Saturday, November 26, 2011

करतार सिंह सराभा (24 मई 1896 - 16 नवम्बर 1915)

सेवा देश दी जिंदडीए बड़ी औखी, गल्लां करनियाँ बहुत सुखल्लियाँ ने,
जिन्ना देश सेवा विच पैर पाया, उन्ना लाख मुसीबतां झल्लियाँ ने.

भरपूर जवानी की उम्र में ही देश के लिए कुर्बान होने वाले महान शूरवीर करतार सिंह सराभा का जन्म गाँव सराभा जिला लुधियाना में 24 मई 1896 को सरदार मंगल सिंह के घर हुआ. छोटी उम्र में ही पिता का देहांत होने पर दादा बदन सिंह ने ही इनका पालन पोषण किया. प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही स्थित स्कूल में प्राप्त करने के बाद लुधियाना के मालवा खालसा हाई स्कूल से आठवीं और मिशन हाई स्कूल से दसवीं की शिक्षा प्राप्त की. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इनके दादा ने इन्हें अमेरिका में संफ्रंसिस्को स्थित बर्कले यूनीवर्सिटी में दाखला दिला दिया.
उस समय अमेरिका में रहने वाले भारतियों ने ग़दर पार्टी का गठन किया हुआ था, इस पार्टी के पहले प्रधान बाबा सोहन सिंह भकना और सक्रेटरी लाला हरदयाल जी थे,
करतार सिंह भी इस पार्टी के मेम्बर बन गए, उन्ही दिनों पार्टी ने ‘ग़दर’ नाम का अखबार छापना शुरू किया, करतार सिंह को ही इस अखबार के लिए धन इक्कठा करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी, और इस जिम्मेवारी को पूरा करने के लिए, उन्होंने अपनी यूनिवर्सिटी की पड़ाई भी अधूरी छोड़ दी,
(उस समय विदेशों में रहने वाले भारतियों ने (विशेषकर सिखों ने) अखबार चलाने और हथियार इकट्ठे करने के लिए अपनी ज़मीं जायदाद को भी दांव पर लगा दिया था)
इस समय अंग्रेजों और जर्मनों में विरोध काफी बढ गया था, और किसी भी वक़्त युद्ध छिड सकता था. गदर पार्टी ने भी अपने नोज़वानो को हथियार चलाने और आवश्यक सैनिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया.
करतार ने भी न्यूयार्क की एक हवाई ज़हाज बनाने वाली कम्पनी में ज़हाज उड़ाने और मरम्मत करने का काम सीख लिया.
25 जुलाई 1914 को प्रथम विश्व युद्ध छिड गया.
5 अगस्त 1914 को गदर अखबार में हिन्दुस्तानियों की तरफ से अंग्रेज सामराज्य के विरुद्ध जंग का एलान कर दिया गया. करतार सिंह सराभा, रघुबर दयाल गुप्ता के साथ जापान के समुंदरी जहाज ”निप्प्न्मारू” द्वारा 15 सितम्बर 1914 को कलकत्ता आ गए. डिफेन्स ऑफ़ इंडिया एक्ट लगा होने के बावजूद करतार सिंह पुलिस से बच कर पंजाब पहुँच गए.
यहाँ उन्ह्नोने पहले अमृतसर और बाद में लाहौर में गदर पार्टी के अड्डे कायम किये. जिसमें बहन सत्यवती और माई गुलाब कौर ने बहुत मदद की. करतार सिंह की कोशिशों के फलस्वरूप गदर पार्टी का सम्बन्ध बंगाल के इनक्लाबियों के साथ जुड़ गया.और 1911 में वायसराय लोर्ड हार्डिंग के काफले पर बम फेंकने वाले इंकलाबी रास बिहारी बोस लाहौर ही पहुँच गए.
पंजाब में गदर पार्टी का मुख्य कार्य छावनीयों में फौजियों को बगावत के लिए तैयार करना, और क्रांतिकारियों के साथ मेल-जोल बढाना था, करतार सिंह ने यहाँ पर गदर पार्टी का प्रचार किया, ऊपर लिखी हुई दो लाइन उनकी कविता से हैं, जो वो अक्सर ही गुनगुनाया करते थे.
सेवा देश दी जिंदडीए बड़ी औखी, गल्लां करनियाँ बहुत सुखल्लियाँ ने,
जिन्ना देश सेवा विच पैर पाया, उन्ना लाख मुसीबतां झल्लियाँ ने.
लाहौर में ही किरपाल सिंह नाम के एक गद्दार ने पार्टी की सारी सूचना पुलिस को दे दी, ग्रिफ्तारी और पकड़-धकड़ का सिलसिला शुरू हो गया. करतार सिंह अपने साथी हरनाम सिंह टुंडीलाट और जगत सिंह सुरसिंघिया के साथ भेष बदल कर रात की ट्रेन से लायलपुर चले गए,
करतार सिंह और उनके दोनों साथी सरगोदा में अपने मित्र राजिन्द्र सिंह से हथिआर प्राप्त करने के लिए गए तो उसने रिसालदार गंडा सिंह की मदद से इन तीनो को ग्रिफ्तार करवा दिया.
अदालत ने करतार सहित 24 गदरियों को फांसी, 27 को उम्रकैद, और बाकी को कालेपांनी की सजा सुनाई, इन सजाओं से सारे देश में हलचल मच गयी. सरकार ने 24 में से 17 गदरियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. करतार सिंह को फांसी की सजा 13 सितम्बर को सुनाई गयी, करतार ने जज का धन्यवाद करते हुए कहा, ‘मैं दोबारा पैदा हो के फिर से देश की आज़ादी के लिए लड़ाई करूंगा”
करतार सिंह और उसके 6 साथियों को 16 नवम्बर 1915 को लाहौर सेन्ट्रल जेल में फांसी दे दी गयी.
फांसी के वक़्त करतार सिंह की उम्र 20 साल थी,
भारत के इतिहास में इस शूरवीर का नाम सदा ही सुनहरी अक्षरों में लिखा रहेगा.

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