Friday, November 18, 2011

WORLD TOILET DAY (19 NOVEMBER)

विश्व शौचालय दिवस पर विशेष। तरक्की के दावों के बीच बड़ी आबादी खुले में शौच जाने को मजबूर। गांवों के साथ-साथ इन्द्री की स्थिति भी चिंताजनक
अरुण कुमार कैहरबा
इन्द्री, 18 नवंबर
तरक्की के सरकारी दावों के बावजूद आज भी बहुत बड़ी आबादी शौचालय के अभाव में खुले में शौच जाने को मजबूर है। इस मामले में बहुत से गांव तो कुख्यात हैं ही, उपमंडल का दर्जा प्राप्त कर चुका इन्द्री शहर भी पीछे नहीं है। शहर के अनेक वार्डों में रहने वाली बड़ी आबादी के घरों में शौचालय नहीं है। यों तो शहर में कहने को तीन सार्वजनिक शौचालय बनाए गए हैं लेकिन सफाई की समुचित व्यवस्था वाला एक अदद सार्वजनिक सुलभ शौचालय नहीं होने के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
पूरे विश्व में 19 नवंबर का दिन विश्व शौचालय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शौचालयों के अभाव में खुले में शौच जाने की प्रवृत्ति और इससे फैलने वाली बीमारियों पर चिंता जताई जाती है। यदि भारत की बात की जाए तो यहां की आधी आबादी खुले में शौच जाने को अभिशप्त है। इस मामले में गांवों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। इन्द्री उपमंडल के बहुत से गांव में बहुत बड़ी आबादी खुले में शौच जाती है।
इस मामले में हिनौरी डेरा, जैनपुर डेरा, जपती छपरा सिकलीगरान, डेरा हलवाना गांव कुख्यात हैं। खुले में शौच जाने की प्रवृत्ति के कारण यहां पर यदा-कदा बीमारियां फैल जाती हैं। गांव डेरा हलवाना में सरकारी योजना के तहत बनाए गए शौचालयों की हालत बेहद दयनीय है। लोगों के रूढि़वादी नज़रिये के कारण यहां बहुत से लोगों द्वारा शौचालयों का प्रयोग स्टोर के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।
गांव ही नहीं शहर वार्ड नं. नौ में पडऩे वाले शौरगिर मौहल्ले के लोगों के अधिकतर घरों में शौचालय नहीं हैं। वार्ड नं. पांच में रहने वाली बंगाली डेहा समुदाय की आबादी व रामगढ़ छान्ना में भी बहुत से घरों में शौचालय नहीं हैं। वार्ड नं. 11 के अन्तर्गत आने वाले शेखकलंदर समुदाय, वार्ड नं. 13 में रहने वाली ओड़ समुदाय और पुरानी मुगल कैनाल के पास रहने वाले बहुत से परिवारों की भी यही स्थिति है। खुले में शौच जाने की प्रवृत्ति के कारण बच्चों, बुजुर्गों व महिलाओं को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि झोंपडिय़ों व कच्चे मकानों में रहने वाले बहुत से घरों में रंगीन टैलीविजन व मोबाईल जैसी सुविधाएं तो हैं लेकिन शौचालय जैसी बेहद जरूरी सुविधा नहीं है। इससे गरीबी और बीमारी मिलकर बेहद भयावह स्थिति पैदा कर देती है।
इस बारे में सामाजिक कार्यकर्ता महिन्द्र कुमार व गुरनाम कैहरबा का कहना है कि लोग शादी-विवाह समारोहों के लिए पैसा इकट्ठा करते हैं लेकिन शौचालय जैसी तात्कालिक जरूरत को नज़रंदाज कर देते हैं। उन्होंने कहा कि करनाल के पूर्व उपायुक्त बलबीर सिंह मलिक ने घर-घर में शौलालय व पोलिथीन मुक्ति को अभियान बना दिया था। स्वच्छता अभियान में खंड प्रेरक के तौर पर काम कर रही दीपमाला ने कहा कि गांवों में लोगों को शौचालय बनवाने व शौचालय में शौच जाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। अतिरिक्त उपायुक्त कार्यालय में स्वच्छता अभियान के इंचार्ज नरेश कुमार ने बताया कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से गांवों में जिन घरों में शौचालय नहीं है, उनका सर्वेक्षण करवाया गया है लेकिन सर्वेक्षण के आंकड़े अभी व्यवस्थित किए जा रहे हैं। शहर में शौचालयों की हालत के बारे में नगरपालिका की चेयरपर्सन राज दुलारी से बात की गई तो उन्होंने माना कि शहर में शौचालयों की स्थिति चिंताजनक है।

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