विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष
कुदरत के नजदीक आएं, प्यारी धरती को बचाएं!
पृथ्वी का हम रूप निखारें, जल-जंगल से इसे संवारें!
अरुण कुमार कैहरबा![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgviakm6OHTundX-uaH62IQcaBiaSTN_XfDvNLHTVGtp5aYZKGMZAcIKCB055_g_bwtVu_8RQQad_3Ay3XC5OoTFWvSg2Thyphenhyphen7xi7vwZi4yBtGow8aV76x_wc26Kz6jdFPUiRvaUF6XcXiss/w640-h456/PUNJAB+KESRI+22-4-2021.png)
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जमीन, भू, भूमि, धरा, धरणी, अचला, पृथ्वी, वसुधा, वसुंधरा, रत्नगर्भा सहित कितने ही सुंदर नामों वाली प्यारी धरती मनुष्य और जीव-जंतुओं की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। इसके बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन विकास की जाने कौन-सी दौड़ और हवस है, जिसके कारण मनुष्य धरती के वातावरण को लगातार नुकसान पहुंचा रहा है। आज धरती के वातावरण और जन जीवन को बचाने के लिए हमारे सामने अनेक चुनौतियाँ पैदा हो गई हैं। सूरज की पैराबैंगनी किरणों से धरती की रक्षा करने वाली ओजोन परत को खतरा पैदा हो गया है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है। बर्फ के ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं। जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। पानी के स्रोत दूषित होते जा रहे हैं। धरती पर अपशिष्ट कूड़े के अम्बार लगे हुए हैं। हर रोज पैदा होने वाले कचरे की तुलना में कचरे के प्रबंधन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। कचरा प्रबंधन में भ्रष्टाचार जले पर नमक के समान है। सुनामी, सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए भी मनुष्य की उदासीनता को जिम्मेदार बताया जा रहा है, तो हर एक का दायित्व है कि धरती, उसकी वन सम्पदा, जल सम्पदा, पहाड़ व प्रकृति को बचाने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर पर्यास किए जाएं।
मानव सहित पृथ्वी लाखों प्रजातियों का घर है। पृथ्वी सौरमण्डल का एकमात्र ग्रह है जहां पर जीवन सम्भव है। सात महाद्वीपों में बांटी गई पृथ्वी पर सबसे उच्चतम बिंदु माउंट एवरेस्ट है, जिसकी ऊँचाई 8848 मीटर है। दूसरी ओर सबसे निम्नतम बिंदु प्रशांत महासागर में स्थित मारियाना खाई है, जिसकी समुद्र के स्तर से गहराई 10 हजार 911 मीटर है। पृथ्वी आकार में 5वां सबसे बड़ा ग्रह है और सूर्य से दूरी के क्रम में तीसरा ग्रह है। आकार एवं बनावट की दृष्टि से पृथ्वी शुक्र के समान है। यह अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व 1610 किलोमीटर प्रतिघंटा की चाल से 23 घंटे 56 मिनट और 4 सकेण्ड में एक चक्कर पूरा करती है। पृथ्वी की इस गति को घूर्णन या दैनिक गति कहते हैं। इस गति से ही दिन व रात होते हैं। पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट 46 सेकेण्ड का समय लगता है। सूर्य के चातुर्दिक पृथ्वी की इस परिक्रमा को पृथ्वी की वार्षिक गति अथवा परिक्रमण कहते हैं। पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में लगे समय को सौर वर्ष कहा जाता है। प्रत्येक सौर वर्ष, कैलंडर वर्ष से लगभग 6 घंटा बढ़ जाता है। जिसे हर चौथे वर्ष में लीप वर्ष बनाकर समायोजित किया जाता है। लीप वर्ष 366 दिन का होता है। जिसके कारण फऱवरी माह में 28 दिन के स्थान पर 29 दिन होते हैं। जल की उपस्थिति तथा अंतरिक्ष से नीला दिखाई देने के कारण पृथ्वी नीला ग्रह भी कहा जाता है।
पृथ्वी की उत्पत्ति 4.6 अरब वर्ष पूर्व हुई थी। जिसका 70.8 प्रतिशत भाग जलीय और 29.2 प्रतिशत भाग स्थलीय है। उत्पत्ति के एक अरब वर्ष बाद यहाँ जीवन का विकास शुरू हो गया था। तब से पृथ्वी के जैवमंडल ने यहां के वायु मण्डल में काफ़ी परिवर्तन किया है। समय बीतने के साथ ओजोन पर्त बनी जिसने पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के साथ मिलकर पृथ्वी पर आने वाले हानिकारक सौर विकिरण को रोककर इसको रहने योग्य बनाया। लेकिन बढ़ती जनसंख्या तथा औद्योगीकरण व शहरीकरण में तेजी से वृद्धि ने 20वीं सदी में पर्यावरण को क्षति की प्रक्रिया को तेज कर दिया था। प्रदूषण के कारण पृथ्वी अपना प्राकृतिक रूप खोती जा रही है। पृथ्वी के सौंदर्य को जगह-जगह बेतरतीब फैले कचरे के अम्बारों और ठोस अपशिष्ट पदार्थों ने लील लिया है। आधुनिक युग में सुविधाओं के विस्तार ने भी स्थिति को विकराल बना दिया है। मनुष्यों की सुविधा के लिए बनाई गयी पॉलीथीन सबसे बड़ा सिरदर्द बन गई है। पॉलीथीन जमीन और जल दोनों के लिए घातक सिद्ध हुआ है। इनको जलाने से निकलने वाला धुआँ ओज़ोन परत को भी नुकसान पहुँचाता है जो ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा कारण है। देश में प्रतिवर्ष लाखों पशु-पक्षी पॉलीथीन के कचरे से मर रहे हैं। इससे लोगों में कई प्रकार की बीमारियाँ फैल रही हैं। इससे भूगर्भीय जलस्रोत दूषित हो रहे हैं। पॉलीथीन कचरा जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड एवं कार्बन डाईऑक्सीन्स जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं। इनसे सांस, त्वचा आदि की बीमारियाँ होने की आशंका बढ़ जाती है। भारत की ही बात करें तो यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 500 मीट्रिक टन पॉलीथिन का निर्माण होता है, लेकिन इसके एक प्रतिशत से भी कम का पुनर्चक्रण हो पाता है। अनुमान है कि भोजन के धोखे में इन्हें खा लेने के कारण प्रतिवर्ष एक लाख समुद्री जीवों की मौत होती है। विश्व में प्रतिवर्ष प्लास्टिक का उत्पादन 10 करोड़ टन के लगभग है और इसमें प्रतिवर्ष उसे 4 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। भारत में औसतन प्रत्येक भारतीय के पास प्रतिवर्ष आधा किलो प्लास्टिक अपशिष्ट पदार्थ इक_ा हो जाता है। इसका अधिकांश भाग कूड़े के ढ़ेर पर और इधर-उधर बिखर कर पर्यावरण प्रदूषण फैलाता है।
ग्रीन हाऊस गैसों का असंतुलन भी पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। मानव निर्मित ग्रीन हाउस गैसों के उत्पादन में कमी लाने के लिए दिसंबर,1997 में क्योटो प्रोटोकोल लाया गया। इसके तहत 160 से अधिक देशों ने यह स्वीकार किया कि उनके देश में ग्रीन हाउस गैसों के प्रोडक्शन में कमी लाई जाएगी। यह आश्चर्य की बात है कि 80 प्रतिशत से अधिक ग्रीन हाउस गैस का उत्पादन करने के लिए जिम्मेदार अमेरिका ने अब तक इस प्रोटोकोल को स्वीकार नहीं किया है। वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के दौर में बढ़ रहे पर्यावरण विरोधी विकास के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है, जिससे प्रकृति का मौसम चक्र भी अनियमित होता जा रहा है। पृथ्वी के तापमान में पिछले सौ सालों में 0.18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की वृद्धि हो चुकी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि धरती का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा, तो 21वीं सदी के अंत तक धरती पर जीवन दूभर हो जाएगा।
प्राकृतिक संतुलन और पर्यावरण को बचाने के लिए 1970 से पृथ्वी दिवस मनाए जाने की शुरूआत हुई थी। जिसके बाद से हर वर्ष 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। आईए इस दिन को औपचारिकता की बजाय विमर्श की शुरूआत का दिन बनाएँ। पर्यावरण की चिंताओं को छोड़ कर किए जा रहे अंधाधुंध विषम विकास के विरोध के लिए जागरूकता का वातावरण पैदा करें। पृथ्वी दिवस के लिए इस बार का विषय-आओ पृथ्वी को सुधारें रखा गया है। पृथ्वी को सुधारने व इसकी गरिमा को बहाल करने के लिए हमें प्रकृति के नजदीक जाना होगा। जल, जंगल को बचाना होगा। इनके अंधाधुंध दोहन पर रोक लगानी होगी। कूड़े के निपटान को वैज्ञानिक बनाना होगा। प्रदूषण पर रोक लगानी होगी। पशु-पक्षियों को बचाना होगा। अपने दैनिक जीवन में भी ऐसे उपाय किए जाने की ज़रूरत है, जिससे पर्यावरण को बचाया जा सके। चाहे वह पौधारोपण-पौधापोषण का काम हो या फिर पॉलीथीन का कम से कम प्रयोग।
अरुण कुमार कैहरबापर्यावरण कार्यकर्ता, प्राध्यापक, लेखक, स्तंभकार
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान,
इन्द्री, जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.- 9466220145
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VIR ARJUN 22-4-2021 |
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JAGAT KRANTI 22-4-2021 |
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