Wednesday, September 28, 2022

BHAGAT SINGH JAYANTI PROGRAM IN GMSSSS BIANA (KARNAL)

 भगत सिंह की अध्ययनशीलता विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत: अरुण

भगत सिंह जयंती पर संगोष्ठी आयोजित

इन्द्री, 28 सितम्बर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में शहीद भगत सिंह जयंती मनाई गई। इस मौके पर शहीदे आजम भगत सिंह का जीवन एवं विचार विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए हिन्दी प्राध्यापक व स्कूल प्रभारी अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भगत का जीवन और विचार सदा-सदा के लिए देश के युवाओं व लोगों के लिए प्रेरणास्रोत रहेंगे। उन्होंने कहा कि वैसे तो आजादी की लड़ाई में अनेक व्यक्तित्व हुए हैं, जिन्होंने अपने प्रयासों व बलिदान से देश को आजादी दिलवाने में अहम योगदान दिया, लेकिन भगत सिंह को ही शहीदे आजम कहा जाता है। उसका कारण यह है कि भगत सिंह के पास देश की आजादी की योजना के साथ-साथ आजाद भारत का भी स्पष्ट नक्शा था। आजाद भारत कैसा होगा? कैसा समाज बनेगा, कैसी शासन व्यवस्था होगी। 23 साल के भगत सिंह ने अपने अध्ययन व वैचारिक विमर्श के जरिये इन सबका विश्लेषण कर लिया था। भगत सिंह ने कहा कि केवल गोरे अंग्रेजों से मुक्ति पाकर ही हम आजाद नहीं हो जाएंगे। सच्ची आजादी के लिए मानव के द्वारा मानव का शोषण समाप्त करना होगा। अरुण कैहरबा ने कहा कि भगत सिंह की अध्ययनशीलता सभी विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत होनी चाहिए। जेल में रहते हुए भी भगत सिंह किताबों के लिए तड़पते थे। अपने वकील से वे केस से भी अधिक किताबों के बारे में बात करते थे। जेल में रहते हुए भगत सिंह ने अनेक किताबें पढ़ीं और अपनी डायरी में उन पर टिप्पणियां लिखी। यहां तक कि फांसी से पहले भी वे किताब पढऩे में लगे हुए थे।
हिन्दी अध्यापक नरेश मीत ने कहा कि स्कूल के भगत सिंह सदन द्वारा भगत सिंह के जीवन और विचारों को जानने और चर्चाओं की योजना बनाई जाएगी। उन्होंने कहा कि भगत सिंह के जीवन को जानने के लिए हमें किताबें पढऩी चाहिएं। उनके खुद के लिखे लेख भी सभी को पढऩे चाहिएं। इस मौके पर प्राध्यापक अनिल पाल, सतीश कांबोज, बलराज कांबोज, सतीश राणा, राजेश कुमार, गोपाल दास, मुकेश खंडवाल, राजेश सैनी, दिनेश कुमार, प्रीति आहुजा, निशा, रणदीप उपस्थित रहे।

YUGMARG 29-9-2022


UTTAM HINDU 29-9-2022


Saturday, September 24, 2022

EXCELLENT PERFORMANCE OF GMSSSS BIANA IN DISTRICT CULTURAL FEST

कल्चरल फेस्ट में ब्याना स्कूल के विद्यार्थियों का शानदार प्रदर्शन

तनवी ने एकल रागनी में पाया पहला स्थान

नाटक में स्कूल की टीम रही द्वितीय

इन्द्री, 24 सितंबर 

करनाल में आयोजित जिला स्तरीय कल्चरल फेस्ट में गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों ने शानदार प्रदर्शन किया। स्कूल में आयोजित समारोह में कार्यकारी प्रधानाचार्य अरुण कुमार कैहरबा ने विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र प्रदान कर विद्यार्थियों को सम्मानित किया। उन्होंने बताया कि स्कूल की 12वीं कक्षा की छात्रा तनवी शर्मा ने जिला स्तर पर एकल रागनी में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। पांच से आठ कक्षा वर्ग में स्कूल की नाटक टीम ने सिंगल यूज प्लास्टिक से मानव जीवन व पर्यावरण पर पड़ रहे बुरे प्रभावों को उजागर करके फेस्ट में दूसरा स्थान हासिल किया। नाटक टीम में सुशांत, दीक्षित, दीपांशु, जतिन, अनिकेत, नैतिक कश्यप, रमनपाल, नैतिक व अंशुमन ने शानदार अभिनय किया। नौवीं से 12वीं कक्षा वर्ग में स्कूल की नाटक टीम, समूह नृत्य व एकल नृत्य को भी जिला स्तर पर सांत्वना पुरस्कार के लिए चुना गया। टीमों में अमृत शर्मा, अंशुल, अंकुश, अखिल, गुरप्रीत, देवेन्द्र, नैतिक, मनप्रीत, दिव्या, वंशिका, उमा, निष्ठा, मानवी, तनुश्री, पायल, खुशी आदि विद्यार्थी शामिल रहे। विद्यार्थियों की उपलब्धियों से स्कूल में खुशी की लहर है। समारोह में जिला स्तर पर विद्यार्थियों का नेतृत्व करने के लिए प्राध्यापक बलराज व सीमा गोयल को भी सम्मानित किया गया। 


अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि सभी बच्चे प्रतिभावान होते हैं। अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए बच्चों के पास एक क्षेत्र नहीं है, बल्कि अनेक क्षेत्र हैं। जो बच्चे अपनी प्रतिभा की पहचान करके उसमें मेहनत करते हैं, वे आगे बढ़ जाते हैं। स्कूल में बच्चों को विविध प्रकार की गतिविधियों में हिस्सा लेने का अवसर मिलता है। सभी बच्चे अपनी रूचि-अभिरूचि व प्रतिभा के अनुसार गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं। इससे पहले खंड व जिला स्तर पर स्कूल के विद्यार्थियों ने अच्छा प्रदर्शन करके स्कूल का नाम रोशन किया था। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों के लिए जरूरी है कि वे अध्यापकों का मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए अपनी दिलचस्पी के क्षेत्र का चुनाव करें और प्रतिभा के विकास के लिए अथक मेहनत करें। प्राध्यापक बलराज कांबोज ने विद्यार्थियों को सतत मेहतन करने के लिए प्रेरित किया। इस मौके पर प्राध्यापक सतीश कांबोज, अनिल पाल, सीमा गोयल, राजेश कुमार, गोपाल दास, सतीश राणा, राजेश सैनी, दिनेश कुमार, मुकेश कुमार, नरेश कुमार मीत, विनीत सैनी, रणदीप व लिपिक आशीष कांबोज शामिल रहे।


JAGMARG 25-9-2022


Friday, September 16, 2022

BLOCK LEVEL ROLE PLAY & FOLK DANCE COMPETITION / GMSSSS BIANA IS EXCELLENT

 मॉडल संस्कृति स्कूल ब्याना की टीम ने रोल प्ले में पाया पहला स्थान

लोक नृत्य में दूसरा, स्कूल में छाई खुशियां

इन्द्री, 16 सितम्बर 

इन्द्री में आयोजित खंड स्तरीय रोल प्ले व लोक नृत्य प्रतियोगिता में गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति स्कूल के विद्यार्थियों ने शानदार प्रदर्शन किया। डाइट शाहपुर के प्राध्यापक डॉ. ईश्वर सिंह, मनोज कुमार व कौशलेश की देखरेख में आयोजित रोल प्ले प्रतियोगिता में विद्यार्थी अंशुल, मनप्रीत, नैतिक, देवेन्द्र व अंशुल ने रोल प्ले के माध्यम से नशा मुक्ति का संदेश दिया और टीम ने पहला स्थान पाया। दूसरी तरफ लोक नृत्य में ब्याना स्कूल की टीम-तनुश्री, निष्ठा, मानवी, खुशी, उमा व वंशिका ने खंड स्तर पर द्वितीय स्थान प्राप्त किया। स्कूल प्रभारी अरुण कुमार कैहरबा ने विजेता विद्यार्थियों को बधाई देते हुए बताया कि स्कूल की शिक्षिका निशा कांबोज व बिट्टू के नेतृत्व में विद्यार्थियों की टीमों ने प्रतियोगिता में शिरकत की और उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। खंड शिक्षा अधिकारी डॉ. राममूर्ति शर्मा ने विजेता टीमों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों में विविध प्रतिभाएं छुपी हुई हैं। प्रतिभाओं के विकास के लिए शिक्षा विभाग व एससीईआरटी द्वारा कईं कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें बच्चों को मंच मिलता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य बच्चों में छिपी प्रतिभा की पहचान करना, उसे मंच प्रदान करके उसका विकास करना होता है। डाइट प्रतिनिधि डॉ. ईश्वर सिंह ने बताया कि खंड स्तर पर पहला व दूसरा स्थान प्राप्त करने वाली टीमें जिला स्तर पर प्रतियोगिता में शिरकत करेंगी। जिला स्तरीय प्रतियोगिता 30 सितंबर से पहले आयोजित करने का लक्ष्य रखा गया है। जल्द ही जिला स्तरीय प्रतियोगिता के तिथि निर्धारित करके स्कूलों को भेजी जाएगी।  



Hindi Divas in GMSSSS BIANA

 आजादी की लड़ाई में हिन्दी साहित्यकारों ने निभाई अहम भूमिका: अरुण

सावित्री बाई फुले सदन के नेतृत्व में मनाया गया हिन्दी दिवस

इन्द्री, 14 सितम्बर

गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में सावित्री बाई फुले सदन के नेतृत्व में हिन्दी दिवस धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने सक्रिय भागीदारी की और कविता पाठ, नारा लेखन, भाषण व नाटक प्रस्तुत करके सबका मन मोह लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्कूल प्रभारी व हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने की। संयोजन हिन्दी अध्यापक नरेश कुमार मीत ने किया। संचालन सदन की वाइस कैप्टन हिमांशी व तनुश्री ने किया।


विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि हिन्दी देश व दुनिया की महत्वपूर्ण भाषा है। आजादी की लड़ाई के संघर्षों में हिन्दी साहित्यकारों की लेखनी ने जन जागरूकता में अहम भूमिका निभाई। आजादी के बाद भी हिन्दी लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है। आज पूरे भारत में हिन्दी को अच्छी तरह से समझा जाता है। उन्होंने कहा कि भाषा हर तरह की तरक्की का आधार है। भाषा सोचने-विचारने, अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और सवाल खड़े करने में सहायक होती है। जो विद्यार्थी जितनी अच्छी भाषा जानता-समझता है, उसके लिए आगे बढऩे के अवसर खुलते चले जाते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को किताबों व अच्छे साहित्य से दोस्ती बनाने का संदेश दिया।

नरेश कुमार मीत ने कहा कि हिन्दी दुनिया की सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा है। इसके बोलने व लिखने में कोई अंतर नहीं है। जो कुछ बोला जाता है और वही लिखा जाता है। हर तरह की ध्वनि को हिन्दी धारण किए हुए है। उन्होंने कहा कि हिन्दी में पहले अवधी और ब्रज भाषा का वर्चस्व था। इनमें एक से एक कविताएं लिखी गई। लेकिन आज जिस खड़ी बोली को हिन्दी का दर्जा दिया गया है, उसमें हम वैज्ञानिक, सामाजिक व मनोवैज्ञानिक सभी विषयों के ज्ञान को संजोया गया है।

विद्यार्थियों ने कईं विधाओं में दिखाई प्रतिभा-

कार्यक्रम में उमा, मुस्कान, कृतिका व भूमिका ने कविता पाठ करके हिन्दी के प्रति अपना स्नेह प्रकट किया। कनिका, महक, नैंसी, माही ने आज का विचार, समाचार व प्रश्र पूछे। अमृत, अंशुल, नैतिक, देवेन्द्र, गुरप्रीत, अंकुश, जतिन, अनिकेत, सुशांत, दीक्षित, नैतिक कश्यप, रमनपाल, नैतिक ने पर्यावरण संरक्षण और नशा मुक्ति के नाटकों की तैयारी की। नारा लेखन में निकिता व खुशी, भाषण में कृति व मुस्कान, स्वरचित कहानी लेखन में शमा, वंदना व पायल, चित्र देखकर कहानी लिखना में महिमा, उदित व सुशांत में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। इस मौके पर प्राध्यापक अनिल पाल, सतीश राणा, राजेश कुमार, मुकेश खंडवाल, सीमा गोयल, गोपाल दास, राजेश सैनी, प्रीति आहुजा, रणदीप, विनीत सैनी, बिट्टू, निर्मलजीत सिंह, लिपिक आशीष, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अरुण कुमार व कुलदीप उपस्थित रहे।

Jagmarg 15-9-2022

dainik tribune 15-9-2022


Tuesday, September 13, 2022

हिन्दी दिवस विशेष

 निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

अरुण कुमार कैहरबा

भाषा हमारे जीवन का पर्याय है। भाषा केवल विचार-अभिव्यक्ति का ही साधन नहीं है, बल्कि सोचने का भी माध्यम है। भाषा के बिना हम समाज-संस्कृति व साहित्य की कल्पना नहीं कर सकते। मनुष्य के साथ-साथ भाषा का और भाषा के साथ-साथ मनुष्य का विकास हुआ।
भारत की भाषायी विविधता दुनिया भर के लिए आश्चर्य का विषय है। जनगणना से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में 19500 मातृभाषाएं हैं। 121 भाषाओं को 10 हजार से अधिक लोग बोलते हैं। संविधान की 8वीं अनुसूची में ही 22 भाषाएं हैं। शायद ही दुनिया के किसी देश में इतनी अधिक भाषाएं और बोलियां हों और उनमें ज्ञान का इतना विपुल भंडार हो। लेकिन साथ ही ऐसा भी शायद ही कोई देश होगा, जहां पर इतनी समृद्ध भाषाएं होने के बावजूद शासन व लोगों में अन्य किसी भाषा के प्रति इतनी दीवानगी हो। औपनिवेशिक गुलाम मानसिकता की प्रतीक अंग्रेजी भाषा सीखने-सिखाने का धंधा यहां चरम पर है। यहां पर गांव-गांव में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खुलते ही जा रहे हैं। हिन्दी या मातृभाषाओं के गलती से भी शब्द बोले जाने की स्थिति में आर्थिक-शारीरिक दंड दिया जाता है। सरकारी स्तर पर अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा देने को ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के रूप में प्रचारित करने का काम हमारे राजनैतिक दलों व नेताओं द्वारा किया जा रहा है। हिन्दी को प्रचारित करने के लिए हिन्दी दिवस, हिन्दी साप्ताह और हिन्दी पखवाड़ा मनाए जाते हैं, जिनमें हिन्दी बुलवाने के लिए ईनाम दिए जाते हैं। यह बेहद विडंबनादायी स्थिति है। सवाल यह है कि क्या दिवस, सप्ताह व पखवाड़े मनाकर ही किसी भाषा को बचाया जा सकता है?
लोकतंत्र की सफलता में भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है। लेकिन हमारे यहां भाषा के नाम पर देश को बांटने का काम हो रहा है। सत्ताधीशों ने जन भाषाओं को कभी स्वीकार्यता नहीं दी। संविधान में भाषा का दर्जा तो दिया गया। लेकिन आम जन की भाषा को राजकाज के काम में लेने में हमेशा गुरेज किया जाता रहा। हिन्दी की ही बात करें तो संविधान में हिन्दी को पूरे तौर पर राजभाषा के रूप में विकसित करने के लिए 15वर्ष तक का समय दिया गया था। इतने तक अंग्रेजी को राजभाषा के रूप में इस्तेमाल करने की छूट थी। लेकिन मानसिक गुलामी का शिकार शासन व नौकरशाही में बैठा देश का आभिजात्य वर्ग संविधान की मूलभावना को पूरा करने में असफल रहा। संभवत: यह आम लोगों को सत्ता से दूर रखने का ही एक प्रयास था। क्योंकि हिन्दी व भारतीय भाषाओं को राजभाषा के रूप में इस्तेमाल किया जाता तो इससे अंतत: देश की आम जनता ही सशक्त होती और लोकतंत्र मजबूत होता। आज शिक्षा, प्रशासन हो या न्यायपालिका हर क्षेत्र में अंग्रेजी का ही वर्चस्व है। न्यायालयों की कार्रवाई और निर्णयों का उन लोगों को पता तक नहीं होता, जिनके वर्षों न्यायालयों के चक्कर काटते गुजर जाते हैं। हरियाणा के एक जिला न्यायालय में किसान अपने मामले की खुद पैरवी कर रहा था। वह अपनी बात कहने लगा तो जज ने कहा- मुझे आपकी बात समझ में नहीं आ रही। आप वकील कर लीजिए। किसान ने तुरंत जवाब दिया- आपको मेरी भाषा समझ नहीं आती तो आप करो वकील।
किसी भाषा को आगे बढ़ाने में उसके पढ़े-लिखे वर्ग की जिम्मेदारी होती है। लेकिन भारत विशेष तौर पर हिन्दी भाषी क्षेत्र के पढ़े-लिखे वर्ग ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। वह औपनिवेशिक भाषा अंग्रेजी का पिछलग्गू बना रहा या अपने ही हित साधता रहा। जिन हिन्दी विद्वानों को हिन्दी की क्षमता को बढ़ाते हुए लोगों की अभिव्यक्ति सामथ्र्य को समृद्ध करना था, उन्होंने हिन्दी को संस्कृतनिष्ठता के चंगुल में उलझाने की ही कोशिश की। जिससे हिन्दी और अधिक क्लिष्ट और जटिल होती चली गई। हिन्दी फिल्मों ने इस पर व्यंग्यात्मक अंदाज में कड़ी प्रतिक्रिया की। संस्कृतनिष्ठ हिन्दी को उपहास का पात्र दिखाया गया, लेकिन हिन्दी विद्वान इसे उलझाते ही गए। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र सहित कितने ही गैर-हिन्दी राज्यों के स्वतंत्रता सेनानियों व समाज सुधारकों तक ने हिन्दी की पक्षधरता की। महात्मा गांधी ने स्पष्ट कहा था- राष्ट्रभाषा का स्थान हिन्दी ही ले सकती है, कोई दूसरी भाषा नहीं। राजाराम मोहन राय, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सहित कितनी ही शख्सियतों ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की पक्षधरता की। आजादी के बाद जितने भी शिक्षा आयोग व शिक्षा नीतियां बनीं, सभी ने हिन्दी व मातृभाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाए जाने की बात की। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भी प्राथमिक शिक्षा मातृभाषाओं में देने की बात कर रही है। इसके बावजूद बाजार के हितों की रक्षा करने के लिए हिन्दी व भारतीय भाषाओं की उपेक्षा की जा रही है। यदि लोगों को यह लगता है कि हिन्दी व मातृभाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाया गया तो देश पिछड़ जाएगा, तो हमें जापान, चीन, जर्मनी, फ्रांस सहित मातृभाषाओं को शिक्षा व राजकाज का माध्यम बनाने वाले देशों से सीखना चाहिए। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा भी है-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय का सूल।।
प्रचलित करो जहान में निज भाषा करि जत्न।
राज काज दरबार में फैलावहु यह रत्न।।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, लेखक व स्तंभकार
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा-132041
मो.नं.-9466220145 

Friday, September 9, 2022

RETIRED COLLEGE PRINCIPAL DR. OMPARKASH KARUNESH VISITED GMSSSS BIANA (KARNAL)

 किताबों को अपना दोस्त बनाएं: करुणेश

संगोष्ठी में बोले सेवानिवृत्त कॉलेज प्राचार्य

इन्द्री, 9 सितंबर 

गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में राजकीय महाविद्यालय करनाल से सेवानिवृत्त प्राचार्य एवं प्रसिद्ध कवि डॉ. ओमप्रकाश करुणेश ने हिन्दी पखवाड़े के उपलक्ष्य में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित किया। संगोष्ठी की अध्यक्षता हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने की और संचालन हिन्दी अध्यापक एवं कवि नरेश कुमार मीत ने किया।


कवि करुणेश ने अपने संबोधन में कहा कि भाषा को वर्तमान स्वरूप देने एवं इसके विकास में जनभाषा एवं बोलियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। आम जन के संघर्षों ने भाषा के विकास में अपनी अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि कोई भी भाषा तभी आगे बढ़ती है, जब वह समावेशी होती है और आम जन से जुडक़र चलती है। हिन्दी को किसी भी भाषा के शब्दों से कोई परहेज नहीं रहा। यहां तक कि अंग्रेजी के भी कितने ही शब्द हिन्दी में शामिल हो गए हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को ज्ञान की दुनिया में प्रवेश करने के लिए किताबों को अपना दोस्त बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि किताबों का बहुत व्यापक संसार है। जो विद्यार्थी किताबें पढऩे की आदत डाल लेते हैं, वे अनेक प्रकार की बुराईयों से बच जाते हैं। उन्होंने गुरु रैदास, संत कबीर, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, डॉ. भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी, शहीद भगत सिंह व प्रेमचंद जैसी शख्सियतों की जीवनियां पढऩे के लिए  प्रेरित किया। उन्होंने स्कूल में विद्यार्थियों से अधिक से अधिक सवाल पूछ कर अपनी जिज्ञासाएं शांत करने का संदेश दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि भाषा केवल अभिव्यक्ति का ही नहीं, सोचने का भी माध्यम है। जो विद्यार्थी जितनी अधिक अच्छी भाषा जनता है, वह उतनी अधिक परिपक्वता व विवेक के साथ चीजों के बारे में सोचता भी है। उन्होंने कहा कि हिन्दी पखवाड़े के उपलक्ष्य में स्कूल में अनेक प्रकार की गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं। अंग्रेजी प्राध्यापक राजेश सैनी ने आए अतिथि का आभार व्यक्त किया। इस मौके पर ग्यारवहीं कक्षा की छात्रा कृति और मुस्कान ने हिन्दी भाषा की महत्ता पर अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में बारहवीं कक्षा के विद्यार्थी अमृत शर्मा ने सवाल पूछे। इस मौके पर प्राध्यापक मुकेश खंडवाल, सतीश राणा, सीमा गोयल, गोपाल दास, निशा, प्रीति आहुजा, रणदीप, आशीष, बिट्टू आदि उपस्थित रहे। 










JAGMARG 10-9-2022


YUGMARG 10-9-2022

Tuesday, September 6, 2022

Special Article in Dainik Tribune on Education

 


Article on Teacher Day

 शिक्षक दिवस विशेष

शिक्षक: सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का केन्द्रीय किरदार

सामाजिक बदलाव का वाहक है शिक्षक

अरुण कुमार कैहरबा

सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में शिक्षक एक अहम और केन्द्रीय किरदार है। शिक्षक की भूमिका पर चर्चा करते हुए कईं बार लोग अतिश्योक्तिपूर्ण और आध्यात्मिकता से ओतप्रोत काव्य-पंक्तियां कह कर शिक्षक को परमसत्ता का दर्जा तक दे देते हैं। शिक्षा एक लौकिक और सामाजिक कार्य है। इसलिए शिक्षक को आध्यात्मिकता के दायरे से बाहर निकाल कर मौजूदा शैक्षिक परिदृश्य के संदर्भ में चर्चा की जानी चाहिए। अलौकिक सत्ता मानने पर शिक्षक ना घर का रहेगा, ना घाट का।

हां, यह सत्य है कि माता-पिता व अन्य परिजनों के बाद बच्चे के सामाजिक, भाषिक, सांस्कृतिक, भावनात्मक, बौद्धिक, शारीरिक व अन्य कईं पक्षों विकास में शिक्षक की अहम भूमिका है। बच्चा जब नर्सरी में दाखिल होता है तो उसकी रूचियों-अभिरूचियों को परिष्कृत करते हुए अध्यापक उसके सीखने का रास्ता तैयार करता है। उसकी उंगली पकड़ कर उसे आगे बढ़ाता है। एक के बाद एक कक्षाओं को उत्तीर्ण करते हुए नन्हा शिशु बच्चे व किशोर से युवा होता है और अपने अनुभवों का विस्तार करता है। एक तरह से प्राथमिक शिक्षक बच्चे की नींव तैयार करता है। इसीलिए प्राथमिक शिक्षक का कार्य माध्यमिक, वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षक व कॉलेज, विश्वविद्यालयों के शिक्षक से भी ज्यादा अहमियत रखता है। यदि बच्चा प्राथमिक शिक्षा के दौरान लिखने-पढऩे व सामान्य गणित के कौशल भी अर्जित ना कर पाए तो ऊपरी दर्जे पर आने वाले अध्यापक अपना कार्य करने में अपने आप को असमर्थ पाते हैं। प्राथमिक शिक्षा के दौरान बच्चा जितनी अधिक कुशलताएं प्राप्त करके आता है, उतना ही उसका आगे बढऩा व बढ़ाना आसान होता है। सवाल यह है कि प्राथमिक शिक्षा व प्राथमिक शिक्षकों को हमारी व्यवस्था कितनी तरजीह देती है? प्राथमिक शिक्षक अपने कार्य को किस तरह से देखते हैं?

विचार-विमर्श और आत्मचिंतन के बिना शिक्षा का कर्म सारहीन होने के खतरे बने रहते हैं। परीक्षाओं के दबाव में कईं बार शिक्षक भी अपने आप को परीक्षा पास करवाने वाले एजेंट के रूप में देखना शुरू कर देते हैं। व्यवस्था के अनुसार शिक्षक बोर्ड व नॉन-बोर्ड, आन्तरिक व बाहरी, दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, छमाही, मध्यकालीन व वार्षिक तरह-तरह की परीक्षाएं आयोजित करता है। कईं बार तो विभिन्न प्रकार की लिखित परीक्षाओं की भरमार हो जाती है। इन परीक्षाओं से बोझिल शिक्षक का दिमाग मान लेता है कि यही परीक्षाएं महत्वपूर्ण हैं। इन्हीं परीक्षाओं की तैयारी शिक्षक का मूल दायित्व है। लेकिन ये परीक्षाएं किस लिए हैं, यह बात ओझल हो जाती है। बच्चे के मन-मस्तिष्क पर अत्यधिक परीक्षाओं का क्या असर होता है? क्या इन परीक्षाओं से बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं या फिर इनका उलटा असन तो नहीं हो रहा? इन बातों का संज्ञान लेना शिक्षक का ही काम है। सीखने की राह खोलना शिक्षक का काम है, सीखने की राह बंद करना नहीं। लिखित परीक्षाओं के अलावा स्कूल में की रूचियों-अभिरूचियों को मंच प्रदान करने के लिए बहुविध गतिविधियों का आयोजन करना जरूरी है। इन गतिविधियों में हिस्सेदारी करना भी विद्यार्थियों को सीखने के मौके देता है। खेल, नृत्य, संगीत, रंगमंच, रचनात्मक लेखन आदि गतिविधियों के जरिये संतुलन बनाने का काम भी शिक्षक का ही है।

शिक्षा, शिक्षक व समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा के निजीकरण की तरफ बढ़ते सरकारी कदमों की आन खड़ी हुई है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी किल्लत है। शिक्षकों की कमी पूरी करके स्कूल चलाने की बजाय स्कूलों को बंद किया जा रहा है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम भी भौथरा कर दिया गया है। शिक्षकों की कमी के कारण लोगों को भारी कीमत चुका कर निजी स्कूलों में बच्चों को भजने की मजबूरी बढ़ रही है। शिक्षकों पर गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ लाद दिया गया है। मिड-डे-मील योजना के संचालन में लगे अध्यापकों को हर रोज नून, तेल, मिर्च-मसाले, सब्जी, गैस-सिलेंडर सहित अन्य सामान खरीदना पड़ता है। इसके अलावा प्रति बच्चा के हिसाब से खर्च का हिसाब रखने में अपने जान खपानी पड़ती है। प्रशासन द्वारा अध्यापकों को बीएलओ (बूथ लेवल अफसर) का जिम्मा दिया गया है। नई वोटें बनाने के लिए सर्वेक्षण करना आदि बीएलओ का नियमित कार्य है। परिवार पहचान पत्र में परिवारों की आमदनी दर्ज करने का कार्य अध्यापकों को सौंप दिया गया है। कईं बार अध्यापकों को निश्चित समय तक कार्य पूरा करने का हुकम सुना दिया जाता है, जिससे उसका कक्षा में जाना भी दूभर हो जाता है। अन्य अनेक प्रकार की दिक्कतों के कारण स्कूलों में शिक्षकों को पढ़ाने का सुख व संतुष्टि नहीं मिल रही। ऐसी स्थितियों से यह पता चलता है कि व्यवस्था के सर्वेसर्वा बने लोग शिक्षा की बजाय अन्य कार्यों को तरजीह देते हैं। क्या अन्य सेवाओं के लिए और लोगों को कार्य पर नहीं लगाया जा सकता? 

जिस अध्यापक को सामाजिक बदलाव का वाहक बनना है, आज अनावश्यक कार्यों के बोझ से लदा वह ही अपने आप को लाचार पा रहा है। शिक्षक शिक्षण व विद्यार्थियों के विकास की गतिविधियों पर केन्द्रित हो सके, इसके लिए जरूरी है कि शिक्षक समाज से जुड़ कर शिक्षा में सुधार की आवाज को बुलंद करें। यह तय कि शिक्षक जागेगा तो देश जागेगा। शिक्षक जगाएगा तभी समाज जागेगा।  

हिन्दी प्राध्यापक

वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री, 

जिला-करनाल, हरियाणा

मो.नं.-9466220145

Dainik Jansandesh Times 5-9-2022


Friday, September 2, 2022

BRPs visited GMSSSS BIANA (KARNAL)

 कलाओं से हो सकता है बेहतर समाज का निर्माण: शिल्पी

सांस्कृतिक उत्सव के विजेताओं से बीआरपी ने किया संवाद

इन्द्री, 2 सितंबर
खंड स्तरीय सांस्कृतिक उत्सव में शानदार प्रदर्शन करने वाले गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों के साथ बीआरपी रविन्द्र शिल्पी, धर्मेन्द्र चौधरी व संगीत शिक्षक राजेश कुमार ने संवाद किया। उन्होंने जिला स्तरीय सांस्कृतिक उत्सव में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए टिप्स दिए और कला उत्सव में शामिल होने वाली प्रतियोगिताओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने की।
रविन्द्र शिल्पी ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कलाओं का दायरा बहुत व्यापक है और कलाओं से एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है। कलाएं दो तरह की होती हैं-दृश्य कला और प्रदर्शन कला। प्रदर्शन कला में गतिशीलता होती है। इन्हें मंच पर प्रदर्शित किया जाता है। नाटक, नृत्य, गायन व वादन में कलाकार मंच पर सक्रियता प्रदर्शित करता है। जबकि चित्रकला, क्ले मॉडलिंग व रंगोली आदि दृश्य कलाओं में कलाकार अपनी कलाकृतियां तैयार करके प्रदर्शित करता है। उन्होंने कहा कि गायन, वादन व नृत्य संगीत कला के अन्तर्गत आता है। उन्होंने कहा कि कला उत्सव में शास्त्रीय व लोक गायन, वाद्यवादन, शास्त्रीय व लोक नृत्य, एकल अभिनय, पेंटिंग व क्ले मॉडलिंग आदि गतिविधियां शामिल होती हैं। जो विद्यार्थी इन कलाओं में दिलचस्पी रखते हैं। वे अपनी कलाओं को और अधिक तराशें। कला के क्षेत्र में आगे बढऩे की अपार संभावनाएं हैं।
धमेन्द्र चौधरी ने कहा कि संवेदनशील समाज का निर्माण कलाओं के माध्यम से हो सकता है। जो विद्यार्थी कला साधना में लग जाते हैं, उनमें एकाग्रता बढ़ जाती है और बुराईयों से बचते हुए वे आगे बढ़ते जाते हैं। उन्होंने कहा कि मानवता के विकास में कलाओं का अहम योगदान होता है।

अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि खंड स्तरीय सांस्कृतिक उत्सव की लघु नाटिका प्रतियोगिता में राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल ब्याना की जूनियर व सीनियर टीम ने प्रथम स्थान प्राप्त किए हैं। इसके अलावा समूह नृत्य, एकल नृत्य और एकल रागनी गायन में दूसरा स्थान हासिल किया है। विद्यार्थियों को कलात्मक रूचियों को विकसित करने के लिए और कौशल को निखारने के लिए निरंतर अभ्यास करना होगा। संगीत शिक्षक राजेश कुमार ने सांस्कृतिक उत्सव की प्रस्तुतियों की समीक्षा करते हुए सुधार के सुझाव दिए। इस मौके पर अंग्रेजी प्राध्यापक राजेश कुमार, हिन्दी अध्यापक नरेश कुमार मीत, इतिहास प्राध्यापक सतीश कांबोज आदि उपस्थित रहे।
Dainik Jagmarg 3-9-2022