व्यंग्य
खेल का बाजार और बाजार का खेल!
अरुण कुमार कैहरबा![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg63PCXV8Lm5PyRImwcj69I0EnLX4ZXXzVOrl6o1jJ_8SzyePT5ajq1B-Ty8h43phwEPLf45B5yf-g6z_P8tj1GdrOIjv8ysO7FNPHYunWS5rDRgCBm_sRSKsqaRyEPPDD_iqRt4FrdcRQT/w800-h466/DESHBANDHU+30-8-2020.jpg)
DESHBANDHU 30-8-2020
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HARIBHOOMI 31-8-2020 |
हर खेल के अपने नियम होते हैं। हर खेल का अपना अनुशासन होता है। खेल भावना के बिना खेल का कोई मतलब नहीं होता है। नियमों से खेल की भावना तय होती है। नियम ताकतवर के द्वारा और ताकतवर के लिए ही तय किए जाते हैं। आज चैनलों पर खेल देखते हुए दर्शकों को भी नहीं पता होता कि खिलाडिय़ों के जिस करतब को देखकर तुम खुशी से फूले नहीं समा रहे या फिर दुखी हो रहे हो, यह सब कुछ ना तो खिलाडिय़ों ने तय किया है और ना ही टीमों ने। यह सब एक अजीब किस्म की सत्ता ने तय किया है। उस बाजार की सत्ता ने यह भी तय किया है कि चाहे जीत किसी भी पलड़े में झुक जाए, उसकी जीत व फायदा होना तय है। दोनों टीमों व खिलाडिय़ों के समर्थक दर्शकों की सारी तालियां व गालियां और खुशियां व आंसू सभी उस सत्ता की पूंजी व ताकत में इजाफा करते हैं। इस सत्ता का पैर दुनिया के बड़े-बड़े देशों की सरकारों के ऊपर से लांघ रहा है और सरकारें खुश ही नहीं हो रही, कदमबोसी के लिए आतुर भी हैं।
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JAGMARG 30-8-2020 |
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JAMMU PARIVARTAN 30-8-2020 |
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