व्यंग्य
सुशासित प्रदेश, सडक़-सुरक्षा के उपदेश!
अरुण कुमार कैहरबा
सुशासित राज्य में निष्ठावान सरकार कार्य करती थी। बात-बात में रामराज्य की बात करती थी। वादों व दावों में नंबर वन थी। वादों के विपरीत वास्तविक स्थितियों को सरकार बयान जारी करके पूरी तरह नकार देती थी। सरकार थी तो उसकी देशभक्ति पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। ऐसे में विपक्ष या अन्य कोई भी विचार देशभक्त हो यह जरूरी नहीं है।
सरकार द्वारा शानदार सडक़ें बनाने के दावे भी किए जाते थे। समय-समय पर सरकारी आदेशों से स्कूलों व कॉलेजों में विद्यार्थियों को सडक़-सुरक्षा के पाठ पढ़ाने के निर्देश दिए जाते थे। भाषण चाहे नेता जी दें या अधिकारी सडक़-सुरक्षा को लेकर लोगों को जागरूक करने में कोई कसर दिखाई नहीं देती थी। भाषणों का लब्बोलुबाब यह था कि लोगों में जागरूकता की कमी के कारण ही इतनी दुर्घटनाएं होती हैं। बाकी सारे कारण गौण हैं। इसलिए लोगों के दिमागों में जागरूकता का प्रकाश लाने के लिए भाषणों के प्रकाश स्तंभ अवश्यंभावी हो जाते हैं। भाषण देने वालों की कोशिश होती थी कि भाषणों की कवरेज अखबारों व न्यूज चैनलों में अच्छी तरह हो। कहा जाता था कि यह भी जागरूकता का माध्यम है।
सरकार की इतनी कोशिशों के बावजूद दुर्घटनाएं थी कि रूकने का नाम ही नहीं लेती थी। निश्चय ही सडक़-सुरक्षा की जागरूकता के लिए और ज्यादा ध्यान देने की जरूरत थी। इसके लिए सरकारी स्तर पर योजनाएं बनाई गई। और अधिक भाषणों की जरूरत रेखांकित की गई। शायद सडक़-सुरक्षा पर पैसा लग जाने के कारण ही रहा होगा कि सडक़ों पर पर्याप्त पैसा खर्च नहीं हो पाया। या फिर पैसा रामराज्य के अनेकानेक कार्यों में ज्यादा लग गया होगा। सडक़ों पर गड्ढ़े या गड्ढ़ों में सडक़! पहचाननी मुश्किल हो रही थी। हालांकि यह नवाचारी परियोजना रही होगी। जनता की तुच्छ बुद्धि को यह नवोन्मेष समझ में आए यह जरूरी तो नहीं। शायद जनकल्याण के लिए आय अर्जित करनी की लघु परियोजनाएं रही हों। सडक़ों के गड्ढ़ों में बरसात में पानी अपने आप आ जाता है और यदि उनमें मछली पालन का कार्य किया जाए तो सडक़ की सडक़ और आय की आय हो सकती है। दूसरे, सडक़ ढूंढ़ कर चलने से मंजिल पर सही-सलामत पहुंचने और जल्दी पहुंचने की कितनी ही तरह की प्रतियोगिताएं हो सकती हैं। इससे यात्रा में संघर्ष का भाव भी आता है। विद्वतजन इस बात को समझते हैं कि संघर्ष जीवन का एक महत्वपूर्ण तत्व है। जब संघर्ष की भावना खत्म हो जाए तो जीवन बेमायने हो जाएगा। जीवन की यात्रा में संघर्ष के तत्व का समावेश करने के लिए गड्ढ़ों का होना कितना जरूरी है। ये बातें लोगों के दिमाग में क्यों नहीं आती, शायद सरकार में शुमार माननीय व पूजनीय नेतागण यह बातें सोचते होंगे।
सडक़ में जितने ज्यादा और जितने बड़े गड्ढ़े होंगे, उतना ज्यादा संघर्ष होगा। इसके लिए विशालकाय कूंआनुमा गड्ढ़े बनते दिए गए। जो यात्री चलते हुए गड्ढ़ों को ना पहचान पाए, उनके लिए मौत की सजा सहज और स्वाभाविक है। यह प्रकृति का ही नियम मान कर लोगों को स्वीकार करना चाहिए। यही क्या कम है कि देश-प्रदेश में सुशासन है जो लोगों को सडक़ सुरक्षा का पाठ पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। सुशासन में लोगों को अनुशासन की महत्ता समझनी चाहिए। सडक़ में गड्ढ़ों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप करने वालों को सरकार के गहरे भावों को समझना ही चाहिए। निश्चय ही सत्ताधारी दल के लोगों की देशभक्ति पर उन्हें शक करने का कोई हक नहीं है।
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JAMMU PARIVARTAN 26-8-2020 |
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PRAVASI SANDESH 24-8-2020 |
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