Saturday, October 3, 2020

Need for social reform movement

 व्यापक समाज सुधार आंदोलन की जरूरत

अरुण कुमार कैहरबा

छेड़छाड़, बलात्कार, गैंग रेप और यौन-शोषण की घटनाएं रूकने का नाम नहीं ले रही हैं। दुष्कर्म की एक से एक दर्दनाक घटनाओं से कईं बार हमारे समाज में हलचल होती है और उसके बाद फिर से समाज अपने ढर्ऱे पर चल पड़ता है और घटनाएं घटित होती रहती हैं। इन घटनाओं पर प्राय: लोगों का तब ध्यान जाता है जब इनके प्रति सरकारी व प्रशासनिक स्तर पर घोर उदासीनता देखने को मिलती है। महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों के प्रति पुलिस का रवैया तो आम तौर पर टरकाऊ होता है। कईं बार तो इस तरह के अपराधों के लिए महिलाओं को ही जिम्मेदार माना जाता है। अपराधों पर से ध्यान हटाने का सबसे सुनियोजित तरीका है-पीडि़त पर ही दोषारोपण करना। यूपी के हाथरस जिला के गांव की दलित युवती के साथ कथित तौर पर गैंगरेप, उसकी आवाज को दबाने के लिए उसकी जीभ काटने और रीढ़ की हड्डी तोडऩे की घटना ने समाज की सोई पड़ी संवेदना को झकझोर कर रख दिया है। इस पर पुलिस की कार्रवाई और पीडि़ता के उपचार में बरती गई देरी व ढ़ील के बाद जब पीडि़ता की मौत हो गई तो शव परिजनों को देने की बजाय उनकी अनुपस्थिति में पुलिस द्वारा रात को शव को जला दिए जाने से सरकार व प्रशासन की सोच व कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं। जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव और महिलाओं को खाने-पीने की वस्तु समझने की मानसिकता ने स्थितियों को विकराल बना दिया है। बलात्कार व यौन-शोषण की घटनाओं को रोकने के लिए व्यापक समाज सुधार की प्रक्रिया की जरूरत है। आजादी के बाद यह सुधार आंदोलन मंद पड़ता गया है। मुख्यधारा की राजनीति समाज सुधार के काम से कन्नी काट कर स्वार्थांे व अय्याशियों की गलियों में विचरण कर रही है। प्रशासनिक सेवाओं में आने के लिए परीक्षाओं की वैतरणी पार करना पर्याप्त है। बलात्कार की घटनाओं को रोकने का प्रश्र समाज सुधार और व्यवस्था परिवर्तन का महत्वपूर्ण व गंभीर प्रश्र है। इस पर निरंतर चिंतन और कार्य करने की जरूरत है।

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