Wednesday, April 7, 2021

MANGAL PANDEY - A GREAT FREEDOM WARRIOR

 मंगल पांडे ने शहादत देकर किया स्वतंत्रता संग्राम का आगाज़

मंगल पांडे: द राइजिंग एक बेहतरीन सांस्कृतिक प्रस्तुति

अरुण कुमार कैहरबा
HIMACHAL DASTAK



अन्याय, अत्याचार, शोषण व दूसरों को गुलाम बनाने की प्रवृत्ति के साथ ही अन्याय व शोषण से मुक्ति की कोशिशें भी शुरू हुई। देश में व्यापार करने आई ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी साम-दाम-दंड-भेद की नीति के चलते धंधा करते-करते शासक बन गई। यहां के राजाओं को हर तरीके से परास्त करके शासन करने लगी और लोगों का शोषण करने लगी। लोगों को जब इसका अहसास हुआ तो आजादी की लड़ाई शुरू हुई। हालांकि देश को औपचारिक रूप से आजादी तो 15 अगस्त, 1947 को मिली, लेकिन बहुत पहले ही इसकी कोशिशें शुरू हो गई थी। स्वतंत्रता आंदोलन की शुरूआत 1857 में हो गई थी। पहले स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी मिलने तक कितने ही वीर-वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी। उन्हीं में से एक अंग्रेज सेना के जोशिले सिपाही मंगल पांडे की शहादत को भी कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। क्रांतिकारी ऐतिहासिक विरासत को याद करने और करवाने के लिए सांस्कृतिक-रचनात्मक अभिव्यक्तियों की अहम भूमिका होती है। 2005 में आई केतन मेहता निर्देशित एवं आमिर खान अभिनीत फिल्म- मंगल पांडे- द राइजिंग भी ऐसी ही सांस्कृतिक प्रस्तुति है।

आजादी की लड़ाई का शंखनाद करने वाले मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया के नगवा नामक स्थान में हुआ माना जाता है। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे व माता का नाम अभय रानी था। मंगल पांडे 1849 में ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए। वे कलकत्ता की बैरकपुर छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री की पैदल सेना के सिपाही थे और उनका नंबर-1446 था। वे बहादुर सिपाही थे। 1853 में सिपाहियों को एनफील्ड बंदूक दी गई। इस नई बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली का प्रयोग किया गया। लेकिन गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी ही थी। बंदूक में गोली डालने से पूर्व कारतूस को दांतों से काटना  पड़ता था। इस कारतूस के बारे में धीरे-धीरे प्रचार हो गया कि ये कारतूस गाय व सूअर की चर्बी के बनाए गए हैं। इससे सेना में शामिल हिंदू सैनिकों के लिए गाय की चर्बी को मुंह से काटना धर्मविरूद्ध कार्य था और मुस्लिमों के लिए सूअर की चर्बी का इस्तेमाल हराम था। ऐसे में सैनिकों में आक्रोश फैल गया। सेना में धार्मिक भावनाओं के आहत होने से फैला असंतोष मंगल पांडे के आक्रोश की वजह से आजादी के आंदोलन से जुड़ा। 29मार्च के दिन तो मंगल पांडे का यह आक्रोश प्रचंड हो गया। उसने अंग्रेजी अधिकारियों पर हमला कर दिया। हालांकि सेना के अन्य जवान पांडे के तरीके से सहमत नहीं थे। इसके बावजूद उसने सैनिकों को निडरता का पाठ पढ़ाते हुए आजादी के आंदोलन का आगाज कर दिया। उसने सेना के दो अधिकारियों को धराशायी कर दिया। बाद में 6 अप्रैल, 1857 को कोर्ट मार्शल के जरिये मंगल पांडे को फांसी की सजा का निर्णय किया गया। फांसी 18 अप्रैल को दी जानी थी। लेकिन विद्रोह की आग फैलने की आशंका के कारण अंग्रेजों ने उसे 8 अप्रैल को फांसी दे दी। इस तरह से मंगल पांडे आजादी की लड़ाई में पहले क्रांतिकारी साबित हुए, जिसे अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी। बाद में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम पूरे देश में फैला। हालांकि उसे दबा दिया गया। लेकिन अंग्रेज सरकार के सामने यह पक्का हो गया कि अब ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी भारत पर अपना वर्चस्व बनाए नहीं रख पाएगी और अंग्रेजी सरकार ने सीधे भारत को अपने अधिकार में लेकर शासन करना शुरू कर दिया। भले ही 1857 का स्वतंत्रता संग्राम अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाया, लेकिन वही चिंगारी धीरे-धीरे प्रचंड रूप लेती गई, जिसके कारण 90 साल बाद देश को आजादी मिली।
फिल्म की बात करें तो फिल्म में मंगल पांडे की भूमिका को सिनेमा के परफैक्शनिस्ट आमिर खान बहुत शिद्दत से निभाते हैं। फिल्म सात अप्रैल को मंगल पांडे की फांसी के दृश्य से शुरू होती है। सभी जल्लाद उसे फांसी देने से मना कर देते हैं। इससे अंग्रेज अधिकारी परेशान हैं। फिल्म में ब्रिटिश अधिकारी विलियम गॉर्डन (टोबी स्टीफंस) मंगल पांडे के साथ अपनी दोस्ती के किस्से को याद करते हैं। एक युद्ध में किस तरह से मंगल पांडे उसके जीवन को बचाता है। पांडे और गॉर्डन रैंक और रेस से कहीं आगे पक्के दोस्त बन जाते हैं। गॉर्डन के आश्वासन पर एक बारगी तो मंगल पांडे कारतूस में चर्बी की बात को मानने से इन्कार कर देता है। सेना में वह कारतूस का इस्तेमाल करने की पहल करता है, जिसके लिए उसे अनेक प्रकार की बातें सुननी पड़ती हैं। बाद में वह खुद फैक्ट्री देखता है, जहां पर चर्बी से कारतूस तैयार किए जा रहे हैं। इससे पांडे के नेतृत्व में विद्रोह फूट पड़ता है और स्थिति अंग्रेज अधिकारियों के नियंत्रण से बाहर हो जाती है। विद्रोह के लिए निर्धारित तिथि का खुलासा अंग्रेजों को हो जाता है। तो कंपनी म्यांमार (बर्मा) से सेना बुलाकर विद्रोह को त्वरित रूप से रोकती है। इसके बावजूद मंगल पांडे आजादी के लिए अपने जुनून का प्रदर्शन करता है। वह अंग्रेज अधिकारियों पर गोलियां चलाता है, लेकिन जब उसे लगता है कि अब वह बचेगा नहीं तो वह बंदूक से खुद की जान लेने की कोशिश करता है। लकिन यह कोशिश असफल रहती है। आखिर उसे फांसी दी जाती है।
फिल्म में सती प्रथा, जाति प्रथा, महिलाओं की खरीद-फरोख्त और महिलाओं के शोषण के दृश्यों को मार्मिक ढ़ंग से दिखाया गया है। सती प्रथा पर प्रतिबंध के बावजूद जब बड़ी उम्र के पति की मृत्यु पर युवा पत्नी को जबरन सती किया जा रहा होता है तो गॉर्डन उस विधवा लडक़ी (अमिशा पटेल) को बचाता है और जान जोखिम में डाल कर अपने घर ले आता है। उस पर अनेक हमले होते हैं। लेकिन वह उस लडक़ी की जान बचाने के प्रति प्रतिबद्ध है। बाद में वह उससे प्यार करने लगता है। फिल्म में एक अन्य लडक़ी (रानी मुखर्जी) की बोली लगाई जाती है, जिसे लोल बीबी (किरण खेर) वेश्यावृत्ति के लिए खरीद लेती है। उसका नाम हीरा रखा जाता है। हीरा मंगल पांडे से प्रेम करने लगती है। फांसी से पूर्व वह जेल में उससे सिंदूर से मांग भरवाती है और विवाह करती है।
फिल्म ऐतिहासिक विद्रोह के चित्रों के बाद महात्मा गांधी के पैदल मार्च, 15 अगस्त 1947 में पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा ध्वजारोहण के चित्रों के साथ समाप्त होती है। पूरी कहानी को ओमपुरी की आवाज में सुनना भी रोचक बन पड़ा है। फिल्म इतिहास के चित्रण और मनोरंजन दोनों मामलों में सफल साबित हुई है।

अरुण कुमार कैहरबा,
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार एवं लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा-132041
मो.नं.-9466220145

DAILY NEWS ACTIVIST 

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