Saturday, September 28, 2024

बाल संगम भित्ति पत्रिका का भगत सिंह जयंती विशेषांक BAAL SANGAM WALL MAGAZINE

 बाल संगम भित्ति पत्रिका के भगत सिंह जयंती विशेषांक का विमोचन

विद्यार्थियों ने पत्रिका में भगत सिंह के जीवन और विचारों को किया समाहित

शोषण पर आधारित व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे भगत सिंह: अरुण कैहरबा

पत्रिका तैयार करते हुए विद्यार्थियों को पढऩे-समझने का मिला अवसर

इन्द्री, 28 सितंबर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में शहीद भगत सिंह के जीवन और विचारों पर केन्द्रित बाल संगम दीवार पत्रिका के विशेषांक का विमोचन किया गया। हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा के मार्गदर्शन में तैयार पत्रिका के अंक का विमोचन संपादक मंडल में शामिल विद्यार्थी मनप्रीत, तनवी, मन्नत, अनम, मानसी, रूही, कशिश, रीतिका, निशिता ने किया। इस मौके पर प्राध्यापक बलविन्द्र सिंह, सलिन्द्र मंढ़ाण, विनोद भारतीय, सीमा गोयल, सन्नी चहल, गोपाल दास, संजीव कुमार, अध्यापक अश्वनी कुमार, रमन सैनी, निशा कांबोज, संगीता शर्मा आदि मौजूद रहे। अध्यापकों ने विद्यार्थियों द्वारा तैयार की गई पत्रिका के डिजाइन व चित्रों का बारीकी से जायजा लिया। विद्यार्थियों की रचनाओं को पढ़ा और सराहना करते हुए कहा कि बाल संगम विद्यार्थियों की रचनात्मकता को मंच प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही है।

प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि आजादी की लड़ाई में युवाओं को संगठित करने और विचारों के साथ जोडऩे में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने वाले भगत सिंह की जयंती पर बाल संगम का विशेषांक विद्यार्थियों का बेहतरीन कार्य है। पत्रिका तैयार करने की प्रक्रिया में विद्यार्थियों ने भगत सिंह के जीवन, संघर्षों और विचारों को जानने, समझने और उसके महत्वपूर्ण अंशों को पत्रिका में संजोने का कार्य किया है। जिससे हर कोई भगत सिंह को जान सकता है। उन्होंने कहा कि भगत सिंह की शहादत ने आजादी की लड़ाई में नई जान फूंक दी थी। अनेक युवाओं ने अपने जीवन का मकसद देश की आजादी बना लिया था। भगत सिंह भारत को केवल अंग्रेजी राज की गुलामी से ही मुक्त नहीं करना चाहते थे, बल्कि मानव द्वारा मानव के शोषण को समाप्त करके समतापूर्ण एवं न्यायसंगत समाज बनाना चाहते थे, जोकि समाजवादी मूल्यों पर आधारित होगा। उनके दिमाग में आजाद भारत का पूरा सपना था। ऐसा करने के लिए वे सामंतवादी और पूंजीवादी व्यवस्था और उसकी नीतियों की कड़ी आलोचना करते थे। जातिवाद, साम्प्रदायिकता, रूढि़वाद और पाखंडवाद को निशाने पर लेते थे। विद्यार्थियों के लिए भगत सिंह की अध्ययनशीलता विशेष रूप से प्रेरणादायी है। किताबों के अध्ययन ने ही भगत सिंह को तर्कशील, विवेकशील और विचारशील बनाया था। वे अपने साथियों के साथ किताबों पर चर्चा करते थे। जेल में बंद होने के बाद उनकी किताबें पढऩे की भूख और ज्यादा बढ़ गई। जेल में रहते हुए उन्होंने सैंकड़ों किताबें पढ़ी और उन पर टिप्पणियां लिखी। यहां तक के फांसी से पहले भी वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। जब कर्मचारी भगत सिंह को जेल की कोठरी से लेने पहुंचा तो वे पूरा पन्न पढऩे के लिए कुछ वक्त मांगते हैं। जेल कर्मी के लिए यह हैरानी की बात थी कि जिस व्यक्ति को कुछ समय बाद फांसी दी जानी है, वह पढऩे के लिए इतना अधिक लालायित कैसे हो सकता है? उन्होंने विद्यार्थियों को कहा कि भगत सिंह को विस्तार से पढऩे की जरूरत है। यह पत्रिका भगत सिंह के बारे में जानने की शुरूआत है। इसके बाद पढऩे का सफर सतत चलना है। भगत सिंह के जीवन-संघर्षों से हम सभी को सीखने की जरूरत है।
ACTION INDIA 29-9-2024
INDORE SAMACHAR 29-9-2024
पत्रिका के बाल संपादक मनप्रीत और कशिश ने कहा कि बाल संगम के भगत सिंह जयंती विशेषांक को तैयार करने की प्रक्रिया में उन्हें पढऩे, लिखने और सोचने का जो अवसर मिला है, वह अद्भुत है। बाल संपादक मंडल ने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाकर अपने भाव प्रकट किए।
DAINIK JAGMARG 29-9-2024


29-9-2024

Thursday, September 19, 2024

DEO KARNAL सुदेश ठुकराल ने हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा को किया सम्मानित

करनाल 13 सैक्टर में 9 सितंबर को आयोजित समारोह में जिला शिक्षा अधिकारी सुदेश ठुकराल ने हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा को सम्मानित किया। 

 

Wednesday, September 18, 2024

‘बाल संगम’ दीवार पत्रिका रचनात्मक लेखन के प्रति बच्चों में जगा रही उमंग

 भाषा शिक्षण का क्रियात्मक, रचनात्मक व सशक्त माध्यम है दीवार पत्रिका: अरुण कैहरबा

विद्यालय में निकल रही ‘बाल संगम’ दीवार पत्रिका

पत्रिका रचनात्मक लेखन के प्रति बच्चों में जगा रही उमंग

इन्द्री, 18 सितंबर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में विद्यार्थियों में लेखन कौशल का विकास करने के लिए बाल संगम दीवार पत्रिका निकाली जा रही है। हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा और हिन्दी अध्यापक नरेश मीत के नेतृत्व व मार्गदर्शन में विद्यार्थियों के समूह द्वारा पत्रिका तैयार की जाती है। बाद में पत्रिका को स्कूल के सभी विद्यार्थियों के पढऩे के लिए प्रदर्शित किया जाता है। भाषा व रचनात्मक लेखन सीखने का यह बहुत ही सशक्त मंच बन गया है। पत्रिका की कलात्मक साज-सज्जा करते हुए विद्यार्थियों में कला दृष्टि और सौंदर्य सृष्टि की भावना पैदा होती है।
अरुण कुमार कैहरबा ने बताया कि आम तौर पर हिन्दी भाषा को पढऩे और लिखने के विषय के रूप में देखा जाता है। पारंपरिक रूप से विद्यार्थियों को किताबों के जरिये पढ़ाया जाता है। गद्य, पद्य, व्याकरण और रचनात्मक लेखन शिक्षण के लिए इस्तेमाल होने वाले तरीकों से विद्यार्थियों में एक ऊब सी पैदा होती है और विद्यार्थियों का भाषा सीखने के लिए ज्यादा मोह नहीं रहता है। हालांकि लेखकों व कवियों की एक से एक काव्यात्मक एवं गद्यात्मक रचनाएं रोचकता से भरपूर होती हैं। ऐसे में भाषा शिक्षण को क्रियात्मकता के साथ जोडऩा जरूरी है। भित्ति पत्रिका भाषा सीखने और सिखाने को क्रियात्मकता के साथ जोडऩे का सशक्त माध्यम है। जो विद्यार्थी इस काम में सक्रिय रूप से हिस्सा लेते हैं, वे पत्रिका को तैयार करने के लिए पहले पढ़ते हैं। फिर विषय-वस्तु को अपने शब्दों में लिखने की कोशिश करते हैं। उसके बाद उसे पत्रिका की जरूरत के अनुसार उसे निर्धारित आकार के कागज पर उतारते हैं। वर्तनी की त्रुटियों पर उनके साथ चर्चा की जाती है। वर्तनी की अशुद्धियों को दूर किया जाता है। पत्रिका की साज-सज्जा पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। यह कार्य करते हुए विद्यार्थियों में अनेक गुणों व कौशलों का विकास होता है।

अरुण कैहरबा व नरेश मीत ने बताया कि स्कूल की बाल संगम पत्रिका का पहला अंक स्वतंत्रता आंदोलन विशेषांक था। इसके बाल संपादक सिमरण, दीपिका, वर्षा, कविता, खुशी, साक्षी, आरती, प्रिया व मनप्रीत थे। इसमें माखन लाल चतुर्वेदी, नाना साहब की पुत्री देवी मैना पर लिखने वाली लेखिका चपला देवी, शहीद करतार सिंह सराभा, भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, उधम सिंह, महात्मा गांधी, प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, अशफाक उल्ला खांद, रामप्रसाद बिस्मिल आदि अनेक क्रांतिकारियों के चित्र, रचनाएं, प्रेरक प्रसंग और प्रेरक पंक्तियों को शामिल किया गया। इस अंक का विमोचन प्रख्यात साहित्यकार डॉ. अशोक भाटिया ने किया था। दूसरा अंक कन्या शिक्षा विशेषांक रहा, जिसमें पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख, पहली चिकित्सक आनंदीबाई जोशी, मदर टैरेसा, लक्ष्मी सहगल, सुचेता कृपलानी, कल्पना चावला, मलाला युसूफजई सहित अनेक महिलाओं के चित्र, जीवन परिचय, कविताओं आदि को संकलित किया गया। अंक के छात्र संपादक थे-तनु, गुरमीत, संजना, रीतू, निशा, सृष्टि, सिमरण, तृषा, साक्षी, आरती, मनप्रीत, मानसी व साक्षी। इस अंक का विमोचन देस हरियाणा पत्रिका के संपादक डॉ. सुभाष सैनी व डॉ. विकास साल्याण ने किया था। तीसरा अंक हिन्दी भाषा विशेषांक रहा, जोकि आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक भारतेंदु हरिश्चन्द्र पर केन्द्रित रहा। इसके छात्र संपादक मनप्रीत, निशिता, सिया, अनम, हिमांशी, मानसी, कशिश, रूही व रीतिका रहे। अंक का विमोचन स्कूल के प्रधानाचार्य डॉ. सुभाष भारती, प्राध्यापक सलिन्द्र मंढ़ाण, बलविन्द्र सिंह, सीमा गोयल, अध्यापक रमन सैनी व अश्वनी कुमार ने किया। स्कूल में वृक्ष विशेषांक तैयार हो चुका है। जयंती के लिए शहीद भगत सिंह विशेषांक की तैयारियां शुरू हो गई हैं। विद्यार्थी शहीद भगत सिंह के जीवन, संघर्षों और विचारों के बारे में अध्ययन कर रहे हैं। अरुण कुमार कैहरबा ने बताया कि दीवार पत्रिका रचनात्मकता से भरपूर कार्य है। इससे विद्यार्थियों में भाषा  व लिखना सीखने के प्रति रूचि जागृत हो रही है।



HARYANA PRADEEP 19-9-2024

INDORE SAMACHAR 19-9-2024

AMBALA COVERAGE 19-9-2024

Friday, September 13, 2024

बाल संगम दीवार पत्रिका के हिन्दी भाषा विशेषांक का विमोचन

 धूमधाम से मनाया हिन्दी दिवस

बाल संगम दीवार पत्रिका के हिन्दी भाषा विशेषांक का विमोचन

कविता लेखन में देवांशी, निबंध लेखन में सृष्टि व ज्योति ने पाया पहला स्थान

इन्द्री, 13 सितंबर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हिन्दी दिवस धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कार्यकारी प्रधानाचार्य डॉ. सुभाष भारती ने की। हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा, सलिन्द्र मंढ़ाण और हिन्दी अध्यापक नरेश मीत के नेतृत्व में विद्यार्थियों ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और हिन्दी की महत्ता को रेखांकित किया। इस मौके पर स्कूल की बाल संगम दीवा पत्रिका के हिन्दी भाषा विशेषांक का विमोचन किया गया। निर्णायक मंडल में प्राध्यापक बलविन्द्र सिंह, सीमा गोयल, रमन सैनी, अश्वनी कुमार ने भूमिका निभाई।

कविता पाठ प्रतियोगिता में समिष्ठी ने पहला और करिमा ने दूसरा स्थान प्राप्त किया। कक्षा नौ से बारह में कविता लेखन में देवांशी ने पहला, अवनी ने दूसरा, याचिका व दिव्या ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। नारा लेखन में दसवीं कक्षा की तनु, तृषा, संजना ने क्रमश: पहला, दूसरा व तीसरा स्थान प्राप्त किया। निबंध लेखन में दसवीं-ए कक्षा की छात्रा सृष्टि और भाषण प्रतियोगिता में भारती ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वहीं कक्षा छह से आठ में कक्षा आठवीं की ज्योति ने पहला, सातवीं कक्षा की छात्रा माफी ने दूसरा और आठवीं कक्षा की छात्रा जैसमीन ने तीसरा स्थान पाया। अंजलि परोचा और नेहा ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया। कविता लेखन में वंशिका ने पहला, इशिका ने दूसरा और तनवी ने तीसरा स्थान पाया। पोस्टर बनाओ प्रतियोगिता में 11वीं मैडिकल की छात्रा जैसवीन ने पहला, नौवीं की छात्रा यशवी ने दूसरा और 11वीं कॉमर्स की छात्रा मानसी ने तीसरा स्थान प्राप्त किया।
स्कूल में आयोजित संगोष्ठी में विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन करते हुए डॉ. सुभाष भारती ने कहा कि हिन्दी आज अन्तर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा हासिल कर चुकी है। हरियाणा में हिन्दी मातृभाषा भी है, जोकि माता के समान होती है। अत: हमें हिन्दी में अभिव्यक्ति करने में जरा भी संकोच नहीं करना चाहिए। अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि अपनी भाषा ज्ञान और चिंतन का बुनियादी स्रोत है। हिन्दी भाषा की नींव मजबूत होने पर ही हम अन्य भाषाओं में पारंगत हो सकते हैं। हिन्दी में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। सलिन्द्र मंढ़ाण ने हास्य कविता सुनाकर सभी को लोटपोट कर दिया। उन्होंने कहा कि हृदय के उदगार मातृभाषा में ही प्रकट होते हैं। हमें हिन्दी में भावाभिव्यक्ति करते हुए गौरव का अनुभव होना चाहिए। नरेश मीत ने कहा कि हिन्दी विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा है। इसमें 11 स्वर, 33 व्यंजन, संयुक्ताक्षर, अयोगवाह आदि के संयोजन द्वारा कठिन से कठिन विषयों और भावों को सहज भाव से प्रकट करने की क्षमता है।

दीवार पत्रिका का 15 दिन में आता है नया अंक-

समारोह का आकर्षण विद्यार्थियों द्वारा हर 15 दिन में तैयार की जाने वाली बाल संगम दीवार पत्रिका के हिन्दी भाषा विशेषांक का विमोचन रहा। हिन्दी प्राध्यापक अरुण कैहरबा व हिन्दी अध्यापक नरेश मीत के मार्गदर्शन में छात्र संपादक मनप्रीत, निशिता, सिया, अनम, हिमांशी, मानसी, कशिश, रूही, रीतिका द्वारा संपादित और सुसज्जित अंक का विमोचन कार्यकारी प्रधानाचार्य डॉ. सुभाष भारती, हिन्दी प्राध्यापक सलिन्द्र मंढ़ाण, प्राध्यापक बलविन्द्र सिंह, सीमा गोयल, विज्ञान अध्यापक रमन सैनी, अंग्रेजी अध्यापक अश्वनी कुमार ने किया। सभी ने विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई पत्रिका की सराहना की। अरुण कैहरबा और नरेश मीत ने बताया कि हर 15 दिन में दीवार पत्रिका का नया अंक विद्यार्थियों द्वारा तैयार किया जाता है। इससे विद्यार्थियों की अभिव्यक्ति क्षमता और रचनात्मकता का विकास होता है। उन्होंने बताया कि मौजूदा अंक हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में हिन्दी विशेषांक के रूप में निकाला गया है। यह अंक आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक भारतेंदु हरिश्चंन्द्र को समर्पित है, जिन्होंने नाटक सहित विभिन्न गद्य विधाओं को नया रूप दिया और आधुनिक हिन्दी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विद्यार्थियों द्वारा पेंटिंग, पोस्टर, कविता, नारों से इसे सजाया गया है और मातृभाषा की भूमिका को रेखांकित किया गया है।
dainik jagmarg 14-9-2024





14-9-2014

amar ujala 14-9-2024

Thursday, September 12, 2024

DRAWING & PAINTING WORKSHOP IN GMSSSS BIANA

 विद्यार्थियों में छिपी हुई है असीम रचनात्मक प्रतिभा: अरुण कैहरबा

कहा: प्रतिभाओं को मंंच प्रदान करना और अनुकूल वातावरण बनाना जिम्मेदारी

हिन्दी पखवाड़े के उपलक्ष्य में चित्रकला कार्यशाला आयोजित

विद्यार्थियों ने हिन्दी की महत्ता को दर्शाने वाले सुंदर चित्र व पोस्टर बनाए

इन्द्री, 12 सितंबर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हिन्दी पखवाड़े के उपलक्ष्य में चित्रकला कार्यशाला का आयोजन किया गया। हिन्दी अध्यापक नरेश मीत के नेतृत्व में आयोजित कार्यशाला में कईं विद्यार्थियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और हिन्दी की महत्ता को दर्शाने वाली सुंदर पेंटिंग और पोस्टर बनाए। कार्यशाला में मनप्रीत, अनम, रूही, कशिश, रीतिका, निष्ठा, हिमांशी, सिया आदि विद्यार्थियों की कलाकृतियों को विशेष रूप से पसंद किया गया।
इस मौके पर हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि विद्यार्थियों में असीम रचनात्मक प्रतिभा छुपी हुई है। कलात्मकता और सौंदर्य दृष्टि इसका अभिन्न हिस्सा हैं। प्रतिभाओं के विकास में वातावरण का अहम योगदान रहता है। स्कूल में विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के द्वारा अनुकूल वातावरण पैदा करने की कोशिश की जाती है और प्रतिभाओं को मंच प्रदान किया जाता है। उन्होंने कहा कि मौजूदा सामाजिक परिदृश्य में ऐसे तत्वों की कमी नहीं है, जो शिक्षा में अवरोध खड़े करते हैं। उन अवरोधकों को हटाकर और रचनात्मकता को बढ़ावा देने पर ही हम अपने बच्चों को आगे बढ़ा सकते हैं। हिन्दी प्राध्यापक नरेश मीत ने कहा कि कार्यशाला में बच्चों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अद्भुत चित्र बनाए हैं। राजनीति विज्ञान प्राध्यापक बलविन्द्र सिंह, विज्ञान अध्यापक रमन सैनी, शारीरिक विज्ञान अध्यापक रमन बगा सहित अध्यापकों ने विद्यार्थियों का हौंसला बढ़ाया।  
JAGMARG 13-9-2024

HARYANA PRADEEP 13-9-2024











13-9-2024

BABU MOOLCHAND JAIN: GANDHI OF HARYANA

 पुण्यतिथि विशेष

बाबू मूलचंद जैन: महान स्वतंत्रता सेनानी व जनहितैषी गांधीवादी नेता

अरुण कुमार कैहरबा 

आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले सेनानियों और आजादी के बाद देश के नवनिर्माण में सक्रिय हिस्सेदारी करने वाले नेताओं की देश में कमी नहीं है। उन्हीं में से एक हैं हरियाणा के गांधी के रूप में प्रसिद्ध बाबू मूलचंद जैन। सम्मान से उन्हें लोग बाबू जी कहकर पुकारते हैं और उनके कार्यों की चर्चा करते हैं। देश को गुलामी की बेडिय़ों से मुक्त करवाने के लिए उन्होंने गांधी जी के विचारों का अनुसरण करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया, जेलें काटी और आजादी के बाद लोकसभा सदस्य, संयुक्त पंजाब की विधानसभा के  सदस्य, कैबीनेट मंत्री, हरियाणा विधानसभा सदस्य, वित्त मंत्री और अनेक भूमिकाओं में देश-प्रदेश के निर्माण में अपना योगदान दिया। उन्होंने हरियाणा को अलग राज्य बनाने के आंदोलन में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। जातिवाद और छूआछूत को समाज विकास की सबसे बड़ी बाधा मानने वाले मूलचंद जी ने आजीवन समाज के वंचित वर्ग के हितों में कार्य किया। हालांकि गांव-गांव में पुस्तकालय स्थापित करने के लिए कोई बड़ा आंदोलन शुरू नहीं हो पाया, लेकिन वे बच्चों व युवाओं में पढऩे की संस्कृति के विकास को बहुत महत्वपूर्ण मानते थे। इस उद्देश्य से अपने जीवनकाल में ही उन्होंने अपने गांव में पुस्तकालय की स्थापना की थी।
बाबू मूलचन्द जैन का जन्म 20अगस्त, 1915 को तत्कालीन रोहतक और अब सोनीपत जिला की तहसील गोहाना के गांव सिकंदरपुर माजरा में हुआ था। उन्होंने गांव के स्कूल से 1925 में प्राथमिक शिक्षा, गोहाना के राजकीय स्कूल से 1931 में मैट्रिक प्रथम श्रेणी में पास की। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव सिंह और राजगुरु को फांसी दिए जाने के विरोध में गोहाना में हुए विरोध प्रदर्शन में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। 1935 में लाहौर से बी.ए. की परीक्षा पास की। पढ़ाई के दिनों में वे अपने उदार हृदय के लिए जाने जाते थे। 1937 में पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर से कानून की परीक्षा पास की और प्रथम स्थान लेने के लिए उन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। इसके बाद वकालत शुरू की। गांधी जी के आह्वान पर स्वतन्त्रता आंदोलन में कूद पड़े। 1938 में रोहतक के असौंधा गांव में कांग्रेस की सभा पर जमींदारा लीग के हजारों कार्यकर्ताओं ने हमला बोलकर कांग्रेस के अनेक कार्यकर्ताओं को घायल कर दिया था। जिसमें बाबू जी भी थे। 1941 में गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन में उन्होंने बढ़चढ़ कर भाग लिया। 6 मार्च 1941 को बाबू जी ने अपनी जन्मभूमि गांव सिकन्दरपुरा माजरा से ही सत्याग्रह शुरू कर दिया तथा स्वतन्त्रता सेनानी चौधरी रणवीर सिंह हुड्डा की उपस्थिति में गिरफ्तारी दी। बाबू जी ने एक साल की सजा गुजरात (मौजूदा पाकिस्तान) जेल में काटी। सन् 1942 में गांधी जी द्वारा छेड़े गए भारत छोड़ो आंदोलन में बाबू जी के भाग लेने पर 11 अगस्त 1942 को उन्हें करनाल कचहरी में गिरफ्तार कर लिया गया और नजरबन्द करके उन्हें पुरानी केन्द्रीय जेल मुल्तान भेज दिया। जहां उन्हें एक साल से अधिक रहना पड़ा।
आजादी के बाद बाबूजी जिला कांग्रेस करनाल के महासचिव व बाद में जिला प्रधान बने। वह गरीबों व मुजारों की वकालत मुफ्त ही किया करते थे। उन्होंने 1948 से 52 तक साप्ताहिक समाचार-पत्र ‘बलिदान’ का संपादन किया। इस दौरान उन्होंने मुजारों को 5-5 एकड़ भूमि दिलवाने के लिए लिखा और आंदोलन किया। वे जात-पात और छूआछूत जैसी समस्याओं को समाप्त कर देना चाहते थे। कॉलेज में पढ़ते हुए जब उन्हें पता चला कि गांव में उच्च वर्ग के कूएं से दलितों को पानी भरने नहीं दिया जाता तो उन्होंने इसके खिलाफ संघर्ष किया और कूएं से दलितों को पानी भरने का हक दिलाकर ही दम लिया।
बाबू मूलचंद जैन 1952 में पहली बार समालखा से विधायक बने तथा सरदार प्रताप सिंह कैरो के मंत्रीमंडल में लोक निर्माण मंत्री बने। 1957 में कैथल से लोकसभा के सदस्य चुने गए। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें विभिन्न संसदीय कमेटियों का सदस्य बनाया। पंचायती राज कमेटी के सदस्य के रूप में उन्हें विभिन्न राज्यों में काम करने का अवसर मिला। इसके बाद उन्हों राज्य की राजनीति का रूख किया। 1962 में घरौंडा से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा। परन्तु तत्कालीन मुख्यमन्त्री प्रताप सिंह कैरो के अंदरूनी विरोध के कारण चुनाव हार गए। 1965 में बाबू जी ने हरियाणा को पंजाब से अलग प्रांत बनाने के लिए चलाए गए आंदोलन में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। इस उद्देश्य से बनाई ऑल पार्टी हरियाणा एक्शन कमेटी के महासचिव बने। इस कमेटी के अध्यक्ष जननायक चौ. देवी लाल थे। कमेटी के अथक प्रयासों से हरियाणा अलग राज्य बना। कांग्रेस की टिकट पर 1967 में घरौंडा से विधायक बने और इसके एकदम बाद मतभेदों के चलते दलबदल करते हुए विशाल हरियाणा पार्टी के राव बीरेन्द्र सिंह के मंत्रीमण्डल में राज्य के वित्तमन्त्री बने। 1968 में उन्होंने विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर इन्द्री से चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए।
1973-75 के दौरान उन्होंने लोकनायक जय प्रकाश नारायण द्वारा चलाए गए आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और हरियाणा संघर्ष समिति की कार्यकारिणी के सदस्य बने। 1975 में आपातकाल के दौरान 19 महीने जेल में रहे। 1977 में समालखा से जनता पार्टी के टिकट पर विधायक बने तथा 1978 में चौधरी देवीलाल के मंत्रीमण्डल में वितमन्त्री बने। 1980-82 के दौरान राज्य में विपक्ष के नेता रहे। 1985-87 में बाबू जी ने राजीव लोगोंवाल समझौता की धारा 7 व 9 विरोध किया तथा चौ. देवीलाल द्वारा चलाये गये न्याय युद्ध आंदोलन में भाग लिया व इस दौरान जेल भी गये। 1987 में देवीलाल की सरकार बनने के बाद वे योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष बने तथा इस दौरान उन्होंने राज्य में शिक्षा के प्रसार के लिए पुस्तकालय आंदोलन व नैतिक शिक्षा पर विशेष बल दिया। उन्होंने जुलाई 1989 मे तत्कालीन मुख्यमंत्री से मतभेदों के कारण योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। 20अगस्त, 1990 को  75वें जन्मदिन पर  करनाल आयोजित भव्य समारोह में उन्हें सम्मानित किया गया।
मूलचंद जैन मौजूदा शिक्षा ढ़ांचे में व्यापक बदलाव के पक्षधर थे। 1989 में  उनके प्रयासों से सरकार ने सार्वजनिक पुस्तकालय अधिनियम बनाया। 1992-96 के दौरान सरकार ने उन्हें पुस्तकालय को लेकर स्टैंटिंग एडवाइजरी कमेटी का अध्यक्ष और राज्य पुस्तकालय प्राधिकरण का सदस्य बनाया। पुस्तकालयों की स्थापना में उन्होंने अहम योगदान दिया। अपने 76वें जन्मदिन पर 20अगस्त, 1991 को अपने पैतृक गांव सिकंदरपुर माजरा में अपने पैतृक निवास को एक आदर्श पुस्तकालय के रूप में परिवर्तित कर गांव व क्षेत्र के लोगों को समर्पित कर दिया। तभी से साल गांव के लोग बाबू जी के जन्मदिन को पुस्तकालय दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। पुस्तकालय दिवस पर उनके जीवन काल में ही अनेक हस्तियां गांव में आ चुकी थी। 
मूलचंद जैन हरियाणा व पंजाब राज्य में जीवन भर शैक्षिक, सामाजिक, राजनैतिक, स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत के प्रचार-प्रसार के कार्यों में लगे रहे। 12 सितंबर, 1997 को करनाल स्थित आवास पर उनका देहांत हो गया। उनके निधन के बाद अगस्त 1998 में उनके 84वें जन्मदिन पर तत्कालीन उपराष्ट्रपति की पत्नी श्रीमती सुमनकांत जी की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में उनके पैतृक गांव सिकंदरपुर माजरा स्थित सरकारी स्कूल का नामकरण बाबू मूल चन्द जैन राजकीय उच्च विद्यालय रखा गया। अगस्त 2015 में बाबूजी के जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर हरियाणा सरकार ने बाबूजी के सम्मान में आईटीआई करनाल का नामकरण बाबू मूल चन्द जैन आईटीआई रखा गया। गत वर्ष 12 सितंबर को उनकी 23वीं पुण्यतिथि पर आईटीआई में स्थापित की गई। बाबूजी की मूर्ति का अनावरण उपायुक्त ने किया। मूलचंद जैन को एक विचारक, लोकहितैषी नेता और समाज सुधारक के रूप में हमेशा याद किया जाता रहेगा। 
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार, सामाजिक कार्यकर्ता
घर का पता-
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा-132041
मो.नं.-9466220145
DAINIK JAGMARG 12-9-2024

Monday, September 9, 2024

DYAL SINGH MAJITHIA WAS GREAT SOCIAL REFORMER & EDUCATIONIST

दयाल सिंह मजीठिया की पुण्यतिथि पर विशेष

शिक्षा, समाज सुधार व पत्रकारिता के अग्रदूत: दयाल सिंह मजीठिया
अरुण कुमार कैहरबा

महाराष्ट्र में शिक्षा व समाज सुधार के लिए जो काम महात्मा ज्योतिबा फुले व उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने किया, जो काम बंगाल में राजा राममोहन राय ने किया, वही काम पंजाब व उत्तर भारत में दयाल सिंह मजीठिया ने किया है। लेकिन उनके योगदान को बहुत कम लोग जानते हैं। कट्टरता और भेदभाव के दौर में दयाल सिंह बेहद उदार विचारों के धनी थे। वे पश्चिमी शिक्षा और आधुनिकता के समर्थक थे। शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा संस्थानों को उदारता के साथ दान दिया। उन्होंने लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अपनी सम्पत्ति से द ट्रिब्यून ट्रस्ट, दयाल सिंह पब्लिक लाईब्रेरी ट्रस्ट और दयाल सिंह कॉलेज ट्रस्ट सोसायटी की स्थापना की। द ट्रिब्यून ट्रस्ट ने स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को बढ़ावा दिया और कॉलेज व पुस्तकालय ने शिक्षा का प्रसार किया, जिसने देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई।
दयाल सिंह ऐसे परिवार की संतान थे, जिसने महाराजा रणजीत सिंह द्वारा स्थापित सिख राज्य में अहम भूमिका निभाई। परिवार की तीन पीढिय़ों ने रणजीत सिंह की सेना को जनरल प्रदान किए। दयाल सिंह के दादा सरदार देसा सिंह रणजीत सिंह के भरोसेमंद सैन्य जनरल थे, जिन्हें बाद में मंडी और साकेत के पहाड़ी राज्यों का गर्वनर नियुक्त किया गया था। उनकी सराहनीय सेवाओं के लिए रणजीत सिंह ने उन्हें उपाधियां प्रदान की। दयाल सिंह के पिता लहना सिंह को अपने पिता की सम्पत्ति का अपना हिस्सा विरासत में मिला। वे साहित्य प्रेमी, विज्ञान में रूचि रखने वाले थे और उनका बहुत सम्मान था। लहना सिंह लाहौर से तीर्थयात्रा के लिए निकले और अनेक स्थानों से होते हुए उन्होंने बनारस में सम्पत्ति खरीदी। बनारस में ही 1848 में दयाल सिंह मजीठिया का जन्म हुआ। वे सरदार लहना सिंह के एकमात्र पुत्र थे। सरदार लहना सिंह की मृत्यु 1854 में ही हो गई थी, तब दयाल सिंह केवल छह साल के थे। लहना सिंह अपने बेटे दयाल सिंह का जिम्मा कमांडर इन चीफ तेजा सिंह को देकर गए थे। दयाल सिंह एक राज कुमार की तरह रहते थे। अमृतसर के क्रिश्चयन मिशन स्कूल में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की।
दयाल सिंह ने कुश्ती व दंगल को संरक्षण प्रदान किया। वे शतरंज व पतंगबाजी के शौकीन थे। दयाल सिंह शास्त्रीय संगीत के शौकीन थे और खुद सितार बजाते थे। वे एक कवि भी थे और ‘मशरिक’ तखल्लुस के साथ उर्दू में लिखते थे। उनकी तीन ‘सिहाफिय़ाँ’ लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी में रखी हुई हैं। उन्होंने समृद्ध गद्य भी लिखा। वे आधुनिक विचारों के व्यक्ति थे। रूढिय़ां और कट्टरता उन्हें छू भी नहीं पाती थी। उनकी रसोई में मुस्लिम और इसाई रसोईये थे। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई व पारसी उनके अनेक मित्र थे। वे पढऩे के शौकीन थे।
अपनी अपार संपत्ति से दयाल सिंह ने लाहौर में व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए आधुनिक सेवाओं से युक्त दयाल सिंह हवेली का निर्माण करवाया। वह एक बड़े संस्था निर्माता थे। वे पंजाब नेशनल बैंक के संस्थापकों में भी शामिल थे। दयाल सिंह ने केवल 50 वर्ष की आयु में 1898 में दुनिया को अलविदा कह दिया था।
दयाल सिंह के जीवन काल में किसी को यह अंदेशा नहीं था कि आने वाले 50 सालों में धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हो जाएगा। दयाल सिंह की कर्मस्थली लाहौर बंटवारे के बाद बने नए देश पाकिस्तान में रह गई। परिणाम यह हुआ कि दयाल सिंह द्वारा स्थापित तीनों संस्थाओं को चलाने वाले ट्रस्ट की संपत्ति तो पाकिस्तान में रह गई, जबकि अधिकांश ट्रस्टी भारत में आने को मजबूर हो गए।
करनाल स्थित दयाल सिंह कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे वीबी अबरोल ने बताया कि भारत आने के बाद प्रमुख ट्रस्टी दीवान आनंद कुमार के प्रयासों से दयाल सिंह कॉलेज 1949 में करनाल में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की कोठी में पुनसर््थापित हो गया। बाद में दीवान आनंद कुमार ने राजधानी दिल्ली के प्रमुख इलाके लोधी रोड़ पर जमीन अलॉट करवाकर वहां भी दयाल सिंह कॉलेज की स्थापना की। उन्होंने आज के दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर दयाल सिंह लाईब्रेरी की पुनस्र्थापना भी की। और द ट्रिब्यून अखबार अंबाला आदि शहरों में घूमने के बाद पंजाब (आजकल हरियाणा भी) की नवनिर्मित राजधानी चंडीगढ़ में पहुंच कर स्थाई रूप से यहीं का हो गया। वह सेक्टर-29सी के अपने शानदार कार्यालय में छपकर रोज सुबह हमारे हाथों में पहुंचता है। मुख्य कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों के लिए साथ ही ट्रिब्यून कॉलोनी भी आबाद है।
पहले केवल अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होने वाले अखबार के 15 अगस्त, 1978 से हिन्दी और पंजाबी भाषा के संस्करण भी शुरू किए गए। प्रतिदिन चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में लाखों लोगों के हाथों में चाय की प्याली के साथ ट्रिब्यून अखबार भी होता है। हजारों युवा करनाल, दिल्ली, लाहौर में दयाल सिंह कॉलेज में पढऩे जाते हैं। सैंकड़ों लोग दिल्ली और लाहौर में दयाल सिंह पब्लिक लाईबे्रेरी में नई-नई किताबों और दुनिया भर के अखबारों पत्रिकाओं से ज्ञान प्राप्त करते हैं। वीबी अबरोल का कहना है कि नि:संतान पर दूरदृष्टा दयाल सिंह आज से 150 साल पहले ही समझ गए थे कि आने वाले समय में ज्ञान ही सबसे बड़ी शक्ति होगा। इसीलिए उन्होंने जो तीन ट्रस्ट: अखबार, लाईब्रेरी व कॉलेज बनाए, वह सभी ज्ञान प्राप्ति से जुड़े हैं। इस तरह नि:संतान दयाल सिंह की वंश परंपरा उनकी मृत्यु के 125 साल बाद और भी विस्तृत और सुदृढ़ होती जा रही है।
दयाल सिंह ने यह भी समझ लिया था कि आगे बढऩे के लिए अपने को वैचारिक संकीर्णता से मुक्त करना होगा। उन्होंने उस समय के सबसे उदारवादी और प्रगतिशील चिंतन ब्रह्म समाज को अपना लिया था। अपनी वसीयत में कॉलेज ट्रस्ट की व्यवस्था करते हुए दयाल सिंह ने स्पष्ट कर दिया था कि कॉलेज पूरी तरह से नॉन डिनोमिनेशनल (जहां किसी विशेष धार्मिक मान्यता का प्रचार-प्रसार ना हो) होगा। अपनी वैचारिक उदारता के कारण दयाल सिंह आज भी उत्तरी भारत सहित अपनी कर्मभूमि लाहौर व लहंदा पंजाब में लोकप्रिय हैं। मियां नवाज शरीफ के प्रथम प्रधानमंत्रीत्व काल में कर्नल प्रताप सिंह के नेतृत्व में पंजाब के कुछ प्रमुख लोगों का प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान यात्रा पर गया। द ट्रिब्यून के चंडीगढ़ में उस समय विशेष संवाददाता प्रभजोत सिंह इस प्रतिनिधिमंडल के सदस्य थे। जब मियां नवाज शरीफ को प्रतिनिधिमंडल के पाकिस्तान में होने की जानकारी मिली तो उन्होंने सभी सदस्यों को अपने फार्महाउस पर दावत दी। बातचीत के दौरान प्रभजोत सिंह ने कहा कि लाहौर में ट्रिब्यून के पुराने कार्यालय के बाहर दयाल सिंह की मूर्ति लगी है। यदि मियां साहब इजाजत दें तो वह बुत को चंडीगढ़ ले जाकर अखबार के वर्तमान कार्यालय में प्रमुख स्थान पर लगाना चाहेेंगे। इस पर मियां साहब ने जवाब दिया कि आप और कुछ भी मांग लें पर सरदार की इस निशानी को वह लाहौर से नहीं जाने देंगे।
वीबी अबरोल ने बताया कि अपने स्वर्ण जयंती वर्ष में आयोजित एक समारोह में करनाल के दयाल सिंह कॉलेज ने लाहौर के गर्वमेंट दयाल सिंह कॉलेज के प्रिंसिपल को भी न्योता भेजा। आने में असमर्थता जाहिर करते हुए प्रिंसिपल साहब ने लिखा कि जब जर्नल जिया पाकिस्तान के सदर थे तो वह किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर कॉलेज में गए थे। उन्होंने देखा कि कमेस्ट्री विभाग की प्रयोगशालाओं की हालत काफी खस्ता थी तो प्रयोगशालाओं को आधुनिक बनाने के लिए सदर ने मौके पर ही 25 लाख के विशेष अनुदान की घोषणा की थी।
लाहौर में 1909 में चालू हुए कॉलेज ने अब 115 साल पूरे कर लिए हैं और करनाल का दयाल सिंह कॉलेज अपनी ही एक जयंती मनाने की तैयारी कर रहा है। इन 115 सालों में न जाने कितने युवाओं ने दयाल सिंह कॉलेज से शिक्षा प्राप्त कर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में ऊंचे पद पाए हैं। दयाल सिंह लाईब्रेरी से प्राप्त किताबें पढक़र अपनी सोच को बदला है। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। पुण्यतिथि पर दूरदृष्टा उदार चिंतक को सादर नमन।
JAGMARG 9-9-2024



Sunday, September 8, 2024

आओ बात करें कार्यक्रम / देस हरियाणा के 54वें अंक का हुआ विमोचन

देस हरियाणा का पहले से 54वें अंक का सफर बहुत खूबसूरत: डॉ. सुभाष 

कहा: निरंतरता से कार्य करने पर लोग उसे गंभीरता से लेते हैं

इन्द्री में आयोजित आओ बात करें कार्यक्रम में पत्रिका के राजनीति विशेषांक का हुआ विमोचन

साहित्यकारों, शिक्षकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लिया हिस्सा

अरुण कुमार कैहरबा

करनाल जिला के कस्बा इन्द्री स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला के परिसर में देस हरियाणा द्वारा आओ बात करें कार्यक्रम का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में इन्द्री के साहित्यकारों, शिक्षकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। कार्यक्रम में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर एवं देस हरियाणा के संपादक डॉ. सुभाष सैनी ने मुख्य वक्ता के रूप में हिस्सा लिया। इस दौरान सभी ने देस हरियाणा के राजनीति पर आधारित 53-54वें अंक का विमोचन किया और इस पर गहन विचार-विमर्श किया। कार्यक्रम का संचालन देस हरियाणा के संपादक मंडल से जुड़े लेखक अरुण कुमार कैहरबा और संयोजन कवि नरेश मीत व अध्यापक महिन्द्र खेड़ा ने किया।

मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ. सुभाष सैनी ने कहा कि इन्द्री क्षेत्र देस हरियाणा की गतिविधियों का मुख्य केन्द्र है। यहां पर इससे पहले भी कईं गोष्ठियां हो चुकी हैं। उन्होंने कहा कि पत्रिका के प्रकाशन को नौ साल हो चुके हैं। जब पहला अंक निकला था तो हरियाणा के साहित्यिक जगत में तरह-तरह की चर्चाएं थी कि पत्रिका निकल भी सकेगी या नहीं। लेकिन आज पत्रिका का 53-54वां अंक लिए हम इस पर चर्चाएं कर रहे हैं। साथियों के मन में इसके निरंतर निकलने का संकल्प है। उन्होंने कहा कि निरंतरता से कार्य करने पर ही इतिहास बनता है। तभी उसे महत्व मिलता है और तभी लोग उसे गंभीरता से लेते हैं। कोई भी काम हो, यदि उसमें निरंतरता नहीं है तो उसे करने से कुछ होने वाला नहीं है। हमें बार-बार प्रयास करने होते हैं। शिक्षक होने के नाते हम जानते हैं कि बार-बार पढऩा और पढ़ाना होता है। उन्होंने कहा कि देस हरियाणा के बहुत महत्वपूर्ण अंक आए हैं, जिनकी खूब चर्चा हुई है। पहला अंक भाषा पर केन्द्रित था। 2017 में हमने किसान विशेषांक निकाला। विभाजन पर हमने अंक निकाला। हरियाणा की लोक गाथाओं, हरियाणा के बड़े साहित्यकार बाल मुकुंद गुप्त पर विशेषांक निकला। हमने सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले के जीवन पर विशेष सामग्री प्रकाशित की। संविधान के सरल अनुवाद पर आधारित अंक निकाला। यदि संविधान का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करते हैं तो वह बहुत कठिन लगता है। संविधान को समझने के लिए पत्रिका और गोष्ठियों के माध्यम से हमने काम किया है। हमने चार सृजन उत्सव आयोजित किए, जिसकी चर्चा आज भी होती है और साहित्यकार अगले उत्सव के बारे में पूछते हैं।

सृजन उत्सव के दौरा एक बड़े पत्रकार ने कहा था कि सांस्कृतिक क्षेत्र की कोई एक्सपायरी नहीं होती। यह पता नहीं कहां तक चलता है। पत्रिका का निकलना बड़ी बात है। पत्रिका के जरिये हम अपने आपको व्यक्त करते हैं। डॉ. सुभाष सैनी ने कहा कि बात करने की मनुष्य की भूख सांस लेने जैसी है। लेकिन बात करने के मंच खत्म होते जा रहे हैं। कईं बार चार आदमी इकट्ठे होते हैं तो वे अपने मोबाइल में लगे रहते हैं। ऐसे में आओ बात करें क्लब की शुरूआत काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हमने इतिहास बनाने के लिए पत्रिका नहीं निकाली। लेकिन अब जब हम अपने काम को देखते हैं तो खुशी होती है। हम आनंद के साथ पत्रिका निकालते हैं। यह कार्य कोई बोझ नहीं है।

डॉ. सुभाष सैनी ने मौजूदा अंक पर बोलते ही कहा कि आम तौर पर हमारी राजनीति से ओल्हा निकाल कर चलने की आदत हो गई है। यह भी सही है कि शिक्षक होने के नाते हम सक्रिय राजनीति का हिस्सा नहीं बन सकते हैं। किसी दल विशेष के सदस्य नहीं हो सकते। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हमें राजनीति की प्रक्रियाओं को समझना नहीं है। देश के नागरिक व शिक्षक होने के नाते भी हमें राजनीति की प्रक्रियाओं को समझना और समझाना होगा। जब दृष्टि बनेगी तो लोग अपने आप सही-गलत की पहचान कर लेंगे कि देश व आम जन के लिए क्या सही है। वरना तो राजनैतिक दल जाति व धर्म के नाम पर बांटने की आसान राजनीति करते रहेंगे। आज हमें राशन कार्ड भी बनवाना होता है तो भी नेता साथ चाहिए होता है। इसलिए अपने आप कुछ मिलने वाला नहीं है। लोगों में विचारों के जरिये ही चेतना का निर्माण होता है। आज चुनाव हो रहे हैं। लेकिन लोगों को ठगा ना जाए, भ्रमित ना किया जाए और उसका उल्लू ना बनाया जाए। लालच और डर सहित अनेक कारण से लोगों को बहकाया जा सकता है। लोग अपने विवेक का प्रयोग करें, इसके लिए जरूरी है कि मुद्दों पर बातचीत हो। राजनैतिक विवेक बनाने के लिए बातें करनी होंगी। उन्होंने कहा कि देस हरियाणा के मौजूदा अंक में हरियाणा की राजनीति के इतिहास, परिदृश्य और भविष्य को समझने की कोशिश की गई है। इस अंक में हरियाणा की राजनीति के नायकों का वर्णन है। दलितों, महिलाओं, युवाओं की राजनीति में क्या स्थिति है? हमारे स्थानीय निकाय और डेरों की भूमिका पर चर्चा की गई है। राजनीति के तीन स्तर हैं- विचार, संगठन और चुनाव। राजनीति का विचारधारात्मक पहलू महत्वपूर्ण है। 

पहले सृजन उत्सव के समापन पर आए असगर वजाहत ने कहा था कि लेखक बातचीत का एक सिरा शुरू करता है। दूसरा सिरा लोगों के पास है। लेखक का काम बातचीत की शुरूआत करने का है। उन्होंने कहा कि आज सच्चाई को छुपाने के लिए कोशिशें हो रही हैं। लेकिन सच्चाई छाती फाड़ कर अपने आप निकल आती है। स्वतंत्रता, समता, बंधुता और न्याय के संवैधानिक मूल्यों को मजबूत बनाने का काम करना है। सच्चाई को प्रचारित करते हुए मजबूत बनाना है। राजनैतिक नारों के शोर में यथार्थ को ना केवल देखना है, बल्कि उसे लोगों को देखने के लिए जागरूक भी करना है। तरक्की में आम आदमी को फल का हिस्सा मिल रहा है या नहीं। संसाधनों पर सभी का हक है। संविधान हमें ताकत देता है। आम लोगों की नागरिकता, इन्सानियत और राजनीति मजबूत होनी चाहिए। 

उन्होंने कहा कि अंक में 2013 के आस-पास बनाया गया जनघोषणा पत्र है, जिसमें गृहणियों को प्रोत्साहन राशि देने की मांग की गई है। इसे विभिन्न राज्यों में लागू कर दिया गया है। भूमिहीन पशुपालकों को चारा मुहैया करवाने की मांग की गई है। सब्जी और ठेले वालों के हितों सहित अनेक मुद्दों की मांग की है। आज जब हर काम के लिए पोर्टल बनाए गए हैं, ऐसे में गांव स्तर पर फ्री वाई-फाई सभी की आवश्यकता हो गई है। गांव स्तर पर मुफ्त कम्प्यूटर सीखने के लिए कम्प्यूटर लैब और पुस्तकालय जैसी सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इस मामले में लोगों में चेतना कम पाई जाती है। बात चलती है तो वह कभी ना कभी फलीभूत होती है। सांस्कृतिक राजनीति की चाल अंडरग्राउंड होती है। बातें शुरू करने की जरूरत है। 

अरुण कैहरबा ने बातचीत का संचालन करते हुए कहा कि संचार या बातें समाज के शरीर में रक्त संचार की तरह हैं। विचारों की दुनिया में कोई भी विषय अछूत नहीं है। राजनीति भी ऐसा ही विषय है, चुनावों में इस विषय पर चर्चा करना बहुत रोचक होता है। लेकिन कौन जीतेगा और कौन हारेगा से आगे आम जन को क्या मिलेगा और कैसे मिलेगा पर चर्चा करना जरूरी है। राजनीति के मौजूदा स्वरूप और उसे जनपक्षीय बनाने के लिए काफी वैचारिक विमर्श की जरूरत है। देस हरियाणा का अंक इस कार्य में अपनी महती वैचारिक भूमिका निभाएगा। 

विकास साल्याण ने कहा कि बात करना बहुत जरूरी है। भारतीय संविधान ने देश में बहुत बड़ा परिवर्तन किया है। एक झटके में सभी को वोट का अधिकार प्रदान किया है। यही अधिकार प्राप्त करने के लिए अमेरिका जैसे विकसित देशों में लंबा संघर्ष रहा है। उन्होंने कहा कि हमें यह अधिकार आसानी से मिल गया, इसलिए आम जन इसका महत्व नहीं समझ रहे हैं। लेकिन सजगता के बिना अधिकार छिनने में भी समय नहीं लगता। वही प्रक्रिया चल रही है। इसलिए जगह-जगह आंदोलन व प्रतिरोध दिखाई दे रहे हैं। अधिकारों की सुरक्षा और सजगता बनाने के लिए वैचारिक विमर्श की प्रक्रिया को तेज करना होगा।

महिन्द्र खेड़ा ने कहा कि जब भी हम देस हरियाणा पत्रिका को देखते हैं तो उसमें मनुष्य और उसकी परेशानियों के प्रति समग्र दृष्टि दिखाई देती है। पूरी दुनिया में मनुष्य और उसके संघर्षों को समग्रता में देखने पर ही हमें चीजें समझ में आती हैं। लोगों के जीवन की परेशानियों और उनके कारणों की विवेचना करते हुए हमें कोई विचार प्रेरित करता है। देस हरियाणा पत्रिका लोगों को विचार देने का कार्य करती है। बिना विचार के आदमी बंद अंधेरी कोठरी में कैद होता है। विचार से मनुष्य को मकसद मिलता है और फिर उस विचार के साथ वह संघर्ष करता है। मानवता के संघर्षों में हिस्सा लेता 

दयाल चंद ने कहा कि स्वतंत्रता, समता, बंधुता और न्याय के मूल्यों को बढ़ावा देती है। कार्यक्रम के दौरान डॉ. सुभाष सैनी ने बच्चा लाल उन्मेष की कविता-कौन जात हो भाई? सुनाई। देस हरियाणा से जुड़े नरेश मीत ने अपनी कविता-समय की यात्रा सुनाई। सुभाष लांबा और गुंजन ने गीत सुनाए। इस मौके पर अध्यापक देवेन्द्र देवा, मान सिंह चंदेल, धर्मवीर लठवाल, समय सिंह, जगदीश चन्द्र, सबरेज अहमद, जसविन्द्र पटहेड़ा, जेई मामराज कैहरबा, सूरज सैनी, ताज मोहम्मद, समृद्ध सौरव उपस्थित रहे।

HARANA PRADEEP 9-9-2204

  

PRAKHAR VIKAS 9-9-2024

JAGMARG 9-9-2024


DAINK TRIBUNE 9-9-2024

DAINIK JAGRAN 9-9-2024