कट्टरता व साम्प्रदायिकता देश व धर्म के लिए खतरनाक
अरुण कुमार कैहरबा
धर्म को व्यापक संदर्भों में लिया जाना चाहिए ना कि संकीर्ण संप्रदाय के अर्थ में। व्यापक अर्थ में धर्म मानवता का पर्याय है। अनिवार्य तौर पर धर्म लोगों को जोडऩे का काम करता है। जो लोगों को तोड़ता है। वह धर्म कदापि नहीं हो सकता। धर्म लोगों को मिलजुल कर रहने, दया, परोपकार, ईमानदारी, सच बोलने, न्याय करने, भेदभाव रहित सभी लोगों को समान मानने का संदेश देता है। धार्मिक निष्ठा का अर्थ भी यही है कि हम सत्य के मार्ग पर चलें। किसी व्यक्ति के लिए अपने धर्म या सम्प्रदाय के कर्मकांडों का निर्वाह करना भी धार्मिक निष्ठा हो सकता है। निश्चित तौर पर कर्मकांडों की पालना करना या नहीं करना उसका व्यक्तिगत मामला है। इससे किसी को कोई परेशानी नहीं होती है और ना ही होनी चाहिए। यदि स्वार्थी लोग अपना खेल ना खेलें तो धर्म के मार्ग में कट्टरता का प्रवेश हो ही नहीं सकता। कट्टरता असहिष्णुता का मार्ग है, जिसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है। राजनेता वोटों की फसल को अपने हक में काटने के लिए धर्म में कट्टरता व साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं। भारत जैसी लोकतांत्रिक व पंथनिरपेक्ष देश में कट्टरता व साम्प्रदायिकता फैलाने वालों की साजिशों को बेनकाब करना चाहिए।HARYANA PRADEEP 30-8-2020 |
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