Sunday, August 31, 2025

PARENTS TEACHERS MEETING IN GMSSSS BIANA

सोशल मीडिया के युग में पुस्तक संस्कृति एक चुनौती: अरुण कैहरबा

अभिभावक- अध्यापक गोष्ठी में विद्यार्थियों के व्यवहार व संस्कार पर हुई विस्तृत चर्चा

इन्द्री, 30 अगस्त 

गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य राम कुमार सैनी के मार्गदर्शन में अभिभावक-अध्यापक गोष्ठियों का आयोजन किया गया। प्रत्येक कक्षा-कक्षा में कक्षा-प्रभारियों ने अभिभावकों को पीटी-2 में उनके बच्चों के अंकों से परिचित करवाया। अभिभावकों और अध्यापकों के बीच बच्चों की शैक्षिक प्रगति के साथ ही उनके व्यवहार व संस्कार पर विस्तृत चर्चाएं हुई।


हिन्दी प्राध्यापक व प्रवक्ता अरुण कुमार कैहरबा ने बताया कि बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। सोशल मीडिया पर बच्चों का ज्यादा समय लगाने से बच्चों के ध्यान व एकाग्रता की समस्याएं पैदा हो रही हैं। किताब पढऩे के प्रति रूचि का निरंतर ह्रास हो रहा है। पुस्तक संस्कृति का विकास आज के समय की बड़ी चुनौती है। अभिभावकों के लिए यह चिंता का बड़ा कारण है। उन्होंने बताया कि इन सभी विषयों पर अभिभावकों व अध्यापकों के बीच विस्तृत चर्चा हुई। अध्यापकों ने अभिभावकों व अध्यापकों को स्कूल के विभिन्न प्रतिभावान विद्यार्थियों की उपलब्धियों से परिचित करवाया और उनसे प्रेरणा लेकर विद्यार्थियों को आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। प्राध्यापक डॉ. सुभाष भारती, सलिन्द्र मंढ़ाण, बलविन्द्र सिंह, सतीश राणा, विवेक शर्मा, राजेश सैनी, राजेश कुमार, गोपाल दास, मुकेश खंडवाल, संदीप कुमार, संजीव कुमार, विनोद भारतीय, विनोद कुमार, सीमा गोयल, नरेश मीत, अश्वनी कांबोज, बलिन्द्र कुमार, सोमपाल, संगीता, मीना सहित अनेक अध्यापकों ने अध्यापकों के साथ चर्चा की।









Wednesday, August 27, 2025

NATYA SAMIKSHA / GURSHARAN SINGH KA NATAK INQUILAAB ZINDABAD

 नाट्य समीक्षा

सामाजिक चेतना पैदा करता नाटक ‘इंकलाब जिंदाबाद’

गुरशरण सिंह के नाटक ने भगत सिंह के संघर्षों और विचारों को किया उजागर

अरुण कुमार कैहरबा

काफी समय के बाद ऑडिटोरियम के बाहर खुले में नाटक देखने का मौका मिला। कुरुक्षेत्र स्थित सत्यभूमि के सुंदर,  हरे-भरे और आकर्षक परिसर में जन नाट्य मंच कुरुक्षेत्र में बचपन से ही नाट्य व अन्य कलाओं में हाथ आजमा रहे रंगकर्मी राजवीर राजू के निर्देशन में पंजाबी नाटककार गुरशरण सिंह का नाटक ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का मंचन किया गया। एक शाम शहीदों के नाम कार्यक्रम में स्वतंत्रता आंदोलन और भगत सिंह पर केन्द्रित नाटक ने दर्शकों को जहां स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत की याद दिलाई, वहीं मौजूदा परिदृश्य व परिस्थितियों को आलोचनात्मक ढ़ंग से दिखाकर सोचने पर मजबूर कर दिया।


अपनी जीवंतता के कारण नाटक अभिव्यक्ति का बेहद सशक्त औजार है। नाटक को देखकर दर्शकों को चीजों को देखने की नई नजर मिलती है। प्रेक्षागृह में मंचीय होने पर आम जन प्राय: ही नाटक देखने से वंचित होते हैं। लेकिन कुछ लोग आज भी लोगों के बीच जा-जाकर नाटक को लोगों के बीच ले जाने में लगे हुए हैं। उन्हीं में से बचपन से ही जन पक्षधर कलाओं को समर्पित रहे कुरुक्षेत्र के राजवीर राजू भी हैं। रंगकर्मी व रंग निर्देशक होने के साथ-साथ वे विभिन्न वाद्ययंत्रों को बजाने और गायन में महारत रखते हैं। वे कभी कॉलेजों व विभिन्न संस्थाओं में युवाओं को नाटक तैयार करवाते हैं तो कभी बड़े-बड़े मंचों से लेकर गलियों व नुक्कड़ पर नाटक करते दिखाई देते हैं। 


इंकलाब जिंदाबाद नाटक में हिम्मत दयोहरा, रूद्रांश सोनी, लव पुनिया, कंचन, सिया ढ़ींगरा, बीर सिंह, सुमित, श्याम शर्मा, पवित्र व शिवम संधु ने शानदार अभिनय किया। नाटक की शुरूआत जलियांवाला बाग के हत्याकांड के साथ होती है। हत्याकांड में मारे गए लोगों पर विलाप करते हुए एक महिला पात्र (कंचन) कहती है- ‘ओ क्रांतिकारियो, करते हैं हम हमारे भाई बहनों को तुम्हारे सुपुर्द। फैंकते हैं अपनी नन्हीं सी जान को तुम्हारी गोद में। ले जाओ और बता दो उन खून के सौदागरों को कि अब के बाद हर बैसाखी का दीदार कुछ और होगा।

सूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत

पुर्जा-पुर्जा कट मरे, कबहूं ना छाड़े खेत।’


इसके बाद मंच पर बेडिय़ों में हाथ-पांव बंधे एक बाबा का प्रवेश होता है। कुछ लोग उस बाबा कोचोर, डाकू या हत्यारा कहते हैं। लेकिन बाबा की शक्ल में यह हिन्दुस्तान अपनी व्यथा बयां करता है कि वह चोर व डाकू नहीं है। सात समुंदर पार से आए अंग्रेजों ने उसे गुलाम बना लिया है। जब लोग सुनते हैं कि डेढ़ लाख अंग्रेज तीस करोड़ लोगों के भारत पर कब्जा करके उन्हें गुलाम बनाकर रख रहे हैं तो लोग कहते हैं कि यह तीस करोड़ या तो भेड़ें होंगी, या फिर चूहे, मच्छर या फिर मक्खी। लेकिन हिंदुस्तान बताता है कि नहीं, 60 करोड़ बाजूओं वाले तीस करोड़ लोग भेडं़े या चूहे नहीं हैं, बल्कि सूरमे हैं। उन्हीं में से सूरमे भगत सिंह की कहानी वह सुनाने लगता है। 1907 में सरदार किशन सिंह के घर में जन्मे भगत सिंह ने अंग्रेजों की जड़ें हिला दी। जलियांवाला बाग हत्याकांड अंग्रेजों की नृशंसता की इंतहा थी। 1926 में अंग्रेजों ने भारतीयों की आंखों में धूल झोंकने के लिए साइमन कमीशन को भारत भेजा। लेकिन भारतीयों ने कमीशन के खिलाफ गांव-गांव व गली-गली में प्रदर्शन करते हुए साइमन कमीशन गो बैक के नारे लगाए। नाटक में कमीशन के विरोध में लोगों के पदर्शन को जीवंत किया जाता है। साथ ही अंग्रेजी सरकार के सिपाहियों द्वारा प्रदर्शन को रोकने के लिए धमकियां और गिरफ्तारियां आदि को दिखाते हुए भारतीयों और सिपाहियों के टकराव के बाद लाला लाजपत राय शहीद हो जाते हैं। 


बाबा की शक्ल में हिंदुस्तान कहता है- ‘देश के लिए बहा मेरे खून का एक-एक कतरा अंग्रेजों की ताबूत में आखिरी कील साबित होगा।’ मंच पर पुलिस का एक सिपाही आता है- ‘बड़े लाला लाजपत राय बने घूमते थे।  क्यूं हो गए ना एक लाठी में ढ़ेर। अब कोई नजर उठाकर तो देखे, सीधा गोली मार देंगे।’ बाबा और सिपाही के बीच बात होती है। बाबा उससे सवाल करते हैं कि जिन लोगों ने तुम्हारी यह हालत कर दी है, उनके लिए तुम अपने लोगों का खून बहा रहे हो। वह सिपाही को उसकी व देश की बदहाली का अहसास करवाता है। दलालों के कारण क्रांतिकारियों पर हो रहे हमलों पर चिंता व्यक्त करता है। यदि दलालों ने गुप्त सूचनाएं ना दी होती तो चंद्रशेखर आजाद शहीद ना होते।  कुछ लोगों की गद्दारी के कारण ही देश गुलाम बना। 


अगले दृश्य में अंग्रेजों के दलाल और एक नशेड़ी व्यक्ति के बीच में चर्चा होती है। नशेड़ी पैसे लेकर उसे गुप्त सूचनाएं सांझी करता है। भगत सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की मीटिंग, भगत सिंह द्वारा करतार सिंह सराभा की कहानी सुनाया जाना और देश की आजादी तक शादी नहीं करने का संकल्प आदि बातें वह बताता है। वह खुद भी देश की आजादी तक शादी नहीं करने का संकल्प करता हुआ चला जाता है।


बेडिय़ों में जकड़ा बाबा भगत सिंह का किस्सा जारी रखते हुए बताता है कि कैसे भगत सिंह ने क्रांतिकारियों की फौज तैयार कर दी है। लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए अंग्रेजी कप्तान सांडर्स की गोली मार कर हत्या कर दी है। तभी एक नौजवान बाबा की चादर में छुप जाता है। सिपाही उसकी तलाश कर रहा है। सिपाही के जाने के बाद नौजवान और बाबा की होती है। युवक बताता है कि सांडर्स को मारने का काम तो भगत सिंह व उनके साथियों का है। उनका काम तो पुलिस को चकमा देने का है। बाबा उसे शाबाशी देता है और उसके एक हाथ की बेड़ी टूट जाती है। बाबा आगे बताता है कि कैसे बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने एसेंबली में बम फेंक कर गूंगी-बहरी सरकार के कानों में आजादी की धमक पहुंचा दी है। उस धमाके ने देश के बच्चे-बच्चे में जोश पैदा हो गया है। 


अगले दृश्य में एक तरफ भगत सिंह व उनके साथी हैं और दूसरी तरफ महात्मा गांधी के बीच में संवाद होता है। महात्मा गांधी शांति की बात करते हैं, जबकि भगत सिंह मुक्ति की बात करते हैं। अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह को फांसी की सजा सुना दी। इससे देश भर में अंग्रेजी शासन का विरोध तेज हो गया। फांसी के बाद एक सिपाही मंच पर आकर कहता है-देखा बाबा, अंग्रेजों ने तो रातों-रात भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव को फांसी दे दी। किसी ने चूं तक नहीं की। 

बाबा इस पर कहता है कि जा जाकर लाहौर की गलियों में देख। पंजाब के गांव-गांव में भगत सिंह को फांसी दिए जाने की क्या प्रतिक्रिया हो रही है। इस पर सिपाही के विचार बदल जाते हैं और वह भी सिपाही की वर्दी को त्याग कर अंग्रेजों की नौकरी छोडऩे का ऐलान कर देता है। बाबा प्रसन्न होते हुए कहा कि जिसके लिए भगत सिंह व साथियों ने फांसी का फंदा चूमा, वह बेकार नहीं गया। बाबा के दूसरे हाथ की हथकड़ी भी गिर जाती है। वह कहता है कि मेरे हाथ आज सदियों बाद आजाद हुए हैं। देश आजाद हो जाता है। 


फिर एक किसान, एक मजदूर और एक कारीगर आते हैं। किसान बताता है कि वह अन्न उपजाता है लेकिन उसके बच्चे भूखे रहते हैं। मजदूर कहता है कि वह घर बनाता है लेकिन उसका मकान कच्चा है। कारीगर कहता है कि वह अपने हुनर से कपड़े बुनता है, लेकिन उसके बच्चों के पास पहनने को कपड़ा नहीं है। इस पर बाबा कहता है कि यह स्थिति इसलिए आई क्योंकि हम भगत सिंह के सपनों के भारत और इंकलाब के रास्ते को भूल गए। इंकलाब जिंदाबाद के नारों के साथ नाटक समाप्त होता है। दर्शक भी नाटक के पात्रों के साथ नारे लगाते हुए नाटक का हिस्सा बन जाते हैं।

नाटक अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब होता है। नाटक भगत सिंह के विचारों को उभारता है। वे सपने आज तक पूरे नहीं हुए जो भगत सिंह व उनके साथियों ने देखे थे। आज उन सपनों को याद किया जाना और उन्हें पूरा करने के लिए अपनी ताकत लगाना समय की जरूरत है। भगत सिंह का स्पष्ट मत था कि सत्ता परिवर्तन से कुछ नहीं होना है। सामाजिक-आर्थिक समानता व न्याय के बिना सच्चा इंकलाब नहीं आएगा। देश में गरीबी, महंगाई, असमानता, भ्रष्टाचार, सामाजिक भेदभाव आदि को लेकर नाटक सवाल खड़े करता है।  


नाटक में बाबा के भेष में बेडिय़ों में जकड़े हिंदुस्तान की भूमिका को हिम्मत ने बहुत ही सशक्त ढ़ंग से निभाया। लेकिन उसे बहुत अधिक रोते हुए दिखाया गया है। आजादी के बाद तो बाबा की आंखों से आंसू तक टपक पड़ते हैं, जबकि रूदन की बजाय उसके चेहरे पर आक्रोश की ज्यादा जरूरत महसूस होती है। यह नाटक केवल मनोरंजन का साधन नहीं रहता बल्कि दर्शकों में सामाजिक-राजनीतिक चेतना पैदा करने का माध्यम बन जाता है। राजवीर राजू कहते हैं कि इस नाटक के और भी मंचन किए जाएंगे। इसके साथ ही अन्य नाटक तैयार करना भी आगामी योजना का हिस्सा है।


अरुण कुमार कैहरबा

रंगकर्मी, नाट्य समीक्षक व हिन्दी प्राध्यापक

वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री

जिला-करनाल, हरियाणा-132041

मो.नं.-9466220145   

JANSANNDESH TIMES 20-8-2025

JAGMARG 24-8-2025

Tuesday, August 26, 2025

DEWORMING DAY IN GMSSSS BIANA (KARNAL)

 कृमि से बचने के लिए खान-पान की अच्छी आदतें अपनाएं: अरुण कैहरबा

कृमि मुक्ति दिवस पर सभी विद्यार्थियों को खिलाई एलबेंडाजोल की गोली

इन्द्री, 26 अगस्त
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस के उपलक्ष्य में उपस्थित सभी विद्यार्थियों को कृमि रोधी गोली-एलबेंडाजोल वितरित करके खिलाई गई। अध्यापकों और विद्यार्थियों ने एक साथ गोली मुंह में डाल कर चबाते हुए खाई। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य राम कुमार सैनी ने की और संचालन हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने किया। योजना की प्रभारी प्राध्यापिका सीमा ने सभी कक्षाओं के प्रभारियों को गोली वितरित करवाई। स्वास्थ्य विभाग से आशा वर्कर योगेश ने मौके पर उपस्थित होकर विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया।



इस मौके पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा छह महीने में एक बार विद्यार्थियों को एलबेंडाजोल की गोली दी जाती है। ताकि पेट में पैदा हो जाने वाले कृमि से मुक्ति मिल सके। उन्होंने कहा कि अस्वच्छ वातावरण, अस्वच्छ चीजों को मुंह में डालने, उंगली या हाथ को बार-बार मुंह में डालने, जंक फूड का सेवन करने, घर के खाने से अधिक बाहर से खाद्य पदार्थ खाने आदि की आदतों के कारण पेट में कृमि पैदा हो जाते हैं। एक बार कृमि पैदा होने पर जो भी पोषाहार हम खाते हैं, उसका हमारे शरीर को लाभ नहीं मिल पाता। पोषाहार से पैदा हुआ सारा रस कृमि चट कर जाते हैं। इससे शरीर कमजोर होने लगता है। खून की कमी और कुपोषण की समस्या होने लगती है। इसका परिणाम यह होता है कि कोई भी काम करने का मन नहीं करता। पढऩे में भी मन नहीं लगता है। उन्होंने बताया कि सभी विद्यार्थियों को ना केवल एलबेंडाजोल लेने की जरूरत है, बल्कि सभी को स्वच्छता को अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि खान पान की अच्छी आदतों से हम कृमि से बचे रह सकते हैं। विद्यार्थियों को बाहर का खुले और अस्वच्छ वातावरण में बनाए गए और परोसे गए भोजन से बचना चाहिए।
इस मौके पर प्राध्यापक विनोद कुमार, बलविन्द्र सिंह, राजेश सैनी, विवेक शर्मा, स्वर्णजीत शर्मा, निशा कांबोज, अश्वनी कांबोज, मीना, संगीता, सोमपाल सहित सभी अध्यापक उपस्थित रहे।




Thursday, August 21, 2025

पावर ग्रिड भादसों में हिन्दी कार्यशाला

 पालि, प्राकृत व अपभ्रंश से हुआ हिन्दी भाषा का जन्म: अरुण कैहरबा

हिन्दी विशेषज्ञ ने रोचकता के साथ सुनाई हिन्दी की विकास यात्रा

कहा: समृद्ध भाषाओं के बावजूद भारत में विदेशी भाषा का दबदबा

पावर ग्रिड में अधिकारियों के हिन्दी ज्ञान को सशक्त बनाने के लिए कार्यशाला आयोजित

प्रतिभागियों ने हिन्दी की महत्ता पर किया लघु नाटिकाओं का मंचन

दिनांक 20 अगस्त, 2025 को गांव भादसों स्थित भारत सरकार के उपक्रम पावर ग्रिड कार्पोरेशन में कर्मचारियों व अधिकारियों के हिन्दी ज्ञान को सशक्त बनाने, कार्यालय के कार्यों में हिन्दी को बढ़ावा देने और प्रचार-प्रसार करने के लिए हिन्दी कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, ब्याना के हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने विषय विशेषज्ञ के रूप में हिस्सा लिया। पावर ग्रिड के महाप्रबंधक अरविन्द कुमार पांडे, वरिष्ठ उपमहाप्रबंधक पुरूषोत्तम दास सोलंकी, उप महाप्रबंधक दुर्गावती मित्रा व मानव संसाधन विभाग से मनोज गोयल ने हिन्दी विशेषज्ञ अरुण कैहरबा का स्वागत किया। कार्यशाला का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।


अरुण कुमार कैहरबा ने कार्यशाला में हिन्दी की विकास यात्रा पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि पालि, प्राकृत, अपभ्रंश व अवह_ से होते हुए हिन्दी भाषा का जन्म होता है। एक हजार से अधिक वर्षों की यह कहानी है जब 900 ई. के आस-पास अवह_ हिन्दी का पुराना रूप ग्रहण करती है। उसके साथ ही हिन्दी के आदिकाल की शुरूआत होती है। आदिकाल में पृथ्वीराजरासो जैसी वीरगाथा की अनेक रचनाएं लिखी गई। आज की हिन्दी खड़ी बोली के पहले कवि अमीर खुसरो माने जाते हैं। उन्होंने खालिकबारी नाम से फारसी हिन्दी का पहला शब्दकोष तैयार किया। उनकी पहेलियां  व मुकरियां आम जन में आज भी प्रसिद्ध हैं। हिन्दी साहित्य के मध्यकाल में करीब 1300 से भक्तिकाल की शुरूआत होती है। भक्तिकाल हिन्दी का स्वर्ण युग माना जाता है। इसमें निर्गुण, सूफी, रामभक्ति व कृष्ण भक्ति की बहुत ही सुंदर रचनाएं लिखी जाती हैं। कबीर, मलिक मोहम्मद जायसी, सूरदास, तुलसीदास, मीरा आदि कवि स्वतंत्र रूप से साहित्य साधना करते हैं। 1650 के आस-पास रीति काल में दरबारी कवि अपने आचार्यत्व, वीरता, सामंती संस्कृति और शृंगार रस से ओतप्रोत रचनाएं लिखकर सभी को चमत्कृत कर देते हैं। अधिकतर दरबारी कवियों का उद्देश्य राजाओं को खुश करके ईनाम लूटना था। भारतेंदु हरिश्चंद्र के प्रादुर्भव के साथ ही हिन्दी के आधुनिक काल की शुरूआत होती है। भारतेंदु हिन्दी के जनक माने जाते हैं। उन्होंने हिन्दी के आधुनिक नाटकों की शुरूआत की। महावीर प्रसाद द्विवेदी की सरस्वती पत्रिका हिन्दी खड़ी बोली को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रेमचंद हिन्दी कहानियों व उपन्यासों को चमत्कारों व कल्पना लोक से निकाल कर आम जन के साथ जोड़ते हैं। अरुण कैहरबा ने कहा कि आधुनिक काल गद्यकाल भी कहलाता है, जिसमें संस्मरण, शब्दचित्र, यात्रा वृत्तांत, जीवनी, आत्मकथाएं, इंटरव्यू, डायरी व रिपोर्ताज आदि प्रचूर मात्रा में लिखे जाते हैं और लिखे जा रहे हैं। उन्होंने बहुत रोचक ढ़ंग से जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, रघुवीर सहाय, नागार्जुन, बालमुकुंद गुप्त व माखनलाल चतुर्वेदी सहित अनेक रचनाकारों पर चर्चा की। उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता व सिनेमा पर भी विस्तारपूर्वक चर्चा की और हिन्दी के प्रचार-प्रसार में इनके योगदान को रेखांकित किया। 


अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि भारत एक बहुभाषी देश है। शायद ही दुनिया में कोई देश हो, जहां पर समृद्ध भाषाएं हों, उनका विपुल साहित्य हो और समस्त कार्य की क्षमता हो। लेकिन यह भी सही है कि शायद ही दुनिया में कोई देश ऐसा हो, जिसमें आजादी के 78 साल बाद भी राजकार्य में विदेशी भाषा का इतना बोलबाला हो। उन्होंने कहा कि शिक्षा का माध्यम बनाए बिना हम हिन्दी सहित भारतीय भाषाओं को बढ़ावा नहीं दे पाएंगे। 

कर्मचारियों को हिन्दी ज्ञान बढ़ाने के लिए पावर ग्रिड करती है प्रोत्साहित: अरविंद कुमार पांडे


महाप्रबंधक अरविंद कुमार पांडे ने कार्यशाला में चर्चा की शुरूआत करते हुए पावर ग्रिड में हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पावर ग्रिड में कर्मचारियों के हिन्दी ज्ञान को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 343 में देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। लेकिन वास्तव में हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। इसके प्रति पावर ग्रिड पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। 


कार्यशाला के दौरान सभी प्रतिभागियों को तीन समूहों में बांटा गया। इन समूहों में वरिष्ठ उपमहाप्रबंधक पुरूषोत्तम दास सोलंकी, प्रबंधक मुकेश कुमार, प्रदीप कुमार व शुभांगी ने विस्तार से पावर ग्रिड के हिन्दी के बढ़ावा देने पर अपनी प्रस्तुति दी। पुरूषोत्तम दास सोलंकी ने बताया कि उत्तरी क्षेत्र में उनकी पावर ग्रिड ने सांस्कृतिक कार्यक्रम में दो बार प्रथम स्थान पाया है। उपमहाप्रबंधक दुर्गावती मिश्रा, प्रबंधक अनूप कुमार, सुबोध कुमार व रिंकू कुमार आदि के समूह ने हिन्दी की महत्ता को बढ़ावा देने के लिए लघु नाटिका तैयार करके मंचित की। मानव संसाधन विभाग से मनोज गोयल के नेतृत्व वाले समूह ने शिक्षा में हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के लिए लघु नाटिका मंचित की। सभी ने विश्वास गीत के साथ चर्चा की शुरूआत की थी और अरुण कैहरबा के नेतृत्व में गाई गई दुष्यंत कुमार की गजल- इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है के साथ कार्यशाला का समापन हुआ। 








INDORE SAMACHAR


Wednesday, August 13, 2025

FINAL REHEARSAL INEPENDENCE DAY 2025

अंतिम पूर्वाभ्यास में एसडीएम अशोक मुंजाल ने फहराया ध्वज 

ली परेड की सलामी

देश भक्ति व लोक संस्कृति से ओत-प्रोत सांस्कृतिक कार्यक्रमों की हुई प्रस्तुति

इन्द्री, 13 अगस्त  
राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस समारोह पर उपमंडल स्तरीय समारोह का आयोजन इन्द्री की अनाज मंडी में होगा। समारोह को लेकर वीरवार को अंतिम पूर्वाभ्यास किया गया। पूर्वाभ्यास कार्यक्रम में एसडीएम अशोक मुंजाल ने राष्ट्रीय ध्वज फहराकर परेड का निरीक्षण किया और परेड की सलामी ली।
परेड निरीक्षण के उपरांत डीएसपी सतीश गौतम के कुशल नेतृत्व में पुलिस जवानों, शहीद उधम सिंह राजकीय महाविद्यालय की एनसीसी ब्याज कैडेट्स व एनसीसी गल्र्ज सीनियर विंग व सर्व विद्या पब्लिक स्कूल, मटक माजरी के विद्यार्थियों की प्लाटून ने सलामी मंच के आगे से गुजर कर शानदार मार्च पास्ट की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में स्कूली बच्चों द्वारा पीटी शो तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने सबका मन मोह लिया। मंच संचालन हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार ने किया।

स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए किए गए अंतिम पूर्वाभ्यास कार्यक्रम में अनेजा सिटी हार्ट स्कूल इन्द्री के विद्यार्थियोंं ने समूह गीत, सर्व विद्या पब्लिक स्कूल मटक माजरी की टीम ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर केन्द्रित कोरियोग्राफी, इन्द्री के पीएम श्री राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय (लडक़े) द्वारा हरियाणवी धमाल, चौ. मेहर सिंह स्कूल राजेपुर द्वारा सैनिक वीरता पर कोरियोग्राफी, भादसों के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, शहीद उधम सिंह व.मा. विद्यालय व ब्याना के राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय की टीमों ने हरियाणवी नृत्य तथा इन्द्री के राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय की टीम ने पंजाबी गिद्दा की अद्भुत प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का समापन विभिन्न  स्कूल के बच्चों द्वारा राष्ट्रीय गान की प्रस्तुति से हुआ।

विधायक रामकुमार कश्यप करेंगे ध्वजारोहण-
एसडीएम अशोक मुंजाल ने बताया कि 79वें स्वतंत्रता दिवस समारोह का उपमंडल स्तरीय समारोह अनाज मंडी इन्द्री में भव्य व शानदार ढंग से मनाया जाएगा। इसके लिये सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। स्वतंत्रता दिवस समारोह में में इन्द्री के विधायक एवं गवर्नमेंट चीफ व्हिप रामकुमार कश्यप ध्वजारोहण कर परेड की सलामी लेंगे तथा अपना शुभ संदेश देंगे।
इस मौके पर डीएसपी सतीश गौतम, नगरपालिका सचिव धर्मवीर, मार्किट कमेटी सचिव जसबीर, कार्यकारी बीईओ डॉ. गुरनाम सिंह मंढाण, प्रिंसिपल ज्योति खुराना, मंडी एसोसिएशन के पूर्व प्रधान समय सिंह कांबोज, एसएचओ विपिन कुमार, एनसीसी अधिकारी डॉ. रणवीर सिंह, शिक्षक संजीव कुमार, अनिल कुमार, बलविन्द्र सिंह, बलवान सिंह, धर्मेन्द्र चौधरी, मुकेश कांबोज, विमल जास्ट, सोनिया कांबोज आदि मौजूद रहे।