Monday, July 25, 2022

SEMINAR / SHAHEED UDHAM SINGH KI SHAHADAT AUR AZAADI KE ANDOLAN KI VIRASAT

 वैश्विक दृष्टि रखते थे क्रांतिकारी उधम सिंह: डॉ. सुभाष चन्द्र

कहा: देश की आजादी व न्यायसंगत समाज की स्थापना था लक्ष्य

उधम सिंह की शहादत व स्तंत्रता आंदोलन की विरासत विषय पर संगोष्ठी आयोजित

इन्द्री में शहीद उधम सिंह की शहादत व स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता डॉ. सुभाष चन्द्र हिन्दी विभागाध्यक्ष कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के साथ प्रतिभागी।

इन्द्री, 25 जुलाई 

स्थानीय राजकीय प्राथमिक पाठशाला में शहीद उधम सिंह की शहादत और स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सुभाष चन्द्र ने संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में विचार व्यक्त करते हुए शहीद उधम सिंह के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों, विचारों और शहादत पर विस्तार से विचार रखे। सत्यशोधक फाउंडेशन, शहीद सोमनाथ स्मारक समिति, शहीद यादगार समिति, डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक शिक्षा मंच व अध्यापक संघ द्वारा आयोजित संगोष्ठी का संचालन हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने किया।

इन्द्री में आयोजित संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय हिन्दी विभागध्यक्ष प्रो. सुभाष चन्द्र व हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा।

प्रो. सुभाष चन्द्र ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी कुनबे से जुड़े उधम सिंह ऐसे व्यक्ति हैं, जो समाज के सामाजिक व आर्थिक रूप से बेहद पिछड़े परिवार से आते हैं। कम उम्र में उनके माता-पिता का का देहांत हो गया। उसके बाद अमृतसर के अनाथाश्रम में रहते हुए वे शिक्षा ग्रहण करते हैं और पचास-पेचकस जैसे उपकरणों का इस्तेमाल सीखकर वे एक कुशल कारीगर बनकर निकलते हैं। उधम सिंह ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। लेकिन उर्दू, पंजाबी व अंग्रेजी का कामचलाऊ ज्ञान रखते थे। उनकी पढऩे में दिलचस्पी का इस बात से पता चलता है कि जब वे पुलिस से पकड़े गए तो उनके पास से गदर पार्टी का साहित्य पाया गया था। उधम सिंह करतार सिंह सराभा और भगत सिंह से प्रेरित हुए। सराभा की पंक्तियां- सेवा देश दी जिंदडि़ए बड़ी औखी, गल्लां करणियां ढ़ेर सुखल्लियां ने, जिन्ना देश सेवा विच पैर पाया, उन्नां लख मुसीबतां झल्लियां ने उधम सिंह अपनी जेब में रखे रहते थे। इसके अलावा भगत सिंह का चित्र भी उनकी जेब में होता था। डॉ. सुभाष चन्द्र ने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि के बिना कोई क्रांतिकारी नहीं हो सकता। उधम सिंह भी वैश्विक दृष्टि से लैस थे। वे दुनिया के कईं देशों में घूमे। उन्होंने दो फिल्मों में भी काम किया। उधम सिंह का बचपन का नाम शेर सिंह था। लेकिन अंगे्रजों से बच कर बाहर जाने के लिए उन्हें उधम सिंह के नाम से पासपोर्ट बनवाना पड़ा। बाद में यही नाम उनका विख्यात हो गया। उन्होंने बताया कि दस्तावेजों से पता चलता है कि उधम सिंह का प्रिय नाम मोहम्मद सिंह आजाद था। माइकल ओडवायार को मारने के बाद उधम सिंह ने इसी नाम से अपना बयान दिया था। यही नाम उन्होंने अपनी बाजू पर भी गुदवाया था। उन्होंने कहा कि उधम सिंह सहित क्रांतिकारियों का मकसद देश को आजाद करवाने के साथ-साथ यह भी था कि देश में सभी को न्याय, समानता, शिक्षा व मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें। उनके पास आजादी के बाद एक बेहतर समाज व देश का सपना था।

हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों की जातियों व धर्म से पहचान करना उनके विचारों के उलट जाना ही है। उधम सिंह के शहीदी दिवस को मनाने की सबसे ज्यादा सार्थकता आज के संदर्भ में उनके विचारों को जानना व समझना है। विचारों और सरोकारों के बिना किसी क्रांतिकारी को नहीं समझा जा सकता। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों व महापुरूषों के विचारों को समझ कर ही देश व समाज का कुछ भला हो सकता है। 

कार्यक्रम में राजकीय स्कूल भौजी खालसा के प्रधानाचार्य दयाल चंद जास्ट ने शहीद उधम सिंह का समर्पित अपनी स्वरचित रागनी सुनाते हुए कहा- ऋणी रहैंगे उधम सिंह हम कुर्बानी तेरी के। इस मौके पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्राध्यापक विकास साल्यान, शोधार्थी दिनेश कुमार, अतिथि अध्यापक संघ के खंड प्रधान नरेश कुमार मीत, अध्यापक सुभाष लांबा, सबरेज अहमद, अंग्रेजी प्राध्यापक दलजीत सिंह, महिन्द्र कुमार खेड़ा, विक्रम सिंह, कंवर लाल फौजी, अध्यापक संघ के पूर्व खंड प्रधान मान सिंह चंदेल, बीबीपुर जाटान के पूर्व सरपंच रमेश सैनी, राजेश सैनी, सुभाष कांबोज, गुंजन, बंटी कांबोज, नरेन्द्र बंटी, सार्थक, ध्रुव, हरमन, उर्वी, आर्वी आदि उपस्थित रहे।



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