विश्व सफेद छड़ी दिवस पर विशेष
सफेद छड़ी दृष्टिबाधितों की बराबरी और सशक्तिकरण का औजार
अरुण कुमार कैहरबा
मानव अधिकारों की रक्षा और सबको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए बहुविध उपाय किए जाने की जरूरत है। दृष्टिहीन बच्चों एवं बड़ों की शिक्षा के लिए समय-समय पर शिक्षाविदों एवं पुनर्वास कार्यकर्ताओं द्वारा अनेक प्रकार की प्रयोग किए गए हैं। दृष्टिहीनों की शिक्षा के क्षेत्र में सबसे जरूरी कदम है, उनकी अपने वातावरण में स्वतंत्रता और आत्मविश्वास के साथ चलने की योग्यता। उनके चलन, सुरक्षा, स्वतंत्रता और पहचान के लिए जिस क्रांतिकारी उपकरण का आविष्कार किया गया, वह है-सफेद छड़ी। अंग्रेजी में यह व्हाईट केन के नाम से प्रसिद्ध है। इसे लंबी छड़ी (लोंग केन) भी कहा जाता है। हालांकि छड़ी की लंबाई इसके प्रयोक्ता के कद पर निर्भर करती है लेकिन मोटे तौर पर इसकी लंबाई इसे प्रयोग में लाने वाले व्यक्ति की छाती के बराबर होनी चाहिए। इस छड़ी के मानक स्वरूप को ईजाद करने का श्रेय अमेरिका के पुनर्वास विशेषज्ञ रिचार्ड ई. हूवर को जाता है। उन्होंने लंबे समय तक अथक मेहनत व प्रयोग के बाद छड़ी को अंतिम रूप दिया। यही कारण है कि इस छड़ी को हूवर छड़ी के नाम से भी जाना जाता है। दृष्टिहीन व्यक्ति चलन के दौरान सफेद छड़ी के माध्यम से रास्ते में पड़ी वस्तुओं को पहचान सकता है। वह रास्ते की सतह और आगे आने वाले गड्ढ़ों या अन्य खतरों के बारे में सावधान हो जाता है। यही नहीं सफेद छड़ी से दृष्टिवान व्यक्ति दृष्टिहीन व्यक्ति की पहचान कर लेते हैं। इससे वे रास्ता पार कर रहे दृष्टिहीन महिला/पुरूष की मदद कर सकते हैं और दुर्घटना से बच जाते हैं।
सामान्य-सी लगने वाली सफेद छड़ी अनेक खूबियों से युक्त है। छड़ी के तीन हिस्से हैं: ऊपरी भाग-हत्था, मध्य भाग और नीचे का भाग जो धरती पर टिकता है। छड़ी का हत्था रबड़ से बना होता है, जोकि करंट रोधी है। मध्य भाग एल्यूमीनियम का है, जोकि हल्का होता है। नीचे का प्लास्टिक का भाग जिस भी वस्तु से टकराता है, उसकी सतह का अहसास छड़ी का प्रयोग रहे दृष्टिहीन व्यक्ति को आसानी से होता है। आजकल सफेद छड़ी अनेक प्रकार की उपलब्ध होती है। फोल्डिंग छड़ी को दृष्टिहीन व्यक्ति सुविधा के मुताबिक इस्तेमाल कर सकता है। अपनी खूबियों के कारण ही अधिकतर दृष्टिबाधित व्यक्ति अपने वातावरण में स्वतंत्रता एवं आत्मविश्वास के साथ चलने के लिए इस साधन का ही चुनाव करते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि यह बुनियादी, बहु उपयोगी, सहज उपलब्ध एवं सस्ता साधन है और इसे बहुत ही कम रखरखाव की जरूरत पड़ती है। 1964 में अमेरिका में प्रति वर्ष 15 अक्तूबर को सफेद छड़ी सुरक्षा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। उसके बाद दृष्टिबाधा के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने और सफेद छड़ी के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से विश्व के अन्य देशों में भी इस दिवस को मनाया जाने लगा।
सदियों से ही दृष्टिहीन व्यक्ति चलन उपकरण के तौर पर छडिय़ों का प्रयोग करते आ रहे हैं लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद सफेद छड़ी की परिकल्पना के बाद दृष्टिहीनों के सुविधाजनक चलन में बड़ा बदलाव आया है। सफेद छड़ी के विकास की एक लंबी प्रक्रिया है। इंग्लैंड के शहर ब्रिस्टल में 1921 में जेम्स बिग्स नाम के फोटोग्राफर दुर्घटना के कारण दृष्टिहीन हो जाते हैं। सडक़ों पर ट्रैफिक की बहुलता के कारण उन्हें बहुत अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। वे अन्य लोगों को अपनी उपस्थिति जाहिर करने के लिए अपनी छड़ी पर सफेदी लगा देते हैं। 1931 में फ्रांस में गिल्ली हरबेमाऊंट ने दृष्टिबाधित लोगों के लिए राष्ट्रीय स्तर का सफेद छड़ी आंदोलन चलाया। इसी वर्ष 7 फरवरी को उन्होंने देश के कईं मंत्रियों की उपस्थिति में दृष्टिहीन लोगों को पहली दो सफेद छडिय़ां प्रदान की। बाद में प्रथम विश्व युद्ध में दृष्टिहीन हुए पूर्व सैनिकों व सिविलियनों को करीब पांच हजार सफेद छडिय़ां भेजी गई। अमेरिका में सफेद छड़ी का परिचय करवाने का श्रेय लायंस क्लब इंटरनेशनल के जियोर्ज ए. बोनहम को जाता है। 1930 में लायंस क्लब के सदस्यों ने काले रंग की छड़ी लिए हुए दृष्टिहीन व्यक्तियों को सडक़ पार करते हुए देखा। काली सडक़ पर यह छड़ी ठीक ढ़ंग से दिखाई नहीं देती थी। सदस्यों ने छड़ी को सफेद रंग से रंगने का निर्णय लिया ताकि छड़ी ज्यादा दृश्यमान हो सके। 1931 में लायंस क्लब ने दृष्टिहीन लोगों के प्रयोग के लिए सफेद छड़ी को बढ़ावा देने का कार्यक्रम शुरू किया।
लायंस क्लब द्वारा विकसित की गई लकड़ी की सफेद छड़ी को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1944 में रिचार्ड हूवर ने अपने हाथ में लिया। वे वैली फोर्ज सेना अस्पताल में पुनर्वास विशेषज्ञ के रूप में काम करते थे। वे आँख पर पट्टी बाँध कर छड़ी के साथ अस्पताल में सप्ताह भर तक घूमते रहे। अपनी प्रयोगशीलता से उन्होंने लंबी छड़ी की मौजूदा हूवर विधि इजाद की। वे बेहद कम वजन की लंबी छड़ी तकनीक के पिता माने जाते हैं। इस तकनीक के अनुसार छड़ी को बहुत ही वैज्ञानिक ढ़ंग से प्रयोग में लाया जाता है। छड़ी को दाहिने हाथ से शरीर के मध्य में पकड़ा जाता है। चलते हुए इसका प्रयोक्ता कलाई का प्रयोग करके इसे दाएँ-बाएँ घुमाता है। दोनों पाँवों के आगे यह छड़ी मार्गदर्शन का काम करती है। ज्यों-ज्यों दायां पाँव आगे जाता है, छड़ी को दायीं तरफ से बाईं तरफ ले जाया जाता है। इसी प्रकार जब बायां पाँव आगे जाता है तो छड़ी दाईं तरफ ले जाई जाती है। चलन अभिविन्यास विशेषज्ञ के द्वारा दृष्टिहीन विद्यार्थी को छड़ी का प्रशिक्षण दिया जाता है। अभ्यास के बाद दृष्टिबाधित बालक व व्यक्ति पूरी स्वतंत्रता व सुरक्षा के साथ चलने-फिरने में सक्षम हो जाते हैं और छड़ी नए रास्तों पर भी मार्गदर्शक की भूमिका निभाती है। श्वेत छड़ी की महत्ता को देखते हुए श्वेत छड़ी दिवस को दृष्टिबाधितों की समानता व सफलताओं का दिवस भी कहा जाता है।
अरुण कुमार कैहरबाहिन्दी प्राध्यापक, लेखक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री, जि़ला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-94662-20145
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