प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए: अरुण कैहरबा
हिंदी भाषा की चुनौतियां विषय पर विचार गोष्ठी का हुआ आयोजन
कुरुक्षेत्र, 14 सितम्बर
हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में कुरुक्षेत्र स्थित रविदास मंदिर सभागार में जनवादी लेखक संघ की कुरुक्षेत्र इकाई द्वारा विचार-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता जनवादी लेखक संघ के राज्य अध्यक्ष जयपाल, ओम सिंह अशफ़ाक और प्रिसिंपल नरेश नागपाल ने की और संचालन मनजीत सिंह ने किया। संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता हिंदी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने हिन्दी भाषा की चुनौतियां विषय पर बोलते हुए कहा कि मातृभाषाएं समाज के चिंतन, मनन और विचारों का आधार हैं। शिक्षा में मातृभाषाओं की उपेक्षा करना किसी भी तरह से ठीक नहीं है। प्राथमिक शिक्षा केवल मातृभाषा में होनी चाहिए। जिन समाजों में प्राथमिक शिक्षा बच्चों की मातृभाषा में दी जाती है, वहां पर बच्चों की प्रतिभा का सहज रूप से विकास होता है। उन्होंने कहा कि बैंक, रेलवे, अदालत व कार्यालयों आदि में ऐसी भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए जो आम जनता को समझ आये। हिन्दी को जटिलता व क्लिष्टता से बाहर निकालने की कोशिश होनी चाहिए और ऐसा रूप विकसित होना चाहिए, जो आम आदमी समझ पाए।
उन्होंने कहा कि कोई भाषा किसी भाषा की जननी नहीं होती। भाषा के विकास की एक प्रक्रिया होती है। उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषा के विकास की भी एक प्रक्रिया है। हिंदी का विकास पाली, प्राकृत व अपभ्रंश से हुआ है। अपनी उपभाषाओं और बोलियों के साथ ही हिन्दी ने अन्य अनेक भाषाओं के शब्दों को सहज रूप में ग्रहण किया। हिंदी में तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी भाषाओं का समाहार है। उन्होंने कहा कि भाषा बहते नीर के समान होती है। हिन्दी को संस्कृतनिष्ठ बनाने के लिए इसमें जबरदस्ती संस्कृत के शब्दों को ठूंसना हिन्दी के स्वास्थ्य के लिए किसी भी तरह से उचित नहीं है। भाषा की कसौटी यही है कि वह आम की समझ में आए। दिखावटी और बनावटी भाषा किसी का भला नहीं कर सकती। अरुण कैहरबा ने कहा कि किसी भी भाषा में शुद्धता नाम की कोई चीज़ नहीं होती। जिसे कईं बार विकार कहा जाता है, उससे भाषा विकास करती है। उन्होंने कहा कि भाषा विभाग, विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों के भाषा विभागों के विद्वानों द्वारा भाषा का निर्माण नहीं होता। भाषा गांवों, खेत-क्यार, मेलों-ठेलों, चौक-चौराहों में रूप ग्रहण करती है। भाषाविद् भाषा के मानकीकरण का काम जरूर करते हैं। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों को कोशिश करनी चाहिए कि उनकी भाषा सभी को समझ में आए और साहित्य आम जन से जुड़े। मुख्य वक्तव्य के बाद विभिन्न रचनाकारों ने अपनी टिप्पणियां और सवाल किए।
सुबह का इंतजार और बौने प्रहसन व अन्य कविताएं का हुआ विमोचन
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कविता गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर अरुण कुमार कैहरबा के काव्य संग्रह- सुबह का इंतज़ार व कपिल भारद्वाज के काव्य संग्रह-बौने प्रहसन व अन्य कविताएं का विमोचन किया गया। काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता हरियाणवी शायर करमचंद केसर, वरिष्ठ साहित्यकार ओमप्रकाश करुणेश व हरपाल गाफिल ने की। मंच संचालन कवि डॉ. कपिल भारद्वाज ने किया। कविता पाठ में भाग लेते हुए समीक्षा सिंह ने कहा-
बड़े मायूस से हो हमदर्द का दर देख आए क्या
किसी की आस्तीन में तुम भी खंजर देख आये क्या
शायर दीपक मासूम ने अपनी गजल सुनाते हुए फरमाया-
कौन रक्खे ख्याल दुनिया का
ये भी है इक सवाल दुनिया का
तुम बदल दो निज़ाम को अपने
हो ना जीना मुहाल दुनिया का
कवि जयपाल ने कहा--
क्योंकि कुछ लोग पवित्र होते हैं
इसलिए बाकी लोग अपवित्र होते हैं
मनजीत सिंह ने कहा-
घणा माड़ा टेम आग्या, परिवार कुणबे की इज्जत होगी ढेर ।
एक बुझी रोटी की दूसरा खाएगा के
हरयाणवी कवि करमचंद केसर ने कहा-
एक झटके मैं सारे रिश्ते तोड़ गए
बेटे माँ नैं बिरध आसरम छोड़ गए
डॉक्टर सीमा बिरला ने हिंदी भाषा का गुणगान करने की बात इन शब्दों में की-
आओ हिंदी दिवस मनाएं
निज भाषा अभिमान करें
सुंदर अभिव्यक्ति से मिलकर
हिंदी का गुणगान करें
कवि अरुण कैहरबा ने अपनी रचना में कहा-
भाषा बहता नीर कबीरा
देता सबको धीर कबीरा।
शब्द साधना करने वाले
खींचे बड़ी लकीर कबीरा।
पंजाबी अध्यापक व कवि नरेश सैनी ने अपनी कविता पढ़ते हुए कहा-
रोटी तो रोटी है, छोटी है या मोटी है
बेशक अमीर की शान और गरीब की जान है।
कवि ओम सिंह अशफाक ने अपनी ताजा और 20साल पुरानी कविताएं सुनाकर मौजूदा परिवेश के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया। इस मौके पर हरपाल, नरेश दहिया, विकास साल्यान, सिमरन, इमरान, इकबाल, हबीब खान आदि ने भी अपनी रचनाओं से इस आयोजन को सफल बनाया। कार्यक्रम के दौरान यूनिक पब्लिशर्स के संयोजक विकास साल्यान ने किताबों की प्रदर्शनी लगाई और किताबें पढऩे के लिए प्रेरित किया।JAGMARG 16-9-2025