भगत सिंह की अध्ययनशीलता विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत: अरुण
भगत सिंह जयंती पर संगोष्ठी आयोजित
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YUGMARG 29-9-2022 |
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UTTAM HINDU 29-9-2022 |
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इन्द्री, 24 सितंबर
करनाल में आयोजित जिला स्तरीय कल्चरल फेस्ट में गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों ने शानदार प्रदर्शन किया। स्कूल में आयोजित समारोह में कार्यकारी प्रधानाचार्य अरुण कुमार कैहरबा ने विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र प्रदान कर विद्यार्थियों को सम्मानित किया। उन्होंने बताया कि स्कूल की 12वीं कक्षा की छात्रा तनवी शर्मा ने जिला स्तर पर एकल रागनी में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। पांच से आठ कक्षा वर्ग में स्कूल की नाटक टीम ने सिंगल यूज प्लास्टिक से मानव जीवन व पर्यावरण पर पड़ रहे बुरे प्रभावों को उजागर करके फेस्ट में दूसरा स्थान हासिल किया। नाटक टीम में सुशांत, दीक्षित, दीपांशु, जतिन, अनिकेत, नैतिक कश्यप, रमनपाल, नैतिक व अंशुमन ने शानदार अभिनय किया। नौवीं से 12वीं कक्षा वर्ग में स्कूल की नाटक टीम, समूह नृत्य व एकल नृत्य को भी जिला स्तर पर सांत्वना पुरस्कार के लिए चुना गया। टीमों में अमृत शर्मा, अंशुल, अंकुश, अखिल, गुरप्रीत, देवेन्द्र, नैतिक, मनप्रीत, दिव्या, वंशिका, उमा, निष्ठा, मानवी, तनुश्री, पायल, खुशी आदि विद्यार्थी शामिल रहे। विद्यार्थियों की उपलब्धियों से स्कूल में खुशी की लहर है। समारोह में जिला स्तर पर विद्यार्थियों का नेतृत्व करने के लिए प्राध्यापक बलराज व सीमा गोयल को भी सम्मानित किया गया।
अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि सभी बच्चे प्रतिभावान होते हैं। अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए बच्चों के पास एक क्षेत्र नहीं है, बल्कि अनेक क्षेत्र हैं। जो बच्चे अपनी प्रतिभा की पहचान करके उसमें मेहनत करते हैं, वे आगे बढ़ जाते हैं। स्कूल में बच्चों को विविध प्रकार की गतिविधियों में हिस्सा लेने का अवसर मिलता है। सभी बच्चे अपनी रूचि-अभिरूचि व प्रतिभा के अनुसार गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं। इससे पहले खंड व जिला स्तर पर स्कूल के विद्यार्थियों ने अच्छा प्रदर्शन करके स्कूल का नाम रोशन किया था। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों के लिए जरूरी है कि वे अध्यापकों का मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए अपनी दिलचस्पी के क्षेत्र का चुनाव करें और प्रतिभा के विकास के लिए अथक मेहनत करें। प्राध्यापक बलराज कांबोज ने विद्यार्थियों को सतत मेहतन करने के लिए प्रेरित किया। इस मौके पर प्राध्यापक सतीश कांबोज, अनिल पाल, सीमा गोयल, राजेश कुमार, गोपाल दास, सतीश राणा, राजेश सैनी, दिनेश कुमार, मुकेश कुमार, नरेश कुमार मीत, विनीत सैनी, रणदीप व लिपिक आशीष कांबोज शामिल रहे।
इन्द्री, 16 सितम्बर
इन्द्री में आयोजित खंड स्तरीय रोल प्ले व लोक नृत्य प्रतियोगिता में गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति स्कूल के विद्यार्थियों ने शानदार प्रदर्शन किया। डाइट शाहपुर के प्राध्यापक डॉ. ईश्वर सिंह, मनोज कुमार व कौशलेश की देखरेख में आयोजित रोल प्ले प्रतियोगिता में विद्यार्थी अंशुल, मनप्रीत, नैतिक, देवेन्द्र व अंशुल ने रोल प्ले के माध्यम से नशा मुक्ति का संदेश दिया और टीम ने पहला स्थान पाया। दूसरी तरफ लोक नृत्य में ब्याना स्कूल की टीम-तनुश्री, निष्ठा, मानवी, खुशी, उमा व वंशिका ने खंड स्तर पर द्वितीय स्थान प्राप्त किया। स्कूल प्रभारी अरुण कुमार कैहरबा ने विजेता विद्यार्थियों को बधाई देते हुए बताया कि स्कूल की शिक्षिका निशा कांबोज व बिट्टू के नेतृत्व में विद्यार्थियों की टीमों ने प्रतियोगिता में शिरकत की और उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। खंड शिक्षा अधिकारी डॉ. राममूर्ति शर्मा ने विजेता टीमों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों में विविध प्रतिभाएं छुपी हुई हैं। प्रतिभाओं के विकास के लिए शिक्षा विभाग व एससीईआरटी द्वारा कईं कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें बच्चों को मंच मिलता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य बच्चों में छिपी प्रतिभा की पहचान करना, उसे मंच प्रदान करके उसका विकास करना होता है। डाइट प्रतिनिधि डॉ. ईश्वर सिंह ने बताया कि खंड स्तर पर पहला व दूसरा स्थान प्राप्त करने वाली टीमें जिला स्तर पर प्रतियोगिता में शिरकत करेंगी। जिला स्तरीय प्रतियोगिता 30 सितंबर से पहले आयोजित करने का लक्ष्य रखा गया है। जल्द ही जिला स्तरीय प्रतियोगिता के तिथि निर्धारित करके स्कूलों को भेजी जाएगी।
इन्द्री, 14 सितम्बर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में सावित्री बाई फुले सदन के नेतृत्व में हिन्दी दिवस धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने सक्रिय भागीदारी की और कविता पाठ, नारा लेखन, भाषण व नाटक प्रस्तुत करके सबका मन मोह लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्कूल प्रभारी व हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने की। संयोजन हिन्दी अध्यापक नरेश कुमार मीत ने किया। संचालन सदन की वाइस कैप्टन हिमांशी व तनुश्री ने किया।
विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि हिन्दी देश व दुनिया की महत्वपूर्ण भाषा है। आजादी की लड़ाई के संघर्षों में हिन्दी साहित्यकारों की लेखनी ने जन जागरूकता में अहम भूमिका निभाई। आजादी के बाद भी हिन्दी लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है। आज पूरे भारत में हिन्दी को अच्छी तरह से समझा जाता है। उन्होंने कहा कि भाषा हर तरह की तरक्की का आधार है। भाषा सोचने-विचारने, अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और सवाल खड़े करने में सहायक होती है। जो विद्यार्थी जितनी अच्छी भाषा जानता-समझता है, उसके लिए आगे बढऩे के अवसर खुलते चले जाते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को किताबों व अच्छे साहित्य से दोस्ती बनाने का संदेश दिया।
नरेश कुमार मीत ने कहा कि हिन्दी दुनिया की सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा है। इसके बोलने व लिखने में कोई अंतर नहीं है। जो कुछ बोला जाता है और वही लिखा जाता है। हर तरह की ध्वनि को हिन्दी धारण किए हुए है। उन्होंने कहा कि हिन्दी में पहले अवधी और ब्रज भाषा का वर्चस्व था। इनमें एक से एक कविताएं लिखी गई। लेकिन आज जिस खड़ी बोली को हिन्दी का दर्जा दिया गया है, उसमें हम वैज्ञानिक, सामाजिक व मनोवैज्ञानिक सभी विषयों के ज्ञान को संजोया गया है।
कार्यक्रम में उमा, मुस्कान, कृतिका व भूमिका ने कविता पाठ करके हिन्दी के प्रति अपना स्नेह प्रकट किया। कनिका, महक, नैंसी, माही ने आज का विचार, समाचार व प्रश्र पूछे। अमृत, अंशुल, नैतिक, देवेन्द्र, गुरप्रीत, अंकुश, जतिन, अनिकेत, सुशांत, दीक्षित, नैतिक कश्यप, रमनपाल, नैतिक ने पर्यावरण संरक्षण और नशा मुक्ति के नाटकों की तैयारी की। नारा लेखन में निकिता व खुशी, भाषण में कृति व मुस्कान, स्वरचित कहानी लेखन में शमा, वंदना व पायल, चित्र देखकर कहानी लिखना में महिमा, उदित व सुशांत में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। इस मौके पर प्राध्यापक अनिल पाल, सतीश राणा, राजेश कुमार, मुकेश खंडवाल, सीमा गोयल, गोपाल दास, राजेश सैनी, प्रीति आहुजा, रणदीप, विनीत सैनी, बिट्टू, निर्मलजीत सिंह, लिपिक आशीष, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अरुण कुमार व कुलदीप उपस्थित रहे।
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Jagmarg 15-9-2022 |
इन्द्री, 9 सितंबर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में राजकीय महाविद्यालय करनाल से सेवानिवृत्त प्राचार्य एवं प्रसिद्ध कवि डॉ. ओमप्रकाश करुणेश ने हिन्दी पखवाड़े के उपलक्ष्य में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित किया। संगोष्ठी की अध्यक्षता हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने की और संचालन हिन्दी अध्यापक एवं कवि नरेश कुमार मीत ने किया।
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JAGMARG 10-9-2022 |
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YUGMARG 10-9-2022 |
सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में शिक्षक एक अहम और केन्द्रीय किरदार है। शिक्षक की भूमिका पर चर्चा करते हुए कईं बार लोग अतिश्योक्तिपूर्ण और आध्यात्मिकता से ओतप्रोत काव्य-पंक्तियां कह कर शिक्षक को परमसत्ता का दर्जा तक दे देते हैं। शिक्षा एक लौकिक और सामाजिक कार्य है। इसलिए शिक्षक को आध्यात्मिकता के दायरे से बाहर निकाल कर मौजूदा शैक्षिक परिदृश्य के संदर्भ में चर्चा की जानी चाहिए। अलौकिक सत्ता मानने पर शिक्षक ना घर का रहेगा, ना घाट का।
हां, यह सत्य है कि माता-पिता व अन्य परिजनों के बाद बच्चे के सामाजिक, भाषिक, सांस्कृतिक, भावनात्मक, बौद्धिक, शारीरिक व अन्य कईं पक्षों विकास में शिक्षक की अहम भूमिका है। बच्चा जब नर्सरी में दाखिल होता है तो उसकी रूचियों-अभिरूचियों को परिष्कृत करते हुए अध्यापक उसके सीखने का रास्ता तैयार करता है। उसकी उंगली पकड़ कर उसे आगे बढ़ाता है। एक के बाद एक कक्षाओं को उत्तीर्ण करते हुए नन्हा शिशु बच्चे व किशोर से युवा होता है और अपने अनुभवों का विस्तार करता है। एक तरह से प्राथमिक शिक्षक बच्चे की नींव तैयार करता है। इसीलिए प्राथमिक शिक्षक का कार्य माध्यमिक, वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षक व कॉलेज, विश्वविद्यालयों के शिक्षक से भी ज्यादा अहमियत रखता है। यदि बच्चा प्राथमिक शिक्षा के दौरान लिखने-पढऩे व सामान्य गणित के कौशल भी अर्जित ना कर पाए तो ऊपरी दर्जे पर आने वाले अध्यापक अपना कार्य करने में अपने आप को असमर्थ पाते हैं। प्राथमिक शिक्षा के दौरान बच्चा जितनी अधिक कुशलताएं प्राप्त करके आता है, उतना ही उसका आगे बढऩा व बढ़ाना आसान होता है। सवाल यह है कि प्राथमिक शिक्षा व प्राथमिक शिक्षकों को हमारी व्यवस्था कितनी तरजीह देती है? प्राथमिक शिक्षक अपने कार्य को किस तरह से देखते हैं?
विचार-विमर्श और आत्मचिंतन के बिना शिक्षा का कर्म सारहीन होने के खतरे बने रहते हैं। परीक्षाओं के दबाव में कईं बार शिक्षक भी अपने आप को परीक्षा पास करवाने वाले एजेंट के रूप में देखना शुरू कर देते हैं। व्यवस्था के अनुसार शिक्षक बोर्ड व नॉन-बोर्ड, आन्तरिक व बाहरी, दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, छमाही, मध्यकालीन व वार्षिक तरह-तरह की परीक्षाएं आयोजित करता है। कईं बार तो विभिन्न प्रकार की लिखित परीक्षाओं की भरमार हो जाती है। इन परीक्षाओं से बोझिल शिक्षक का दिमाग मान लेता है कि यही परीक्षाएं महत्वपूर्ण हैं। इन्हीं परीक्षाओं की तैयारी शिक्षक का मूल दायित्व है। लेकिन ये परीक्षाएं किस लिए हैं, यह बात ओझल हो जाती है। बच्चे के मन-मस्तिष्क पर अत्यधिक परीक्षाओं का क्या असर होता है? क्या इन परीक्षाओं से बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं या फिर इनका उलटा असन तो नहीं हो रहा? इन बातों का संज्ञान लेना शिक्षक का ही काम है। सीखने की राह खोलना शिक्षक का काम है, सीखने की राह बंद करना नहीं। लिखित परीक्षाओं के अलावा स्कूल में की रूचियों-अभिरूचियों को मंच प्रदान करने के लिए बहुविध गतिविधियों का आयोजन करना जरूरी है। इन गतिविधियों में हिस्सेदारी करना भी विद्यार्थियों को सीखने के मौके देता है। खेल, नृत्य, संगीत, रंगमंच, रचनात्मक लेखन आदि गतिविधियों के जरिये संतुलन बनाने का काम भी शिक्षक का ही है।
शिक्षा, शिक्षक व समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा के निजीकरण की तरफ बढ़ते सरकारी कदमों की आन खड़ी हुई है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी किल्लत है। शिक्षकों की कमी पूरी करके स्कूल चलाने की बजाय स्कूलों को बंद किया जा रहा है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम भी भौथरा कर दिया गया है। शिक्षकों की कमी के कारण लोगों को भारी कीमत चुका कर निजी स्कूलों में बच्चों को भजने की मजबूरी बढ़ रही है। शिक्षकों पर गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ लाद दिया गया है। मिड-डे-मील योजना के संचालन में लगे अध्यापकों को हर रोज नून, तेल, मिर्च-मसाले, सब्जी, गैस-सिलेंडर सहित अन्य सामान खरीदना पड़ता है। इसके अलावा प्रति बच्चा के हिसाब से खर्च का हिसाब रखने में अपने जान खपानी पड़ती है। प्रशासन द्वारा अध्यापकों को बीएलओ (बूथ लेवल अफसर) का जिम्मा दिया गया है। नई वोटें बनाने के लिए सर्वेक्षण करना आदि बीएलओ का नियमित कार्य है। परिवार पहचान पत्र में परिवारों की आमदनी दर्ज करने का कार्य अध्यापकों को सौंप दिया गया है। कईं बार अध्यापकों को निश्चित समय तक कार्य पूरा करने का हुकम सुना दिया जाता है, जिससे उसका कक्षा में जाना भी दूभर हो जाता है। अन्य अनेक प्रकार की दिक्कतों के कारण स्कूलों में शिक्षकों को पढ़ाने का सुख व संतुष्टि नहीं मिल रही। ऐसी स्थितियों से यह पता चलता है कि व्यवस्था के सर्वेसर्वा बने लोग शिक्षा की बजाय अन्य कार्यों को तरजीह देते हैं। क्या अन्य सेवाओं के लिए और लोगों को कार्य पर नहीं लगाया जा सकता?
जिस अध्यापक को सामाजिक बदलाव का वाहक बनना है, आज अनावश्यक कार्यों के बोझ से लदा वह ही अपने आप को लाचार पा रहा है। शिक्षक शिक्षण व विद्यार्थियों के विकास की गतिविधियों पर केन्द्रित हो सके, इसके लिए जरूरी है कि शिक्षक समाज से जुड़ कर शिक्षा में सुधार की आवाज को बुलंद करें। यह तय कि शिक्षक जागेगा तो देश जागेगा। शिक्षक जगाएगा तभी समाज जागेगा।
हिन्दी प्राध्यापक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145Dainik Jansandesh Times 5-9-2022
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Dainik Jagmarg 3-9-2022 |