेटियों की बराबरी और सबकी शिक्षा का संदेश दिया।


कार्यकारी प्रधानाचार्य अरुण कुमार कैहरबा ने छात्राओं को जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि समाज में बेटियों के आगे बढऩे व समानता का माहौल बनाना स्कूल की जिम्मेदारी है। सामाजिक बदलाव के लिए गहरी विचारशीलता व प्रयोगशीलता की जरूरत होती है। छात्राओं का जन्मोत्सव मिड-डे-मील योजना की अनूठी पहलकदमी है। इस पहलकदमी को आगे बढ़ाने के लिए स्कूल द्वारा नए प्रयोग किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि लड़कियों की समानता व शिक्षा के अधिकार के लिए अनेक लोगों ने कार्य किया है। देश की प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, प्रसिद्ध वैज्ञानिक कल्पना चावला, श्रवण व दृष्टिबाधा के बावजूद लेखिका बनने वाली हेलन केलर सहित कितने ही व्यक्तित्वों का नाम लिया जा सकता है, जो हमारे प्रेरणास्रोत हो सकते हैं। उन्होंने छात्राओं को ऐसी प्रेरक शख्सियतों से प्रेरणा लेकर शिक्षा को हथियार बनाकर आगे बढऩे का आह्वान करते हुए उज्ज्वल भविष्य की कामना की। 


 

रसायन विज्ञान प्राध्यापक अनिल पाल, गणित प्राध्यापक सतीश राणा, सीमा गोयल, गोपाल दास, अर्थशास्त्र प्राध्यापक बलराज, अंग्रेजी प्राध्यापक राजेश कुमार, कॉमर्स प्राध्यापक दिनेश कुमार, इतिहास प्राध्यापक सतीश कांबोज, मुकेश खंडवाल, हिन्दी अध्यापक नरेश मीत, गणित अध्यापिका प्रीति आहुजा, ब्यूटी एवं वैलनेस अध्यापिका निशा कांबोज, चित्रकला सहायक शिक्षक रणदीप व स्वयंसेवी शिक्षिका प्रियंका सहित सभी स्टाफ सदस्यों ने छात्राओं को जन्मदिन की बधाई और शुभकामनाएं देते हुए लगन व मेहनत से आगे बढऩे की कामना की। सभी ने अक्तूबर महीने में जन्मदिन मना रहे गणित प्राध्यापक सतीश राणा व सीमा गोयल को भी बधाईयां दी। 


इन छात्राओं का है अक्तूबर महीने में जन्मदिन-

स्कूल की छठी कक्षा की अनोखी, रूबी, सातवीं से मुस्कान, कोमल, शिविका, कृति, आठवीं कक्षा से सलोनी देवी व सृष्टि, नौवीं कक्षा से उमा, रिया, वंशिका, गुंजन, दसवीं के अलग-अलग सैक्शन से खुशी, वंशिका, कनिष्का, वंशिका, 11वीं कक्षा के सभी संकायों से वंशिका, काजल, दीप्ति, 12वीं से प्रियंका, वंशिका, सुहानी, खुशी, प्रिया, खुशप्रीत व शमा का जन्मदिन मनाया गया। 

















Monday, October 17, 2022

WHITE CANE DAY ARTICLE IN DAINIK TRIBUNE

 विश्व सफेद छड़ी दिवस पर विशेष

दृष्टिबाधितों की बराबरी और सशक्तिकरण का औजार है सफेद छड़ी

अरुण कुमार कैहरबा

मानव अधिकारों की रक्षा और सबको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए बहुविध उपाय किए जाने की जरूरत है। दृष्टिहीन बच्चों एवं बड़ों की शिक्षा के लिए समय-समय पर शिक्षाविदों एवं पुनर्वास कार्यकर्ताओं द्वारा अनेक प्रकार की प्रयोग किए गए हैं। दृष्टिहीनों की शिक्षा के क्षेत्र में सबसे जरूरी कदम है, उनकी अपने वातावरण में स्वतंत्रता और आत्मविश्वास के साथ चलने की योग्यता। उनके चलन, सुरक्षा, स्वतंत्रता और पहचान के लिए जिस क्रांतिकारी उपकरण का आविष्कार किया गया, वह है-सफेद छड़ी। अंग्रेजी में यह व्हाईट केन के नाम से प्रसिद्ध है। इसे लंबी छड़ी (लोंग केन) भी कहा जाता है। हालांकि छड़ी की लंबाई इसके प्रयोक्ता के कद पर निर्भर करती है लेकिन मोटे तौर पर इसकी लंबाई इसे प्रयोग में लाने वाले व्यक्ति की छाती के बराबर होनी चाहिए। इस छड़ी के मानक स्वरूप को ईजाद करने का श्रेय अमेरिका के पुनर्वास विशेषज्ञ रिचार्ड ई. हूवर को जाता है। उन्होंने लंबे समय तक अथक मेहनत व प्रयोग के बाद छड़ी को अंतिम रूप दिया। यही कारण है कि इस छड़ी को हूवर छड़ी के नाम से भी जाना जाता है। दृष्टिहीन व्यक्ति चलन के दौरान सफेद छड़ी के माध्यम से रास्ते में पड़ी वस्तुओं को पहचान सकता है। वह रास्ते की सतह और आगे आने वाले गड्ढ़ों या अन्य खतरों के बारे में सावधान हो जाता है। यही नहीं सफेद छड़ी से दृष्टिवान व्यक्ति दृष्टिहीन व्यक्ति की पहचान कर लेते हैं। इससे वे रास्ता पार कर रहे दृष्टिहीन महिला/पुरूष की मदद कर सकते हैं और दुर्घटना से बच जाते हैं।
सामान्य-सी लगने वाली सफेद छड़ी अनेक खूबियों से युक्त है। छड़ी के तीन हिस्से हैं: ऊपरी भाग-हत्था, मध्य भाग और नीचे का भाग जो धरती पर टिकता है। छड़ी का हत्था रबड़ से बना होता है, जोकि करंट रोधी है। मध्य भाग एल्यूमीनियम का है, जोकि हल्का होता है। नीचे का प्लास्टिक का भाग जिस भी वस्तु से टकराता है, उसकी सतह का अहसास छड़ी का प्रयोग रहे दृष्टिहीन व्यक्ति को आसानी से होता है। आजकल सफेद छड़ी अनेक प्रकार की उपलब्ध होती है। फोल्डिंग छड़ी को दृष्टिहीन व्यक्ति सुविधा के मुताबिक इस्तेमाल कर सकता है। अपनी खूबियों के कारण ही अधिकतर दृष्टिबाधित व्यक्ति अपने वातावरण में स्वतंत्रता एवं आत्मविश्वास के साथ चलने के लिए इस साधन का ही चुनाव करते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि यह बुनियादी, बहु उपयोगी, सहज उपलब्ध एवं सस्ता साधन है और इसे बहुत ही कम रखरखाव की जरूरत पड़ती है। 1964 में अमेरिका में प्रति वर्ष 15 अक्तूबर को सफेद छड़ी सुरक्षा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। उसके बाद दृष्टिबाधा के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने और सफेद छड़ी के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से विश्व के अन्य देशों में भी इस दिवस को मनाया जाने लगा।
सदियों से ही दृष्टिहीन व्यक्ति चलन उपकरण के तौर पर छडिय़ों का प्रयोग करते आ रहे हैं लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद सफेद छड़ी की परिकल्पना के बाद दृष्टिहीनों के सुविधाजनक चलन में बड़ा बदलाव आया है। सफेद छड़ी के विकास की एक लंबी प्रक्रिया है। इंग्लैंड के शहर ब्रिस्टल में 1921 में जेम्स बिग्स नाम के फोटोग्राफर दुर्घटना के कारण दृष्टिहीन हो जाते हैं। सडक़ों पर ट्रैफिक की बहुलता के कारण उन्हें बहुत अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। वे अन्य लोगों को अपनी उपस्थिति जाहिर करने के लिए अपनी छड़ी पर सफेदी लगा देते हैं। 1931 में फ्रांस में गिल्ली हरबेमाऊंट ने दृष्टिबाधित लोगों के लिए राष्ट्रीय स्तर का सफेद छड़ी आंदोलन चलाया। इसी वर्ष 7 फरवरी को उन्होंने देश के कईं मंत्रियों की उपस्थिति में दृष्टिहीन लोगों को पहली दो सफेद छडिय़ां प्रदान की। बाद में प्रथम विश्व युद्ध में दृष्टिहीन हुए पूर्व सैनिकों व सिविलियनों को करीब पांच हजार सफेद छडिय़ां भेजी गई। अमेरिका में सफेद छड़ी का परिचय करवाने का श्रेय लायंस क्लब इंटरनेशनल के जियोर्ज ए. बोनहम को जाता है। 1930 में लायंस क्लब के सदस्यों ने काले रंग की छड़ी लिए हुए दृष्टिहीन व्यक्तियों को सडक़ पार करते हुए देखा। काली सडक़ पर यह छड़ी ठीक ढ़ंग से दिखाई नहीं देती थी। सदस्यों ने छड़ी को सफेद रंग से रंगने का निर्णय लिया ताकि छड़ी ज्यादा दृश्यमान हो सके। 1931 में लायंस क्लब ने दृष्टिहीन लोगों के प्रयोग के लिए सफेद छड़ी को बढ़ावा देने का कार्यक्रम शुरू किया।
लायंस क्लब द्वारा विकसित की गई लकड़ी की सफेद छड़ी को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1944 में रिचार्ड हूवर ने अपने हाथ में लिया। वे वैली फोर्ज सेना अस्पताल में पुनर्वास विशेषज्ञ के रूप में काम करते थे। वे आँख पर पट्टी बाँध कर छड़ी के साथ अस्पताल में सप्ताह भर तक घूमते रहे। अपनी प्रयोगशीलता से उन्होंने लंबी छड़ी की मौजूदा हूवर विधि इजाद की। वे बेहद कम वजन की लंबी छड़ी तकनीक के पिता माने जाते हैं। इस तकनीक के अनुसार छड़ी को बहुत ही वैज्ञानिक ढ़ंग से प्रयोग में लाया जाता है। छड़ी को दाहिने हाथ से शरीर के मध्य में पकड़ा जाता है। चलते हुए इसका प्रयोक्ता कलाई का प्रयोग करके इसे दाएँ-बाएँ घुमाता है। दोनों पाँवों के आगे यह छड़ी मार्गदर्शन का काम करती है। ज्यों-ज्यों दायां पाँव आगे जाता है, छड़ी को दायीं तरफ से बाईं तरफ ले जाया जाता है। इसी प्रकार जब बायां पाँव आगे जाता है तो छड़ी दाईं तरफ ले जाई जाती है। चलन अभिविन्यास विशेषज्ञ के द्वारा दृष्टिहीन विद्यार्थी को छड़ी का प्रशिक्षण दिया जाता है। अभ्यास के बाद दृष्टिबाधित बालक व व्यक्ति पूरी स्वतंत्रता व सुरक्षा के साथ चलने-फिरने में सक्षम हो जाते हैं और छड़ी नए रास्तों पर भी मार्गदर्शक की भूमिका निभाती है। श्वेत छड़ी की महत्ता को देखते हुए श्वेत छड़ी दिवस को दृष्टिबाधितों की समानता व सफलताओं का दिवस भी कहा जाता है।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, लेखक, मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं विशेष शिक्षा विशेषज्ञ
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री, जि़ला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145

Saturday, October 15, 2022

DR. A.P.J. ABDUL KALAM JAYANTI CELEBRATED IN GMSSSS BIANA

डॉ. कलाम द्वारा स्थापित किए गए मूल्य अनुकरणीय: अरुण कैहरबा

विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाई कलाम जयंती

इन्द्री, 15 अक्तूबर 

गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में पूर्व राष्ट्रपति एवं वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की जयंती विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाई गई। कार्यक्रम के दौरान डॉ. कलाम का जीवन और विचारों पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।


विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कार्यकारी प्रधानाचार्य अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि डॉ. कलाम हमारे देश के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरक व्यक्तित्व हैं। उनका जीवन, कड़ा संघर्ष, उनके विचार, सिद्धांत और उनके द्वारा स्थापित किए गए मूल्य संपूर्ण मानव जाति के लिए अनुकरणीय हैं। वे गरीब परिवार से देश के सबसे बड़े ओहदे तक पहुंचे। देश के वैज्ञानिक विकास में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। देश को परमाणु शक्ति बनाने में उनकी महत्चपूर्ण भूमिका रही है। उनके योगदान के कारण ही उन्हें मिसाईल मैन कह कर संबोधित किया जाता है। डॉ. कलाम के जीवन के प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि भारत रत्न डॉ. कलाम ने सच्चाई, सादगी और ईमानदारी का रास्ता अपनाया। उनके जन्मदिन को विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में पूरी दुनिया में मनाया जाता है। उन्होंने कहा था कि हम अपना भविष्य नहीं बदल सकते, लेकिन हम अपनी आदतें बदल सकते हैं। आदतों के जरिये हम अपना भविष्य भी बदल सकते हैं। इस मौके पर अर्थशास्त्र प्राध्यापक बलराज ने विद्यार्थियों को अनुशासन का महत्व समझाते हुए कहा कि सभी विद्यार्थियों को डॉ. कलाम के अनुशासित जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। कार्यक्रम में इतिहास प्राध्यापक सतीश कांबोज व हिन्दी अध्यापक नरेश कुमार मीत ने भी डॉ. कलाम के प्रेरक व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। सातवीं कक्षा की छात्रा सफिया ने देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के जीवन पर प्रकाश डाला। इस मौके पर सावित्रीबाई फुले सदन की कप्तान हिमांशी ने मंच संचालन किया। इस मौके पर प्राध्यापक सतीश राणा, सीमा गोयल, राजेश कुमार, गोपाल दास, राजेश सैनी, दिनेश कुमार, मुकेश खंडवाल, प्रीति आहुजा, लिपिक आशीष कांबोज, निर्मलजीत सिंह, विनीत सैनी, बिट्टू सिंह उपस्थित रहे।
YASHBABU 15-10-2022
JAGMARG 16-10-2022





Monday, October 10, 2022

SEMINAR ON LIFE STRUGGLE & THOUGHT OF SAVITRIBAI FULE IN GMSSSS BIANA (KARNAL)

 सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों की शिक्षा का रास्ता तैयार किया: अरुण 

कहा: शिक्षा से ही बनेगा बेहतर समाज

सावित्रीबाई फुले के जीवन-संघर्ष व विचार विषय पर संगोष्ठी आयोजित

इन्द्री, 10 अक्तूबर 

भारत में शिक्षा के प्रसार, समानता, न्याय व लड़कियों की समानता के विचार को स्थापित करने में सावित्रीबाई फुले ने अहम भूमिका निभाई है। पुणे के भिड़ेवाड़ा में 1जनवरी, 1848 को देश का पहला लड़कियों का स्कूल खोल कर लड़कियों के शिक्षा के अधिकारों का बिगुल बजाया था। तत्कालीन पिछड़े और सामंती मूल्यों पर आधारित समाज में ऐसा करना नए लोकतांत्रिक मूल्यों वाला समाज बनाने की तरफ एक कदम था। ये शब्द गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के कार्यकारी प्रधानाचार्य अरुण कुमार कैहरबा ने कहे। वे स्कूल में देश की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के जीवन-संघर्ष और विचार विषय पर संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। सावित्रीबाई फुले सदन द्वारा गणित प्राध्यापिका सीमा गोयल के मार्गदर्शन में आयोजित संगोष्ठी का संचालन सदन की कप्तान हिमांशी व तनुश्री ने किया। 


अरुण कैहरबा ने कहा कि सावित्रीबाई फुले के जीवन काल में हमारा समाज अनपढ़ता व गैरबराबरी के अंधेरे में था। लड़कियों को तो पढऩे का अधिकार ही नहीं था। छोटी उम्र में शादियां हो जाती थी। विधवाओं का जीवन नर्क के समान था। केवल शिक्षा के माध्यम से ही समाज को आगे बढ़ाया जा सकता था। समाज सुधाक ज्योतिबा फुले के साथ सावित्रीबाई का विवाह नौ वर्ष में हो गया था। शादी के बाद ज्योतिबा ने अपनी जीवन संगिनी को पढ़ाया। शिक्षक प्रशिक्षण कोर्स करने वाली सावित्रीबाई फुले पहली शिक्षिका बनी। लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलना और लड़कियों की शिक्षा की बात करना उस समय आज की तरह से इतना आसान नहीं था। यह बहुत ही जोखिम भरा कार्य था। लड़कियों के प्रति पुरातनपंथी विचार रखने वाले लोग उनके स्कूल जाकर शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार के पूर्णत: विरूद्ध थे। तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए सावित्रीबाई फुले ने अपने पति के साथ मिलकर एक के बाद एक स्कूल खोले। विधवाओं के केश मुंडन व ज्यादतियों के विरूद्ध कार्य किए। उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई फुले पहली शिक्षिका, लड़कियों का पहला स्कूल खोलने वाली, महिलाओं के लिए पहली साक्षरता कक्षा लगाने वाली, पहला प्रसूति गृह खोलने वाली महान महिला है। प्लेग से मरते लोगों की जान बचाते हुए सावित्रीबाई ने शहादत का रास्ता चुना। ज्योतिबा फुले व सावित्रीबाई के जीवन और विचारों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

गणित  प्राध्यापिका सीमा गोयल व हिन्दी अध्यापक नरेश कुमार मीत ने कहा कि सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा व सुधार का नया रास्ता तैयार किया। नया रास्ता तैयार करने में काफी मुश्किलें आती हैं। लेकिन जब रास्त तैयार हो जाता है तो लोगों को बहुत सुविधा होती है। सावित्रीबाई फुले व अन्य समाज सुधारकों ने शिक्षा का जो अधिकार हमें दिलाया है, हमें इस अधिकार का खूब इस्तेमाल करना चाहिए।

विद्यार्थियों ने भाषण, कविता, गीत, पेंटिंग में लिया हिस्सा-

कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों ने अपनी प्रस्तुतियां दी। सातवीं कक्षा की मुस्कान, कनिका व सफिया ने सावित्रीबाई फुले के जीवन व शिक्षा की महत्ता पर प्रकाश डाला। हिमांशी ने अपने गीत गाया। सिमरण व महक ने कविता पढ़ी। नौवीं कक्षा की छात्रा तनुश्री, 11वीं कक्षा की छात्रा वंशिका, छठी की छात्रा अंशिका व नमन ने लड़कियों की शिक्षा व समानता पर आधारित पेंटिंग बनाई। सावित्रीबाई फुले सदन के सप्ताह की शुरूआत पर पहले दिन मानवी, आशीष, कनिका, महक, वंशिका, हिमांशी व तनुश्री ने विभिन्न प्रकार की ड्यूटियां दी।