Saturday, October 24, 2020

SCIENTIFIC AGRICULTURE & PAINTA FESTIVAL

 वैज्ञानिक खेती और समृद्ध संस्कृति का प्रतीक है पैंता उत्सव
PRAVASI SANDESH 25-10-2020

दशहरे पर जहां उत्सवपूर्वक पुतलों का दहन किया जाता है, वहीं कृषक समुदाय कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए पैंता मनाते हुए भूमि-परीक्षण करते हैं। बहनें भाईयों के कानों पर जौं का पौधा रखकर देती हैं रबी की अच्छी फसल की शुभकामनाएं।

अरुण कुमार कैहरबा

हमारे देश में त्योहारों के विभिन्न रंग देखने को मिलते हैं। एक ही त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाए जाने की परंपराएं भी देखने में आती हैं। दशहरा भी उन्हीं में से एक है, जिसे जहां बहुत से लोग उत्सवपूर्वक रावण के पुतले का दहन करके मनाते हैं। वहीं उत्तरी भारत के कृषक समुदाय इस त्योहार को पैंते के रूप में वैज्ञानिक खेती को समर्पित करते हैं। किसान पैंते के रूप में भूमि-परीक्षण करते हैं। दशहरे के अवसर पर किसान परिवारों में परंपरागत ढंग व उल्लास के साथ पैंते का आयोजन करते हैं। पैंता क्षेत्र की कृषि आधारित अर्थ-व्यवस्था और संस्कृति का प्रतीक बन गया है। इस मौके पर बहनों द्वारा अपने किसान भाईयों के कानों पर जौं का पौधा (पैंता) रखकर रबी की अच्छी फसल की शुभकामनाएं दी जाती हैं।

हमारे समाज में त्योहार विभिन्न रीतियों से मनाए जाते हैं। इन त्योहारों का जहां पौराणिक कथाओं से रिश्ता होता है, वहीं देश की संस्कृति और खेती से भी उसका जुड़ाव है। दशहरा भी उन्हीं में से एक है। दशहरा मर्यादापुरूषोत्तम राम द्वारा पाप व घमंड के प्रतीक रावण के वध के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पूरे देश में ही रावण के पुतले का उत्सवों के साथ दहन किया जाता है और इसे असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक माना जाता है। कुछ स्थानों पर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के विशालकाय पुतलों का निर्माण करवाकर उन्हें जलाया जाता है। इस अवसर पर मेले आयोजित हेाते हैं। पुतलों को जलाए जाने के कारण जहां पर्यावरण प्रदूषित होता है। वहीं इस वर्ष तो कोरोना महामारी के फैलने के खतरों के दृष्टिगत इस तरह के उत्सवों पर प्रश्रचिह्न भी लग गया है। इस पौराणिक कथा के साथ ही हरियाणा ही नहीं समस्त उत्तरी भारत में कृषक समुदायों में नवरात्रे और दशहरा गांवों की जीवन रेखा मानी जाने वाली खेती से भी जुड़ा हुआ है।

खेती बाड़ी से जुड़े समुदायों में दशहरे से जुड़ी पौराणिक कथा की बजाय वैज्ञानिक खेती से जुड़ी परंपरा को ज्यादा तरजीह दी जाती है। इस दिन किसान व खेतीहर मजदूर पैंते का उत्सव मनाते हैं। इस उत्सव की खूबी यह है कि यह उत्सव सादगी के साथ मनाया जाता है। उत्सव के पीछे वैज्ञानिक चेतना काम करती है। यह रबी के सीजन में खेती को दिशा दिखाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस उत्सव से पर्यावरण को फायदा ही होता है। 

पैंता दरअसल जौं के पौधे को कहते हैं। आज कृषि वैज्ञानिकों द्वारा खेती से पूर्व भूमि-परीक्षण की सलाह दी जाती है लेकिन पैंते का त्यौहार भूमि-परीक्षण को परंपरागत रूप से महत्व प्रदान करता है। पैंते की कहानी-परम्परागत तौर पर नवरात्रों से पहले खरीफ की मुख्य फसल धान की कटाई व उठाई सम्पन्न हो जाती है। नवरात्रे के पहले दिन पूजा अर्चना के साथ किसान नई रबी की फसल उगाने की तैयारी करता है। तैयारी के तौर पर इस दिन खेत के सभी कोनों से मिट्टी घर में लाई जाती है। इस मिट्टी में पूरे धार्मिक विधि-विधान के साथ जौं के बीज डाले जाते हैं जिसे गांवों में पैंता उगाना कहा जाता है। पैंता उगाने के बाद किसान हर रोज पैंते की कोंपलें फूटती देखना चाहता है। इसके लिए किसान परिवारों में नवरात्रे के व्रत रखे जाते हैं और पूजा अर्चना की जाती है।

मिट्टी की उर्वरता की जांच की यह बहुत ही पुरानी विधि है। यदि नवरात्रे संपन्न होते-होते पैंते के हरे-भरे पत्ते निकल जाते हैं तो मिट्टी परीक्षण को सफल माना जाता है। दशहरे वाले दिन घर में उगाए गए इस पैंते को विधि-विधान के साथ उखाड़ा जाता है। बहनें इसे किसान भाईयों के कानों पर रखती हैं और रबी की खेती में जुट जाने के लिए तिलक करती हैं। बहनों से आशीर्वाद लेने तथा उसे शगुन के तौर पर दान देने के बाद किसान रबी की मुख्य फसल गेहूं व जौं उगाने में जुट जाते हैं।

घाटे का सौदा होने के कारण लोगों के द्वारा खेती-बाड़ी से किनारा किया जा रहा है लेकिन पैंता लोगों को उन्हें उनकी जड़ों की ओर लेकर जाता है और हमें हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की याद दिलाता है।

HARYANA PRADEEP 26-10-2020

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