Wednesday, November 16, 2011

SPECIAL ARTICLE ON WORLD EPILEPSY DAY

विश्व मिर्गी दिवस पर विशेष।
तंत्रिकातंत्रीय विकार है मिर्गी, ओपरी-पराई नहीं।
अरुण कुमार कैहरबा
मिर्गी एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है, जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते हंै। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पडऩे की समस्या हो जाती है। दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लडख़ड़ाने लगता है। इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पडऩा, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी के सभी मरीज एक जैसे भी नहीं होते। किसी की बीमारी मध्यम होती है, किसी की तेज। यह एक आम बीमारी है जो लगभग सौ लोगों में से एक को होती है। अधिकतर लोगों में भ्रम होता है कि ये रोग आनुवांशिक होता है पर सिर्फ एक प्रतिशत लोगों में ही ये रोग आनुवांशिक होता है। विश्व में पाँच करोड़ लोग और भारत में लगभग एक करोड़ लोग मिर्गी के रोगी हैं। विश्व की कुल जनसँख्या के 8-10 प्रतिशत लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इसका दौरा पडऩे की संभावना रहती है। विश्व भर में 17 नवंबर को विश्व मिरगी दिवस का मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न प्रकार के जागरुकता अभियान और उपचार कार्र्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
मिरगी मानव सभ्यता की ज्ञात सबसे पुरानी बीमारियों में गिनी जाती है। इस रोग के अभिन्न लक्षणों और इनसे जुड़ी अनिश्चितता के कारण इसका रहस्य सदा से ही बना आया है। इस रोग के बारे में अनेक मिथ्या धारणाएं प्रचलित हैं। प्राचीन काल में मिर्गी के दौरान बनी मानवकृत्ति से यह संदेश निकाला गया कि एक प्रेतात्मा मिर्गी से पीडि़त व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर गई है। इसलिए इस रोग को ऊपरी शक्तियों से जोडक़र देखा गया। ये शक्तियां अच्छी और बुरी दोनों हो सकती हैं, और यही तय करता है-रोगी के साथ समाज का बर्ताव। उसे किसी स्थानीय देवता के प्रतिनिधि रूप में भी देखा जाता रहा है व कई बार उससे घृणा की जा सकती है, दुत्कारा जा सकता है। यूनानी पुराण कथाओं में डेल्फी का मंदिर प्रसिद्ध है, जहां पुजारिन आसन पर बैठकर तंद्रा में कुछ बोलती रहती थी, जिसे भविष्यवाणी समझा जाता था। ओल्ड व न्यू टेस्टामेण्ट में भी कई स्थानों पर मिर्गी का उल्लेख आता है जहां उसे पवित्र रोग कहा गया। भारत में आज भी मिर्गी का दौरा पडऩे पर यह समझा जाता है कि मिर्गी से ग्रस्त स्त्रियों या पुरुषों में देवी आती है। कईं बार इसे ओपरी-पराई का असर माना जाता है।
्र हालांकि मिर्गी को वैज्ञानिक दृष्टिकोण मात्र एक शताब्दी से मिला है। लेकिन इस वैज्ञानिक दृटिकोण की पृष्ठभूमि प्राचीन काल में देखने को मिल जाती है। प्राचीन महान भारतीय चिकित्साशास्त्र चरक संहिता में अपस्मार या मिर्गी का विस्तृत वर्णन मिलता है। इस रोग को शारीरिक रोगों के समान ही मानकर इसके अनेक कारणों की सूची भी दी गई है व औषधियों द्वारा उपचार भी सुझाया गया है। कुछ शताब्दी ईसा पूर्व, यूनान के महान चिकित्सक हिप्पोक्रेटीज ने भी मिर्गी को दैवीय प्रकोप नहीं समझा है बल्कि अन्य रोगों के समान उसके भी शारीरिक कारण ढूंढने का उल्लेख किया है।
मानव मस्तिष्क कई खरब तंत्रिका कोशिकाओं से निर्मित होता है। इन कोशिकाओं की क्रियाशीलता कार्यकलापों को नियंत्रित करती है। मस्तिष्क के समस्त कोषों में एक विद्युतीय प्रवाह होता है जो नाडिय़ों द्वारा प्रवाहित होता है। ये सारे कोष विद्युतीय नाडिय़ों के माध्यम से आपस में संपर्क बनाये रखते हैं, लेकिन कभी मस्तिष्क में असामान्य रूप से विद्युत का संचार होने से व्यक्ति को एक विशेष प्रकार के झटके लगते हैं और वह मूर्छित हो जाता है। ये मूर्छा कुछ सेकिंड से लेकर 4-5 मिनट तक चल सकती है। मिर्गी रोग दो प्रकार का हो सकता है आंशिक तथा पूर्ण। आंशिक मिर्गी में मस्तिष्क का एक भाग अधिक प्रभावित होता है। पूर्ण मिर्गी में मस्तिष्क के दोनों भाग प्रभावित होते हैं। इसी प्रकार अनेक रोगियों में इसके लक्षण भी भिन्न-भिन्न होते हैं। प्राय: रोगी व्यक्ति कुछ समय के लिए चेतना खो देता है।
प्राय: दौरों की अवधि कुछ सेकेंड से लेकर चार-पांच मिनट तक होती है। और यदि यह दौरे लंबी अवधि तक के हों तो चिकित्सक से तत्काल परामर्श लेना चाहिये। कई मामलों में मिरगी की स्थिति पुरुषों की तुलना में महिलाओं से अलग होती है। दोनों की स्थिति में अंतर का प्रमुख कारण महिलाओं और पुरुषों में शारीरिक और सामाजिक अंतर का होना होता है। दौरे के समय निम्र बातों का ध्यान रखना चाहिए:-
1. जब रोगी को दौरे आ रहे हों, या बेहोश पड़ा हो, झटके आ रहे हों तो उसे साफ, नरम जगह पर करवट से लिटाकर सिर के नीचे तकिया लगाकर कपड़े ढ़ीले करके उसके मुंह में जमा लार या थूक को साफ रुमाल से पोंछ देना चाहिये।
2. दौरे का काल और अंतराल समय ध्यान रखना चाहिये। ये दौरे दिखने में भले ही भयानक होते हों, पर असल में खतरनाक नहीं होते। दौरे के समय इसके अलावा कुछ और नहीं करना होता है। दौरा अपने आप कुछ मिनटों में समाप्त हो जाता है। उसमें जितना समय लगना है, वह लगेगा ही।
3. ये ध्यान-योग्य है कि रोगी को जूते या प्याज नहीं सुंघाना चाहिये। ये गन्दे अंधविश्वास हैं व बदबू व कीटाणु फैलाते हैं। इस समय हाथ पांव नहीं दबाने चाहिये न ही हथेली व पंजे की मालिश करें क्योंकि दबाने से दौरा नहीं रुकता बल्कि चोट व रगड़ लगने का डर रहता है।
4. रोगी के मुंह में कुछ नहीं फंसाना चाहिये। यदि दांतों के बीच जीभ फंसी हो तो उसे अंगुली से अंदर कर दें अन्यथा दांतों के बीच कटने का डर रहता है।
5. मिरगी के रोगी सामान्य खाना खा सकते हैं अतएव उन्हें भोजन का परहेज नहीं रखना चाहिये। इस अवस्था में व्रत, उपवास, रोजे आदि रखने से कुछ रोगियों में दौरे बढ़ सकते हैं। अत: इनसे बचना चाहिये। यदि अन्न न लेना हो तो दूध या फलाहार द्वारा पेट आवश्यक रूप से भरा रखना चाहिये।
6. मिर्गी रोगी का विवाह हो सकता है एवं वे प्रजनन भी कर सकते हैं। उनके बच्चे स्वस्थ होंगे। उन्हें मिर्गी होने की अधिक संभावना नहीं होती। गर्भवती होने पर महिला को दौरे रोकने की गोलियाँ नियमित लेते रहना चाहिये। क्योंकि इन गोलियों से अधिकतर मामलों में बुरा असर नहीं पड़ता। गोलियाँ खाने वाली महिला स्तनपान भी करा सकती है।
मिर्गी किसी को भी हो सकती है, बालक, वयस्क, वृद्ध, पुरुष, स्त्री, सब को। दिमाग पर जोर पडऩे से मिर्गी नहीं होती। कई लोग खूब दिमागी काम करते हैं परन्तु स्वस्थ रहते हैं। मानसिक तनाव या अवसाद से मिर्गी नहीं होती है। अच्छे भले, हंसते-गाते इंसान को भी मिर्गी हो सकती है। मेहनत करने और थकने से भी मिर्गी नहीं होती, वरन ये आराम करने वाले को भी हो सकती है। कमजोरी या दुबलेपन से मिर्गी नहीं होती बल्कि खाते पीते पहलवान को भी हो सकती है, न ही मांसाहार करने से मिर्गी होती है, बल्कि शाकाहारी लोगों को भी उतनी ही संभावना से मिर्गी हो सकती है। मिर्गी का एक कारण सिर की चोट भी है। चिकित्सकों के अनुसार जन्म के दौरान चोट लगना भी मिरगी रोग का एक कारण होता है। मिर्गी खानदानी रोग नहीं है और बहुत कम मामलों में इसका खानदानी प्रभाव देखा जाता है जोकि एक संयोग हो सकता है। 90 प्रतिशत मामलों में खानदानी असर नहीं होता। मिर्गी के अधिकांश रोगियों का दिमाग अच्छा होता है व अनेक रोगी बुद्धिमान व चतुर होते हैं। लगभग सभी रोगी समझदार होते हैं। पागलपन व दिमागी गड़बडिय़ां बहुत कम मामलों में देखी जाती हैं। मनोचिकित्सकों के अनुसार इस रोग से ग्रसित व्यक्ति आम लोगों की तरह अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
मिरगी का उपचार दवाओं और शल्य-क्रिया के द्वारा किया जा सकता है, पर इस रोग का उपचार लगातार कराने की आवश्यकता रहती है। कभी-कभी इस रोग का उपचार तीन से पांच वर्ष तक चलता है। सामान्यतया मिर्गी का रोगी 3-5 वर्ष तक औषधि लेने के बाद स्वस्थ हो जाता है, परंतु यह सिर्फ 70 प्रतिशत रोगियों में ही संभव हो पाता है। अन्य 30 प्रतिशत रोगियों के लिए ऑपरेशन आवश्यक होता है। आधुनिक चिकित्सा-शास्त्र में ये ऑपरेशन गामा नाइफ रेडियो सर्जरी के प्रयोग से लेजऱ किरण द्वारा किया जाता है।

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