Thursday, November 19, 2020

विश्व शौचालय दिवस (19नवंबर) पर विशेष लेख

 खुले में शौच से मुक्ति के लिए ठोस उपायों की दरकार

सबके लिए घर व हर घर में शौचालय का निर्माण करने के लिए आगे आए सरकार

अरुण कुमार कैहरबा
खुले में शौच स्वास्थ्य, स्वच्छता, पर्यावरण और समाज सभी के लिए घातक है। खुले में शौच की प्रवृत्ति आदत की बजाय विवशता से अधिक जुड़ी हुई है। खुले में शौच करने वाले के लिए ही यह शर्मनाक नहीं है, उस देश व समाज के लिए भी यह विवशता शर्मनाक होनी चाहिए। खुले में शौच का सीधा संबंध गरीबी और पिछड़ेपन से है। गरीबी के कारण ही आज तक बड़ी आबादी फुटपाथों, झोंपडिय़ों व अस्थाई घरों में जीवन व्यतीत कर रही है। ऐसे में बेहद गंदे वातावरण में शौच करना उनकी विवशता है, जिससे उनके स्वास्थ्य पर तो बुरा प्रभाव पड़ ही रहा है, मानवीय गरिमा भी तार-तार हो रही है।
रोजगार की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर आकर रह रहे लोगों का जीवन भयानक विपदाओं से भरा हुआ है। कितनी ही फैक्ट्रियों, ईंट भ_ों व कार्य स्थलों पर रह रहे लोगों के लिए घर के नाम पर अंधेरे कमरों की व्यवस्था की गई है। सडक़ों के निर्माण आदि में लगे लोग अस्थाई झोंपड़ी बनाकर रहते हैं। बेरोजगारी के कारण आमदनी का कोई जरिया नहीं होने पर गांवों और शहरों में बड़ी आबादी कच्चे घरों में रहती है। बड़े परिवार और रहने के लिए एक या दो कमरों का कच्चा घर। घुमंतु समदायों के लोग आज भी खानाबदोशी का जीवन जीने को मजबूर हैं। मकान से पहले रोटी-कपड़ा की जंग उन पर भारी पड़ रही है। मकान के रूप में भी आम लोगों की प्राथमिकता यही रहती है कि रहने के लिए ठीक-ठाक कमरा हो। खाना बनाने के लिए रसोई के रूप में इस्तेमाल करने लायक छत हो। इसके बाद स्नानघर व शौचालय का नंबर आता है। यथार्थ के धरातल पर देखें तो स्वाभाविक क्रम भी यही होगा।
भयानक गरीबी, बीमारी और बेकारी के हालात में खुले में शौच ना करने और शौचालय का निर्माण करने का उपदेश और संदेश यदि कानों तक पहुंच भी जाए तो अंदाजा लगाएं कि आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? जी हां, ये सारे संदेश बेकार जान पड़ेंगे। भले ही बीमारी का एक कारण यह भी हो। स्वच्छ भारत मिशन की वैबसाईट पर जाएं तो हमें चमचमाते सरकारी आंकड़े दिखाई देंगे। इन आंकड़ों के मुताबिक 2 अक्तूबर, 2014 से आज तक सरकार द्वारा 10 करोड़, 70 लाख, 96 हजार 876 घरों में शौचालयों का निर्माण करवाया गया है। सभी 35 राज्य व केन्द्र शासित प्रदेश, 706 जिले और 6 लाख, तीन हजार, 177 गांव खुले में शौच मुक्त हो चुके हैं। रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ कंपैशनेट इकोनोमिक्स के शोध से इन आंकड़ों की सच्चाई सामने आई। शोध में मिला कि बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व राजस्थान की 44प्रतिशत ग्रामीण आबादी अभी भी खुले में शौच के लिए विवश है। शोध अध्ययनों की रिपोर्ट ना भी देखें तो भी अपने आस-पास हमें सच्चाई आसानी से दिख जाती है। स्वच्छ भारत मिशन के बड़े-बड़े होर्डिंग के आस-पास भी हमें सच्चाई नजर आ जाएगी। खुले में शौच मुक्ति की वाह-वाही लूटने वाले बहुत से गांवों में आज स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। हां, यह भी सच है कि स्थितियों में काफी सुधार हुआ है। बहुत से गांवों में काबिले तारीफ काम हुआ है। वे अधिकतर गांव अपेक्षाकृत सम्पन्न भी हैं। वहां के लोगों ने आदतों में सुधार करके खुले में शौच से मुक्ति पाई है और शौचालयों का इस्तेमाल करना शुरू किया है। नए शौचालयों का निर्माण भी किया गया है। इसमें स्वच्छ भारत मिशन के प्रशिक्षण ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जहां पर लोगों को खुले में शौच के दुष्प्रभावों का सूक्ष्मता से लोगों को अहसास करवाया गया। गांव के लोगों की स्वैच्छिक कमेटी ने खुले में शौच जाने वाले लोगों को शर्मसार किया और उन्हें शौचालय निर्माण के लिए बाध्य किया।
यह भी सच है कि कुछ स्थानों पर स्थितियों का सटीक अध्ययन किए बिना लीपापोती करते हुए गांव को खुले में शौच मुक्त घोषित करके वाह-वाही लूट ली गई। कुछ दिन के दिखावटी और बनावटी प्रयासों का नकाब उतरते ही स्थितियां अपने यथार्थ रूप में सामने आ गई। सच यह है कि लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाए बिना और शौचालयों के निर्माण में सहयोग किए बिना खुले में शौच से सम्पूर्ण मुक्ति नहीं हो पाएगी। जिन लोगों के पास आज तक एक अदद घर नहीं है, सरकार को उनके लिए घर के साथ ही शौचालयों का निर्माण करवाना चाहिए। ऐसे उद्योगों व कारखानों पर भी नकेल कसनी चाहिए, जो अपने मजदूरों के लिए रहने लायक आवास व शौचालय का निर्माण करने में सबसे ज्यादा कंजूसी बरत रहे हैं। सबको घर और हर घर में शौचालय सबके स्वास्थ्य व देश तरक्की का आधार मानी जानी चाहिए।





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